आज की भू–राजनीतिक तौर पर नाज़ुक दुनिया में वित्तीय नियामकों को लगातार जटिल होती चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. ये चुनौती देशों द्वारा अपने राजनीतिक या सामरिक हित साधने के लिए वित्तीय व्यवस्थाओं, लेन–देन और वित्तीय संसाधनों को तोड़ने–मरोड़ने के लिए पूंजी को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की है. जैसे–जैसे दुनिया आपस में और जुड़ती जा रही है और उभरती हुई तकनीकें वित्तीय परिदृश्य को नया आकार दे रही हैं, वैसे–वैसे वित्तीय संसाधनों और इनके ढांचे का देश और नॉन–स्टेट एक्टर्स द्वारा दुरुपयोग भी बढ़ता जा रहा है. इस वजह से अर्थशास्त्र, राजनीति और सुरक्षा के बीच की सीमा रेखा धुंधली होती जा रही है, और इससे ऐसे अज्ञात और अभूतपूर्व ख़तरे पैदा हो रहे हैं, जो सीमाओं के आर–पार असर डालते हैं. इन दो तरह की बातों– यानी उभरती तकनीकों और अनजाने जोखिमों की वजह से दुनिया भर के वित्तीय नियामकों की चिंताएं बढ़ गई हैं.
जैसे-जैसे दुनिया आपस में और जुड़ती जा रही है और उभरती हुई तकनीकें वित्तीय परिदृश्य को नया आकार दे रही हैं, वैसे-वैसे वित्तीय संसाधनों और इनके ढांचे का देश और नॉन-स्टेट एक्टर्स द्वारा दुरुपयोग भी बढ़ता जा रहा है. इस वजह से अर्थशास्त्र, राजनीति और सुरक्षा के बीच की सीमा रेखा धुंधली होती जा रही है, और इससे ऐसे अज्ञात और अभूतपूर्व ख़तरे पैदा हो रहे हैं, जो सीमाओं के आर-पार असर डालते हैं.
उभरती तकनीकें और अनजाने ख़तरे
पूंजी को हथियार की तरह इस्तेमाल करने का चलन बढ़ाने में उभरती तकनीकों के मामले में तेज़ी से हो रही प्रगति का बड़ा योगदान है. वैसे तो ये तकनीकें कुशलता, समावेश करने और वित्तीय आविष्कारों के रूप में बहुत से फ़ायदे पहुंचाने वाली हैं. लेकिन, इनसे नई कमज़ोरियां और ख़तरे भी पैदा हो रहे हैं. डिजिटल करेंसियों, ब्लॉकचेन, वित्तीय तकनीक (fintech) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के उभार ने वित्तीय नियामकों के लिए अवसर भी पैदा किए हैं और चुनौतियां भी.
AI से वित्तीय सेवाओं में बहुत बड़े बदलाव वाली क्षमताएं विकसित हुई हैं. इनकी वजह से फ़ैसले लेने, जोखिम के आकलन और फ़र्ज़ीवाड़े का पता लगाना आसान हो गया है. फिर भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एल्गोरिद्म में पारदर्शिता की कमी और पक्षपात की संभावना से जवाबदेही, नैतिकता और ग़ैरइरादतन नतीजों को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं.
संपत्ति को जमा करने और लेन–देन के एक विकल्प के तौर पर क्रिप्टोकरेंसियों की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई है. लेकिन, ये मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद के लिए पूंजी जुटाने और प्रतिबंधों से बचने जैसी अवैध गतिविधियों का भी आकर्षक हथियार बन गई हैं, क्योंकि, ये बुनियादी तौर पर विकेंद्रीकृत होती हैं. इनका कोई वास्तविक मूल्य होता भी है और नहीं भी होता, और इनके ऊपर नियामक संस्थाओं की नज़र भी कम होती है.
वित्तीय तकनीक के मंचों (fintech) ने पारंपरिक वित्तीय सेवाओं में बड़ा बदलाव ला दिया है. आज इनकी वजह से ग्राहकों की पहुंच और सुविधा बढ़ी है. लेकिन, उनके तेज़ी से हुए विस्तार ने डेटा की प्राइवेसी, ग्राहकों के संरक्षण और संस्थागत जोखिमों जैसी चुनौतियां भी पैदा कर दी हैं.
