Published on Sep 30, 2021 Updated 0 Hours ago
यूरोप के लिए जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की परिकल्पना, ‘जो भी संभव हो’ की व्यवहारिक सोच पर आधारित रहा!

2019 में, एंजेल मर्केल सरकार ने अपना जलवायु संरक्षण अधिनियम पेश किया, जो कि महत्वाकांक्षी युक्तियों की एक श्रृंखला थी, जिसने जर्मनी के लिए 2030 तक अपने शुद्ध कार्बन उत्सर्जन को 65 प्रतिशत तक कम करने और 2045 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करने की राह आसान कर दी. जलवायु संकट की गंभीरता को देखते हुए, कार्यकर्ताओं और हिमायत करने वाले समूहों ने फिर भी अपनी निराशा ज़ाहिर की क्योंकि उनकी नज़र में वो नाकाफ़ी और अपर्याप्त नीतियां थी. अपने निंदकों को जवाब में मर्केल ने अपनी संयमता का परिचय देते हुए केवल यह कहा,” जो मुमकिन है वही राजनीति है ”.

मर्केल की मंच से दूरी के साथ ही, उनकी राजनीतिक विरासत को विभाजित किया जाने लगा है, शायद इस उम्मीद के साथ कि मर्केल के बाद यूरोप के भविष्य के लिए ज्ञान के अंश या फिर कुछ चिह्न मिल सके. 

व्यावहारिक, यथार्थवादी, निरपेक्ष. वो कुछ शब्द, ओट्टो वॉन बिस्मार्क के “संभव की कला” (art of the possible) के दर्शन की गूंज, और कोई भी सात शब्द एंजेला मर्केल के जर्मन चांसलर और यूरोपियन यूनियन के डी-फैक्टो लीडर के रूप में कार्यकाल की सफ़लता और विफ़लता को प्रेषित करता है; चार कार्यकाल – 16 – साल जो 26 सितंबर 2021 के बाद संपन्न हो रहे हैं.  मर्केल की मंच से दूरी के साथ ही, उनकी राजनीतिक विरासत को विभाजित किया जाने लगा है, शायद इस उम्मीद के साथ कि मर्केल के बाद यूरोप के भविष्य के लिए ज्ञान के अंश या फिर कुछ चिह्न मिल सके. हालांकि, उनके व्यक्तिगत फैसलों की श्रेष्ठता और दोषों के आगे, यह पूछना तो बनता है कि यूरोपियन यूनियन के लिए एंजेला मर्केल की परिकल्पना क्या थी? कैसे नीतियों को लेकर उनकी व्यावहारिक अवधारणा ने संकट के समय में महाद्वीप की पहचान और यूरोप में गहरे परिवर्तन को आकार दिया ?

निराशा का दौर

एंजेला मर्केल के चांसलर रहने के दौरान, जो 2005 से 2021 तक है, जर्मनी और यूरोप को कई महत्वपूर्ण और अस्तित्व संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उनमें से सबसे अहम 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट और यूरो ऋण संकट था, जिसने यूरोपीय परियोजना के अस्तित्व को ही ख़तरे में डाल दिया था. निस्संदेह कर्ज में डूबा ग्रीस 2010 में जब कॉमन करेंसी और संभवत: यूनियन को ही छोड़ने के कगार पर पहुंच गया था, तब वह मर्केल ही थीं जिन्होंने, यद्यपि झिझकते हुए, बेलआउट के लिए सहयोग और संसाधन जुटाये. राहत पैकेज के अंतर्गत बर्लिन ने एथेंस को आत्मसंयम के कड़े कदम लागू करने को कहा था जिसका मक़सद उनकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और संपूर्ण यूरोज़ोन में स्थिरता लाना था. एंजेला मर्केल का दांव पर लगे जटिल हितों की पारस्परिक क्रिया का सतर्क आकलन और उसके बाद उनके द्वारा लिए गए वैज्ञानिक फैसले, यूरोज़ोन के आज भी बरक़रार रहने की वजह माने जाते हैं.

