Expert Speak Health Express
Published on Jan 08, 2025 Updated 8 Days ago

ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) नया नहीं है. श्वसन तंत्र में ये वायरस लंबे समय से मौजूद है लेकिन चीन में महामारी की आशंका से ये वायरस फिर सुर्खियों में आ गया है. इसके दुनियाभर में फैलने की आशंका जताई जा रही है.

hMPV वायरस: एक और मौसमी बीमारी या फिर कोविड19 की तरह डरना ज़रूरी?

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नॉर्दर्न हेमिस्फीयर यानी उत्तरी गोलार्ध में जैसे-जैसे सर्दी बढ़ रही, वैसे-वैसे दुनिया में एक महामारी की आशंका भी बढ़ रही है. पूरी दुनिया का ध्यान सांस संबंधी एक संक्रमण पर टिक गया है. भारत में भी इस पर काफ़ी चर्चा हो रही है. फिलहाल सबकी नज़र ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (hMPV) पर है. ये वायरस मुख्य रूप से शिशुओं, बुजुर्गों और उन लोगों पर आक्रमण करता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर है. ऐसे लोगों पर ये वायरस श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से से अटैक करता है. लोग अभी तक लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग को भूले नहीं हैं. ऐसे में इस वायरस को लेकर मीडिया की सुर्खियों की वजह से ये आशंका जताई जा रही है कि कहीं फिर से कोविड कंट्रोल जैसे कदम ना उठाए जाएं. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि विशेषज्ञ इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि hMPV एक मौसमी घटना है. ये जनवरी से मार्च के बीच अपने चरम पर होती है. इसके बाद ये बीमारी खुद ही नियंत्रण में आने लगती है. ओवर-द-काउंटर दवाइंयों यानी वो दवाएं जो सीधे केमिस्ट के पास जाकर खरीदी जा सकती है, उससे भी इसका इलाज हो जाता है. खास बात ये है कि इसके संक्रमण से आंशिक प्रतिरोधक क्षमता पैदा होती है. यानी इस वायरस के दोबारा संपर्क में आने पर लोगों को फिर संक्रमण का अनुभव होता है. अधिकारियों का कहना है कि इस पर काबू पाने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी सुरक्षा उपायों के ज़रिए सतर्कता बरतनी चाहिए.

ये वायरस मुख्य रूप से शिशुओं, बुजुर्गों और उन लोगों पर आक्रमण करता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर है. ऐसे लोगों पर ये वायरस श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से से अटैक करता है. 


इस लेख को लिखे जाने तक भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने देश में hMPV के सात मामले दर्ज किए हैं. सभी प्रभावित बच्चे ही हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के मुताबिक देश में सांस संबंधी बीमारियों पर निगरानी और उनके इलाज की एक मुहिम चल रही है. इसी मुहिम के तहत इसका भी इलाज किया गया है. इस वायरस से पीड़ित लोगों की कोई ट्रेवल हिस्ट्री नहीं है, यानी उन्होंने कोई अंतरराष्ट्रीय यात्रा नहीं की है.  इसका मतलब ये हुआ कि hMPV का संक्रमण देश के भीतर ही हुआ है.



hMPV वायरस का क्लिनिकल प्रोफाइल और भारतीयों की प्रतिरोधक क्षमता



hMPV वायरस पिछले कम से कम पांच दशकों से मनुष्यों के बीच सक्रिय रहा है. तब इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी. हालांकि 2000 के दशक की शुरुआत में डच (नीदरलैंड के) वैज्ञानिकों ने रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (आरटीआई) वाले बच्चों के श्वसन स्राव में इसकी औपचारिक रूप से पहचान की थी. कुछ स्टडीज़ में ये सामने आया है कि वैश्विक स्तर पर एक्यूट रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन से पीड़ित जो बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं, उनमें से 5-10 प्रतिशत बच्चों में संक्रमण की वजह hMPV हो सकता है. इसी की तरह के एक और वायरस, रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (आरएसवी ) के जैसे ही hMPV भी बच्चों, बुजुर्गों और कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों पर सबसे ज़्यादा असर डालता है. इसकी वजह से कभी-कभी ब्रोंकियोलाइटिस, निमोनिया और तीव्र अस्थमा जैसी गंभीर सांस संबंधी संक्रमण हो जाते हैं.

