Published on Jul 29, 2022 Updated 29 Days ago

जी-20 द्वारा शुरू की गयी कई पहलों के बावजूद, चौड़े लैंगिक विभाजन को कम करने के लिए एक ज़्यादा समग्र दृष्टिकोण की ज़रूरत है.

Gender Issues: जी-20 के केंद्र में है लिंग के आधार पर डिजिटल डिवाइड (विभाजन) का मुद्दा!

तकनीक तक सामाजिक-आर्थिक पहुंच में वर्तमान विसंगतियों के बावजूद, डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी का अनुमान है कि 60 करोड़ महिला यूजर्स का समावेशन वैश्विक जीडीपी में 5 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि कर सकता है. समावेशन की इस ज़रूरत के बावजूद, आर्थिक रूप से भी, पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज़्यादा बुनियादी क़िस्म के मोबाइल फोन रखती पायी गयी हैं, और भारत में 81 फ़ीसद महिलाओं ने मोबाइल फोन पर इंटरनेट से अनजान होने की बात बतायी है.

दक्षिण-पूर्व एशिया में वयस्क आबादी के 70 फ़ीसद को पहले ही डिजिटल उपभोक्ताओं के रूप में चिह्नित किया जा चुका है, जबकि 50 फ़ीसद (2025 तक 84 फ़ीसद हो जाने का अनुमान) लोग डिजिटल वॉलेट को भी अपना चुके हैं. हालांकि, भारत में 44 फ़ीसद महिलाएं मोबाइल मनी का इस्तेमाल करना नहीं जानती थीं और 47 फ़ीसद महिलाओं को ग़लती होने का डर ऐसा करने से रोकता था. वहीं, 40 फ़ीसद पुरुषों की तुलना में, महज़ 22 फ़ीसद महिलाएं किसी अग्रणी मोबाइल मनी ब्रांड से परिचित थीं.

दक्षिण-पूर्व एशिया में वयस्क आबादी के 70 फ़ीसद को पहले ही डिजिटल उपभोक्ताओं के रूप में चिह्नित किया जा चुका है, जबकि 50 फ़ीसद लोग डिजिटल वॉलेट को भी अपना चुके हैं.

मोबाइल भुगतान प्रणाली और नियो-बैंक जैसे तकनीक आधारित समाधान उन लोगों के वित्तीय समावेशन में बेहद अहम भूमिका निभाते हैं जिन्हें पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली तक पहुंच हासिल नहीं होने दी गयी है. डिजिटल वित्तीय समावेशन महिलाओं की श्रम बल भागीदारी व सामाजिक-आर्थिक शक्ति बढ़ाने, और उन्हें ‘समय की ग़रीबी’ (टाइम पॉवर्टी) से बचाने में मददगार हो सकता है. बीते वर्षों में, मोबाइल भुगतान तकनीकों से मिले सबूत ने लैंगिक खाई को पाटने में फिनटेक की प्रमुख भूमिका की ओर इशारा किया है. अब भी, फिनटेक को अपनाने में महिलाएं तुलनात्मक रूप से पीछे हैं और 61 फ़ीसद महिलाएं मोबाइल मनी सेवाओं पर नक़द को तरजीह दे रही हैं. 2021 में, 46 फ़ीसद महिलाओं ने अनौपचारिक लेनदेन के लिए मोबाइल मनी का इस्तेमाल किया. इसी तरह, केवल 17 फ़ीसद ने ऋण पाने और 23 फ़ीसद ने छोटे-मोटे ख़र्चों के वास्ते भुगतान के लिए मोबाइल मनी का इस्तेमाल किया.

कई दूसरे विकासशील देशों की तरह भारत में महिलाओं के लिए, मोबाइल इंटरनेट जैसी चीज़ों तक पहुंच हासिल करने में प्राथमिक बाधा साक्षरता और डिजिटल कौशल का अभाव है. इसके अलावा, भारत में, काम लायक साक्षरता (जिसमें पढ़ना और लिखना आना शामिल है) एक उप-बाधा है, जो ख़ास तौर पर महिलाओं के मामले में एक बड़ी चिंता है. भारत में लगभग 23 फ़ीसद महिलाओं को पढ़ने और लिखने में कठिनाई थी, जिसने आर्थिक रूप से कम सुविधा-संपन्न महिलाओं की रोज़गार के अवसरों, आमदनी, और सरकारी सेवाओं तक पहुंच को सीमित किया.

आगे की राह

इसमें कोई शक नहीं कि निम्न और मध्यम-आय वाले देशों (एलएमआईसी) में लैंगिक डिजिटल खाई ज़्यादा स्पष्ट है. दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में मोबाइल के स्वामित्व के लिहाज़ से सबसे बड़ी लैंगिक खाई है. जिस विभाजन की बात हो रही है, उसे स्थानीय स्तर पर सामाजिक संरचनाओं द्वारा और बढ़ा दिया जाता है. ये सामाजिक संरचनाएं मोबाइल के इस्तेमाल को बुराई की तरह पेश करती हैं और सभी स्तरों तक तकनीक को पहुंचने देने से रोकती हैं. खाप पंचायत जैसे आंदोलनों का निशाना सबसे पहले महिलाएं ही हैं.

