Author : Shruti Jain

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

2023 में भारत की जी20 की अध्यक्षता के तहत उसके पास एक मौक़ा है कि वो डिजिटल वित्तीय समावेशन को एजेंडे में आगे बढ़ाए ताकि एक समावेशी कोविड-19 रिकवरी की अनुमति दी जा सके.

#Digital Economy: ‘जी20 का डिजिटल अर्थव्यवस्था एजेंडा और  2023 में वित्तीय समावेशन’
#Digital Economy: ‘जी20 का डिजिटल अर्थव्यवस्था एजेंडा और 2023 में वित्तीय समावेशन’

कम दाम पर वित्तीय सेवाओं के इस्तेमाल तक लोगों की पहुंच आर्थिक विकास को प्रोत्साहन, असमानता में कमी और वित्तीय जोखिम को लेकर किसी व्यक्ति के लचीलेपन को बेहतर कर सकती है. दुनिया भर में ये सीधे तौर पर अच्छी खपत, शिक्षा एवं स्वास्थ्य में बढ़े हुए निवेश और वित्तीय बाज़ारों में ज़्यादा समावेशन से जुड़ी हुई है. वित्तीय समावेशन को संभव बनाने में डिजिटलाइज़ेशन का प्रमुख योगदान हो सकता है और महामारी से समावेशी रिकवरी में ये महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. कोविड-19 के ख़िलाफ़ सरकारों के जवाबी उपाय में ये अनमोल साबित हुआ है, ख़ास तौर पर कमज़ोर और सुविधाओं से दूर लोगों तक पहुंचने में. इस काम के लिए डिजिटलाइज़ेशन वित्तीय संसाधनों तक पहुंच के आख़िरी चरण को अंजाम देता है.

लेकिन विश्व बैंक के फिनडेक्स डेटाबेस के अनुसार 1.7 अरब वयस्कों या दुनिया की वयस्क आबादी के लगभग आधे हिस्से की पहुंच वित्तीय संस्थानों द्वारा नियंत्रित किसी भी वित्तीय सेवा तक नहीं है. कुल मिलाकर बैंकिंग सुविधा से दूर लगभग 56 प्रतिशत महिलाएं हैं और उनमें से आधी महिलाएं सबसे ग़रीब 40 प्रतिशत घरों से संबंध रखती हैं. बेसिक खाता खोलने की उपलब्धता के बावजूद वित्तीय सेवाओं के एक व्यापक रेंज तक पहुंच अभी भी एक चुनौती बनी हुई है. महामारी से प्रेरित सामाजिक दूरी के नियमों ने डिजिटल वित्तीय सेवाओं को मुहैया कराने की ज़रूरत को और भी रेखांकित किया है.

पिछले कुछ वर्षों में चुनौतियों को समझते हुए जी20 ने अलग-अलग पहल के ज़रिए वित्तीय समावेशन के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की है जैसे कि वित्तीय समावेशन के लिए वैश्विक साझेदारी (जीपीएफआई), डिजिटल समावेशन के लिए जी20 के उच्च स्तरीय सिद्धांत (एचएलपी) और जी20 वित्तीय समावेशन कार्य योजना 2020 की स्थापना. इसके अलावा, 2022 में जी20 के अध्यक्ष के तौर पर इंडोनेशिया ने डिजिटल इकोनॉमी टास्क फोर्स को अपग्रेड कर डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप कर दिया है और 2022 के लिए जी20 के वित्तीय एजेंडे के तहत ‘डिजिटल वित्तीय समावेशन’ और ‘डिजिटल युग में भुगतान प्रणाली’ की पहचान प्रमुख प्राथमिकता के तौर पर की है.

जी20 के देशों के लिए ये महत्वपूर्ण है कि वो अपने सदस्यों को वित्तीय समावेशन के लिए एक डिजिटल दृष्टिकोण का समर्थन करने का अनुरोध करें ताकि उनकी कोशिशों का तालमेल इस तरह हो कि एक समावेशी, अधिकार देने वाली और स्पष्ट डिजिटल अर्थव्यवस्था प्रदान की जा सके.