वित्तीय तकनीक के मंचों (fintech) ने पारंपरिक वित्तीय सेवाओं में बड़ा बदलाव ला दिया है. आज इनकी वजह से ग्राहकों की पहुंच और सुविधा बढ़ी है. लेकिन, उनके तेज़ी से हुए विस्तार ने डेटा की प्राइवेसी, ग्राहकों के संरक्षण और संस्थागत जोखिमों जैसी चुनौतियां भी पैदा कर दी हैं. जैसे कि UPI के फ़र्ज़ीवाड़े को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है.
दूसरे जोखिम और अनिश्चितताएं
उभरती हुई तकनीकों के साथ साथ, वित्तीय नियामकों को भू–राजनीतिक अनिश्चितताओं से पैदा हुए जोखिमों का भी ख़याल रखना पड़ रहा है. और आर्थिक प्रतिबंधों को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने का वित्तीय व्यवस्थाओं पर दूरगामी असर पड़ सकता है.
मौद्रिक नीतियों का मूल मक़सद तो घरेलू बाज़ार में स्थिरता और आर्थिक विकास करना था. लेकिन, देशों द्वारा इन्हें विश्व में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, ब्याज दरों, मुद्रा की विनिमय दर (exchange rate) और पूंजी के क़ुदरती प्रवाह में हेर–फेर, वित्तीय बाज़ारों में बाधा डाल सकता है और अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर कर सकता है. इससे संबंधित देश के अलावा दूसरे देशों पर भी असर पड़ने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसी हरकतें वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में भरोसा कमज़ोर करती हैं, और भू–राजनीतिक तनाव को और बढ़ा देती हैं, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं ही नहीं, विकसित देशों के लिए भी नाज़ुक स्थिति बन जाती है. मिसाल के तौर पर मार्च 2022 से अमेरिका के फेडरल रिज़र्व द्वारा लगातार ब्याज दरें बढ़ाने की वजह से डॉलर मज़बूत हुआ और इसका असर दूसरे देशों में डॉलर के भंडार पर भी पड़ा. डॉलर की मज़बूती का असर पूरी दुनिया में देखने को मिला है. ख़ास तौर से उन देशों को जहां बड़ी तादाद में डॉलर के रूप में संपत्ति जमा है. राजकीय कोषों से जुड़े बॉन्ड के जोखिम बढ़ गए हैं, क्योंकि मुद्राओं की विनिमय दर, इन परिसंपत्तियों के मूल्य को प्रभावित करती है, जिससे वित्तीय नुक़सान होने और बाज़ार में उथल–पुथल मचने की संभावना बढ़ जाती है.
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन, और ख़ास तौर से कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण के नियम से निपटने के लिए उठाए जाने वाले क़दम भी भू–राजनीतिक अखाड़े में ताक़तवर हथियार बन गए हैं. आज जब तमाम देश जलवायु परिवर्तन से तुरंत निपटने की चुनौती से जूझ रहे हैं, तो सख़्त नीतियां लागू करने से अनजाने में ही सही मगर वैश्विक व्यापार और आर्थिक रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं. उद्योगों या देशों को निशाना बनाकर किये जाने वाले इकतरफ़ा उपाय व्यापारिक संघर्षों को भड़का सकते हैं, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाओं में खलल पड़ सकता है. इससे न केवल जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर असर पड़ता है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पैदा हुए अस्तित्व के संकट से निपटने के लिए ज़रूरी सामूहिक उपाय भी प्रभावित होते हैं.
पूंजी और जलवायु परिवर्तन से निपटने के क़दमों को हथियार की तरह इस्तेमाल किए जाने ने आज के नाज़ुक भू–राजनीतिक माहौल को और बिगाड़ दिया है. बढ़ते ध्रुवीकरण, राष्ट्रवादी उभार और सामरिक प्रतिद्वंदिताओं ने ऐसा माहौल बना दिया है, जहां राजनीति और अर्थशास्त्र का घालमेल वित्तीय व्यवस्थाओं की स्थिरता को ख़तरे में डाल रहा है, निवेशकों के लिए अनिश्चितता पैदा कर रहा है, और वैश्विक आर्थिक विकास को बाधित कर रहा है.
