Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 30, 2025 Updated 6 Hours ago

चीन के कूटनीतिक पंडित इस बात पर गहरी नज़र बनाए हुए हैं कि ‘ट्रंप-2.0’ में अमेरिका और भारत का रिश्ता किस रूप में आगे बढ़ता है. वे इसे चीन-भारत संबंधों के लिए ख़तरा मान रहे हैं. 

वर्ष 2025 में भारत-अमेरिका गठबंधन, चीनी प्रतिक्रिया ने बढ़ाई चिंता

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यह सही है कि हाल के महीनों में चीन और भारत के आपसी रिश्तों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी, भारत और अमेरिका की बढ़ती नज़दीकी पर चीन काफी सजग रुख़ अपनाए हुए है.

चीन ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के छह दिवसीय अमेरिकी दौरे पर करीबी नज़र रखी. यह यात्रा न सिर्फ़ भारत और जो बाइडन सरकार के बीच अंतिम उच्च-स्तरीय संबंध की मुनादी थी, बल्कि डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी जीत के बाद किसी वरिष्ठ भारतीय मंत्री की पहली अमेरिका-यात्रा भी थी. हालांकि, कुछ चीनी पर्यवेक्षकों ने इसका उपहास उड़ाते हुए कहा कि इस यात्रा के साथ भारत ने ट्रंप के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है, लेकिन चीनी मीडिया में आई कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि यदि इसके बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका का दौरा करते हैं या ट्रंप आने वाले महीनों में भारत आते हैं, तो अमेरिका-भारत द्विपक्षीय रिश्ता और अधिक ऊंचाई को छू सकता है. चीनी पर्यवेक्षकों के सामने बड़ा सवाल यह था कि क्या विदेश मंत्री एस जयशंकर नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति को यह समझाने में सफल रहे कि चीन की जगह लेने में भारत सक्षम है और अमेरिका को वह सस्ते उत्पाद दे सकता है, क्योंकि ट्रंप ने चीनी उत्पादों पर ज़्यादा टैरिफ लगा दिया है. उनका अनुमान था कि ट्रंप की ‘मेड इन अमेरिका’ नीति के साथ कदम मिलाते हुए मोदी सरकार अब अमेरिकी कंपनियों को भारत में आपूर्ति श्रृंखला बनाने के लिए कहीं अधिक अनुकूल माहौल मुहैया करा सकती है, जिससे सस्ते उत्पादों का निर्माण सुनिश्चित हो सकेगा. चीन की इन चर्चाओं का एक दिलचस्प पहलू यूक्रेन संकट से भी जुड़ा था. रूस और यूक्रेन की जंग को खत्म करने में ट्रंप की रुचि और भारत के रूस के साथ अच्छे संबंध को देखते हुए, चीनी पर्यवेक्षकों का मानना था कि भारत और अमेरिका को क़रीब लाने में रूस भी एक अतिरिक्त कारक साबित हो सकता है.

रूस और यूक्रेन की जंग को खत्म करने में ट्रंप की रुचि और भारत के रूस के साथ अच्छे संबंध को देखते हुए, चीनी पर्यवेक्षकों का मानना था कि भारत और अमेरिका को क़रीब लाने में रूस भी एक अतिरिक्त कारक साबित हो सकता है.

भारत-अमेरिका संबंध

चीनी पर्यवेक्षकों ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन की 5-6 जनवरी, 2025 की भारत यात्रा पर भी बारीकी से नज़र रखी. चीनी पक्ष ने अफसोस जताया कि एक तरफ बाइडन प्रशासन व्हाइट हाउस को अलविदा कहने वाला है, मगर दूसरी तरफ वह एशिया में बड़े कूटनीतिक कदम भी उठा रहा है और बाइडन टीम के मुख्य-मुख्य लोगों को जापान, दक्षिण कोरिया, भारत, सिंगापुर, फिलीपींस सहित महाद्वीप के तमाम देशों में भेजा जा रहा है. उनके मुताबिक, यह संकेत है कि बाइडन प्रशासन बीते चार वर्षों में अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बनाए गए तंत्र व व्यवस्थाओं के प्रति अब भी प्रतिबद्ध है, जिनका पहला मक़सद चीन को निशाना बनाना रहा है. इस कारण सत्ता संभालने से पहले ही ट्रंप को हिंद-प्रशांत में बाइडन की नीति के रूप में एक कूटनीतिक विरासत मिल गई है.

सुलिवन की दिल्ली यात्रा को लेकर इंटरनेट की दुनिया में हंगामा अब तक जारी है, जिसके बारे में चीनी मीडिया का कहना है कि इस दौरे का मक़सद चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ाना था, खासकर अमेरिका बांध के मुद्दे पर भारत को अपने पक्ष में करना चाहता है. एक तर्क यह भी दिया गया कि भले ही ऊपरी तौर पर इस यात्रा का उद्देश्य भारत के साथ सहयोग को मजबूत करना रहा हो, लेकिन हकीकत में, अमेरिका की चिंता चीन और भारत के बीच बन रहे रिश्तों को लेकर है और वह भारत के साथ अपने संबंध को आगे बढ़ाने के लिए ‘नई शर्तों’ पर बातचीत करने की मंशा रखता है, ताकि अमेरिका की चीन-नीति के मुताबिक ही भारत व्यवहार करता रहे.


