Author : Rumi Aijaz

Published on Nov 20, 2023 Updated 0 Hours ago

इलेक्ट्रिक बसों की ओर जाने में दिल्ली सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. राष्ट्रीय राजधानी में बार-बार होने वाली वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए, इनपर काबू पाना महत्वपूर्ण है.

दिल्ली: इलेक्ट्रिक बसों को पूरी तरह से अपनाने में आने वाली बाधाएं

मोटर गाड़ियों से उत्सर्जित होने वाले हानिकारक प्रदूषक, भारत के सभी बड़े शहरों के लिए एक प्रमुख समस्या बनकर उभरे हैं. शहरों की विशाल जन आबादी की वजह से रोज यात्रा करने वाले दैनिक यात्रियों की तादाद काफी ज्यादा और बड़ी संख्या में मौजूद है और इसके लिये जिन गाड़ियों का उपयोग किया जाता है उनमें से ज्य़ादातर वाहन पेट्रोल, डीजल, प्राक्टरिटिक गैस, या फिर जीवाश्म ईंधन द्वारा चलाये जाते हैं. इसलिए, वायु प्रदूषण को बढ़ाने में यात्रियों की आवाजाही, उनकी गतिविधियां खासा बड़ा योगदान देने का काम करती है. खराब वायु गुणवत्ता के कारण पैदा होने वाले हानिकारक प्रभावों को लेकर लोगों की बढ़ती जागरूकता के साथ ही, सरकार द्वारा पर्यावरण के अनुकूल परिवहन, और उसके अनुकूल साधनों को प्रोत्साहित किए जाने और प्रदान करने के लगातार प्रयास किए जा रहे है. 

पूरे भारत के स्तर पर पर, शहरी परिवहन के क्षेत्र में, उत्सर्जन से जुड़े कई हस्तक्षेपों या मध्यस्थता का ज़िक्र किया गया है. इस लेख में दिल्ली शहर में, सार्वजनिक परिवहन साधन यानी कि बसों के ज़रिये होने वाले कार्बन उत्सर्जन और उसे कम करने के लिये किये जा रहे उपायों और ऐसा करते हुए जो अनुभव मिले उन पर सीमित किया गया है. 

साल 2023 में, 1,483 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई भारत की सबसे अधिक आबादी वाला और सबसे बड़ा शहर है दिल्ली. नागरिकों की यात्रा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, चार प्रकार के मोटरयुक्त जनपरिवहन सुविधाएं आमतौर पर सरकार द्वारा मुहैया कराई गई है. इनमें मेट्रो रेल, बस, टैक्सी, और ऑटो रिक्शा शामिल है. इसके अलावे, बड़ी संख्या में, निजी तौर पर चलने वाले टैक्सी भी भारी मात्र में उपलब्ध हैं. यात्रा के इन सभी साधन की भूमिका के बारे में नीचे विस्तार चर्चा की गई है.   

वर्ष 2002 से हुए मेट्रो रेल नेटवर्क के विस्तार के साथ-साथ, इसकी लोकप्रियता और इस्तेमाल समय के साथ-साथ बढ़ा ही है. साल 2021-22 के दौरान, औसतन रोज मेट्रो की सवारी करने वाले यात्रियों की संख्या 2.5 मिलियन दर्ज की गई है. दूसरी तरफ, 1947 में देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से, बसों का संचालन, सबसे पुराना पंब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम रहा है. यह सेवा शहर की लगभग अधिकतर हिस्सों को बिछी हुई है और वर्ष 2021-22 में भी लगभग उतनी ही संख्या जितनी की मेट्रो की रही है में (2.5 मिलियन व्यक्तियों द्वारा औसतन रोज की बस यात्रा) यात्रियों को अपनी सेवा प्रदान कर चुकी है. इसके अलावा, आबादी का एक काफी बड़ा हिस्सा, अन्य उपलब्ध परिवहन सुविधाएं (उदाहरणार्थ टैक्सी और ऑटोरिक्शा) का भी इस्तेमाल करता है.  

दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या का निदान ढूंढने के लिये  पहला बड़ा कदम वर्ष 2001 में भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उठाया गया था, जिसमें ये कहा गया था कि दिल्ली सरकार अपने यहां प्रदूषण करने करने के लिये ऐसा कानून लाना होगा जिसके तहत वहा डीज़ल से कम प्रदूषण पैदा करने वाले विकल्प, यानी की कंप्रेस्ड नैचुरल गैस (CNG) सीएनजी प्राकृतिक गैस को इस्तेमाल में लाने की ज़रूरत है. इसलिए, दिल्ली में इस वक्त ऐसे सभी वाहन, जिनमें सिटी बसें भी शामिल हैं, वे सब आज सीएनजी द्वारा चालित हैं. साल 2011-12 से ही, भारत सरकार, इलेक्ट्रिक वाहनों से विमुख होने के इस विचार को प्रोत्साहित कर रही है और ईवी सेक्टर के विकास के लिए ज़रूरी ऐसे कई सहायक उपायों को अपने अधीन ले रही है.    

शहर में चलने वाली सीटी बसों के संदर्भ में, ये ध्यान देने योग्य बात है कि वहां इस वक्त कुल 7,135 बसें संचालन में है. इनमें से 800 इलेक्ट्रिक बसें (ई-बस) है और बाकी बचे 6,335 बसें सीएनजी द्वारा संचालित है. बढ़ती ज़रूरत की मांग को पूरा करने के लिए, दिल्ली सरकार, बसों की संख्या में वृद्धि करने का विचार बना रही है. शहर के सभी बस डिपो में, बाकी बचे सीएनजी बसों को भी जल्द ही चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ, ई-बसों से बदले जाने का प्रावधान है. साल 2025 तक, कुल 8000 ई-बसों को लाने का लक्ष्य तय किया गया है, जो अगर सफलतापूर्वक पूरा हो जाता है तो इस स्थिति में, टनों के हिसाब से कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने में मदद हो पाएगी. इसके अलावा, बिजली की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सोलर एनर्जी का इस्तेमाल करने पर ध्यान दिया जाएगा. 

