बीते 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जी20अध्यक्षता(G20 presidency) से जुड़े लोगो, मज़मून और वेबसाइट का अनावरण किया. भारत की जी20 की अध्यक्षता दिसंबर से शुरू होने वाली है. लोगो में कमल के फूल को प्रमुख स्थान दिया गया है, जिसकी चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “ये मौजूदा वक़्त में उम्मीद की नुमाइंदगी करता है. भले ही हालात कितने ही प्रतिकूल क्यों न हो, कमल फिर भी खिलता है.” निश्चित रूप से भारत को जी20 की अध्यक्षता एक ऐसे दौर में मिल रही है जो समसामयिक इतिहास में उतार-चढ़ावों से भरा है. वैश्विक व्यवस्था (global system) की हालत ज़ाहिर करने के लिए ‘प्रतिकूल’ बेहद माकूल शब्द लगता है. प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक, “भारत को जी20 की अध्यक्षता एक ऐसे समय पर मिल रही है जब दुनिया में संकट और अफ़रातफ़री का दौर है. दुनिया सदियों में एक बार आने वाली और उथलपुथल भरे मिज़ाज वाली महामारी (pandemic) के परिणामों से जूझ रही है, और संघर्षों के साथ-साथ आर्थिक अनिश्चितता का माहौल है.”
भारत एक “अगुवा शक्ति” की भूमिका निभाने को बेक़रार है; एक ऐसी ताक़त, जो नियम-क़ायदे तय करता है और परिणामों को आकार देता है. देश की क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिहाज़ से भारत को जी20 की अध्यक्षता बड़े ही माकूल वक़्त पर मिल रही है.
भारत 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक जी20 की अध्यक्षता संभालने जा रहा है. इस दौरान वो तक़रीबन 200 बैठकों की मेज़बानी करेगा. 32 अलग-अलग सेक्टरों से ताल्लुक़ रखने वाली ऐसी तमाम बैठकें देश भर में अलग-अलग जगहों पर आयोजित की जाएंगी. इन क़वायदों से पिछले 75 सालों में भारत की विकास यात्रा रेखांकित होगी. भारत एक “अगुवा शक्ति” की भूमिका निभाने को बेक़रार है; एक ऐसी ताक़त, जो नियम-क़ायदे तय करता है और परिणामों को आकार देता है. देश की क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिहाज़ से भारत को जी20 की अध्यक्षता बड़े ही माकूल वक़्त पर मिल रही है.
दुनिया में तेज़ी से बदलाव आ रहे हैं और चुनौतियां बेशुमार हैं: कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन संघर्ष, अमेरिका-चीन टकराव और बहुपक्षीय व्यवस्था का कमज़ोर पड़ना. ये तमाम घटनाक्रम दुनिया को अभूतपूर्व रूप से से चोट पहुंचा रहे हैं. पिछले तीन दशकों से हमारे जुड़ावों को दिशा दिखाने वाली कई धारणाएं, अब धराशायी हो चुकी हैं. शीतयुद्ध के बाद की दुनिया (या जिसे हम ख़ुद ‘इतिहास’ के नाम से जानते रहे हैं) अब असलियत में बीते दिनों की बात कही जा सकती है. बदलते शक्ति संतुलन, प्रौद्योगिकीय मोर्चे पर अति-महत्वाकांक्षा से पैदा नाकामियों और संस्थागत सड़न के चलते पैदा बुनियादी परिवर्तनों से पूरी दुनिया जूझ रही है. कोविड-19 महामारी और यूक्रेन संघर्ष ने इन भीतरी बदलावों को और संगीनबना दिया है. नतीजतन विश्व स्तर पर महंगाई से जुड़े दबाव, खाद्य और ऊर्जा संकट और आर्थिक मोर्चे पर व्यापक गिरावट देखने को मिल रही है. नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए दुनिया के राष्ट्र तेज़ी से अपने ख़ज़ाने खाली कर रहे हैं. ऐसे में हम सतत विकास लक्ष्य (SDGs) हासिल करने सेकाफ़ी दूर खड़े हैं.
वैश्विक जीडीपी में जी20 का हिस्सा
वैश्विक बिखराव के इस दौर में, और ख़ासतौर से जब ज़बरदस्त जलवायु संकट की वजह से धरती के वजूद पर ही ख़तरा पैदा हो गया है, तब जी20 ही शायद अपने क़िस्म का इकलौता मंच है जो एक हद तक ख़ुद के जायज़ होने का दावा कर सकता है. हालांकि जी20 से विश्व के समसामयिक संकट के निपटारे की उम्मीद करना ज़्यादती होगी, लेकिन हक़ीक़त ये है कि इस समूह के सदस्य देशों में विश्व की कुल आबादी का 67 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है.वैश्विक जीडीपी में जी20 का हिस्सा लगभग 85 प्रतिशत है और वैश्विक व्यापार में ये समूह 75 प्रतिशत से भी ज़्यादा का योगदान देता है. लिहाज़ा इस संस्था में प्रभावी बहुपक्षीयवाद में हमारा भरोसा फिर से बहाल करने की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं.पहाड़ जैसी इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए जिस तरह के नेतृत्व की दरकार है, इकलौता भारत ही आज उसे मुहैया कराने की स्थिति में है.