अमेरिका की चिंता चीन और भारत के बीच बन रहे रिश्तों को लेकर है और वह भारत के साथ अपने संबंध को आगे बढ़ाने के लिए ‘नई शर्तों’ पर बातचीत करने की मंशा रखता है, ताकि अमेरिका की चीन-नीति के मुताबिक ही भारत व्यवहार करता रहे.

एक तरफ चीनी पर्यवेक्षकों ने सुलिवन के इस प्रस्ताव की निंदा की कि अमेरिका और भारत सेमीकंडक्टर बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे. वहीं, यह आरोप भी लगाया कि भारत के साथ मिलकर अमेरिका प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखला बनाने का प्रयास कर रहा है और उच्च तकनीक के क्षेत्रों में चीन की हैसियत कमजोर करना चाहता है. उन्होंने अमेरिका-भारत ‘सैन्य सहयोग’ पर भी आपत्ति जताई और कहा कि इससे क्षेत्र में हथियारों की होड़ शुरू हो जाएगी और चीन के सुरक्षा वातावरण पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

चीन का रुख़ 

दूसरी तरफ, उन्होंने इस बात के लिए सुलिवन पर निशाना भी साधा कि उन्होंने भारत यात्रा के दौरान भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ तिब्बत में चल रही चीन की बांध परियोजना का मसला उठाया. चीनी मीडिया में आए कई लेख इस बात पर जोर देते रहे कि इस मुद्दे के समाधान के लिए भारत और चीन के पास द्विपक्षीय व्यवस्थाएं हैं और इस संवेदनशील मामले में किसी तीसरे पक्ष को दख़ल देने की ज़रूरत नहीं है. एक मीडिया रिपोर्ट में ‘ग्लोबल टाइम्स’ के पूर्व प्रधान संपादक हू शीज़िन का बयान आया है कि ‘सुलिवन अपनी विदाई से पहले चीन-भारत संबंधों के लिए परेशानी पैदा करना चाहते हैं. अमेरिकी ऐसे ही होते हैं. जहां कहीं तनाव होता है, वहां वे अपनी नाक घुसाते ही हैं. वे वैश्विक शांति से डरते हैं.’

जनवरी, 2025 को ट्रंप के शपथ-ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर के सबसे अगली पंक्ति में बैठने का प्रतीकात्मक महत्व भी चीनी कूटनीतिज्ञ नहीं समझ सके हैं.

चीन के कूटनीतिज्ञों में काफी बेचैनी इस बात को लेकर भी रही कि ट्रंप के पद संभालने के ठीक एक दिन बाद ‘क्वाडिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग’ यानी क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत का समूह) के विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित की गई. 20 जनवरी, 2025 को ट्रंप के शपथ-ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर के सबसे अगली पंक्ति में बैठने का प्रतीकात्मक महत्व भी चीनी कूटनीतिज्ञ नहीं समझ सके हैं.

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, चीनी पर्यवेक्षकों का यही अनुमान है कि हाल में चीन-भारत संबंधों में बेशक गर्मजोशी आई है, लेकिन भारत ने अमेरिका के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों को सुस्त नहीं पड़ने दिया है. सवाल है कि साल 2025 में अमेरिका-भारत रिश्ता किस रूप में आगे बढ़ेगा? ‘ट्रंप-2.0’ के दौरान वाशिंगटन-दिल्ली संबंधों का बीजिंग पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो चीनी कूटनीतिज्ञों को लगातार मथ रहे हैं. उनकी चिंता की वज़ह यह भी रही है कि 2017 में डोकलाम संघर्ष और 2020 की गलवान हिंसा, दोनों ही घटनाएं ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान हुई थीं.

मुमकिन है कि आसन्न प्रतिकूल परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए चीन अपनी तैयारी कर रहा हो. जवाबी रणनीति के रूप में चीनी विद्वान यह बहस पैदा करना चाह रहे होंगे कि चीन के साथ एक स्थिर संबंध बनाकर ही भारत सौदेबाजी की ताकत हासिल कर सकता है, विशेषकर नीतियों के मामले में ट्रंप प्रशासन के अनिश्चित रवैये को देखकर. उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर चीन की कीमत पर भारत अपने संबंध अमेरिका के साथ आगे बढ़ाता है, तो वह न केवल ट्रंप प्रशासन से बहुत कुछ हासिल कर पाने में विफल रहेगा, बल्कि चीन की पूंजी और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की संभावना भी खो बैठेगा.

साफ है, भारत, चीन और अमेरिका के बीच बनने वाले कूटनीतिक रिश्ते साल 2025 में वैश्विक राजनीति को काफी हद तक प्रभावित करेंगे. यह कुछ ऐसा है, जिस पर सबकी बारीक नज़र बनी रहेगी.


अंतरा घोषाल सिंह आब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम की फ़ेलो हैं

 

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