Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा गर्भनिरोध के संबंध में कोई निर्णय लेना बेहद मुश्किल है. इस समस्या को लेकर पर्याप्त जागरूकता कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है.

भारत में गर्भ निरोध संबंधी निर्णय कैसे लिए जाते हैं?

विश्व जनसंख्या दिवस पर, हम गर्भनिरोध के इस्तेमाल और यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य में इसकी भूमिका जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर बात करेंगे. जबकि विश्व स्तर पर उच्च मातृ मृत्यु दर अनचाहे गर्भ को रोकने और मातृ-स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने की ज़रूरत को दर्शाती है, लेकिन भारत इस संबंध में अलग तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है. भारत की मातृ मृत्यु दर (MMR) प्रति 100,000 जीवित जन्म पर 145 है, जिसके परिणामस्वरूप हर साल 35,000 महिलाओं की प्रसव के दौरान या उसके बाद मौत हो जाती है. यह वैश्विक मातृ मृत्यु के आंकड़े का 12 प्रतिशत है. अनचाहे गर्भ को रोकने और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने का एक रास्ता गर्भनिरोध उपायों को अपनाना है.

आधुनिक गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में से लगभग 73 प्रतिशत महिलाएं नलबंदी कराने का विकल्प चुनती हैं, वहीं महज़ 0.79 प्रतिशत पुरुष नसबंदी कराते हैं.

गर्भ निरोधकों का उपयोग काफ़ी हद तक महिलाओं और पुरुषों के बीच शक्ति के बंटवारे पर निर्भर करता है. आमतौर पर शक्ति का झुकाव पुरुष के पक्ष में होता है, इसलिए ऐसे मामलों में जहां विपरीत लिंग के जोड़े परिवार नियोजन और उससे संबंधित परिणामों के बारे में असहमत होते हैं तो वहां अक्सर आवश्यकताएं अधूरी रह जाती हैं. ऐसी परिस्थितियों में, गर्भ निरोधक महिलाओं को अनचाहे गर्भ से छुटकारा दिला सकते हैं. हालांकि, व्यवहार में, भारत में लगभग 63 प्रतिशत महिलाएं गर्भ निरोधकों का उपयोग नहीं करती हैं, और जो इनका इस्तेमाल करती हैं, उनमें से लगभग 32 प्रतिशत महिलाएं आधुनिक गर्भ निरोधकों जैसे गोलियां, इंट्रा यूट्राइन डिवाइस (IUD), इंजेक्शन, योनि आधारित उपायों और कंडोम का इस्तेमाल कराती हैं, या फिर गर्भ निरोध के स्थायी समाधानों (जिसमें महिलाएं के लिए नलबंदी और पुरुषों के लिए नसबंदी का विकल्प शामिल है) का रास्ता अपनाती हैं. आधुनिक गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में से लगभग 73 प्रतिशत महिलाएं नलबंदी कराने का विकल्प चुनती हैं, वहीं महज़ 0.79 प्रतिशत पुरुष नसबंदी कराते हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि महिलाओं पर नलबंदी कराने का बहुत ज्यादा दबाव है, जहां भारत नलबंदी के मामले में पूरे एशिया में प्रथम है. वास्तव में, इन आंकड़ों से गर्भनिरोधकों के महत्व और विशेष रूप से, इनके उपयोग के बारे में महिलाओं के निर्णय लेने के अधिकार के बारे में पता चलता है. इस लेख में, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के आंकड़ों की मदद से उन सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारकों पर बात की गई है जो गर्भ निरोधकों के संबंध में महिलाओं के फ़ैसले को प्रभावित करते हैं, जहां विशेष रूप से गर्भ निरोधक उपाय चुनने में केवल उनके चुनाव को केंद्र में रखा गया है.

चित्र संख्या 1: गर्भ निरोधकों के संबंध में महिलाओं द्वारा निर्णय लेने की उच्चतम दर वाले शीर्ष 10 राज्य

ग्राफ: NFHS-5 (2019-21) के आंकड़ों की मदद से भारत के लिए लेखकों द्वारा की गई गणनाएं

भारत में लगभग 10 प्रतिशत महिलाएं गर्भ निरोधकों के संबंध में अकेले निर्णय लेती हैं. ये आंकड़े ग्रामीण (10.14 प्रतिशत) और शहरी (9.47 प्रतिशत) क्षेत्रों के लिए लगभग समान हैं. चित्र संख्या 1 और 2 में गर्भ निरोधकों के संबंध में महिलाओं द्वारा निर्णय लेने की उच्चतम एवं निम्नतम दर वाले शीर्ष दस राज्यों के आंकड़े प्रदर्शित किए गए हैं. दादरा और नागर हवेली, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम शीर्ष दस राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में शामिल हैं, जहां 15-17 प्रतिशत औरतें गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल का निर्णय खुद से लेती हैं. चंडीगढ़ इस मामले में निचले स्थान पर आता है, जहां सभी केंद्र शासित प्रदेशों में उच्च प्रजनन दर को भी दर्शाता है।