कर्ज में डूबा ग्रीस 2010 में जब कॉमन करेंसी और संभवत: यूनियन को ही छोड़ने के कगार पर पहुंच गया था, तब वह मर्केल ही थीं जिन्होंने, यद्यपि झिझकते हुए, बेलआउट के लिए सहयोग और संसाधन जुटाये

जर्मनी संकट से यूरोपियन यूनियन के डीफैक्टो लीडर के तौर पर उभरा. इसका कारण केवल देश का गुट में वस्तुनिष्ठ आर्थिक ताकत ही नहीं है, बल्कि यूरोप के राजनीतिक बहस के बीच खुद को स्थापित करने की एंजेला मर्केल की अद्वितीय क्षमता भी है. निस्संदेह, चांसलर विभिन्न यूरोपीय राजधानियों में आम राय कायम करने में लगातार सफ़ल साबित हुई हैं, जिनके विशेष हित समय-समय पर टकराते हुए प्रतीत होते हैं. फिर भी, मर्केल के नपे-तुले औऱ शांत नेतृत्व के तहत बातचीत के ज़रिए समझौते हुए हैं. हाल ही में, कोविड 19 महामारी से आर्थिक नुकसान के बाद, यह मर्केल का ही 2020 ईयू रिकवरी फंड मेकैनिज्म के लिए अनपेक्षित समर्थन था जिसने ईयू- व्यापाक वित्तीय साझेदारी के दरवाज़े खोले जो कुछ सालों पहले तक अकल्पनीय था. घरेलू और यूरोपियन स्तर पर एकता बनाए रखने की उनकी अनूठी प्रतिभा विदेश नीति के मामलों में समान रूप से महत्वपूर्ण साबित हुए. 2014 में जब रूसी सैनिकों ने यूक्रेन पर चढ़ाई की और क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया, तब मर्केल ने ईयू की प्रतिक्रिया की अगुआई की थी. उन्होंने नेताओं को समंवित प्रतिबंध के लिए लामबंद किया और बातचीत के दौरान मॉस्को पर दबाव बनाए रखा जिसके परिणामस्वरूप युद्धविराम हुआ. इसी तरह 2015 के शरणार्थी संकटकाल के चरम पर, मर्केल के जर्मनी ने एक मिलियन से ज़्यादा सीरियाई शरणार्थियों को अपनी सीमा के अंदर प्रवेश की अनुमति दी थी. उनके विवादित निर्णय ने बाल्कन रूट से सटे देशों के ऊपर दबावों को कम किया और शरणार्थियों को बसाने पर अंदरूनी शेंगन क्षेत्र में मतभेद को टाला.

साहसिक उपाय

एंजेला मर्केल को लगातार आम सहमति वाले अल्प अवधि के समाधान निकालने का श्रेय दिये जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि, इसकी कीमत जर्मनी और यूरोपियन यूनियन के व्यापक और ढांचागत परिवर्तन के तौर पर चुकानी पड़ी. इतना ही नहीं, राजनीति के प्रति उनके “संभव की कला” वाले रवैये ने ईयू के भीतर सार्वजनिक बहस को उस स्थिति तक पहुंचा दिया जहां लोकतांत्रित विवाद की एक स्वस्थ सीमा हट गई. लेकिन भले ही मर्केल के नेतृत्व में एक के बाद एक कई बड़े और ऐतिहासिक फैसले लिये जा रहे थे, जो कहीं न कहीं एक्सक्लूज़न यानी कि बहिष्कार की नीति से प्रेरित था, ऐसे में जो व्यक्ति आदर्श या राजनीतिक सोच रखता था उसे फैसला लेने की प्रक्रिया से काफी दूर कर दिया गया था.