इसे एक संदर्भ से समझिए. भारत की जनसंख्या में 10 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी 60 साल से अधिक उम्र वालों की है, जबकि 6 साल से कम उम्र वालों की संख्या 13 फीसदी है. हालांकि कमज़ोर प्रतिरक्षा शक्तियों वाले लोगों के बारे में सटीक डेटा नहीं है लेकिन फिर भी अनुमान लगाया जा सकता है कि करीब 2 से 3 आबादी ऐसे लोगों की है, जो कुपोषण, कैंसर, एचआईवी/एड्स से पीड़ित है, जिसकी वजह से उनकी प्रतिरोधक क्षमता करीब ख़त्म है. अंग प्रत्यारोपण करा चुके और इम्यूनो-सप्रेसेंट दवाएं लेने वाले लोगों को भी इस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है. भारत में किए गए अलग-अलग अध्ययनों से पता चला है कि बाल चिकित्सा के करीब 3-10 प्रतिशत एक्यूट रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन वाले मामलों में hMPV मिला है. इस वायरस का औसत प्रसार 4-12 प्रतिशत के बीच है. इस बीमारी पर hMPV का असर कितना है, इसे लेकर पर्याप्त अनुसंधान नहीं हुआ. यही वजह है कि hMPV के प्रभाव को कम करके आंका गया है. इस वायरस का डेटा करीब एक दशक पुराना है और ये बहुत ज़्यादा स्थानीय है. इसके आधार पर ट्रेंड का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है.

भारत में किए गए अलग-अलग अध्ययनों से पता चला है कि बाल चिकित्सा के करीब 3-10 प्रतिशत एक्यूट रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन वाले मामलों में hMPV मिला है. इस वायरस का औसत प्रसार 4-12 प्रतिशत के बीच है. इस बीमारी पर hMPV का असर कितना है, इसे लेकर पर्याप्त अनुसंधान नहीं हुआ.


क्लिनिकल तौर पर देखें hMPV भी किसी सामान्य वायरस की तरह श्वसन तंत्र में मौजूद हो सकता है. इसके लक्षण भी आम सर्दी-जुकाम की तरह है, जैसे बुखार, खांसी, नाक बहना, गले में खराश और घरघराहट. शरीर करीब 3 से 6 दिनों तक गर्म रहता है, आम बुखार से थोड़ा ज़्यादा. ये वायरस सर्दियों के अंत से से लेकर वसतं के शुरुआती दिनों तक चरम पर होता है. इसका पता स्वैब या एस्पिरेट्स जैसे श्वसन नमूनों के रियल-टाइम रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) टेस्ट से लगाया जाता है. हालांकि वायरल कल्चर और एंटीजन टेस्ट से भी इसका पता लगाया जा सकता लेकिन ये उतने सटीक नहीं होते. नीदरलैंड में पहले की गई सेरोप्रवलेंस स्टडीज़ और सर्विलांस से ये संकेत मिलता है कि कई बच्चे (सभी करीब पांच साल की उम्र तक) hMPV के ख़िलाफ एंटीबॉडी विकसित कर लेते हैं. hMPV के ख़िलाफ शरीर में ये जो अंदरूनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, शायद यही वो वजह है कि इस वायरस से प्रभावितों में मृत्यु दर बहुत कम है. दरअसल, हाल के सरकारी अधिकारियों के बयान देखें तो इस वायरस को लेकर मीडिया में भले ही काफ़ी चर्चा हो रही हो, लेकिन हकीक़त ये है कि सर्दियों में सांस संबंधी बीमारियों में बहुत ज़्यादा बढ़ोत्तरी नहीं देखी गई है. ये हाल तब है जब  hMPV के पॉजिटिव टेस्ट्स को लेकर काफ़ी खबरें आ रही हैं. जब हम सांस संबंधी बीमारियां कहते हैं तो इसमें hMPV भी शामिल है.

सार्वजनिक स्वास्थ्य में इसकी रोकथाम को लेकर जो सलाह दी जा रही हैं, वो बहुत आसान हैं. hMPV के लक्षण वाले बच्चों को स्कूल मत भेजिए. हाथ धोते रहिए. भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मास्क पहनिए. कोरोना काल में इस तरह के उपाय अपनाए गए थे. हालांकि ज़मीनी स्तर पर ये देखा जा रहा है कि जनता इन सब उपायों को काफ़ी हद तक त्याग चुकी है. सबसे बड़ी बात स्वस्थ व्यक्तियों में hMPV का असर बहुत हल्का दिख रहा है. ये इस बात की पुष्टि करता है कि hMPV भारत में पहले से ही प्रसारित श्वास से जुड़ी बीमारियों में से एक बीमारी है और हमारे अंदर इसके ख़िलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है. यही वजह है कि इस बीमारी से मृत्यु दर इतनी कम है.



hMPV का ख़ौफ सही है या ये सिर्फ एक और फ्लू है?



