-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
सच्चाई यह है कि दुनिया भर में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियां साइबर स्पेस से आ रही चुनौतियों का सामना कर रही हैं.
भारतीय गृह मंत्रालय ने पिछले दिनों ‘NFT, AI और मेटावर्स के दौर में अपराध और सुरक्षा’ पर G-20 सम्मेलन आयोजित किया. अपनी तरह के इस पहले आयोजन ने G-20 सदस्य देशों की कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा संगठनों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सीनियर ऑफिसरों एवं प्रतिनिधियों को साथ बैठने का मौका दिया. बैठक में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा, डार्कनेट और क्रिप्टोकरंसी से उपजी चुनौतियां और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मौके जैसे अलग-अलग मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ. अमूमन इस ग्रुप का ध्यान फाइनेंस, डिवेलपमेंट और ग्लोबल गवर्नेंस से जुड़े मुद्दों पर रहता है. इस लिहाज से यह बैठक खास कही जा सकती है क्योंकि ग्रुप ने साइबर सिक्यॉरिटी और नए दौर के अपराधों से पैदा हुई चुनौतियों पर गौर किया.
जैसा कि गृह मंत्री अमित शाह ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, आज टेक्नॉलजी एक दोधारी तलवार बन गई है. बेशक, इसके बहुत सारे फायदे हैं, लेकिन यह भी सच है कि बुरी नीयत रखने वालों ने इसके जरिए हिंसा फैलाई है और काफी नुकसान पहुंचाया है. सच्चाई यह है कि दुनिया भर में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियां साइबर स्पेस से आ रही चुनौतियों का सामना कर रही हैं.
सबसे बड़ी चुनौती आती है डार्कनेट के मार्केटप्लेस (बाजार) से. अनियन राउटर टेक्नॉलजी की बदौलत जेनेसिस मार्केट और हाइड्रा (दोनों ही अब बंद की जा चुकी हैं) जैसी वेबसाइट्स क्रिमिनल्स को साइबरस्पेस में ड्रग्स, चोरी के पर्सनल और फाइनेंशल डेटा बेचने का स्पेस तो मुहैया कराती ही हैं, उन्हें साइबर क्राइम के साधन भी उपलब्ध कराती हैं.
सबसे बड़ी चुनौती आती है डार्कनेट के मार्केटप्लेस (बाजार) से. अनियन राउटर टेक्नॉलजी की बदौलत जेनेसिस मार्केट और हाइड्रा (दोनों ही अब बंद की जा चुकी हैं) जैसी वेबसाइट्स क्रिमिनल्स को साइबरस्पेस में ड्रग्स, चोरी के पर्सनल और फाइनेंशल डेटा बेचने का स्पेस तो मुहैया कराती ही हैं, उन्हें साइबर क्राइम के साधन भी उपलब्ध कराती हैं.
वैश्विक स्तर पर लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियों ने ऐसे कई बाजारों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए इन्हें बंद कराया है. निश्चित रूप से इसका असर इनकी कमाई पर पड़ा है. चैनालिसिस (Chainalysis) के मुताबिक, 2022 में डार्कनेट बाजारों ने 1.5 अरब डॉलर की कमाई की, जो 2021 की उनकी कमाई (3.1 अरब डॉलर) के आधे से भी कम थी.
लेकिन सच यह भी है कि ऐसी कार्रवाइयों का असर कुछ समय तक ही रहता है. पुराने मार्केटप्लेस की जगह नए मार्केटप्लेस ले लेते हैं, जिनसे साइबर क्रिमिनल्स को साइबर क्राइम को अंजाम देने के लिए और भी बेहतर टूल मिलते हैं.
बिजनेस और नैशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाने वाले साइबर क्राइम में हाल के वर्षों में आई जबर्दस्त बढ़ोतरी में रैनसमवेयर का हाथ रहा, जहां साइबर क्रिमिनल और हैकर्स राष्ट्रों और कंपनियों की कंप्यूटर नेटवर्क्स की चौबीसों घंटे चलते रहने की जरूरत का फायदा उठाते हैं. फिरौती चुकाने की बढ़ती घटनाओं के कारण रैनसमवेयर हमला साइबर क्रिमिनल्स के लिए आकर्षक बिजनेस बन गया है. इसने ‘RaaS’ (रैनसमवेयर एज ए सर्विस) जैसी सेवाओं को भी फलने-फूलने का मौका दिया है, जिसके तहत मैलवेयर कोडर्स रैनसमवेयर और इसका इन्फ्रास्ट्रक्चर साइबर क्रिमिनल्स को हमलों और डेटा घुसपैठ के लिए रेंट पर देते हैं.
