अब जबकि बड़े पैमाने पर टीकाकरण की शुरुआत हो चुकी है तो नीति निर्माताओं को उन उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनसे आम लोगों को लगने वाले टीके के असर को और प्रभावी बनाया जा सके
कोविड 19 महामारी ने अनिश्चितता का माहौल बनाया है और ऐसे में हमारे सामने ख़ुद को और अपने परिवारों को सुरक्षित रखने और मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ रखने की चुनौती है. अब जबकि बड़े पैमाने पर टीकाकरण की शुरुआत हो चुकी है तो नीति निर्माताओं को उन उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिनसे आम लोगों को लगने वाले टीके के असर को और प्रभावी बनाया जा सके. कई अध्ययनों से ऐसे संकेत मिले हैं किपोषाहारटीके के असर पर प्रभाव डालने का एक किफ़ायती और ठोस उपाय है. इससे टीके के असर को बढ़ाया जा सकता है.
ऐसे व्यक्ति जिनकीरोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोरहै और जो ग़ैर-संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त हैं उनमें कोविड-19 का संक्रमण होने की आशंका अधिक होती है. इस लिहाज से ऐसे लोग अधिक जोख़िम वाली परिस्थिति में होते हैं. मोटे लोगों पर वैक्सीन के प्रभाव से जुड़े एकअध्ययनमें ये पाया गया है कि ज़्यादा वज़न वाले लोगों में टीके उतना असरदार नहीं रहता. ऐसे लोग टीकों के ज़रिए रोकी जा सकने वाली बीमारियों के ख़तरे की ज़द में होते हैं. ये बात आम जानकारी में है किकुपोषणकी वजह से कमज़ोर रोग प्रतिरोधी क्षमता वाले व्यक्तियों में वैक्सीन का असर भी कम होता है. कुपोषण और मोटापादोनोंही कोविड-19 के चलते होने वाली मौतों में बढ़ोतरी के लिए ज़िम्मेदार हैं. दीर्धकाल में ये दोनों ही शारीरिक स्थितियां नए वैक्सीन के प्रभाव को कुंद कर सकती हैं. नोवल कोरोना वायरस वैसे तो आम तौर पर सार्स-कोरोना वायरस के समान ही होता है लेकिन चूंकि ये एक बिल्कुल नया स्ट्रेन है लिहाज़ा इसके ख़िलाफ़ इंसानी शरीर में अभी कोई प्राकृतिक प्रतिरोध विकसित नहीं हो पाया है.
ये बात आम जानकारी में है कि कुपोषण की वजह से कमज़ोर रोग प्रतिरोधी क्षमता वाले व्यक्तियों में वैक्सीन का असर भी कम होता है. कुपोषण और मोटापा दोनों ही कोविड-19 के चलते होने वाली मौतों में बढ़ोतरी के लिए ज़िम्मेदार हैं.
जीवनशैली में आए बदलावोंऔरअल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूडके सेवन से मोटापे का प्रकोप बढ़ा है जिसके चलते मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों का करीब 70 प्रतिशत ग़ैर-संक्रामक रोगों (एनसीडी) की वजह से होता है. कोरोना महामारी की वजह से दुनिया भर में स्वास्थ्य व्यवस्था में जिस तरह की बाधाएं पैदा हुई हैं उनके चलते एनसीडी से निपटने की क्षमता पर असर पड़ा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 163 देशों में किए गए एकत्वरित सर्वेक्षणसे पता चला है कि सर्वेक्षण में शामिल करीब 75 फ़ीसदी देशों में ग़ैर-संक्रामक रोगों से लड़ने से जुड़ी ज़रूरी मेडिकल सेवाओं पर काफ़ी हद पर असर पड़ा है. इलेक्टिव केयर रद्द किए जाने, लॉकडाउन की वजह से परिवहन के साधनों का अभाव होने, लगातार बढ़ते केसों से निपटने के लिए ज़रूरी मानव संसाधनों की कमी और अस्पताल सुविधाओं के बंद रहने को इनकी वजह बताया गया है. स्वास्थ्य को लेकर जोख़िम से जुड़े दूसरे कारकों के साथ-साथ अस्वास्थ्यकर भोजन, शराब के सेवन, शारीरिक श्रम के अभाव और तनाव के चलते एनसीडी से ग्रस्त लोगों के लिए ख़तरा और भी बढ़ जाता है.
ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा वैक्सीन से जुड़े अध्ययनों पर हाल केरिव्यूमें संकेत मिले हैं कि तनाव, अवसाद और अस्वास्थ्यकर बर्ताव से टीके के प्रति शारीरिक प्रतिक्रिया पर असर पड़ता है. कमज़ोर स्वास्थ्य वाले समूहों ख़ासतौर से बुज़ुर्गो के मामले में ये प्रभाव सबसे ज़्यादा हो सकता है. सर्वेक्षण से ये संकेत मिले हैं कि टीके का प्रभाव बढ़ाने और उसके साइड इफ़ेक्ट को कम करने के लिए मनोवैज्ञानिक और व्यवहारजनित दखल दिया जाना ज़रूरी हो जाता है.
ऊपर बताए गए आंकड़ों से उन कारकों का स्पष्ट तौर से पता चलता है जो टीकाकरण से उपजी रोग प्रतिरोधी क्षमता को प्रभावित करते हैं. ये बात सिद्ध है किपोषण से जुड़े कारकोंका स्वाभाविक तौर पर किसी व्यक्तिविशेष के शरीर में वैक्सीन के प्रति देखी जाने वाली प्रतिक्रियाओं पर असर पड़ता है.प्रो. श्रीनाथ रेड्डीके मुताबिक, “वैक्सीन इंसानी शरीर को सिर्फ़ एंटीजेनिक उत्प्रेरक मुहैया कराता है और किसी इंसान का शरीर उसके प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाता है यह उसके पोषण स्तर पर निर्भर करता है. पोषण का स्तर हर इंसान में अलग-अलग होता है.”
टीकाकरण के बाद शरीर में जो प्रतिरोधी प्रभाव पैदा होते हैं कुपोषण उसकी गुणवत्ता को नष्ट कर सकता है. ख़ासकर भुख़मरी के शिकार कमज़ोर वर्गों पर इसका बड़ा कुप्रभाव होता है.
खान-पान की स्वस्थ आदतोंसे प्रतिरोधी क्षमता के विकास में मदद मिलती है. इसके विपरीत स्वस्थ भोजन का अभाव इंसानी शरीर में भीतरी और बाहर से हासिल की गई रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर कर देता है. ऐसे में इंसान के लिए संक्रामक रोगों का ख़तरा बढ़ जाता है. पोषण स्तर में आई कमी को दूर कर इस प्रतिरोधी क्षमता में आने वाली गिरावट को रोका जा सकता है. प्रतिरोधी तंत्र से जुड़े स्वास्थ्य की ज़रूरतों संबंधीदिशानिर्देशोंमें कुछ ख़ास तरह के विटामिनों, ज़िंक, आयरन, सेलेनियम और कॉपर जैसे तत्वों की पहचान की गई है. प्रतिरोधी तंत्र की क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने में इनकी बड़ी भूमिका होती है. माइक्रोन्यूट्रिएंट्रस और प्रतिरोधी तंत्र पर उसके प्रभावों पर किए गए एकआलोचनात्मक अध्ययनमें विटामिन सी, डी और ज़िंक की भूमिका के बारे में पता चला है. ये तत्व शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने में मददगार होते हैं और संक्रमण के ख़तरों को कम करते हैं. लिहाजा पोषण-युक्त आहार का सेवनप्रतिरोधी तंत्र की मददकरता है और बीमारी फैलाने वाले कारकों से लड़ने में सहायक होता है.