इसके अलावा, दिल्ली के शहरी प्रशासन के परिवहन विभाग (दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन – डीटीसी) द्वारा इन संचालित बसों के अलावा, विभिन्न संस्थानों/कार्यालयों के स्वामित्व में चलने वाली अन्य (ज्य़ादातर जीवाश्म ईंधन संचालित) बसें, भी शहर की सड़क पर दौड़ती है. सरकारी सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष 2021-22 के दौरान यहां कुल 17,522 बसें पंजीकृत हैं. एक तरफ जहां जनवरी 2022 में बसों का पहला बैच लॉन्च किया गया था, वहीं इन बसों को ई-बसों में बदलने की दिशा में, कई कारणों से देरी होने के बावजूद, इन मोर्चों पर प्रगति जारी है.   

  • टेक्नोलॉजी: कुश संचालन के लिये, इन ई-बसों को इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल सिस्टम से लैस किया गया है. हालांकि पहले इनके कुछ मॉडलों में, तकनीकी और सॉफ्टवेयर  त्रुटियाँ  अथवा गड़बड़ियां भी पायी गई हैं, जिसके परिणाम स्वरूप, बार-बार ओवरहीटिंग एवं ब्रेकडाउन की घटनाएं होती रही है. इसलिए इन ई-बसों के कुशलतापूर्ण संचालन के लिए, दिल्ली सरकार के लिए ये काफी अहम होगा कि वो अपने विदेशी सहयोगियों के साथ इन वैश्विक ई-बस के मॉडल के विभिन्न और ज़रूरी पहलु का ध्यानपूर्वक अध्ययन और विश्लेषण करें. 

  • वित्त: पारंपरिक बसों की तुलना में, ई-बसें पाँच गुणा महंगी हो सकती हैं, और इस कारण एक राष्ट्रीय योजना जिसे (फास्टर एडोप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल – FAME, कहा जाता है उसके अंतर्गत, शहर के प्रशासन को, राष्ट्रीय सरकार की ओर से उनके द्वारा किये गये खरीद पर वित्तीय सहयोग या सब्सिडी मिलता है. ऐसी भी खबर है कि पेमेंट मिलन में आनेवाली देरी के कारण इन ई-बसों को खरीदने में देरी हो रही है. इस वजह से, शहरी प्रशासन को खुद की वित्तीय स्थिति को मज़बूत करना होगा, ताकि वे ऐसे कामों के लिये दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति से दूर रह सकें और अपने लिये खुद रास्ते ढूँढे.  

  • ऊर्जा: ई-बसों, और अन्य इलेक्ट्रिक गाड़ियों जिन चार्जिंग स्टेशन पर ले जाया जाता है, वहां भी ऊर्जा का उत्पादन पारंपरिक तरीकों से किया जा रहा है और इस प्रक्रिया में, उत्पादन के स्थान पर भी कार्बन उत्सर्जन की घटनायें होती देखी जा रही हैं. इसलिए, रिन्युएबल एनर्जी संचालित बसें, या स्वच्छ ऊर्जा ग्रिड काफी महत्वपूर्ण ज़रूरतें हैं जिन्हें पूरा करना ज़रूरी है क्योंकि आगे चल कर यह क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले सभी प्रकार के उत्सर्जन को और कम करने का काम करेंगे. 

  • बुनियादी ढांचा: पारंपरिक वाहनों के कुशल और स्फूर्त संचालन के लिए ईंधन की सहज उपलब्धता काफी महत्वपूर्ण है. उसी तरह से, ईवी वाहनों के लिए भी बस डिपो पर ज़रूरत के मुताबिक चार्जिंग सुविधाओं की उपलब्धता भी उतनी ही अहम है. शहर के पास कुल 64 बस डिपो हैं, जिन्हें अपग्रेड किया जा चुका है, और साथ ही नए डिपो भी विकसित किए जा रहे हैं. अब तक, कुल आठ ऐसे डिपो हैं जिनके पास चार्जिंग सुविधाएं उपलब्ध है. ऐसा पता चला है कि एक सिंगल चार्ज पर एक  इलेक्ट्रिक बस, 225 किमी की दूरी तय करती है, जो कि एक पूरे दिन चलने के लिए काफी होता है. इसके अलावा, स्मार्ट चार्जिंग सिस्टम बनाई जा रही है जो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर ग्रिड लोड की स्थिति को जानने का काम करेगी और डिपो के कर्मचारियों को सबसे चार्जिंग के सबसे सही समय के बारे में जानकारी मुहैया कराएगी.   

विभिन्न स्रोत से उपलब्ध मौजूद जानकारियां ये बतलाती हैं कि दिल्ली सरकार को इलेक्ट्रिक बसों की ओर जाने में चार प्रमुख कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. ये परेशानियां-  टेक्नोलॉजी, वित्त, ऊर्जा का उत्पादन व प्रबंधन, और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर आदि से संबंधित हैं. राष्ट्रीय राजधानी में व्याप्त वायु प्रदूषण की गंभीर व लगातार होती समस्या से निपटने एवं उसे नियंत्रित करने के लिए, इन चुनौतियों से पार पाना काफी महत्वपूर्ण होगा.  

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