चित्र संख्या 2: गर्भ निरोधकों के संबंध में महिलाओं द्वारा निर्णय लेने की उच्चतम दर वाले शीर्ष 10 राज्य


ग्राफ: NFHS-5 (2019-21) के आंकड़ों की मदद से भारत के लिए लेखकों द्वारा की गई गणनाएं

विभिन्न उम्र की महिलाओं में गर्भ निरोध के इस्तेमाल को देखें (जैसा कि चित्र संख्या 3 में दिखाया गया है), तो साफ़ तौर पर यह दिखता है कि सभी उम्र के लिए ये आंकड़े बेहद ख़राब हैं. हम देखते हैं कि 20-24 आयु समूह में गर्भ निरोधकों के बारे में स्वयं निर्णय लेने वाली महिलाओं की संख्या थोड़ी सी ज्यादा है, जो 25-29 की उम्र के लिए और काम हो जाता है. उम्र के साथ हम इन आंकड़ों में स्पष्ट सुधार देख सकते हैं, जिससे पता चलता है कि अधिक उम्र की महिलाएं समय के साथ अधिक स्वायत्तता हासिल कर लेती हैं, इसलिए गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल को लेकर वे काफ़ी हद तक स्वयं कोई निर्णय ले पाती हैं.

चित्र संख्या 3: सभी आयु समूह में गर्भ निरोध संबंधी निर्णय लेने वाली महिलाओं की संख्या (प्रतिशत में)


ग्राफ: NFHS-5 (2019-21) के आंकड़ों की मदद से भारत के लिए लेखकों द्वारा की गई गणनाएं

इसके अलावा, हमने औरतों के गर्भ निरोधकों के संबंध में उनकी निर्णयन क्षमता में औपचारिक शिक्षा की भूमिका को समझने की कोशिश की. चित्र संख्या 4 से यह पता चलता है कि शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल को लेकर अकेले निर्णय लेने के मामले घटते जाते हैं. महिलाओं की शिक्षा से उन्हें प्रजनन संबंधी मामलों में अपने साथी की तरह मज़बूत भूमिका नहीं मिल जाती है. इसके लिए तर्क दिया जा सकता है कि उच्च शिक्षा हासिल कर लेने से महिलाओं को घरों में निर्णय लेने के अधिकार नहीं मिल जाते हैं, जो गर्भ निरोधकों के बारे में स्वयं कोई निर्णय लेने की उनकी क्षमता को बाधित करता है. इसके अलावा, गर्भ निरोधकों के संबंध में पतियों की समझ भी मायने रख सकती है.

चित्र संख्या 4: शिक्षा-स्तर के आधार पर गर्भ निरोध संबंधी निर्णय लेने वाली महिलाओं का प्रतिशत.

ग्राफ: NFHS-5 (2019-21) के आंकड़ों की मदद से भारत के लिए लेखकों द्वारा की गई गणनाएं

शिक्षा के अनपेक्षित प्रभावों को देखते हुए हम परिवार की आर्थिक क्षमता के प्रभाव की जांच करते हैं. जैसा कि हमने शिक्षा-स्तर के आधार पर गर्भ निरोध संबंधी निर्णयों में गिरावट को देखा, इसी तरह आर्थिक क्षमता बढ़ने के साथ भी यह गिरावट देखने को मिलती है. चित्र संख्या 5 से पता चलता है कि परिवार की आर्थिक क्षमता और महिलाओं द्वारा प्रजनन संबंधी निर्णय लेने की क्षमता के बीच विपरीत संबंध है, जहां धनी परिवारों में स्वयं निर्णय लेने का अधिकार सबसे कम देखने को मिलता है.

चित्र संख्या 5: आर्थिक क्षमता के आधार पर गर्भ निरोध संबंधी निर्णय लेने वाली महिलाओं का प्रतिशत.


