Author : Oommen C. Kurian

Published on Dec 20, 2023 Updated 0 Hours ago

पूरे इतिहास के दौरान हेल्थकेयर पर अक्सर अमीर लोगों का विशेषाधिकार रहा है. तकनीक़ी तरक्की के बावजूद ये रुझान 2024 में भी जारी है.

हेल्थकेयर अब भी अमीरों के लिए ही है: एक नज़र दुनिया भर के रुझानों पर!

ये लेख "2024 से क्या-क्या उम्मीदें" सीरीज़ का हिस्सा है. 


जैसे-जैसे 2024 नज़दीक आ रहा है, वैसे-वैसे हेल्थकेयर का परिदृश्य तेज़ी से दो भागों में विभाजित हो रहा है: आधुनिक तकनीकें और इनोवेशन अभूतपूर्व चिकित्सा क्षमता के भविष्य का संकेत देते हैं लेकिन इसके बावजूद ये तरक्की अक्सर सिर्फ अमीरों की पहुंच के भीतर रहती है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जीन एडिटिंग और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन (कायापलट) जैसे क्षेत्रों में हेल्थकेयर की क्रांतिकारी प्रगति लोगों की पहुंच और बराबरी जैसे स्थायी मुद्दों के बिल्कुल विपरीत है. ये लेख 2024 में हेल्थकेयर सेक्टर में पूर्वानुमानों के बारे में बताता है और इसका मक़सद ये पता लगाना है कि किस तरह प्रगति के बावजूद स्वास्थ्य देखभाल की क्वालिटी और उस तक लोगों की पहुंच महत्वपूर्ण रूप से आर्थिक असमानता से लगातार प्रभावित हो रही है और इस तरह ऐसे भविष्य को आकार दिया जा रहा है जहां हेल्थकेयर इनोवेशन ज़्यादातर लोगों के लिए एक विलासिता की चीज़ बनी रहेगी. 

इन तकनीकों का असमान एकीकरण संभवत: समृद्ध समाज और अन्य के बीच हेल्थकेयर तक पहुंच के अंतर को बढ़ा सकता है. इस तरह तेज़ी से बदलते जेनरेटिव AI के क्षेत्र में रेगुलेटरी और सुरक्षा से जुड़े पहलुओं के बारे में चिंताएं बढ़ सकती हैं.

पहला रुझान: जेनरेटिव AI और डिजिटल कायापलट

2024 में हेल्थकेयर सेक्टर जेनरेटिव AI और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के अपना इस्तेमाल को और आगे बढ़ाने के लिए तैयार है. ये रफ्तार मरीज़ों की देखभाल (पेशेंट केयर) और परिचालन की क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत से प्रेरित है. जेनरेटिव AI, ख़ास तौर पर लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) और लार्ज मेडिकल मॉडल (LMM) के ज़रिए, मरीज़ के डेटा को प्रोसेस करने और देखभाल मुहैया कराने में बदलाव लाकर हेल्थकेयर में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा. इस बात की संभावना है कि ये AI टूल अस्पताल में मृत्यु दर की भविष्यवाणी, अस्पताल में भर्ती होने की अवधि का प्रबंधन करने और मेडिकल क्लेम को प्रोसेस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. इस तरह दुनिया भर में स्वास्थ्य देखभाल करने वाले संगठनों की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी करेंगे. 

