G20 की अपनी अध्यक्षता की शुरुआत में ही भारत ने एलान किया कि “तकनीकी परिवर्तन और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI यानी एक डिजिटल नेटवर्क जो अलग-अलग देशों को सुरक्षित ढंग और कार्य-कुशलता से सभी नागरिकों तक आर्थिक अवसर और सामाजिक सेवा मुहैया कराने में सक्षम बनाता है)” को बढ़ावा देना उसके कार्यकाल के दौरान की छह प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक होगा. ख़ास तौर पर भारत ने इस बात को ज़ोरदार ढंग से रखा कि वो “तकनीक के लिए एक मानव-केंद्रित दृष्टिकोण” की वकालत करेगा और एक-दूसरे से जुड़े विषयगत क्षेत्रों जैसे कि “DPI, वित्तीय समावेशन और तकनीक-सक्षम विकास” में “अधिकतम जानकारी को साझा करने को आसान बनाएगा”.
2023 में G20 के मार्गदर्शक के तौर पर भारत ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देश) और ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) के देशों के बीच DPI के बारे में असाधारण स्तर की जागरूकता बढ़ाने में सफल रहा है. इसके लिए भारत ने G20 डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप; आर्थिक परिवर्तन, वित्तीय समावेशन एवं विकास के लिए DPI पर नए उच्च-स्तरीय टास्क फोर्स और कई G20 भागीदारी समूहों का सहारा लिया. आज दुनिया के सामने DPI मॉडल भारत की एक प्रमुख पेशकश बनकर उभरा है और विकास के अलग-अलग स्तर पर मौजूद देशों के द्वारा इस पर या तो विचार किया जा रहा है या इसे अपनाया जा रहा है या इसके मुताबिक ख़ुद को ढाला जा रहा है.
भारत का कायापलट
बुनियादी जनसंख्या-पैमाने की तकनीकी प्रणालियों (पॉपुलेशन-स्केल टेक सिस्टम्स) के रूप में DPI लोगों (डिजिटल आइडेंटिटी सिस्टम के ज़रिए), पैसे (रियल-टाइम स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम के ज़रिए) और सूचना (मंज़ूरी आधारित, प्राइवेसी की रक्षा करने वाले डेटा शेयरिंग सिस्टम के ज़रिए) के आवागमन को सक्षम बनाता है. इंडिया स्टैक की अग्रणी, एकीकृत संरचना ने भारत को सभी तीन बुनियादी DPI यानी आधार यूनिक आइडेंटिटी, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) और डेटा एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) को विकसित करके ऐसा मुकाम हासिल करने वाला पहला देश बनने में मदद की.
साथ लेने पर इन तीनों स्तरों ने लोगों तक सेवा पहुंचाने के काम में क्रांति ला दी और इतने बड़े पैमाने पर हर किसी के लिए इनोवेशन को सक्षम बनाया है जो कि पहले कभी नहीं देखा गया था. आज भारत की 99.9 प्रतिशत वयस्क आबादी सार्वजनिक सेवाओं का उपयोग करने में आधार का इस्तेमाल कर रही है; भारत के लोग UPI का इस्तेमाल करके हर रोज़ 3 करोड़ लेन-देन कर रहे हैं और DEPA राष्ट्रीय क्रेडिट परिदृश्य को बदल रही है. महत्वपूर्ण बात ये है कि DPI सरकार और व्यवसायों को DPI के स्तर के ऊपर नए एप्लिकेशन को डिज़ाइन करने की इजाज़त देकर सार्वजनिक और प्राइवेट इनोवेशन को भी बढ़ावा दे रहा है. साथ ही DPI के साथ जुड़े खुले सिद्धांत स्वास्थ्य, क्रेडिट और वाणिज्य के क्षेत्रों में ओपन नेटवर्क बनाने में मदद कर रहे हैं.
वैश्विक असर
DPI की कम लागत और इसका पैमाना बढ़ाने में आसानी को देखते हुए दूसरे देशों के बीच DPI की स्थापना के बारे में पता लगाने को लेकर काफी दिलचस्पी है. भारत की G20 अध्यक्षता इस बढ़ती दिलचस्पी का फायदा उठाने और इसे ठोस नतीजे का आकार देने या कम-से-कम DPI की ताकत और संभावना को औपचारिक तौर पर स्वीकार करने वाले कूटनीतिक घोषणापत्रों में जगह दिलाने में सक्षम रही है.
