Author : Shoko Noda

Published on Sep 12, 2023 Updated 0 Hours ago
अमेरिकी नेताओं का एक के बाद एक चीन दौरा: द्विपक्षीय रिश्तों का नया दौर?

20 जुलाई 2023 को वरिष्ठ राजनयिक और अमेरिका-चीन संबंधों के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में से एक हेनरी किसिंजर ने बीजिंग की यात्रा की. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री की मेज़बानी की और इस दौरान उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि “चीन के लोग अपने पुराने दोस्तों को कभी नहीं भूलते और चीन-अमेरिका संबंधों को हमेशा हेनरी किसिंजर के नाम के साथ जोड़ा जाएगा”. राष्ट्रपति जिनपिंग 1971 में किसिंजर के द्वारा निभाई गई भूमिका का हवाला दे रहे थे. ये वो साल था जब अमेरिका और चीन के बीच संबंधों के सामान्य होने की शुरुआत हुई थी. इसका नतीजा अंत में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चऊ एनलाई के बीच महत्वपूर्ण बातचीत के तौर पर निकला. इस ऐतिहासिक घटना को चीन में अभी भी काफी सम्मान के साथ देखा जाता है. 

चीन के विरोध के बावजूद पिछले साल 2 अगस्त 2022 को अमेरिका के प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा की वजह से अमेरिका और चीन के बीच जलवायु को लेकर बातचीत लगभग पिछले एक साल से रुकी हुई थी.

किसिंजर के दौरे से ठीक पहले जलवायु पर अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी ने चीन की यात्रा की. 16 से 19 जुलाई के बीच केरी ने बीजिंग में कई बड़े अधिकारियों के साथ बैठक की. चीन के विरोध के बावजूद पिछले साल 2 अगस्त 2022 को अमेरिका के प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा की वजह से अमेरिका और चीन के बीच जलवायु को लेकर बातचीत लगभग पिछले एक साल से रुकी हुई थी. ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है और इसकी संप्रभुता के ऊपर दावा करता है. 

अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन भी 6 से 9 जुलाई 2023 के बीच बीजिंग में थीं. वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने अमेरिका और चीन के बीच तनावपूर्ण आर्थिक संबंधों में कुछ संतुलन स्थापित करने में प्रगति हासिल की. वैसे तो उनका दौरा रिश्तों को ठीक करने में एक महत्वपूर्ण कदम था लेकिन इसका नतीजा किसी बड़ी सफलता के रूप में नहीं निकला. 

येलेन से पहले विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इस साल 18 और 19 जून को चीन का दौरा किया. 2018 से पहली बार अमेरिका के किसी विदेश मंत्री ने चीन की यात्रा की थी. ब्लिंकन का दौरा इस बात का सबूत था कि द्विपक्षीय संबंधों के सबसे निचले स्तर तक पहुंचने के बाद रिश्तों पर फिर से ज़ोर देना और स्थिरता को सुनिश्चित करना आवश्यक है. बीजिंग की दो दिनों की यात्रा के दौरान ब्लिंकन चीन की विदेश नीति से जुड़े सबसे बड़े अधिकारियों के साथ बातचीत में शामिल हुए. अपनी यात्रा ख़त्म होने से पहले उन्हें देश के सबसे बड़े नेता शी जिनपिंग के साथ मुलाकात का भी मौका मिला. 

दोनों पक्ष चीन-अमेरिका रिश्तों के मार्गदर्शक सिद्धांतों पर सलाह को जारी रखने के लिए सहमत हुए. ब्लिंकन ने “वन चाइना” नीति को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता को दोहराया और इस बात पर ज़ोर दिया कि अमेरिका ताइवान की आज़ादी का समर्थन नहीं करता है

चीन के साथ बातचीत को बढ़ाने की कोशिश के तहत CIA के डायरेक्टर विलियम बर्न्स ने भी मई 2023 में चीन का दौरा किया. इस महत्वपूर्ण दौरे में डायरेक्टर बर्न्स ने चीन के अपने समकक्ष अधिकारियों के साथ चर्चा की और खुफिया चैनल के भीतर पारदर्शी बातचीत को बनाए रखने की अहमियत पर ज़ोर दिया. 

हालिया दौरे

अब इन सभी यात्राओं पर नजदीक से नज़र डालें तो इनके पीछे के उद्देश्यों और नतीजों को समझना ज़रूरी बन जाता है क्योंकि सभी हाई-प्रोफाइल दौरे दो महीने के भीतर हुए. इन यात्राओं के उद्देश्यों और नतीजों को समझने के लिए अलग-अलग बैठकों के परिणामों पर ध्यान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. 