लेकिन इस तरह के विकास के बावजूद हेल्थकेयर में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन अपनी तरह की चुनौतियां लेकर आता है. इन तकनीकों का असमान एकीकरण संभवत: समृद्ध समाज और अन्य के बीच हेल्थकेयर तक पहुंच के अंतर को बढ़ा सकता है. इस तरह तेज़ी से बदलते जेनरेटिव AI के क्षेत्र में रेगुलेटरी और सुरक्षा से जुड़े पहलुओं के बारे में चिंताएं बढ़ सकती हैं. इसके अलावा ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) में इन तकनीकों का प्रभाव वैश्विक हेल्थकेयर समानता के बारे में सवाल खड़ा करते हैं. वैसे तो जेनरेटिव AI में हेल्थकेयर को हर किसी के लिए उपलब्ध बनाने की क्षमता है लेकिन संसाधनों के वितरण में असमानता इसके फायदों को अमीर देशों तक सीमित कर सकती है. इस तरह दुनिया भर में सेहत को लेकर गैर-बराबरी में बढ़ोतरी होगी. इन चुनौतियों के समाधान के लिए हेल्थकेयर में राह दिखाने वालों और नीति निर्माताओं की तरफ से पुख्ता कोशिशों की आवश्यकता है ताकि जेनरेटिव AI और डिजिटल हेल्थकेयर टूल को हर किसी के लिए उपलब्ध और लाभदायक बनाया जा सके. ये तकनीक़, इंफ्रास्ट्रक्चर और रेगुलेटरी ढांचे में निवेश के ज़रिए किया जा सकता है. इस तरह दुनिया भर में एक समान स्वास्थ्य देखभाल का परिणाम सुनिश्चित किया जा सकता है. 

दूसरा रुझान: विलय, अधिग्रहण और उद्योग का एकीकरण

उम्मीद की जा रही है कि 2024 में हेल्थकेयर सेक्टर का परिदृश्य मौजूदा विलय और अधिग्रहण से आकार लेगा जो वित्तीय मजबूरियों के तहत परिचालन की कार्यक्षमता के लिए आवश्यकता से प्रेरित है. ये रुझान बड़े और ज़्यादा एकीकृत हेल्थकेयर सिस्टम के निर्माण की तरफ ले जा रहा है जो बेहतर सेवा उपलब्ध कराने और परिचालन की दक्षता का वादा करता है. हालांकि स्वास्थ्य देखभाल के व्यावसायीकरण और कम आमदनी वाले समूहों के लिए इलाज की उपलब्धता में कमी के बारे में चिंताएं हैं. अब ध्यान मूल्य आधारित देखभाल (वैल्यू-बेस्ड केयर) की तरफ बदल रहा है और हेल्थकेयर मुहैया कराने वाले संगठन उन रणनीतियों को प्राथमिकता दे रहे हैं जो मरीज़ की देखभाल की क्वालिटी को बढ़ाते हैं. इसके अलावा डिजिटल हेल्थ टेक्नोलॉजी के द्वारा आसान बनाई गई रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग (दूर से मरीज़ की निगरानी) और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल पर बढ़ता ज़ोर महत्वपूर्ण बनते जा रहे हैं. हेल्थकेयर सेक्टर में गैर-परंपरागत किरदारों की भागीदारी, जैसे कि तकनीकी कंपनियां और प्राइवेट इक्विटी कंपनियां, से इन विलयों और अधिग्रहणों के और तेज़ होने की उम्मीद है. 

हेल्थकेयर सिस्टम को अक्सर बराबरी पर आधारित इलाज की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए जूझना पड़ता है. ये रुझान आधुनिक हेल्थकेयर परिदृश्य में दिखाई देता है जहां नए तरह का इलाज और तकनीकें अक्सर मुख्य रूप से उन लोगों के लिए उपलब्ध है जिनके पास पैसा है.

अफसोस की बात है कि वित्तीय दबाव की वजह से उद्योग के संगठित होने का एक नतीजा कई अनूठी पहल के बंद होने का कारण बन सकता है. ये बेबिल रवांडा (कम दाम पर रवांडा में स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराने वाली कंपनी) की तरह है जिसने एक कम आमदनी वाले देश में क्रॉस-सब्सिडाइज़ेशन मॉडल पर काम करके असमानता को दूर करने में बहुत अच्छा काम किया है. ये हेल्थकेयर सेक्टर के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती को रेखांकित करता है: हेल्थकेयर समानता को प्राथमिकता देने वाले इनोवेटिव मॉडल को समर्थन और बनाए रखने की आवश्यकता का कार्यक्षमता और विस्तार के लिए प्रेरणा के साथ संतुलन. 2024 के गतिशील और बदलते स्वास्थ्य देखभाल के परिदृश्य को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ाना होगा ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इस क्षेत्र में तरक्की कम होती उपलब्धता और समानता की कीमत पर न आए, ख़ास तौर पर उन क्षेत्रों में जहां इनोवेटिव हेल्थकेयर सॉल्यूशंस की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. 