उदाहरण के तौर पर, मई 2023 में यूरोपियन यूनियन-भारत व्यापार एवं तकनीकी परिषद ने “खुले और समावेशी डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के विकास के लिए DPI के महत्व” को स्वीकार किया और ये कहा कि DPI का नज़रिया “समावेशी विकास एवं प्रतिस्पर्धी बाज़ार को बढ़ावा देने और सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा को हासिल करने में प्रगति को तेज़ करने” में मदद करता है. EU और भारत औपचारिक रूप से अपने-अपने DPI के द्वारा एक-दूसरे की जानकारी का इस्तेमाल करने (इंटरऑपरेबिलिटी) में सुधार को लेकर सहयोग करने और इसका उपयोग विकासशील देशों के फायदे के लिए सुरक्षित, प्राइवेसी को बरकरार रखने वाले समाधान को बढ़ावा देने में बुनियाद के तौर पर करने के लिए सहमत हुए हैं. उसी महीने में क्वॉड नेताओं की ओर से जारी बयान में भी “इंडो-पैसिफिक में सतत विकास का समर्थन करने और आर्थिक एवं सामाजिक फायदे पहुंचाने में DPI की परिवर्तनकारी शक्ति” की तरफ ध्यान खींचा गया है.
DPI-केंद्रित द्विपक्षीय भागीदारी की प्रगति भी असरदार रही है. उदाहरण के लिए, जून में प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान अमेरिका-भारत के साझा बयान में ये बताया गया कि दोनों देश “DPI को लागू करने में वैश्विक नेतृत्व प्रदान करने के लिए” दोनों देश मिलकर काम करने का इरादा रखते हैं. अमेरिका और भारत इस बात का पता लगाएंगे कि अमेरिका-भारत वैश्विक डिजिटल विकास साझेदारी के माध्यम से विकासशील देशों में मज़बूत DPI के निर्माण और उसके उपयोग को आगे बढ़ाने में कोशिशों को एक दिशा में कैसे लाया जाए. इसी तरह, जुलाई में भारत और जापान के विदेश मंत्रियों की बैठक में एक मज़बूत और खुला इंडो-पैसिफिक बनाने के उद्देश्य से तकनीकी साझेदारी के हिस्से के रूप में DPI को ठोस बनाने के लिए सहयोग के मामले में भविष्य की तरफ केंद्रित दृष्टिकोण को शामिल किया गया था.
प्रधानमंत्री मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने फ्रांस में UPI को उपलब्ध कराने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इससे सीमा पार लेन-देन आसान हो गया और पैसे भेजने एवं फंड ट्रांसफर की लागत कम हो गई. इस तरह फ्रांस उन देशों में शामिल हो गया जिनके साथ भारत ने UPI से जुड़ा द्विपक्षीय समझौता किया है. इन देशों में सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK), कनाडा, हॉन्ग कॉन्ग, ओमान, क़तर, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सऊदी अरब, नेपाल और भूटान शामिल हैं. 2023 की शुरुआत से जापान भी भारत के UPI सिस्टम को अपनाने की संभावना का आकलन कर रहा है.
विकासशील देशों के लिए DPI की मूल कीमत और SDG (सतत विकास लक्ष्य) को बढ़ाने वाले के तौर पर अब इसे व्यापक रूप से स्वीकार किया जा रहा है. भारत के मॉड्यूलर ओपन सोर्स आइडेंटिटी प्लैटफॉर्म (MOSIP) की स्थापना 2018 में बुनियादी डिजिटल आइडेंटिटी सिस्टम बनाने वाले देशों की मदद करने के लिए की गई थी. आज के समय में नौ विकासशील देशों ने MOSIP के ज़रिए भारत के साथ साझेदारी की है और वो अपने राष्ट्रीय पहचान पत्र (ID) का प्लेटफॉर्म तैयार करने के लिए भारत की विशेषज्ञता का लाभ उठा रहे हैं. इस तरह वैश्विक डिजिटल पब्लिक गुड्स (सॉफ्टवेयर, डेटा सेट, AI मॉडल, स्टैंडर्ड या कंटेंट जो आम तौर पर मुफ्त हैं और जो सतत राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल विकास में योगदान देते हैं) के रूप में DPI की स्थिति को और मज़बूत कर रहे हैं. अंत में, G20 की अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत ने आठ विकासशील देशों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर दस्तखत किए हैं जिसके तहत भारत बिना किसी लागत के इंडिया स्टैक की संरचना और DPI इंफ्रास्ट्रक्चर तक उन देशों को पहुंच मुहैया कराएगा.