जी20 के देशों के लिए ये महत्वपूर्ण है कि वो अपने सदस्यों को वित्तीय समावेशन के लिए एक डिजिटल दृष्टिकोण का समर्थन करने का अनुरोध करें ताकि उनकी कोशिशों का तालमेल इस तरह हो कि एक समावेशी, अधिकार देने वाली और स्पष्ट डिजिटल अर्थव्यवस्था प्रदान की जा सके. वैसे तो एक समावेशी डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने का एजेंडा सीधे तौर पर डिजिटल वित्तीय समावेशन के साथ जुड़ा है लेकिन जी20 का डिजिटल वित्तीय समावेशन एजेंडा बंटा हुआ है. वित्तीय समावेशन का आदेश जहां जी20 के वित्तीय एजेंडे के तहत वित्तीय समावेशन के लिए वैश्विक साझेदारी (जीपीएफआई) में आता है वहीं डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप शेरपा ट्रैक (सम्मेलन से पहले तैयारी) का एक हिस्सा है. ये उचित होगा कि डिजिटल वित्तीय समावेशन के एजेंडे को नये डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप के तहत जोड़ दिया जाए.

अगले तीन वर्षों में जी20 का नेतृत्व तीन उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं- इंडोनेशिया, भारत और ब्राज़ील- करेंगी. इसे देखते हुए भारत के लिए एक अवसर है कि वो महामारी से संपूर्ण रिकवरी को प्रोत्साहन देने के माध्यम के रूप में डिजिटल वित्तीय समावेशन के एजेंडे को आगे बढ़ाए. 2023 में अपने नेतृत्व में जी20 की प्रमुख डिजिटल वित्तीय समावेशन की नीति के तहत भारत बड़े आवर्ती भुगतानों से लाभ उठाने और उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने पर ध्यान दे सकता है.

बड़े आवर्ती भुगतानों का फ़ायदा उठाना

जी20 में भारत बड़े आवर्ती डिजिटल भुगतानों से फ़ायदा उठाने की ज़रूरत पर ध्यान दे सकता है. इससे बाज़ार में स्वीकार्यता, विश्वास स्थापित करके और बड़े कारोबारी मामलों को बढ़ावा देकर डिजिटल वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन दिया जा सकता है. एक खुली और समावेशी भुगतान प्रणाली डिजिटल भुगतान के आकार को बढ़ाने के साथ-साथ उन लोगों की आर्थिक भागीदारी भी बढ़ा सकती है जिनकी पहुंच किसी औपचारिक वित्तीय सेवा तक नहीं है.

वित्तीय समावेशन के लिए वैश्विक साझेदारी (जीपीएफआई) के उच्च स्तरीय सिद्धांत (एचएलपी) का दृष्टिकोण सरकार से व्यक्ति (गवर्नमेंट-टू-पर्सन यानी जी2पी) को भुगतान का फ़ायदा उठाने पर ध्यान देता है. इसके अलावा एक क़ानूनी, डिजिटल पहचान की शुरुआत करने पर भी ज़ोर रहता है ताकि वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन दिया जा सके. इंफ्रास्ट्रक्चर और लेन-देन के खातों में ज़्यादा निवेश मुहैया करा के जी2पी भुगतान में वित्तीय समावेशन को बढ़ाने की संभावना है. सामाजिक लाभों, मज़दूरी और पेंशन के रूप में बड़े पैमाने पर आवर्ती भुगतान राष्ट्रीय रिटेल भुगतान प्रणाली को बढ़ा सकता है.

भारत का डायरेक्टर बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) और आधार (डिजिटल पहचान) इस बात का प्रतिनिधित्व करते हैं कि किस तरह सार्वजनिक डिजिटल प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल आजीविका और अर्थव्यवस्था की रुकावट का जवाब देने में सरकार के द्वारा किया जा सकता है, जैसा कि कोविड-19 के दौरान डिजिटल वित्तीय समावेशन के लिए किया गया. महामारी के दौरान वित्तीय वर्ष 2020-21 में 319 सरकारी योजनाओं के तहत क़रीब 5.53 ट्रिलियन रुपये डीबीटी के ज़रिए डिजिटल माध्यम से भेजे गए. इसमें लगभग 1.67 ट्रिलियन रुपये जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए थे. ब्राज़ील में लोगों को कोविड से जुड़ा सरकारी भुगतान (जी2पी) सरकारी बैंक काइक्शा इकोनॉमिका फेडरल (सीईएफ) के ज़रिए डिजिटल खाते में उपलब्ध कराया गया. क़रीब 6 करोड़ 83 लाख लोगों को कोविड-19 आपातकालीन फंड भेजा गया और इस कार्यक्रम की वजह से क़रीब 1 करोड़ 40 लाख लोग पहली बार औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल हुए. इसी तरह मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और दूसरे देशों ने डिजिटल वित्तीय सेवा को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ़ से लोगों तक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान (जी2पी) को मुख्य स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया. डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप के तहत भारत जी20 सदस्यों देशों के नीति निर्माताओं, केंद्रीय बैंकों और नियामक संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा दे सकता है. ऐसा करना इसलिए ज़रूरी है कि किसी भी देश की रणनीति में सरकार की तरफ़ से लोगों तक भुगतान (जी2पी) ख़ास तौर पर सामाजिक रूप से कमज़ोर लोगों जैसे बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं और आर्थिक रूप से सुविधाहीन लोगों को सरकारी भुगतान के रूप में बार-बार के डिजिटल लेन-देन का फ़ायदा उठाया जा सके.