चीन के अधिकारी अमेरिका-चीन संबंधों की बुनियाद के रूप में वाणिज्य को प्राथमिकता देने के लिए उत्सुक थे और उन्होंने अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट एल. येलेन और वाणिज्य मंत्री गीना रायमोंडो से पहले आने का अनुरोध किया था. हालांकि अमेरिका के अधिकारियों ने ज़ोर दिया कि वित्त मंत्री और वाणिज्य मंत्री की यात्रा से पहले विदेश मंत्री एंटनी जे. ब्लिंकन को चीन जाना चाहिए. ब्लिंकन की यात्रा ने जहां उच्च-स्तरीय द्विपक्षीय कूटनीति में जमी बर्फ को पिघलाने का काम किया होगा, वहीं इसने ताइवान पर चीन के रवैये और बढ़ते सैन्य एवं आर्थिक मुकाबले की वजह से दोनों देशों के बीच बातचीत की अनिश्चित स्थिति के बारे में भी बताया. 

ब्लिंकन के चीन दौरे ने पैंतरेबाज़ी के लिए सीमित मौके पेश किए और बाइडेन प्रशासन के सामने मौजूद असमंजस को उजागर किया. एक तरफ तो बाइडेन प्रशासन अमेरिका में चीन के ख़िलाफ़ सैन्य एवं आर्थिक दांव-पेच बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी तरफ जवाबदेह मुकाबले में शामिल होने, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग और महाशक्तियों की लड़ाई के परिणामस्वरूप अमेरिका के कारोबार को बचाने की अपनी इच्छा को भी ज़ाहिर कर रहा है. जानकारों की राय है कि ये अभी अनिश्चित है कि बाइडेन प्रशासन इन उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से संतुलित कर सकता है या नहीं क्योंकि इस नज़रिए को लेकर चीन को शक है और प्रस्तावित रणनीति पर उसे भरोसा नहीं है. 

दोनों पक्ष चीन-अमेरिका रिश्तों के मार्गदर्शक सिद्धांतों पर सलाह को जारी रखने के लिए सहमत हुए. ब्लिंकन ने “वन चाइना” नीति को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता को दोहराया और इस बात पर ज़ोर दिया कि अमेरिका ताइवान की आज़ादी का समर्थन नहीं करता है लेकिन किसी भी तरह के आक्रमण के ख़िलाफ ख़ुद की रक्षा करने की ताइवान की क्षमता को सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है. एक महत्वपूर्ण मामला जो सुलझ नहीं पाया वो है अमेरिका और चीन के बीच सैन्य स्तर पर बातचीत को फिर से स्थापित करना. दोनों देशों के सर्वोच्च सैन्य अधिकारियों के बीच संपर्क फिलहाल नहीं हो रहा है. अपनी बैठक के दौरान ब्लिंकन के द्वारा इस तरह की बातचीत के चैनल की ज़रूरत पर बार-बार ज़ोर देने के बावजूद इस मामले में तत्काल कोई प्रगति नहीं हो सकी. 

बीजिंग के चार दिनों के दौरे के बाद भी जलवायु पर विशेष दूत जॉन केरी की कोशिशों का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला लेकिन केरी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनकी यात्रा का मक़सद जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चर्चाओं में प्रगति को आसान बनाना था. आगे की संभावित बातचीत में ध्यान का क्षेत्र मिथेन उत्सर्जन है जो कि एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है. चीन ने अमेरिका के साथ 2021 में COP26 (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का 26वां सम्मेलन) बैठक के दौरान मिथेन उत्सर्जन कम करने की अपनी योजना को आगे बढ़ाने का इरादा जताया था लेकिन इसे चीन ने अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है. अगर चीन COP28 से पहले या उस दौरान मिथेन घटाने का वादा करता है तो अमेरिका में आलोचकों को जवाब देने के लिए केरी की ये एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी. काफी मतभेदों के बावजूद केरी की बैठक के बाद जारी बयान सभी पक्षों से जलवायु सहयोग पर एक सकारात्मक विचार का संकेत देते हैं. चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग ने बहुपक्षीय जलवायु व्यवस्था के लिए व्यावहारिक संस्थागत सहयोग के प्रति खुला रवैया दिखाया और उप राष्ट्रपति हान चंग ने जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान करने में नया योगदान देने के लिए दोनों देशों की क्षमता का ज़िक्र किया. साझा घोषणापत्र में जताई गई सहमति के तहत इसका मतलब एक बड़ा वर्किंग ग्रुप और चीन के राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (NDC) में संभावित तौर पर नई प्रतिबद्धताएं हो सकती हैं. 