बहुपक्षीय समर्थन
संयुक्त राष्ट्र ने “बड़े पैमाने पर इनोवेशन और वैल्यू को खोलने” और “तेज़ रफ्तार से सामाजिक नतीजों की रचना करने” में DPI की क्षमता पर ज़ोर देते हुए इसके दृष्टिकोण का समर्थन किया है. DPI को लेकर पिछले दिनों एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक- दोनों ने बिना किसी शर्त DPI के लिए अपना समर्थन ज़ाहिर किया.
IMF का कहना है कि इंडिया स्टैक ने न केवल भारत के डिजिटल परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है बल्कि ये दुनिया भर में डिजिटल परिवर्तन के लिए सबक भी मुहैया कराता है. ख़ास तौर पर IMF के दस्तावेज़ स्टैकिंग अप द बेनिफिट्स: लेसंस फ्रॉम इंडियाज़ डिजिटल जर्नी ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को आसान बनाने, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के 87 प्रतिशत ग़रीबों के घरों तक मदद पहुंचाने के लिए DPI की तारीफ की है. इसी तरह, G20 के सामने रखी गई विश्व बैंक की पिछले दिनों की एक रिपोर्ट में ये दलील दी गई है कि इंडिया स्टैक ने पिछले छह वर्षों में भारत को 80 प्रतिशत वित्तीय समावेशन को हासिल करने में मदद की है. ये ऐसा कीर्तिमान है जिसे DPI के बिना बनाने में 50 साल लग सकते थे.
DPI के गुणों से पूरी तरह अलग, DPI के लिए मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों (MDB) का समर्थन भी आंशिक तौर पर रणनीतिक हो सकता है. ये उस समय आया जब इस बात को लेकर आम राय है कि मल्टीलेटरलिज़्म (बहुपक्षवाद) में सुधार किया जाना चाहिए और विकास से जुड़ी व्यापक चुनौतियों का अधिक कार्यकुशलता के साथ समाधान करने के लिए MDB को मज़बूत किया जाना चाहिए. भारत में DPI की स्पष्ट और तुरंत सफलता- साथ ही एस्टोनिया, श्रीलंका और टोगो जैसे देशों में भी- संसाधनों के आवंटन के लिए इसे एक आकर्षक क्षेत्र बनाती है. वास्तव में, DPI का समर्थन करने का MDB का फैसला MDB की ख़ुद की विश्वसनीयता को बहाल करने की व्यापक प्रक्रिया में योगदान कर सकता है. इसके अलावा, संसाधनों का ये आवंटन G20 के द्वारा सहमति जताए गए DPI से जुड़े दूसरे प्रस्तावों को मज़बूत करेगा. साथ ही ऊपर बताए गए कई उदाहरणों ने दिखाया है कि DPI को अपनाने के बारे में कई दूसरे देशों ने पहले से दिलचस्पी जताई है. अंत में, DPI का समर्थन करना विश्व बैंक जैसे संस्थानों के लिए कोई नई बात नहीं है. वास्तव में, विश्व बैंक ने 2014 से ID4D (आइडेंटिटी फॉर डेवलपमेंट) कार्यक्रम चला रखा है और इस तरह लगभग 40 विकासशील देशों को बुनियादी ID सिस्टम बनाने में उसने मदद की है.
G20 बैठक के नतीजे: आगे क्या है?