हिप्पोक्रेटसके शब्दों में, “आइए हम अपने भोजन को ही औषधि बनाएं और औषधि को अपना भोजन”
ये बातआम जानकारीमें है कि किसी व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया गया पोषक आहार और बीमारियों की मार का मिला-जुला असर व्यक्ति विशेष के पोषण स्तर को प्रभावित करता है. पोषक आहार का अभाव भारी कुपोषण पैदा कर सकता है. टीकाकरण के बाद शरीर में जो प्रतिरोधी प्रभाव पैदा होते हैंकुपोषणउसकी गुणवत्ता को नष्ट कर सकता है. ख़ासकर भुख़मरी के शिकार कमज़ोर वर्गों पर इसका बड़ा कुप्रभाव होता है. संतुलित और स्वस्थ भोजन से मज़बूत रोग प्रतिरोधी तंत्र हासिल किया जा सकता है. इससे लंबे समय तक परेशान करने वाली बीमारियों और संक्रमणों के ख़तरे को कम किया जा सकता है.
इन्फ़्लूएंज़ा वैक्सीन के प्रभावों पर विटामिन-डी के असर का आकलन करने वाली एक समीक्षा में ये पाया गया कि जिन लोगों में विटामिन-डी की कमी थी उनमें टीकाकरण का श्वसन तंत्र से जुड़े संक्रमण पर कम प्रभाव पड़ा.
एक संकट भरे साल के बाद अब जबकि दुनिया फिर से एकजुट होकर आगे बढ़ने के लिए खड़ी हो रही है तब कोविड-19 के दूरगामी कुप्रभावों को कम करने के लिए पोषण युक्त आहार कामहत्वऔर भी बढ़ जाता है. अध्ययनों से पता चला है कि जो बुज़ुर्ग पांच या पांच से अधिक बार परोसे गएफल और सब्ज़ियोंका सेवन करते हैं याविटामिन ईके सप्लीमेंट लेते हैं उनका शरीर टीके पर ज़्यादा बेहतर प्रतिक्रयाएं दिखा रहा है और उनके शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण तेज़ी से होता है.पॉलीफ़ेनोल्सपौधों में पाए जाने वाले प्राकृतिक माइक्रोन्यूट्रिएंट्स हैं जो कि खानपान से जुड़े एंटीऑक्सीडेंट का काम करते हैं. एकआलोचनात्मक अध्ययनमें पाया गया है कि लंबे समय तक पॉलिफेनॉल्स के सेवन से हृदय रोग और मधुमेह के ख़िलाफ़ सुरक्षा मिलती है क्योंकि इनमें सूजनरोधी गुण पाए जाते हैं.
एक अन्यअध्ययनसे कोविड-19 से लड़ने में ज़िक और सेलेनियम के इम्युनोमॉड्यूलेट्री प्रभावों का पता चलता है. इन्फ़्लूएंज़ा वैक्सीन के प्रभावों पर विटामिन-डी के असर का आकलन करने वाली एकसमीक्षामें ये पाया गया कि जिन लोगों में विटामिन-डी की कमी थी उनमें टीकाकरण का श्वसन तंत्र से जुड़े संक्रमण पर कम प्रभाव पड़ा. विटामिन-डी और कोविड 19 के त्वरित अध्ययन से सांस के ज़रिए फैलने वाले वायरसों के मामले में शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता के प्रभाव की संभावित भूमिका का पता चलता है.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने के लिएजीवन शैलीमें सुधार और पोषक तत्वों से युक्त आहार का सेवन बेहद ज़रूरी है. जो बात सबसे ज़्यादा अहम है वो ये कि कोविड 19 के टीकों के साथ अच्छे पोषण की भी जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए ताकि इंसानी शरीर द्वारा टीके पर दिखाई गई प्रतिक्रिया और उसके असर के स्तर को सुधारा जा सके.
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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative.
Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...