Published on Oct 20, 2023 Updated 22 Days ago

वैसे तो चीन ने अपने विकास सहयोग कार्यक्रम में सुधार के क़दम उठाए हैं, लेकिन कई प्रतिबद्धताएं अब तक पूरी नहीं हुई हैं. 

क्या चीन के विकास सहयोग कार्यक्रम में हालिया सुधार असरदार रहे हैं?

ये हमारी श्रृंखला द चाइना क्रॉनिकल्स का 151वां लेख है.


चीन ने अपना विदेशी सहायता कार्यक्रम 1950 के दशक में शुरू किया था, हालांकि 1999 तक वो ख़ुद विदेशों से आर्थिक मदद हासिल करता रहा था. 2000 के दशक में चीन की वैश्विक हैसियत में आमूलचूल बदलाव देखने को मिला. उसके विकास सहयोग कार्यक्रम का तेज़ी से विस्तार हुआ और उसके सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों ने ‘गो आउट’ नीति के तहत विदेशों में धमक बढ़ाई. नतीजतन, एक छोटे कालखंड में चीन दक्षिण के ज़्यादातर देशों (ख़ासतौर से अफ्रीकी क्षेत्र में) का अहम विकास भागीदार बन गया. चीनी विकास सहयोग कार्यक्रम ने पश्चिम की शर्तों से निराश हो चुके तमाम विकासशील देशों को वित्त का वैकल्पिक और सरल स्रोत मुहैया कराया. चीन ने अंतरराष्ट्रीय विकास परिदृश्य में पश्चिम के दबदबे को चुनौती दी, साथ ही बेहद तेज़ी से प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वित्त प्रदाता और विकासशील दुनिया के लिए बुनियादी ढांचा मुहैया कराने वाले देश के तौर पर उभर गया. 

चीन ने अंतरराष्ट्रीय विकास परिदृश्य में पश्चिम के दबदबे को चुनौती दी, साथ ही बेहद तेज़ी से प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वित्त प्रदाता और विकासशील दुनिया के लिए बुनियादी ढांचा मुहैया कराने वाले देश के तौर पर उभर गया.

हालांकि चीन का विकास सहायता कार्यक्रम हमेशा से विवादास्पद रहा है. इसे, ख़ासतौर से पश्चिमी जगत से भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. चीन पर अक्सर नव-उपनिवेशवाद, धूर्त दानदाता और कर्ज़ के जाल में फंसाने वाली कूटनीति में जुड़े होने के आरोप लगे हैं. बुनियादी ढांचे से जुड़ी उसकी अनेक परियोजनाएं भ्रष्टाचार के मामलों में भी घिरी रही है और उन्होंने प्राप्तकर्ता देशों में पर्यावरण और श्रम क़ानूनों का उल्लंघन किया है. भले ही कुछ आलोचनाओं को अतिरेक भरा या पूर्वाग्रह से ग्रस्त क़रार दे दिया जाए लेकिन चीन के दृष्टिकोण को लेकर कुछ गंभीर समस्याएं हैं, जिन्हें अब चीन भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता. बाटेनेह, बेनॉन, और फुकुयाम (2019), रसेल और बर्जर (2019), गिथायगा, बुरिमासो, बिंग और अहमद (2019) जैसे कई अध्ययनों में पाया गया कि बुनियादी ढांचे के लिए चीनी सॉफ्ट लोन को अक्सर बिना ज़रूरी जांच पड़ताल के बेतरतीब तरीक़े से बांटा गया. इनकी व्यावहारिकता को लेकर अध्ययन नहीं कराए गए और इन परियोजनाओं से होने वाले आर्थिक फ़ायदों का बढ़ा-चढ़ाकर आकलन किया गया. सबसे कठोर आलोचना भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और चीनी परियोजनाओं की अपारदर्शी प्रवृति से जुड़ी समस्याओं के चलते हुई. तंज़ानिया और बांग्लादेश जैसे अनेक प्राप्तकर्ता देशों ने ऋणों की अपारदर्शिता के कारण भी चीन को खरी-खोटी सुनाई है.  