भारत की अध्यक्षता का समापन DPI से जुड़े चार बड़े नतीजों के साथ हुआ. पहला, G20 के सदस्य देश DPI को लेकर एक साझा विवरण और समझ के इर्द-गिर्द सर्वसम्मति हासिल करने में कामयाब रहे. साथ ही इस बात को लेकर भी सहमत हुए कि DPI गवर्नेंस के आसपास मुद्दों का समाधान करना महत्वपूर्ण होगा. दूसरा, G20 ने DPI के डिज़ाइन, विकास और इस्तेमाल के लिए सिद्धांतों का खाका खींचने में एक उच्च-स्तरीय “DPI के सिस्टम की G20 रूप-रेखा” को अपनाया. ये रूप-रेखा उन देशों के लिए कीमती साबित होने की संभावना है जो अपना DPI इकोसिस्टम लागू करने की योजना बना रहे हैं या बनाने की प्रक्रिया में हैं. तीसरा, कम और मध्यम आमदनी वाले देशों में DPI के विकास के लिए अधिक और समन्वित फंडिंग की आवश्यकता पर सर्वसम्मति बन गई है. चौथा, DPI के इर्द-गिर्द सूचना की कमी पर ध्यान देते हुए G20 ने DPI पर केंद्रित दुनिया भर के साधनों, संसाधनों, पद्धतियों और अनुभवों की मेज़बानी करने के लिए वर्चुअल ग्लोबल DPI रिपॉज़िटरी (भंडार गृह) की स्थापना करने के भारत के प्रस्ताव का स्वागत किया.
G20 की बैठक के दौरान DPI को लेकर जो तेज़ी दिखी है, उसे आगे बढ़ाते हुए नज़दीक से ये समझना होगा कि DPI के क्षेत्र में अलग-अलग देश क्या अंतर लाना चाहेंगे (या कई मामलों में तो पहले ही अंतर ला चुके हैं). साथ ही उन्हें आवश्यक समर्थन और मदद मुहैया करानी होगी. ये ऐसी प्रक्रिया है जिसका नेतृत्व भारत कर सकता है क्योंकि भारत के पास MOSIP के ज़रिए और पिछले दिनों विकासशील देशों के साथ MoU के माध्यम से सहयोग और जानकारी साझा करने का अनुभव है. इसके अलावा, विशेषज्ञों ने इस बात की तरफ भी इशारा किया है कि G20 के दौरान DPI के बारे में सामान्य समझ हासिल करने के बावजूद DPI को और भी सैद्धांतिक बनाने और DPI में क्या आता है और क्या नहीं आता है, इसका आकलन करने के लिए रूप-रेखा और मॉडल तैयार करने की आवश्यकता है. ये रूप-रेखा बाद में इस तरह के इंफ्रास्ट्रक्चर के इर्द-गिर्द कानून बनाने में मदद करेगी. DPI की विश्वसनीयता के बारे में व्यवसायों और इनोवेशन करने वालों के बीच भरोसा बनाने और यकीन दिलाने के लिए ऐसे कानूनों की आवश्यकता बढ़ जाएगी.
अंत में, बुद्धिमानी से DPI के इस्तेमाल का अलग-अलग देशों के द्वारा AI के विकास की कोशिशों पर भी असर होगा. डेटा की बड़ी मात्रा DPI का एक महत्वपूर्ण घटक है और AI मॉडल की ट्रेनिंग के लिए ये डेटा कीमती हो सकते हैं. हालांकि इसके लिए डेटा प्राइवेसी, सुरक्षा और गोपनीयता को मज़बूती से बरकरार रखना होगा. उदाहरण के लिए, DEPA 2.0 के हिस्से के रूप में भारत पहले से ही “कॉन्फिडेंशियल कंप्यूटिंग रूम्स” नाम के एक सॉल्यूशन के साथ प्रयोग कर रहा है. ये एक “हार्डवेयर-प्रोटेक्टेड सुरक्षित कंप्यूटिंग एनवायरमेंट है जहां मॉडल ट्रेनिंग के लिए एक एल्गोरिथमिकली कंट्रोल्ड तरीके से संवेदनशील डेटा तक पहुंचा जा सकता है”. इस तरह का माहौल नागरिकों के लिए प्राइवेसी के पालन और सुरक्षा की गारंटी के साथ डेटा के उपयोग की अनुमति देता है. जैसे-जैसे अधिक देश इन दृष्टिकोणों को अपनाना शुरू करेंगे, वैसे-वैसे DPI AI-आधारित समाधान को मुहैया कराने वाले के रूप में भी उभर सकता है.
अनिर्बान शर्मा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और डिप्टी डायरेक्टर हैं.
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