कई दूसरे विकासशील देशों की तरह भारत में महिलाओं के लिए, मोबाइल इंटरनेट जैसी चीज़ों तक पहुंच हासिल करने में प्राथमिक बाधा साक्षरता और डिजिटल कौशल का अभाव है. इसके अलावा, भारत में, काम लायक साक्षरता एक उप-बाधा है, जो ख़ास तौर पर महिलाओं के मामले में एक बड़ी चिंता है.

इसके उलट, भारत में कम लागत वाले ब्रॉडबैंड का लाभ अन्य जी-20 देशों में उपलब्ध नहीं है, जहां ब्रॉडबैंड और उपकरणों तक पहुंच एक ख़र्चीला काम है. इस तरह, डिजिटल विभाजन (भारत और दूसरे एलएमआईसी में) के लिए शहरीकरण को एक समाधान बनाने का लक्ष्य उच्च-आय वाले देशों में उपलब्ध कम-ख़र्चीले ब्रॉडबैंड का समावेशन हो सकता है. यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी को शामिल कर सकता है, जिसमें स्थानीय संगठन, बड़ी कंपनियां और सरकारी संरचनाएं डिजिटल सेवाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए सहयोग करते हैं. ऐसे मॉडल सिंगापुर, मेक्सिको, आयरलैंड, न्यूज़ीलैंड और कई अन्य देशों में सफल रहे हैं. ग्रामीण स्तर पर यूजर्स के वास्ते डिजिटल विश्वसनीयता में वृद्धि के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण का इस्तेमाल करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड का विस्तार बढ़ाया जा सकता है. इसका उपयोग तकनीक में भरोसा बढ़ाने के लिए भी हो सकता है जिसका ग्रामीण वासियों में अभी अभाव हो सकता है. इस तरह के क़दम अन्य जी-20 देशों में सफल रहे हैं.

2016 में, जी-20 की ‘डिजिटल अर्थव्यवस्था पर मंत्रिस्तरीय घोषणा’ ने ‘विकासशील कार्य समूह’ के साथ तालमेल बिठाकर काम करते हुए, लैंगिक डिजिटल विभाजन को पाटने में सहयोग देने के लिए कार्रवाई को बढ़ावा देने का आह्वान किया. 2017 में जी-20 में जर्मनी की अध्यक्षता के तहत, जी-20 ने #eSkills4Girls पहल की शुरुआत की, जिसका लक्ष्य एलएमआईसी में मौजूद लैंगिक डिजिटल विभाजन से निपटना था. इसके अलावा, जी-20 में अर्जेंटीना और सऊदी अरब की अध्यक्षता के तहत, इस समूह ने डिजिटल वित्तीय समावेशन में लैंगिक खाई को पाटने के लिए ज़रूरी उपायों को विस्तार देने में सहयोग किया है.

सामाजिक नीतिगत हस्तक्षेप

जी-20 ने उपरोक्त व ऐसी ही अन्य पहलक़दमियां ली हैं, लेकिन विभाजन से निपटने में अपनी कार्यप्रणाली का पूरा लाभ लेने के लिए विभिन्न कार्य समूहों में काम करना जी-20 के लिए अहम है. विकासशील कार्य समूह के साथ मिलकर डब्ल्यू-20 (वीमेन-20, जी-20 का एक इन्गेजमेंट ग्रुप) लैंगिक डिजिटल विभाजन से निपटने के लिए राष्ट्रीय नीतियों, योजनाओं और बजट में मौजूद ख़ामियों को चिह्नित करने के लिए एक टास्क फोर्स गठित करने पर विचार कर सकता है.

ग्रामीण स्तर पर यूजर्स के वास्ते डिजिटल विश्वसनीयता में वृद्धि के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण का इस्तेमाल करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड का विस्तार बढ़ाया जा सकता है. इसका उपयोग तकनीक में भरोसा बढ़ाने के लिए भी हो सकता है जिसका ग्रामीण वासियों में अभी अभाव हो सकता है.

मौजूदा समय में, ज़्यादातर दूसरे देशों की तरह भारत में भी, आईसीटी नीतियों में लैंगिक आयामों का अभाव साफ़ दिखता है. आईपीसी और आईटी नियमों में ऐसी धाराएं हैं जो डिजिटल तकनीक के, महिलाओं की भागीदारी को बाधित कर सकने वाले इस्तेमाल से निपटती हैं, हालांकि, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का ज़िक्र किसी में नहीं है, जो एक चिंता का विषय है. इस तरह के किसी क़दम में उन सूचकों और ढांचों के लिए पूर्व-शर्तों (कैविएट्स) को शामिल करना चाहिए, जो नियमन निर्माण, एसटीईएम और दूसरे कार्यक्षेत्रों में जेंडर-आधारित भागीदारी को नियमित रूप से मापते हैं. 

कुल मिलाकर, शासन को अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को लक्षित करने की ज़रूरत होगी. इन पहलुओं में आवाजाही पर मौजूदा पाबंदियां, या स्वच्छता सेवाएं, और शहरीकरण का अभाव शामिल हैं जो महिलाओं की पहुंच और नये ज़माने की तकनीकों में भागीदारी के लिए उनकी प्रेरणा को कम करते हैं. इसके अलावा, व्यापक सामाजिक नीतिगत हस्तक्षेपों के साथ-साथ कौशल प्रदान करने को एक प्राथमिक लक्ष्य के रूप में लेना होगा.

तकनीक का क्षेत्र तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और अगर लैंगिक विसंगतियों पर ध्यान नहीं दिया जाता, तो डिजिटल विभाजन और बढ़ने का ही ख़तरा है.

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