भारत में हाल ही में ग्रीष्म लहर या हीट-वेव का सबसे लंबा दौर रिकॉर्ड किया गया है, जिसमें देश में 536 दिन हीटवेव के रहे, जो 14 सालों में सबसे ज़्यादा हैं. भारत में भीषण गर्मी से पैदा होने वाले ख़तरों के चलते बाहर खुले में काम करने वाले गिग वर्कर्स के सामने आने वाली चुनौतियां और बढ़ जाती हैं. ई-कॉमर्स में वृद्धि के साथ जैसे-जैसे गिग इकोनॉमी का विस्तार तेज़ हो रहा है, इस कार्यबल के लिए जोख़िम भी तापमान बढ़ने के साथ ही बढ़ते जा रहे हैं. बहुत सीमित संख्या में श्रम कानूनों के तहत आने वाले, गिग या अस्थायी कर्मचारियों को कठिन परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करना पड़ता है, जिससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना तो करना ही पड़ता है, कम उत्पादकता की समस्या भी झेलनी पड़ती है.
स्वास्थ्य समस्याएं और हीटवेव संवेदनशीलता
ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक नए शोध अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि हीटवेव से होने वाली अतिरिक्त मौतें सभी गर्मी-संबंधी मौतों का लगभग एक-तिहाई और वैश्विक स्तर पर कुल मौतों का एक प्रतिशत है. इस अध्ययन, जो 1990 से शुरू कर पिछले 30 वर्षों के आंकड़ों की पड़ताल करता है, से संकेत मिलते हैं कि हीट वेव या लू लगने से संबंधित अतिरिक्त मौतों का सबसे बड़ा हिस्सा भारत में है. भारत के बाद, चीन और रूस में क्रमशः लगभग 14 प्रतिशत और 8 प्रतिशत मौतें हुईं. बहुत ज़्यादा गर्मी से जुड़ी बीमारियों का बोझ भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में विशेष रूप से गंभीर है, जहां पर्यावरणीय जोख़िम अनियोजित शहरीकरण, मानक पूरे न करने वाले आवास, शहरों में हरित स्थानों में कमी और अन्य संवेदनशीलताओं जैसे कारकों से बढ़ जाते हैं. इस साल भारत में एक मार्च से 18 जून तक लू या heatstroke के 40,000 से अधिक संदिग्ध मामले सामने आए और इनसे कम से कम 110 मौतों की पुष्टि हुई है. रिकॉर्ड के अनुसार भारत के सभी सबसे गर्म साल पिछले दशक के भीतर ही दर्ज हुए हैं.
इस साल भारत में एक मार्च से 18 जून तक लू या heatstroke के 40,000 से अधिक संदिग्ध मामले सामने आए और इनसे कम से कम 110 मौतों की पुष्टि हुई है. रिकॉर्ड के अनुसार भारत के सभी सबसे गर्म साल पिछले दशक के भीतर ही दर्ज हुए हैं.
काम करने के ज़्यादा घंटे और हीटवेव दोनों मिलकर गिग वर्करों के लिए संवेदनशीलता को बढ़ा देती हैं क्योंकि साइकिल चलाते हुए या स्कूटर, मोटरसाइकिल की सवारी करते हुए वे लंबे समय तक बहुत ज़्यादा तापमान को झेलते हैं. लंबे समय तक गर्मी में रहने से उनमें निर्जलीकरण, गर्मी लगने और लू लगने (heat stroke) का खतरा बढ़ जाता है, जो घातक हो सकता है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ- ILO) ने नोट किया है कि उच्च आर्द्रता में 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर हीट स्ट्रेस (heat stress उस स्थिति को कहते हैं जब शरीर खुद को पर्याप्त तौर पर ठंडा नहीं रख पाता है और उसका तापमान ख़तरनाक स्तर तक बढ़ जाता है. ऐसी हालत में शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं. यह तब होता है जब हवा के बहुत नम होने की वजह से पसीने के वाष्पीकरण की प्रक्रिया बंद हो जाती है और अत्यधिक गर्मी से निजात नहीं मिल नहीं पाती है, जबकि 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हीट स्ट्रोक होता है. हैदराबाद में भीषण गर्मी ने गिग वर्करों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले महीने में हीट स्ट्रोक और हीट स्ट्रेस के कई मामले सामने आए हैं. उच्च स्तर पर गर्मी के घंटों के दौरान बाहरी गतिविधि को कम करने की सलाहों के बावजूद, गिग वर्करों के पास अक्सर काम को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए समय बहुत कम होता है और यह उनकी रेटिंग्स और भविष्य में नौकरी के मौकों पर असर डाल सकता है.