तीसरा रुझान: हेल्थ वर्कफोर्स की चुनौतियां और आउटसोर्सिंग

2024 में हेल्थकेयर सेक्टर के सामने वर्कफोर्स (श्रम बल) से जुड़ी चुनौती बढ़ने की उम्मीद है. इसकी मुख्य वजह हुनरमंद लोगों की कमी और काम-काज से जुड़ा तनाव है. ये परिस्थिति कई कारणों का नतीजा है जिनमें हेल्थकेयर की नौकरी का बहुत ज़्यादा उम्मीद रखने वाला स्वभाव, हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की बढ़ती उम्र और कोविड-19 महामारी का दीर्घकालीन प्रभाव शामिल है. इन कारणों ने स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े संसाधनों और काम करने वाले लोगों पर बहुत ज़्यादा दबाव डाला है. चूंकि हेल्थकेयर से जुड़े संगठन इन चुनौतियों का मुकाबला करने में जूझ रहे हैं, ऐसे में आउटसोर्सिंग और ऑफशोरिंग (अपने काम का कुछ हिस्सा दूसरे देशों में स्थित संगठन को सौंपना ताकि लागत में कमी और कार्यक्षमता में बढ़ोतरी हो सके) की तरफ रुझान बढ़ रहा है, ख़ास तौर पर प्रशासनिक कामों जैसे कि बिलिंग, कोडिंग और क्लेम प्रोसेसिंग के लिए. 

हालांकि, आउटसोर्सिंग और ऑफशोरिंग की तरफ बदलाव के अपने नतीजे भी हैं. एक तरफ जहां इससे अल्पकालीन वित्तीय राहत और परिचालन के लाभ हैं, वहीं ये नौकरी की सुरक्षा और प्रदान की जाने वाली देखभाल की क्वॉलिटी पर दीर्घकालीन प्रभाव के बारे में चिंताएं भी पैदा करता है. महत्वपूर्ण काम-काज को आउटसोर्स करने से सेवा की गुणवत्ता में अंतर आ सकता है, विशेष रूप से उस समय जब आउटसोर्स की गई सेवाओं में उसी स्तर की देखरेख या विशेषज्ञता की कमी है जैसी आंतरिक टीम की है. इसके अलावा ये रुझान हेल्थकेयर में मौजूदा असमानता को और बढ़ा सकता है, ख़ास तौर पर वित्तीय क्षमता के आधार पर स्वास्थ्य देखभाल की सेवाओं की गुणवत्ता और उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है. चूंकि पैसे वाले हेल्थकेयर संगठन आउटसोर्सिंग की रणनीति में निवेश करने के लिए बेहतर स्थिति में हो सकते हैं, ऐसे में इस बात का ख़तरा है कि छोटे या फंड की कमी का सामना करने वाले संगठन सेवा की गुणवत्ता को बरकरार रखने में जूझ सकते हैं. इस तरह अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक समूहों में हेल्थकेयर की उपलब्धता और गुणवत्ता में अंतर बढ़ने की आशंका है. 