इसके अलावा सरकार की तरफ़ से भेजी गई रक़म अक्सर कम आमदनी वाले लोगों को डिजिटल भुगतान में सबसे महत्वपूर्ण होती है. जी20 वित्तीय समावेशन के लिए वैश्विक साझेदारी (जीपीएफआई) का उच्च स्तरीय सिद्धांत (एचएलपी) सरकार की तरफ़ से भेजी गई रक़म के रूप में आवर्ती भुगतान को डिजिटल तरीक़े से करने को प्रोत्साहित और आसान बनाने की सिफ़ारिश करता है. डिजिटलाइज़ेशन तेज़ और आसान भुगतान प्रक्रिया को सरल बना सकता है, आवर्ती भुगतान और फंड की मात्रा को बढ़ा सकता है. सरकार की तरफ़ से भेजी गई रक़म निवेश, बचत और बीमा के बीच संपर्क को बढ़ा सकता है. जी20 डिजिटल वित्तीय समावेशन के लिए आवर्ती भुगतानों को प्रोत्साहन देने में नियामक रूप-रेखा को सक्षम बनाने, तकनीकी समाधान विकसित करने और डिजिटल भुगतान के प्रवाह को आसान बनाने पर ध्यान दे सकता है. डिजिटल भुगतान प्रवाह को आसान बनाकर भारत और जी20 के दूसरे देश न केवल अपने डिजिटल वित्तीय सेवाओं के अंतर को पाटने में एक अवसर मुहैया करा सकते हैं बल्कि सीमा पार भुगतान के लिए लेन-देन के माध्यम को भी औपचारिक रूप दे सकते हैं.

डिजिटल भुगतान प्रवाह को आसान बनाकर भारत और जी20 के दूसरे देश न केवल अपने डिजिटल वित्तीय सेवाओं के अंतर को पाटने में एक अवसर मुहैया करा सकते हैं बल्कि सीमा पार भुगतान के लिए लेन-देन के माध्यम को भी औपचारिक रूप दे सकते हैं.

वैसे सरकार से लोगों तक (जी2पी) और डिजिटल भुगतान विकासशील देशों में कई चुनौतियों का सामना करते हैं. भारत में एक सर्वे से संकेत मिला कि ज़्यादातर व्यापारी और उनके ग्राहकों ने डिजिटल माध्यम के मुक़ाबले नकद भुगतान को ज़्यादा सुविधाजनक माना. इसकी वजह बिजली की आंख-मिचौली, धीमा इंटरनेट और प्वाइंट-ऑफ-सेल (कार्ड स्वैप करने वाली मशीन) टर्मिनल के इस्तेमाल में कठिनाई हैं. इस तरह डिजिटल वित्तीय समावेशन को सुनिश्चित करने के लिए बार-बार का डिजिटल भुगतान तभी प्रभावी हो सकता है जब उसके साथ कई और चीज़ों में सुधार किया जाए जैसे कि डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी, डिजिटल कौशल और वित्तीय उपभोक्ताओं का संरक्षण.

उपभोक्ता संरक्षण को सुनिश्चित करना

डिजिटल अर्थव्यवस्था और डिजिटल वित्तीय सेवाओं के विकास के साथ नई डिजिटल तकनीकों से जुड़े जोखिम में बढ़ोतरी हुई है. वित्तीय समावेशन के लिए वैश्विक साझेदारी (जीपीएफआई) ने ये समझाया है कि डिजिटल तकनीक से जुड़े जोखिम हर तरह की डिजिटल वित्तीय सेवाओं और मार्केट वैल्यू चेन में पाये जा सकते हैं. इन वैल्यू चेन में परिचालन संबधी, क्रेडिट, लिक्विडिटी, उपभोक्ता, मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी और आतंकवाद को फंडिंग से मुक़ाबला शामिल हैं.