तीसरा श्वेत पत्र

चीन की आंतरिक रिपोर्टों में ऋण के ज़रिए संचालित किए जाने वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भी गड़बड़ियां पाई गई हैं. कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग ने विदेशी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के मामले पाए हैं. चीन ने स्वीकार किया है कि उसका विकास सहायता कार्यक्रम ज़रूरत से ज़्यादा बड़ा और पेचीदा हो गया है, लिहाज़ा उनकी पहले से अधिक और बेहतर निगरानी की दरकार है. चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी विकास सहायता के संस्थागत ढांचे में बदलावों की एक पूरी श्रृंखला शुरू की है. 2018 में चाइना इंटरनेशनल डेवलपमेंट कोऑपरेशन एजेंसी (CIDCA) की स्थापना और 2021 में चीनी विदेश सहायता पर तीसरा श्वेत पत्र जारी किया जाना इस दिशा में दो सबसे अहम घटनाएं हैं. 

CIDCA का गठन चीनी विदेशी सहायता की अहमियत बढ़ाने के लक्ष्य से किया गया था. इसके ज़रिए चीन ने अपने विदेश सहायता कार्यक्रम का अपने विदेश नीति लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाया था. साथ ही ये चीनी विकास कार्यक्रमों के प्रशासन को सुधारने की भी कोशिश थी.

CIDCA का गठन एक अहम मोड़ था. दरअसल, ये वाक़या एक ऐसे समय पर हुआ जब यूनाइटेड किंगडम (यूके) और ऑस्ट्रेलिया जैसे OECD (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) के कुछ देशों ने विशिष्ट सहायता एजेंसियों को ख़त्म कर दिया. इनमें डिपार्टमेंट फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (DFID) और ऑस्ट्रेलियन एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (AusAid) जैसे संस्थान शामिल हैं. CIDCA का गठन चीनी विदेशी सहायता की अहमियत बढ़ाने के लक्ष्य से किया गया था. इसके ज़रिए चीन ने अपने विदेश सहायता कार्यक्रम का अपने विदेश नीति लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाया था. साथ ही ये चीनी विकास कार्यक्रमों के प्रशासन को सुधारने की भी कोशिश थी.  

CIDCA के गठन से पहले चीन के तीन मंत्रालय आर्थिक सहायता ढांचे में प्रभावशाली भूमिका निभा रहे थे. ये मंत्रालय थे- वाणिज्य मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय. विकास परियोजना के आर्थिक क्षेत्र के आधार पर 20 अन्य मंत्रालय भी इसमें शामिल रहते थे. विभिन्न मंत्रालयों के बीच शायद ही किसी तरह की सूचना साझा की जाती थी और अफसरशाही के स्तर पर होने वाले बखेड़े अक्सर परियोजना के लचर क्रियान्वयन का कारण बन जाते थे. CIDCA ने चीनी विकास सहयोग के मुख्य समन्वयक के रूप में वाणिज्य मंत्रालय की जगह ले ली, और अब वो वार्ताओं में चीनी सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए उसके नाम पर समझौतों पर हस्ताक्षर करता है. वाणिज्य मंत्रालय के उलट, CIDCA के कंधों पर विदेशी सहायता के मसले पर चीनी नेताओं को सलाह देने और देश की रणनीतियां तैयार करने की भी ज़िम्मेदारी है. भले ही CIDCA का गठन बड़े तामझाम के साथ किया गया था, लेकिन ये संस्था पूरी तरह से ताक़तवर वाणिज्य मंत्रालय की जगह नहीं ले पाई. उप मंत्रालय के रूप में CIDCA का दर्जा वाणिज्य और विदेश जैसे ताक़तवर मंत्रालयों पर उसके प्रभाव में ज़बरदस्त गिरावट ला देता है. उसके कर्मचारियों की तादाद भी सीमित है.  

एक ज़िम्मेदार शक्ति के रूप में चीन को अपने विदेशी सहायता कार्यक्रम की शासन व्यवस्था में निश्चित रूप से सुधार लाना चाहिए, अपनी परियोजनाओं की गुणवत्ता ऊंची करनी चाहिए और दूसरे देशों में अपने विकास कार्यक्रमों की बढ़ती आलोचनाओं पर क़दम उठाना चाहिए.