चौथा रुझान: CRISPR का नया क्षितिज: 2024 और उसके आगे जीन एडिटिंग की छलांग

हेल्थकेयर में CRISPR (क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पेलिनड्रॉमिक रिपीट्स यानी जीवित प्राणियों के DNA में फेरबदल के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक़) आनुवंशिक बीमारियों (जेनेटिक डिसऑर्डर) के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए तैयार है, विशेष रूप से अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (USFDA) के द्वारा CRISPR/Cas9 जीन-एडिटिंग इलाज की मंज़ूरी के बाद. इस तकनीक़ के इस्तेमाल, जिसका उदाहरण सिकल सेल बीमारी का इलाज है, में जटिल प्रक्रियाएं शामिल हैं और आनुवंशिक कमियों की भरपाई के लिए मरीज़ के हेमाटोपोएटिक स्टेम सेल को टारगेट किया जाता है. ये तकनीक़ जहां इलाज में महत्वपूर्ण प्रगति को दिखाती है और गंभीर हालात से जूझ रहे मरीज़ों के सामने उम्मीद पेश करती है, वहीं जटिलता, लागत और उपलब्धता से जुड़ी चुनौतियां भी खड़ी करती है. इस इलाज के लिए हर मरीज़ पर 20 लाख अमेरिकी डॉलर तक का खर्च करना पड़ सकता है जो स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी उपलब्धता और सामर्थ्य में बहुत ज़्यादा असमानता को रेखांकित करता है, विशेष रूप से कम आमदनी वाले देशों में जहां सिकल सेल बीमारी से ग्रस्त ज़्यादातर मरीज़ रहते हैं.   

CRISPR तकनीक़ में विकास, जैसे कि प्राइम एडिटिंग और एपिजीनोम एडिटिंग, हेल्थकेयर में संभावित उपयोग का विस्तार कर रहा है, अधिक लचीली और सटीक जीनोम एडिटिंग की पेशकश कर रहा है और DNA सिक्वेंस में बदलाव के बिना जीन अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) में परिवर्तन कर रहा है. हालांकि विकासशील देशों में वास्तविक दुनिया से जुड़े पहलू को लेकर चिंता बनी हुई है. ये तकनीकें जहां कई तरह की आनुवंशिक बीमारियों के लिए नए तरह के इलाज का वादा करती हैं, वहीं उनकी ऊंची लागत और जटिल इलाज दुनिया भर में हेल्थकेयर से जुड़ी असमानता में और बढ़ोतरी कर सकता है. ऐसे में CRISPR/Cas9 जीन-एडिटिंग जहां चिकित्सा विज्ञान में एक नए युग का प्रतीक है, वहीं ये ख़तरा भी है कि अगर इस तरह के इलाज को अलग-अलग आर्थिक वर्गों तक उपलब्ध कराने के लिए वैश्विक प्रयास नहीं किया जाएगा तो इसके फायदे अमीर लोगों तक ही सीमित रहेंगे. 

आगे का रास्ता

पूरे इतिहास के दौरान हेल्थकेयर पर अक्सर अमीर लोगों का विशेषाधिकार रहा है. तकनीकी तरक्की के बावजूद ये रुझान 2024 में भी जारी है. ऐतिहासिक रूप से देखें तो मेडिकल प्रैक्टिस उस समय तक अप्रमाणित विचारों पर आधारित था जब तक कि 19वीं शताब्दी में वैज्ञानिक पद्धति ने इलाज में क्रांतिकारी बदलाव नहीं किया. हालांकि प्राइवेट, लाभ कमाने के लिए बने अस्पताल और मरीज़ की देखभाल से ज़्यादा लाभ पर ध्यान से हेल्थकेयर उद्योग में बदलाव आया. आज के दौर में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद हेल्थकेयर सिस्टम को अक्सर बराबरी पर आधारित इलाज की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए जूझना पड़ता है. ये रुझान आधुनिक हेल्थकेयर परिदृश्य में दिखाई देता है जहां नए तरह का इलाज और तकनीकें अक्सर मुख्य रूप से उन लोगों के लिए उपलब्ध है जिनके पास पैसा है, इस तरह हेल्थकेयर सिर्फ अमीर लोगों के लिए बनी हुई है. जब हम भविष्य की तरफ देखते हैं तो हमें इस बात पर ज़रूर विचार करना चाहिए कि क्या टेस्ला के ओपन-सोर्स अप्रोच जैसे मॉडल को अपनाने से हेल्थकेयर सेक्टर में समानता पर आधारित इलाज का रास्ता मिल सकता है. ये वो मॉडल है जिसने दीर्घकालीन दृष्टिकोण और तालमेल वाले इनोवेशन पर ध्यान देकर इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उद्योग में क्रांति ला दी.   


ओमन सी. कुरियन ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और हेल्थ इनिशिएटिव के प्रमुख हैं.

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