इसके अलावा, डिजिटल वित्तीय सेवा देते समय मानवीय संबंधों में कमी को देखते हुए ये महत्वपूर्ण है कि प्रोडक्ट और डिलीवरी के डिज़ाइन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों या ‘आचार संहिता’ की नई श्रेणी अपनाई जाए. इटली की अध्यक्षता के तहत जी20 की नीति की सूची में ‘डिज़ाइन के द्वारा संरक्षण’ के दृष्टिकोण को अपनाने की सिफ़ारिश की गई ताकि नये डिजिटल वित्तीय उत्पादों और सेवाओं को तैयार करने में एक समावेशी पद्धति को बढ़ावा दिया जा सके जो अनुचित और आक्रामक बाज़ार की कार्यप्रणाली को रोकेगी और उपभोक्ता के डाटा का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करेगी.

कोविड-19 के बाद समावेशी और मज़बूत रिकवरी को सुनिश्चित करने के लिए जी20 को तेज़ी से होते डिजिटल बदलाव से प्रेरित वित्तीय समावेशन को लोगों की भलाई के रूप में अपनाने के एजेंडे को और बढ़ाना चाहिए.

जी20 की अपनी अध्यक्षता के तहत भारत को उपभोक्ता संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए एक मज़बूत दृष्टिकोण विकसित करने की ज़रूरत पर ज़ोर देना चाहिए. जी20 सदस्य देशों के साथ भारत को निश्चित रूप से वित्तीय साक्षरता का स्तर सुधारने और डिजिटल तरीक़े से सूचना प्रदान करने में आसानी का लक्ष्य रखना चाहिए ताकि अनधिकृत लेन-देन और अवैध इस्तेमाल के जोखिम को कम किया जा सके. जी20 के सदस्य देशों के लिए ऐसी रूप-रेखा अपनाना महत्वपूर्ण है जो मनी लॉन्ड्रिंग एवं आतंकवाद को फंडिंग से मुक़ाबले के साथ-साथ उपभोक्ता संरक्षण में पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करे. इस तरह की रूप-रेखा न सिर्फ़ न्यूनतम मनी लॉन्ड्रिंग एवं आतंकवाद को फंडिंग से मुक़ाबले की आवश्यकता को सुनिश्चित करे बल्कि इनोवेशन, प्रतिस्पर्धा और डिजिटल सेवा देने वालों को डिजिटल वित्तीय समावेशन के लिए संतोषजनक समान अवसर की इजाज़त दे. साथ मिलकर जी20 के सदस्य देश एक साझा अनुभव, उपभोक्ता संरक्षण के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्य प्रणाली, देख-रेख वाला दृष्टिकोण, डाटा नीति और मौजूदा दस्तावेज़ों पर निर्माण कर सकते हैं. इसके अलावा जी20 के सदस्यों को एक ऐसी नीति और नियामक माहौल अवश्य चाहिए जो शिकायत के समाधान की व्यवस्था प्रदान करता है और जो उपभोक्ताओं एवं उद्योग के लिए आसानी से उपलब्ध है. साइबर सुरक्षा चिंता का एक और बड़ा विषय है जो डिजिटल अर्थव्यवस्था और डिजिटल भुगतान के विकास के लिए बड़ा ख़तरा बन सकता है. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए चिंता के इन विषयों का समाधान करने की तुरंत ज़रूरत है. जी20 के दूसरे सदस्यों के साथ मिलकर भारत एक से ज़्यादा भागीदारों वाली चर्चा को बढ़ावा दे सकता है ताकि साइबर सुरक्षा के लिए एक साझा रूप-रेखा बनाई जा सके. इस रूप-रेखा के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय नियम और प्रोटोकॉल तय हो सकते हैं जिसे राष्ट्रीय नियामक प्रणाली में शामिल किया जा सकता है.

वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था के संपूर्ण विकास के लिए डिजिटल वित्तीय समावेशन महत्वपूर्ण है. कोविड-19 के बाद समावेशी और मज़बूत रिकवरी को सुनिश्चित करने के लिए जी20 को तेज़ी से होते डिजिटल बदलाव से प्रेरित वित्तीय समावेशन को लोगों की भलाई के रूप में अपनाने के एजेंडे को और बढ़ाना चाहिए. जी20 का मंच आने वाले वर्षों में जी20 की अध्यक्षता करने वाले तीन देशों को एक अवसर प्रदान करता है कि वो डिजिटलाइज़ेशन के ज़रिए वित्तीय समावेशन का अधिकार देने में संसाधन जुटाने और समन्वय के लिए मौकों की पहचान करें.

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