अमेरिका की सफाई

वैसे व्हाइट हाउस की तरफ से ये सफाई दी गई है कि किसिंजर की यात्रा निजी थी. किसिंजर ने अपनी यात्रा के दौरान चीन के टॉप डिप्लोमैट वांग यी और रक्षा मंत्री ली शांगफू के साथ बैठक की. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने किसिंजर के साथ बैठक के दौरान कहा कि “अमेरिका के साथ दोस्ताना रिश्तों और चीन-अमेरिका संबंधों की नियमित प्रगति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सही रास्तों को लेकर चीन बातचीत के लिए इच्छुक है”.

ये संभव है कि बैठकों के दौरान संबंध को स्थिर करने के मामले में कुछ प्रगति हुई हो लेकिन अमेरिका और चीन के बीच अभी भी काफी तनाव बना हुआ है. चीन की मांगों में तकनीक़ पर पाबंदी हटाना और ताइवान को समर्थन कम करना शामिल है. साथ ही चीन ये भी चाहता है कि उसको रोकने के लिए एशिया में अमेरिका ने अपने सहयोगियों और साझेदारों के साथ सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करने पर आधारित जो कथित रणनीति बनाई है, उसे खत्म किया जाए. अगर बाइडेन प्रशासन क्वॉन्टम कम्प्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सेमीकंडक्टर से जुड़ी चीन की कंपनियों में अमेरिका के निवेश पर नई पाबंदियों को लागू करने का फैसला करता है तो दोनों देशों के बीच संबंध और भी तनावपूर्ण हो सकते हैं. विश्लेषकों का मानना है कि चीन की तरफ से किसिंजर का गर्मजोशी से स्वागत एक उदाहरण है कि कैसे चीन गैर-आधिकारिक कूटनीतिक चैनल का इस्तेमाल करके अपने संदेश के असर का विस्तार और अमेरिका की सोच पर प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है. चूंकि चीन ज़्यादा शक्की बन गया है और कभी-कभी खुलकर बाइडेन प्रशासन को लेकर अपनी हताशा दिखाता है, ऐसे में वो उन लोगों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रहा है जिन्हें वो अपने रुख को लेकर ज़्यादा हमदर्दी जताने वाला समझता है.   

अमेरिका के अधिकारियों के मुताबिक ब्लिंकन की यात्रा ज़रूरी थी क्योंकि दो बड़ी महाशक्तियों, जो कि दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और सैन्य ताकत भी हैं, के बीच लगातार उच्च-स्तरीय कूटनीति को बनाए रखना महत्वपूर्ण है. इस तरह की राजनयिक भागीदारी को बरकरार रखना खुले तौर पर संघर्ष को रोकने के लिए अहम है. दोनों देशों की सरकारों के साथ-साथ उनके सहयोगी और दूसरे देश भी संबंधों में स्थिरता चाहते हैं. कूटनीति दोनों पक्षों के लिए एक प्लैटफॉर्म मुहैया कराती है जहां वो चर्चा के दौरान खुले तौर पर और निजी रूप से अपना नज़रिया ज़ाहिर कर सकते हैं. 

ये साफ है कि यूक्रेन में युद्ध, ताइवान और व्यापार प्रतिबंध समेत अलग-अलग मुद्दों पर दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनाव में बढ़ोतरी हुई है.

ये साफ है कि यूक्रेन में युद्ध, ताइवान और व्यापार प्रतिबंध समेत अलग-अलग मुद्दों पर दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनाव में बढ़ोतरी हुई है. इन पर और दूसरे मुद्दों पर बातचीत की प्रणाली फिर से स्थापित करने की कोशिश के तहत अमेरिका की तरफ़ से हाल के दिनों में बड़े कूटनीतिक दौरों को शुरू किया गया है. ये जानने के लिए थोड़ा इंतज़ार करना होगा कि हाल के दौरों और बातचीत से किस हद तक संबंध मज़बूत हुए हैं लेकिन ऐसा लगता है कि ताइवान को लेकर अपने रवैये के मामले में चीन अटल है. इसकी वजह से अमेरिका के साथ बर्ताव में वो सावधानी वाला रुख अपना रहा है. दूसरी तरफ अमेरिका मौजूदा तनाव के बावजूद आगे बढ़ने और हालात को ठीक करने का निर्णय कर चुका है. चीन के लिए अर्थव्यवस्था एक आवश्यक पहलू बना हुआ है, वहीं अमेरिका के लिए सैन्य और जलवायु के क्षेत्रों में सहयोग के लिए शांतिपूर्ण और स्थिर संबंध एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है.


उदय नितिन पाटिल मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के डिपार्टमेंट ऑफ जियोपॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में डॉक्टोरल कैंडिडेट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.