एंजेला मर्केल का शासन करने का तरीका समझौते की राजनीति के प्रति प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबद्ध के तौर पर देखा जा सकता है. मूल राजनीतिक समस्याओं का कानूनी और टेक्नोक्रैटिक समाधानों के ज़रिए सर्वसम्मति का बचाव हासिल किया गया और इस प्रकार विपक्ष को ख़त्म कर दिया गया और सर्वसम्मती के खामोश आवरण में विवादों या असहमति को दबा दिया गया. यूरोप में जिस प्रकार का लोकलुभावनवाद और अतिवाद बढ़ रहा है, मर्केल को अक्सर उसके अंकुरण के तौर पर वर्णित किया जाता है और यह सही भी है. हालांकि, नौकरशाही की ज्यादतियां ही वो चीज़ जिसका विचारक वेबर को अंदाज़ा था और उन्होंने इसके ख़िलाफ़ लोगों को आगाह भी किया था और फासीवादी प्रवृत्ति के कारण इनको लोकतंत्र के लिए विनाशकारी माना था.

     

2014 में जब रूसी सैनिकों ने यूक्रेन पर चढ़ाई की और क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया, तब मर्केल ने ईयू की प्रतिक्रिया की अगुआई की थी. उन्होंने नेताओं को समंवित प्रतिबंध के लिए लामबंद किया और बातचीत के दौरान मॉस्को पर दबाव बनाए रखा जिसके परिणामस्वरूप युद्धविराम हुआ.

यूनान का बेलआउट एक व्यापक ढांचागत समस्या का अल्पावधि समाधान का सटीक उदाहरण है, जिस पर यूरोपीय संघ में आंतरिक बहस के डर से कभी ध्यान नहीं दिया गया. निस्संदेह, यूरो ऋण संकट मुद्रा संघ और कॉमन करेंसी के वित्तीय खाके में बुनियादी कमियों का संकेत था. उन ज़रूरी त्रुटियों में सुधार करने की बजाय, एंजेला मर्केल ने नीति के समाधान को चुना जिसका लक्ष्य न सिर्फ पूर्ववर्ती यथास्थिति को बहाल करना है बल्कि उसको शर्तों के साथ संस्थागत भी बनाना है. इस तरह के फैसले को जायज़ ठहराने के लिए, उन्होंने इसे तर्कसंगत और वैज्ञानिक आवश्यकता करार दिया. उनके खुद के शब्दों में, यह ऐसा था मानों इसका कोई विकल्प नहीं था. मर्केल के चांसलर रहने के दौरान ऑर्गेनाइज़िन्ग प्रिंसिपल ऑफ़ पॉलिटिक्स के रूप में अनिवार्यता यूरोपियन संघ की सार्वजनिक बहस का हिस्सा रही है. ब्रसेल्स में सुधारों को अचानक आयी आपात स्थितियों की प्रतिक्रिया के रूप में निर्मित किया गया और जो इस वजह से ईयू के स्तर पर निर्णय लेने में महत्वपूर्ण साबित हुआ. इससे शासन और शासित के बीच अलगाव का कारण बना, जिसने नाराज़गी और अंतत: उस तरह के लोक-लुभावनवाद को बढ़ावा दिया जिससे बचने की एंजेला मर्केल ने भरसक कोशिश की थी.

यूरोप में जिस प्रकार का लोकलुभावनवाद और अतिवाद बढ़ रहा है, मर्केल को अक्सर उसके अंकुरण के तौर पर वर्णित किया जाता है और यह सही भी है.

सीरियाई शरणार्थियों का स्वागत करने के मर्केल का प्रशंसनीय फैसला भी बाद में नैतिक आपातकाल द्वारा संचालित एक अपवाद माना गया, लेकिन जो फिर भी एक आपातस्थिति थी. सीरियाई बहिर्गमन को देखते हुए, यूरोपियन संघ शरण व्यवस्था में कोई भी सार्थक सुधार लागू नहीं किया गया, जो अब भी डबलिन अधिनियम के त्रुटिपूर्ण तंत्र के अंतर्गत चल रहा है. 2015 के बाद जर्मनी ने खुद अन्य सदस्य राज्यों से आने वाले गैर-ईयू प्रवासियों की संख्या की सीमा निर्धारित की, जैसा कि यूरोप के ज़्यादातर देशों ने किया था. मर्केल और अन्य यूरोपियन नेताओं के जाने के बाद नेतृत्व में आयी शून्यता की तेज़ी से भरपाई दक्षिणपंथी स्वदेशी राजनेताओं से की गई जिन्होंने अपनी अस्पष्टता औऱ अनिश्चितता का लाभ उठाया.