डार्कनेट मार्केटप्लेसेज पर रैनसमवेयर जैसी घटनाओं में भुगतान क्रिप्टोकरंसी में की जाती है. इसकी भी कुछ ठोस वजहें हैं.
क्रिप्टोकरंसी की ट्रेल का पता लगाना मुश्किल होता है. इसके ट्रांजेक्शन की गोपनीयता को लेकर किसी के मन में कोई संदेह नहीं है.
इसकी वैल्यू में तीव्र उतार-चढ़ाव भी साइबर क्राइम के लिए इसके इस्तेमाल को आसान बनाता है.
इन्हीं वजहों से सुरक्षा एजेंसियों के लिए इन पर नजर रखना मुश्किल भी हो जाता है.
बहरहाल, ऑनलाइन गेमिंग से भी हैकिंग, साइबर स्टॉकिंग, डॉक्सिंग आदि के लिए उपजाऊ जमीन मिली है. दूसरी ओर, मेटावर्स है जो बाल सुरक्षा से जुड़ी चिंता बढ़ा रहा है. यूरोपियन पुलिस संगठन (यूरोपोल) पहले ही आतंकवादी संगठनों द्वारा प्रचार, प्रशिक्षण और भर्ती आदि के लिए मेटावर्स के संभावित इस्तेमाल को लेकर आगाह कर चुका है.
टेक्नॉलजी के मोर्चे पर इस तरह के लगातार होते बदलाव से सुरक्षा एजेंसियों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अहमियत बढ़ जाती है. इस अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तीन पहलू हैं : सूचनाएं साझा करना, फॉरेंसिक जांच, कुशलता और क्षमता में बढ़ोतरी. देश के अंदर सरकारी एजेंसियों के बीच सूचनाएं साझा करने पर भारत का जोर रहा है. यही नहीं, सरकार ने साइबर फॉरेंसिक कपैबिलिटी बढ़ाने पर भी काफी ध्यान दिया है. गृह मंत्रालय की साइबर फॉरेंसिक लैबोरेटरीज और ट्रेनिंग सेंटर्स स्थापित करने की योजना तेजी से आगे बढ़ रही है.
अब तक यह समूह साइबर सुरक्षा के मसले को डिजिटल इकॉनमी के नजरिए से देखता था. बेशक यह नजरिया महत्वपूर्ण है, लेकिन आज की दुनिया में साइबर सुरक्षा के कानून-व्यवस्था से जुड़े पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
भारत ने पिछले साल नवंबर में नई दिल्ली में तीसरी मंत्रिस्तरीय ‘नो मनी फॉर टेरर’ कॉन्फ्रेंस आयोजित की. इसमें भारतीय ऑफिसरों ने टेरर फाइनेंसिंग के आधुनिक तौर-तरीकों पर रोक लगाने की जरूरत की ओर ध्यान दिलाया. इस बैठक के बाद भारत में अक्टूबर 2022 में ही दो और सम्मेलन हुए: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की विशेष आतंवाद विरोधी बैठक और इंटरपोल की 90 वीं जेनरल असेंबली की बैठक. इन बैठकों ने उभरती टेक्नॉलजी के खतरनाक पहलुओं की ओर ध्यान खींचने में मदद की.
गृह मंत्रालय की मेजबानी में पिछले दिनों हुई G-20 बैठक को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. कानून-व्यवस्था की एजेंसियों के लिहाज से उभरती तकनीकों के निहितार्थों और साइबर सुरक्षा के कड़े कानूनी प्रावधानों पर बहस शुरू करके इस बैठक ने नए दौर के अपराधों से निपटने में G-20 की सार्थकता साबित की. अब तक यह समूह साइबर सुरक्षा के मसले को डिजिटल इकॉनमी के नजरिए से देखता था. बेशक यह नजरिया महत्वपूर्ण है, लेकिन आज की दुनिया में साइबर सुरक्षा के कानून-व्यवस्था से जुड़े पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पूर्वी और पश्चिमी खेमों में भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के चलते ग्लोबल साइबर सहयोग की अनिश्चितता को देखते हुए G-20 की जिम्मेदारी बढ़ गई है. इस समूह को साइबर सुरक्षा के कानून-व्यवस्था से जुड़े आयामों पर ध्यान देते हुए सदस्य राष्ट्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में योगदान करना चाहिए.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
Read More +