निवेशक और क़र्ज़दाता, सोच–समझकर फ़ैसला लेने और प्रभावी ढंग से जोखिमों का प्रबंधन करने के लिए स्थिरता और नीतियों में स्थायित्व चाहते हैं. मगर, वित्त को हथियार बनाने से इसमें जटिलता की नई परत और जोखिम जुड़ जाते हैं, जो क़र्ज़ देने की गतिविधियों को रोक सकते हैं. जिससे क़र्ज़ देने की मात्रा कम हो जाती है, और अर्थव्यवस्था में क़र्ज़ का प्रवाह धीमा पड़ जाता है, जो कारोबारियों, व्यक्तियों और कुल मिलाकर आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर डालता है. यही नहीं, वित्त को हथियार बनाने से सीमा के आर–पार लेन देन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. जब वित्तीय व्यवस्थाएं, भू–राजनीतिक विवादों और तनावों में उलझ जाती हैं, तो भरोसा क़ायम करना और देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
जब वित्तीय व्यवस्थाएं, भू-राजनीतिक विवादों और तनावों में उलझ जाती हैं, तो भरोसा क़ायम करना और देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
पूंजी को हथियार बनाने की चुनौती से निपटने के लिए आपस में जुड़े कुछ जोखिमों को समझना बहुत ज़रूरी है:
- साइबर सुरक्षा: वित्तीय व्यवस्थाओं के बढ़ते डिजिटलीकरण और उभरती हुई तकनीकों पर निर्भरता ने साइबर ख़तरों की चुनौती बढ़ा दी है. वित्तीय संस्थानों, मूलभूत ढांचों और लेन–देन को निशाना बनाकर किए जाने वाले साइबर हमले, संवेदनशील डेटा चोरी कर सकते हैं और वित्तीय व्यवस्था के संचालन में बाधा डालकर उस पर लोगों का भरोसा तोड़ सकते हैं.
- सीमा के आर–पार पूंजी का प्रवाह: पूंजी को हथियार बनाने से सीमाओं के आर–पार इसके प्रवाह पर असर पड़ सकता है. भू–राजनीतिक तनाव, आर्थिक प्रतिबंध या फिर व्यापारिक संघर्ष से देशों के बीच पूंजी और निवेश का प्रवाह बाधित हो सकता है, जिससे बाज़ार में उथल–पुथल और वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है.
- नियमों में कमी का दुरुपयोग: जब वित्त को हथियार बनाया जाता है, तो नियमों का दुरुपयोग हो सकता है. कुछ लोग नियमों की कमज़ोरी या उनकी सीमाओं का फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हैं. ऐसे बर्ताव से वित्त व्यवस्था में सबके लिए बराबरी नहीं रह जाती. नियमों की कमियां और संभावित जोखिमों से वित्तीय अस्थिरता बढ़ती है.
- संस्थागत जोखिम: वित्त व्यवस्थाओं के आपस में जुड़ाव से संस्थागत जोखिमों का ख़तरा बढ़ जाता है. व्यवस्था के एक हिस्से में बाधा या फिर नाकामी बड़ी तेज़ी से संक्रमण की तरह तमाम बाज़ारों में फैल सकती है, जिससे संस्थागत अस्थिरता पैदा हो जाती है.
आगे की राह
इन चिंताओं को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियामक संस्थाओं और नीति निर्माताओं को आपस में सहयोग करना चाहिए, जिससे वो ऐसा ढांचा विकसित कर सकें, जो पारदर्शिता, जवाबदेही और उत्तरदायी वित्तीय बर्ताव को बढ़ावा दे. वित्त को हथियार बनाने के जोखिमों को कम करने के लिए, वैश्विक प्रशासन की व्यवस्था को मज़बूत बनाने, अलग अलग देशों की नियामक एजेंसियों के बीच सहयोग को बढ़ाने और देशों के बीच खुलकर बातचीत को बढ़ावा देने जैसे क़दम ज़रूरी हैं.