चीनी विकास सहयोग दृष्टिकोण के साथ एक और बड़ी दिक़्क़त ये है कि ये पूरी तरह से चीनी सरकार और सरकारी एजेंसियों द्वारा संचालित है. इसमें समुदाय का कोई संपर्क नहीं है, जिससे चलते अक्सर प्राप्तकर्ता देशों की स्थानीय आबादी में अलगाव का भाव आ जाता है. चीनी ग़ैर-सरकारी संगठनों को लगा था कि CIDCA के गठन के साथ चीन के नागरिक समाज संगठन, देश की विकास भागीदारियों में व्यापक और ज़्यादा अहम भूमिका निभाएंगे. हालांकि डेंग्हुआ झांग और हांगबो जी जैसे विद्वानों ने पाया है कि ये तमाम मक़सद कारगर नहीं हो सके हैं. इसी प्रकार, CIDCA की सीमित कर्मचारी क्षमता के साथ-साथ विकास सहायता, विकास प्रभावशीलता और कार्यान्वयन पर अपर्याप्त शोध क्षमता उसकी सलाहकारी भूमिका को बाधित कर देती है. 

कथनी और करनी में फर्क़

2021 में चीन ने विदेशी सहायता पर अपना तीसरा श्वेत पत्र जारी किया. श्वेत पत्र ने सहायता की प्रभावशीलता औऱ पारदर्शिता के साथ-साथ परियोजना प्रबंधन और प्रतिस्पर्धी निविदा प्रक्रियाओं की स्पष्ट रूप से परिभाषित क़वायदों पर भी ज़ोर दिया. इसके अलावा, भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के लिए इसने परियोजना क्रियान्वयन एजेंसियों के मूल्यांकन का सुझाव देते हुए परियोजनाओं के नियमित रूप से निष्पक्ष आकलन का प्रस्ताव किया. हालांकि, श्वेत पत्र का सबसे मौलिक बिंदु विदेशी सहायता पर बारीक़ नज़र रखने और निगरानी के स्तर को ऊंचा करने के लिए एक आधुनिक सांख्यिकीय प्रणाली के विकास से जुड़ी प्रतिबद्धता थी. वर्षों तक चीनी राज्यसत्ता ने ना तो क़िस्म और ना ही उद्देश्य के रूप में इस बात का खंडवार विस्तृत ब्योरा दिया कि अलग-अलग देशों में उसकी विदेशी सहायता को कैसे बांटा जाता है. विश्वसनीय आंकड़े के अभाव ने तुलनाओं में अड़चनें पैदा की और अक्सर संदेह को जन्म दिया.  

एक ज़िम्मेदार शक्ति के रूप में चीन को अपने विदेशी सहायता कार्यक्रम की शासन व्यवस्था में निश्चित रूप से सुधार लाना चाहिए, अपनी परियोजनाओं की गुणवत्ता ऊंची करनी चाहिए और दूसरे देशों में अपने विकास कार्यक्रमों की बढ़ती आलोचनाओं पर क़दम उठाना चाहिए. चीन ने अपने विदेशी सहायता कार्यक्रम के प्रशासनिक ढांचे को सुधारने के लिए कुछ प्रयास किए हैं. साथ ही विकास प्रभावशीलता और पारदर्शिता को सुधारने के लिए भी उपाय किए गए हैं. कई अध्ययनों से ये पता चला है कि 2015 से चीनी विदेश सहायता व्यय में स्थिर रूप से बढ़ोतरी नहीं हुई है. चीनी एजेंसियां अब परियोजना की बेहतर व्यावहारिक रिपोर्ट मांगने लगी हैं, और वैसी परियोजनाओं को समर्थन देने से कतराने लगी हैं जहां ऋण की अदायगी के लिए आय का प्रवाह ख़ुद परियोजना से ही आता है. हालांकि, संस्थागत तौर पर कोई ख़ास बदलाव नहीं हुआ है. उप मंत्रालय के दर्जे और कर्मचारियों की कम तादाद की वजह से CIDCA विकास एजेंसी के तौर पर काफ़ी कम ताक़त रखती है. चीनी नेताओं को सुझाव देने और विकासशील देशों के लिए राष्ट्र की रणनीतियां तैयार करने को लेकर एजेंसी के पास शोध क्षमता का भी अभाव है. अन्य विकासशील देशों में परियोजनाओं का कार्यान्वयन कर रहे चीनी सरकारी उद्यमों को भी अपने परिचालनों में नाटकीय सुधार लाने की दरकार है. विदेशी सहायता पर चीन के श्वेत पत्र में जताई गई अनेक प्रतिबद्धताएं भी अब तक साकार नहीं हो पाई हैं. सौ बात की एक बात यही है कि चीन को अपनी कथनी को करनी में बदलना होगा.


मलांचा चक्रबर्ती ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं

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