            

नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन परियोजना इसका प्रतीक है, जिसका निर्माण कार्य कई कूटनीतिक घटनाओं के बावजूद एंजेला मर्केल की सरकार ने नहीं रोका. बल्कि मर्केल ने अधिक सक्रिय ईयू विदेश नीति की मांग का, जिस तरह से फ्रांस के राष्ट्रपति ईमैनुअल मैक्रोन की ओर से उठाई जा रही थी, लगातार विरोध किया है.

वैश्विक मंच पर यूरोपियन संघ की पहचान का यही स्वरूप देखने को मिला. जब मर्केल ईयू- रूस के रिश्तों को संभाल रही थीं, तब हमने अ-राजनीतिकरण प्रणाली का प्रतिबिम्ब देखा जिसे वो समूह के भीतर संचालित कर रही थीं. निश्चित रूप से यूक्रेन में कब्ज़े के मद्देनज़र उन्होंने मॉस्को पर प्रतिबंध लागू करने का संकल्प दिखाया, नतीजतन वह जर्मनी और ईयू की रूस नीति को नई दिशा देने की इच्छुक नहीं थीं. नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन परियोजना इसका प्रतीक है, जिसका निर्माण कार्य कई कूटनीतिक घटनाओं के बावजूद एंजेला मर्केल की सरकार ने नहीं रोका. बल्कि मर्केल ने अधिक सक्रिय ईयू विदेश नीति की मांग का, जिस तरह से फ्रांस के राष्ट्रपति ईमैनुअल मैक्रोन की ओर से उठाई जा रही थी, लगातार विरोध किया है. द्वेषपूर्ण ट्रंप प्रशासन के सामने, तुर्की के साथ ऐसा ही मामला हुआ, और चीन के मामले में तो और भी स्पष्ट रूप से. मक्रेल ने यह भरोसा दिखाया है कि अंतरराष्ट्रीय रिश्तों का अराजनीतिकरण वर्गीकरण, इसके सभी हिस्सों को- सैन्य तनाव, मानवाधिकार, जलवायु नीति, व्यापार आदि को पृथक इकाई मानते हुए किया जा सकता है. इसका परिणाम एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व शायद ही रहा हो. बल्कि इसका अंजाम आत्म-विवश, अस्थिर, और अंतत: निरर्थक ईयू विदेश नीति के रूप में सामने आया.

‘सिविल-सर्वेंट-इन-चीफ़’

तो फिर, एंजेला मर्केल की यूरोप के लिए परिकल्पना का क्या? उन्होंने अधिक स्थिर और अधिक सुरक्षित संघ बनाने में अहम योगदान दिया है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद महाद्वीप द्वारा समस्याओं के जिन तूफ़ानों का सामना किया गया, उनमें से कुछ चुनौतियों से निपटते हुए यूरोपियन संघ को बांधे रखने के विशाल कार्य को करने में मर्केल अपेक्षाकृत सफ़ल रही हैं. उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि ऐसे समय पर जब राजनीति की मंच कला ने कई लोगों को लुभाया, मर्केल अपनी तर्कशक्ति और यथातथ्यवाद पर कायम रहीं. हालांकि, जब “क्या संभव है” की सीमाओं पर सवाल नहीं उठता है तो राजनीतिक, अपने दार्शनिक आधार की बजाय तकनीकी प्रक्रिया का संकटरहित परिणाम बन जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो एंजेला मर्केल ने, जायज़ और ज़रूरी स्थिरता और सर्वसम्मति के लिए, यूरोप के भविष्य को लेकर सच्चे राजनीतिक दृष्टिकोण को व्यक्त करने की हिम्मत नहीं की. एंजेला मर्केल की विरासत एक विश्वसनीय, काबिल, कर्त्तव्य परायण सिविल-सर्वेंट-इन-चीफ़ की है, न कि कल्पनाशील राजनेता की.

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