ग्राफ: NFHS-5 (2019-21) के आंकड़ों की मदद से भारत के लिए लेखकों द्वारा की गई गणनाएं

भारत सरकार ने, अतीत में, रेडियो के माध्यम से गर्भनिरोधक उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं, जिसमें रेडियो चैट शो “हम दो” और अन्य परिवार नियोजन कार्यक्रम शामिल हैं. इसे देखते हुए, हमने उन रेडियो सुनने वाली महिलाओं के सापेक्ष रेडियो न सुनने वाली महिलाओं की तुलना करते हुए गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल के पैटर्न की जांच की. हमारे नतीजे बताते हैं कि जो महिलाएं हफ़्ते में कम से कम एक बार रेडियो सुनती हैं, उनमें गर्भ निरोध संबंधी निर्णय लेने की क्षमता उन लोगों की तुलना में अधिक होती है, जो इसे बिल्कुल नहीं सुनती हैं. इसका मतलब यह हुआ कि सामान्य जागरूकता बढ़ने से शायद महिलाओं को गर्भ निरोध संबंधी फ़ैसले स्वयं लेने के लिए प्रोत्साहन मिलता है. गर्भ निरोध के संबंध में सामान्य जागरूकता बढ़ने से मिलने वाले सकारात्मक परिणामों और शिक्षा के साथ महिलाओं की गर्भ निरोध संबंधी निर्णयन क्षमता में गिरावट, इन दोनों निष्कर्षों को इस तीसरे निष्कर्ष के साथ देखा जा सकता है, जिसके मुताबिक गर्भ निरोध के संबंध में एक महिला की निर्णयन क्षमता उसके पड़ोस में रहने वाली महिलाओं के शिक्षा-स्तर से प्रभावित होती है. सामुदायिक स्तर पर महिलाओं की स्वायत्तता और प्रजनन संबंधी जानकारियों के बारे में सामान्य जागरूकता जैसे कारक महिलाओं की गर्भ निरोध संबंधी निर्णयन क्षमता को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं.

चित्र संख्या 6: रेडियो के माध्यम से गर्भ निरोध संबंधी निर्णय लेने वाली महिलाओं का प्रतिशत

ग्राफ: NFHS-5 (2019-21) के आंकड़ों की मदद से भारत के लिए लेखकों द्वारा की गई गणनाएं

कुल मिलाकर, इन आंकड़ों से पितृसत्ता के असर का पता चलता है, जहां दो लोगों के बीच शक्ति असंतुलन की स्थिति होती है और यह महिलाओं की गर्भ निरोध संबंधी निर्णयन क्षमता को प्रभावित करता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो पितृसत्ता मिथकों और वर्जनाओं (निषेध) को बढ़ावा देती है, जिससे ऐसे मामलों में महिलाओं की स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता में कमी आती है. हमारे नतीजे यह बताते हैं कि परिवार नियोजन कार्यक्रमों में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी शामिल करने की तत्काल ज़रूरत है.

कुल मिलाकर देखें, तो महिलाओं की गर्भ निरोध संबंधी निर्णयन क्षमता कई नकारात्मक रुझानों से प्रभावित है. शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों और सभी आयु वर्ग की महिलाओं के बीच यह समस्या मौजूद है.

कुल मिलाकर देखें, तो महिलाओं की गर्भ निरोध संबंधी निर्णयन क्षमता कई नकारात्मक रुझानों से प्रभावित है. शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों और सभी आयु वर्ग की महिलाओं के बीच यह समस्या मौजूद है. उनकी शैक्षणिक उपलब्धि या आर्थिक क्षमता ऐसे निर्णयों में उनकी स्वायत्तता पर सकारात्मक प्रभाव नहीं डालती है. हमने देखा कि उन महिलाओं में प्रजनन संबंधी निर्णय लेने की संभावना अधिक थी जो हर रोज़ रेडियो सुनती हैं. ऐसे में, गर्भ निरोधकों के संबंध में महिलाओं की अधिक स्वायत्तता को सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न परिवार नियोजन कार्यक्रमों के परिणाम के रूप में देखा जा सकता है. सरकार को महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों (कन्याश्री, लाडली योजना आदि) के एक भाग के रूप में गर्भ निरोधकों के उपयोग के बारे में कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए और इन कार्यक्रमों को लोकप्रिय टेलीविजन चैनलों और समाचार पत्रों जैसे जनसंचार माध्यमों के ज़रिए आबादी के बड़े हिस्से तक पहुंचाया जाना चाहिए. जागरूकता बढ़ने से इस मुद्दे से जुड़ी वर्जनाओं और सांस्कृतिक शर्म की भावनाओं में कमी आएगी और महिलाओं को गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल करने या न करने के संबंध में और अधिक स्वायत्तता मिलेगी.

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Authors

Karan Babbar

Karan Babbar

Karan Babbar is Assistant Professor at Jindal Global Business School OP JindalGlobal University. He works on issues at the intersection of education health andgender.

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Manini Ojha

Manini Ojha

Dr. Manini Ojha is an Associate Professor in Jindal School of Government and Public Policy of O.P. Jindal Global (Institution of Eminence Deemed to Be ...

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