फिलहाल भारत में hMPV को लेकर जो ख़ौफ दिख रहा है, उसकी सबसे बड़ी वजह सोशल मीडिया पर आ रही रिपोर्ट्स हैं. इन रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन में लोग बड़ी संख्या में इस वायरस से पीड़ित हैं और मरीजों के लिए अस्पताल कम पड़ गए हैं. इन्हीं ख़बरों के बाद भारत में ये चिंताएं पैदा हो गई हैं कि कहीं फिर से भी कोरोना काल जैसे हालात ना बन जाएं.

इन्हीं सब चिंताओं के बीच स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन आने वाले स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) की अध्यक्षता में संयुक्त निगरानी समूह बनाया गया है. इस ग्रुप ने पुष्टि की है कि वो चीन में hMPV स्थिति पर करीबी नज़र रखे हुए है. वो ये सुनिश्चित कर रहा है कि भारत इसे लेकर सतर्क रहे. चीन में अभी सांस संबंधी बीमारियों में जो मौजूदा उछाल दिख रहा है, उसकी वजह मौसमी फ्लू को माना जा रहा है. चीन में अभी सिर्फ hMPV ही नहीं बल्कि बल्कि आरएसवी, इन्फ्लूएंजा ए, कोविड-19 और खसरा का भी असर दिख रहा है.

hMPV का ये प्रकोप ऐसे समय में आया है जब पांच साल पहले चीन ने कोविड-19 के बारे में गलत जानकारी दी. चीन ने ये नहीं बताया कि कोरोना का वायरस पशुओं से इंसानों में ट्रांसमिट हो सकता है. चीन ने कोरोना रोगी के आनुवांशिक विश्लेषण की महत्वपूर्ण जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ साझा करने में हिचकिचाहट दिखाई. उसने कोविड-19 के घातक असर को कम करके आंका. पिछले ही हफ्ते डब्ल्यूएचओ चीन से फिर ये अपील की है कि वो कोविड-19 से जुड़े सभी डेटा उसके साथ साझा करे, जिससे ये पता लगाया जा सके कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति कैसे हुई? सोशल मीडिया पर आ रही रिपोर्ट्स से पता चलता है कि चीन स्वास्थ्य से जुड़े परीक्षणों के ऐसे पागलपन में उलझा हुआ है, जिसने जनता को चिंतित कर दिया है. ये ख़बरें ऐसे समय पर आईं, जब भारतीय मीडिया एक रहस्यमय "डिंगा डिंगा" बीमारी से घबरा गया. कहा जा रहा था कि इस बीमारी की वजह से युगांडा में कुछ महिलाएं बेकाबू तौर पर हिल रहीं थीं. महामारियों पर नियंत्रण पाने के लिए ये ज़रूरी है कि विभिन्न देश समय-समय पर बीमारी के प्रकोप पर डेटा पूरी पारदर्शिता के साथ साझा करें. वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक है. रोगों पर निगरानी और महामारी से निपटने की तैयारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. इतना सब कहने के बावजूद ये भी सच है कि मौजूदा हालात कोविड-19 महामारी जैसे नहीं हैं. कोविड-19 एक नया संक्रामक वायरस था. इसके ट्रांसमिशन को लेकर जानकारी नहीं थी. मॉलीक्यूलर बायोलॉजी और इसकी वायरल विशेषताएं तब काफ़ी हद तक अज्ञात थीं, लेकिन hMPV को लेकर जिस तरह की सनसनीखेज रिपोर्टिंग की जा रही है, उससे जनता के बीच डर और चिंता पैदा हो रही है. 

महामारियों पर नियंत्रण पाने के लिए ये ज़रूरी है कि विभिन्न देश समय-समय पर बीमारी के प्रकोप पर डेटा पूरी पारदर्शिता के साथ साझा करें. वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक है.

हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने एक बुलेटिन जारी किया था. उसने श्वसन तंत्र से संक्रमण के बढ़ते मामलों को पिछले साल ही नोट कर लिया था और चीन को इस बारे में सूचित किया था. इसके जवाब में, चीन के नेशनल डिज़ीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन एडमिनिश्ट्रेशन (NCDPA) ने बताया कि वो इसकी समन्वित तरीके से निगरानी कर रहा है. hMPV की मौजूदा स्थिति को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पिछले साल की तुलना में "कम गंभीर" बताया है. भारत के नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के निदेशक डॉक्टर अतुल गोयल ने कहा कि "वर्तमान स्थिति के बारे में चिंतित होने की कोई बात नहीं है". हालांकि इसके बावजूद हम सबको सांस संबंधी बीमारियों से जुड़ी सामान्य सावधानियों का पालन करना चाहिए.

 
hMPV पर काबू कैसे पाएं: व्यावहारिक कदम और सावधानियां

hMPV के इलाज के लिए फिलहाल कोई स्पेशल वैक्सीन या एंटीवायरल थेरेपी नहीं हैं. ऐसे में व्यक्तिगत सुरक्षा स्वच्छता ही इस पर नियंत्रण का सबसे प्रभावी कदम है. बाल चिकित्सा वार्ड, डे-केयर सेंटर और नर्सिंग होम में इस वायरस के संक्रमण की सबसे ज्यादा आशंका होती है. ऐसे में कुछ सामान्य और सरल आदतों को अपनाकर इससे बचा जा सकता है. जैसे कि हाथ धोते रहिए. जिस जगह इस वायरस के होने की ज़्यादा आशंका है, उसे डिसइंफेक्ट करते रहिए. भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचना चाहिए, जिससे इसका संक्रमण और प्रसार ना हो. 

सार्वजनिक स्वास्थ्य की बेहतरी के दृष्टिकोण से भारत चाहे तो इस वायरस पर व्यापक शोध कर सकता है. इससे ये पता चलेगा कि hMPV का प्रसार कितना है. इसकी आनुवंशिक विविधता क्या है. सांस संबंधी दूसरी बीमारियों पर इसका कितना प्रभाव पड़ता है. इससे hMPV पर काबू पाने और इसका इलाज खोजने में मदद मिलेगी. 

hMPV के इलाज की वैक्सीन बनाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण काम है. इसकी वजह ये है कि अभी तक इसके ख़िलाफ़ पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता और सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती है. फिर भी mRNA तकनीक़ और वायरस जैसे कणों (VLP) का इस्तेमाल करके कई संस्थान और कंपनियां इसकी वैक्सीन पर काम कर रहे हैं. वैक्सीन के प्रिक्लिनिकल और क्लिनिकल विकास का काम अलग-अलग स्टेज पर है. विशेष तौर पर लंदन स्थित वाइसबायो और एस्ट्राजेनेका में hMPV और RSV की वैक्सीन पर क्लिनिकल ट्रायल हो रहा है. वहीं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में Moderna कंपनी के साथ मिलकर इस पर काम कर रही है.

 ICMR ने इसे लेकर निगरानी बढ़ाई है. इसका मतलब ये हुआ कि भारत इस वायरस की पहचान को लेकर अपना तंत्र मज़बूत कर रहा है. फिलहाल सर्दियों का मौसम है और ये भी हमें याद दिला रहा है कि इन दिनों फ्लू के मामले बढ़ते हैं. 

hMPV पर आगे क्या होगा?

चूंकि पूरी दुनिया कोरोना महामारी के जानलेवा प्रभाव देख चुकी है. इसलिए hMPV के मामले में सबकी हालत दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंककर पीता है जैसी है. कोढ़ में खाज़ का काम कर रही हैं सोशल मीडिया से आ रही डरावनी ख़बरें. चीन में सांस संबंधी बीमारियों के मामलों में हालिया बढ़ोत्तरी को देखते हुए भारत इसे लेकर सतर्कता बरत रहा है. ICMR ने इसे लेकर निगरानी बढ़ाई है. इसका मतलब ये हुआ कि भारत इस वायरस की पहचान को लेकर अपना तंत्र मज़बूत कर रहा है. फिलहाल सर्दियों का मौसम है और ये भी हमें याद दिला रहा है कि इन दिनों फ्लू के मामले बढ़ते हैं. ऐसे में इस पर कड़ी नज़र रखना ज़रूरी है. इसके अलावा वक्त पर स्वास्थ्य से जुड़ी जैविक जानकारियों को साझा करना भी ज़रूरी है. अगर समय पर दख़ल दी जाए तो इसे नियंत्रण में रखना संभव है.


लक्ष्मी रामकृष्णन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की स्वास्थ्य पहल में एसोसिएट फेलो हैं.

केएसयू गोपाल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की स्वास्थ्य पहल में एसोसिएट फेलो हैं.

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