मालिकों के द्वारा दिये गए स्वास्थ्य बीमा के बिना, ऐसी स्थितियों की पहचान नहीं की जा सकती या उनका इलाज नहीं हो सकता और थकान, एकाग्रता की कमी या गर्मी से होने वाले तनाव के कारण चक्कर आने की वजह से दुर्घटना होने या चोट लगने का जोख़िम बढ़ सकता है. यह समयबद्ध डिलीवरी के चलते और भी बढ़ जाता है, कुछ प्लेटफ़ॉर्म पर तो कर्मचारी को 10 मिनट से कम समय में डिलीवरी करनी होती है.
कई कर्मचारी बताते हैं कि कंपनी द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा का अभाव है. कुछ लोगों ने वाटर कूलर और आराम करने के स्थान तो उपलब्ध करवाए जाने उल्लेख किया है, लेकिन अक्सर ये बहुत दूर स्थित होते हैं, जिससे उनका नियमित तौर पर उपयोग नहीं कर पाते हैं. अधिकांश कर्मचारी भीषण गर्मी के बावजूद बिना किसी अतिरिक्त मुआवज़े के रोज़ लगभग 10-12 घंटे काम करते हैं.
गिग वर्कर्स की सुरक्षा के उपाय
मई और जुलाई के बीच, भीषण गर्मी के कारण गिग वर्कर्स की उपलब्धता में आमतौर पर लगभग 1/5 हिस्से तक की कमी आ जाती है. हालांकि, ऑनलाइन कॉमर्स इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों के अनुसार, इस साल गर्मियों की शुरुआत जल्दी होने से स्थिति और खराब हो गई है. चिलचिलाती गर्मी के परिणामस्वरूप, प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों को गिग वर्कर की मांग और आपूर्ति के बीच 20 प्रतिशत का अंतर झेलना पड़ रहा है. इससे निपटने के लिए, प्लेटफ़ॉर्म कंपनियां राइडर्स के आराम करने के लिए आश्रय स्थल तैयार कर रही हैं, साथ ही उन्हें फिर से हाइड्रेट या जलयोजित करने (शरीर में पानी की कमी दूर करना) के लिए पेय पदार्थ भी उपलब्ध करा रही हैं.
भारत सरकार कई राज्यों और शहरों के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि हीट एक्शन प्लान (हैप या HAP) को लागू किया जा सके. HAPs का उद्देश्य आचार संहिताओं या प्रोटोकॉल्स के एक सेट का ख़ाका तैयार करके हीटवेव जोख़िमों की तैयारी और प्रतिक्रिया में स्थानीय अधिकारियों की मदद करना है. ये HAPs तत्काल प्रतिक्रियाओं, जैसे स्वास्थ्य सेवा सहायता और सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाने के साथ ही बुनियादी ढांचे में निवेश और संवहनीय शहरी नियोजन जैसी दीर्घकालिक रणनीतियों को भी ध्यान के केंद्र में रख रहे हैं. हालांकि, कई HAPs में पर्याप्त धन की कमी है और उनमें से कई को स्थानीय चुनौतियों का समाधान करने या गिग वर्कर्स की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है. पिछले साल जुलाई में, राजस्थान देश का पहला राज्य बना, जिसने गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए कानून बनाया. कर्नाटक सरकार ने भी गिग वर्कर्स बिल का मसौदा तैयार किया है जिसका उद्देश्य गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है. हाल ही में हरियाणा के गुरुग्राम में उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) ने एक आदेश जारी कर नियोक्ताओं और आरडब्ल्यूए सोसाइटियों को निर्देश दिया कि वे दिहाड़ी मज़दूरों, गिग वर्कर्स और घरेलू सहायकों से दोपहर के समय लिए जाने वाले बाहर के कामों को सीमित करें और इन सबके लिए पानी, कूलर और चिकित्सा उपलब्ध करवाने की व्यवस्था करें.
पिछले साल जुलाई में, राजस्थान देश का पहला राज्य बना, जिसने गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए कानून बनाया. कर्नाटक सरकार ने भी गिग वर्कर्स बिल का मसौदा तैयार किया है जिसका उद्देश्य गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है.
सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 (Code on Social Security 2020) के अधिनियमन ने केंद्र और राज्य सरकारों के लिए गिग वर्कर्स के लिए एक सुरक्षा जाल प्रदान करना अनिवार्य कर दिया है. इस संहिता का उद्देश्य गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है, जो भारत में कार्यबल के इस बढ़ते हिस्से की अनूठी ज़रूरतों को स्वीकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इन योजनाओं में जीवन और विकलांगता कवर, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, भविष्य निधि, दुर्घटना बीमा और वृद्धावस्था सुरक्षा के प्रावधान शामिल हैं. ये संहिता कानूनी रूप से गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स को मान्यता देती है, उन्हें पारंपरिक कर्मचारियों से अलग करती है. हालांकि गिग, प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स और असंगठित श्रमिकों की परिभाषाएं एक-दूसरे का उल्लंघन कर भ्रम पैदा करती हैं जिससे लाभों का कार्यान्वयन जटिल हो जाता है. इसके अतिरिक्त, ये संहिता ग्रेच्युटी और व्यापक स्वास्थ्य बीमा जैसी आवश्यक सुरक्षा को भी अनिवार्य नहीं बनाती, जिससे गिग वर्कर्स पारंपरिक कर्मचारियों के लिए उपलब्ध कई महत्वपूर्ण लाभों से वंचित रह जाते हैं. कंपनियों के लिए लागत का बढ़ना और आधार पर आधारित पंजीकरण को अनिवार्य कर दिये जाने के कारण संभावित बहिष्कार और उसे लागू किये जाने की चुनौतियां, इस कानून के प्रावधानों को लागू किया जाना और जटिल बना देती है.
विस्तृत योजनाओं और अपडेटेड श्रम कानूनों की ज़रूरत
हाल के वर्षों में ई-कॉमर्स के विस्तार के कारण गिग वर्क की मांग में उछाल आया है. गिग इकॉनमी में लगे हुए कार्यबल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह 2011-12 के 2.5 मिलियन से बढ़कर चालू वित्त वर्ष में लगभग 13 मिलियन हो गया है. नीति आयोग के अनुमानों के अनुसार दशक के अंत तक यह आंकड़ा 23 मिलियन तक पहुंच सकता है. जैसे-जैसे गिग इकॉनमी बढ़ती जा रही है, गिग वर्कर्स के लिए मज़बूत सुरक्षा और सहायता की ज़रूरत लगातार बढ़ती जा रही है. नीति आयोग ने सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के तहत कंपनियों या सरकार के साथ साझेदारी में स्वास्थ्य पहुंच, व्यावसाय संबंधी बीमारी और काम के दौरान दुर्घटना बीमा के लिए उपाय सुझाए हैं, जो गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं.
जैसे-जैसे गिग इकॉनमी बढ़ती जा रही है, गिग वर्कर्स के लिए मज़बूत सुरक्षा और सहायता की ज़रूरत लगातार बढ़ती जा रही है. नीति आयोग ने सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के तहत कंपनियों या सरकार के साथ साझेदारी में स्वास्थ्य पहुंच, व्यावसाय संबंधी बीमारी और काम के दौरान दुर्घटना बीमा के लिए उपाय सुझाए हैं, जो गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं.
नीतिगत स्तर पर, जलवायु जोख़िमों को व्यावसायिक स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों में एकीकृत करने और लंबे समय में गिग अर्थव्यवस्था की स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अभिनव समाधान विकसित करने की आवश्यकता है. व्यापक हीटवेव कार्य योजनाएं (HAPs) विकसित की जानी चाहिएं, जिन्हें स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जाए और गिग वर्कर्स की ख़ास ज़रूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त, भारत में श्रम कानूनों को अद्यतन (अपडेट) किया जाना चाहिए ताकि उनमें गिग वर्कर्स के लिए विशिष्ट सुरक्षा को शामिल किया जा सके. इनमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अधिकारों और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए, ख़ासकर चरम मौसम की स्थितियों के दौरान. नियोक्ताओं को काम करने की स्थिति में सुधार करने और अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करने के लिए सक्रियता के साथ कदम उठाने चाहिएं.
उदाहरण के लिए, कंपनियों को गिग वर्कर्स को चरम गर्मी के समय से बचने की अनुमति देने के लिए अधिक लचीले कार्यक्रम लागू करने चाहिए, गर्मी से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए, नियमित स्वास्थ्य जांच शुरू करनी चाहिए और गर्मी से होने वाले तनाव के लक्षणों की निगरानी करनी चाहिए और हीटवेव से जुड़े स्वास्थ्य जोख़िमों को कम करने के लिए कूलिंग जैकेट और नियमित हाइड्रेशन ब्रेक जैसे सुरक्षात्मक उपायों को बढ़ाना चाहिए. इसके अलावा, गर्मी से संबंधित बीमारियों के प्रभाव को कम करने के लिए सभी गिग वर्कर्स को स्वास्थ्य बीमा कवरेज दिया जाना चाहिए. सरकार और प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों के बीच सहयोग, उनकी नीतियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों से संरेखित करने और संवहनीय परिस्थितियों के तहत लगातार विस्तार कर रहे गिग कार्यबल की भलाई सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है.
अदिति मदान मानव विकास संस्थान (Institute for Human Development) में फ़ेलो हैं.
अर्जुन दुबे मानव विकास संस्थान (Institute for Human Development) में रिसर्च एसोसिएट हैं.
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