इसके अतिरिक्त, वित्तीय समावेश को बढ़ावा देना, टिकाऊ विकास में मदद करना और झटकों को सह सकने वाले ढांचे के निर्माण में निवेश से कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं को पूंजी को हथियार बनाने से पैदा होने वाले ख़तरों से निपटने में सहयोग दिया जा सकता है. देशों को अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए सशक्त बनाने, उनकी वित्तीय व्यवस्था को बढ़ाने और बाहरी झटकों से निपटने लायक़ लचीलापन विकसित करने में मदद करके हम भू–राजनीतिक दबावों का ख़तरा कम कर सकते हैं और आर्थिक स्थिरता को सुरक्षा कवच पहना सकते हैं.
इसके साथ साथ, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इकतरफ़ा क़दम उठाने के बजाय सभी देश आपस में मिलकर सहयोग की व्यवस्था में काम करें, इसके लिए बहुपक्षीय प्रयासों को तेज़ किया जाना चाहिए. संवाद, जानकारी के आदान–प्रदान और सहयोगी पहल को बढ़ावा देकर सभी देश, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इस तरह मिलकर काम कर सकते हैं, जिससे टिकाऊ आर्थिक विकास को बढावा मिले. कमज़ोर तबक़े के लोगों की रक्षा हो सके और भू–राजनीतिक तनाव की आशंका कम हो सके. जब अंतरराष्ट्रीय संगठन वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की चुनौतियों से निपटने के लिए आगे बढ़ें, तो उन्हें इस तरह सावधानी से क़दम उठाना चाहिए, जिससे किसी भी देश की राष्ट्रीय संप्रभुता को चोट न पहुंचे.
इसी तरह नियामक संस्थाओं को फ़ुर्तीला और नई चुनौतियों के हिसाब से ख़ुद को तुरंत ढालने वाला बनना चाहिए. उन्हें नई उभरती तकनीकों और बदलती भू–राजनीतिक स्थितियों पर बारीक़ी से नज़र रखनी चाहिए. उन्हें चाहिए कि वो आविष्कार को बढ़ावा देने और वित्तीय अपराधों और उनसे जुड़े जोखिमों से संरक्षित करने के बीच सही संतुलन बनाएं. जोखिम का आकलन करने वाले मज़बूत ढांचे की मदद से ख़तरा पैदा होने से पहले ही नियम बनाना संभावित कमज़ोरियों की पहचान करके सुरक्षा के ज़रूरी उपाय करने के लिए बहुत आवश्यक है. नियमन करने वालों को आपस में जुड़ी जटिलताओं के बीच संतुलन बनाना चाहिए और संभावित झटकों का पूर्वानुमान लगाकर ऐसे लचीले ढांचे विकसित करने चाहिए, जो भू–राजनीतिक उथल–पुथल को झेल सकें. नियमन करने वालों को सबके लिए बराबरी के अवसर वाली व्यवस्था बनानी चाहिए. साइबर सुरक्षा के उपायों को प्राथमिकता देते हुए ग्राहक के लिए जोखिम कम करने के लिए उद्योग के भागीदारों के साथ सहयोग करना चाहिए. उन्हें नियमों के बीच आपसी तालमेल बनाकर उन्हें इस तरह दुरुस्त करना चाहिए, जिससे किसी नियम में झोल का कोई ग़लत फ़ायदा न उठा सके और बाज़ार के सभी भागीदारों के लिए बराबरी का अवसर भी उपलब्ध हो.
नियमन करने वालों को जो सबसे ज़रूरी बात सुनिश्चित करनी चाहिए, वो ये है कि वो राष्ट्रीय नीति के मक़सदों को अंतरराष्ट्रीय नीति के लक्ष्यों के साथ मेल कराएं. भारत जैसे उभरते हुए देशों में डिजिटलीकरण की कामयाबी ने अधिक वित्तीय समावेश का लक्ष्य पाने में मदद की है. पूंजी को हथियार बनाने की चुनौती से निपटने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच सहयोग भी आवश्यक है. वित्तीय संस्थानों, तकनीकी कंपनियों और उद्योग के संघों समेत निजी क्षेत्र के साथ सहयोग से आविष्कार को बढ़ावा मिल सकता है. बेहतरीन बातें आपस में साझा हो सकती हैं और सब मिलकर उभरते हुए जोखिमों का सामना कर सकते हैं.
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