आज के दौर में मुट्ठी भर वैश्विक शक्तियों के पास दुनिया के सबसे कमज़ोर इलाक़ों की मदद के लिए ना तो समय है और ना ही संसाधन. दरअसल ये ताक़तें अपनी घरेलू परेशानियों में ही उलझी हुई हैं. ऐसे में भारत विकासशील दुनिया यानी ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं के साथ पूरी मुखरता सेअपने सुर मिलाता आ रहा है.
जी20 वैश्विक प्रशासन से जुड़ी चुनौतियों पर मंथन करने और उनके समाधान ढूंढने के लिए विकसित और विकासशील देशों को एकजुट करता है. इस मायने में ये संगठन अनोखा स्थान रखता है. भारत अहम वैश्विक मसलों पर सर्वसम्मति बनाकर प्रभावी रूप से इस खाई को पाट सकता है. आज के दौर में मुट्ठी भर वैश्विक शक्तियों के पास दुनिया के सबसे कमज़ोर इलाक़ों की मदद के लिए ना तो समय है और ना ही संसाधन. दरअसल ये ताक़तें अपनी घरेलू परेशानियों में ही उलझी हुई हैं. ऐसे में भारत विकासशील दुनिया यानी ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं के साथ पूरी मुखरता सेअपने सुर मिलाता आ रहा है. वैश्विक उथलपुथल की आंच ज़्यादातर ग़रीब अर्थव्यवस्थाओं को ही झेलनी पड़ रही है. दुनिया की चंद ताक़तें ही इन देशों की चुनौतियों पर पर्याप्त गंभीरता से ध्यान दे रही हैं. हाल के वर्षों में भारत ने इन मुल्कों की चिंताओं को अनेक वैश्विक मंचों पर पूरी मज़बूती से उठाया है, चाहे वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद हो, विश्व व्यापार संगठन हो या विश्व स्वास्थ्य संगठन.
जहां तक जी20 की अध्यक्षता का सवाल है तो इस कालखंड में भारत इन मसलों पर ध्यान केंद्रित करेगा: “महिला सशक्तिकरण, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, संस्कृति, पर्यटन, जलवायु वित्त, सर्कुलर इकॉनमी, वैश्विक खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, हरित हाइड्रोजन, आपदा जोख़िम कम करना और लोचदार व्यवस्था, आर्थिक अपराधों से जंग और बहुपक्षीय सुधार.”वैसे तो शुरुआती दौर में जी20 के गठन का मक़सद वैश्विक आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों का प्रबंधन करना था, लेकिन बीतते वक़्त के साथ-साथ इसका प्रभाव बढ़ता चला गया. भू-राजनीति और भू-अर्थनीति के मौजूदा घालमेल के बीच वैश्विक प्रशासकीय विमर्श में जी20 की केंद्रीय भूमिका में आगे और बढ़ोतरी होने केआसार हैं. भारत लंबे अर्से से इस बात पर ज़ोर देता रहा है कि वैश्विक बिरादरी को वैश्वीकरण से जुड़े अपने संवादों को “नए सिरे से परिभाषित” करने की ज़रूरत है. इस क़वायद के ज़रिए इसमें सामाजिक और मानवतावादी मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए. इन मसलों में आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और महामारी के साथ-साथ सही मायनों में प्रगति और सतत विकासके रास्ते की वित्तीय और आर्थिक रुकावटें शामिल हैं.
बहुसांस्कृतिक लोकतांत्रिक विरासत
भारत की जी20 अध्यक्षता का लक्ष्य विश्व को मौजूदा ध्रुवीकरण वाली अवस्था से दूर,बेहतर सद्भाव वाली व्यवस्था की ओर ले जाना होगा. भारत एक बहु-सांस्कृतिक लोकतंत्र है. उसकी यही असलियत दुनिया में बेहद जुदा रुख़ रखने वाले विविध किरदारों को एकजुट करने में दिशानिर्देशक का काम करेगी, ताकि ये तमाम ताक़तें वैश्विक चुनौतियों पर मंथन कर आगे क़दम उठा सकें. जी20 इंडिया 2023 का प्रसंग- वसुधैव कुटुंबकम: एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य- वैश्विक व्यवस्था को लेकर भारत की परिकल्पना और उसमें उसकी ख़ुद की भूमिका को अमली जामा पहनाता है. भारत ने ये साबित किया है कि वो महज़ शिगूफ़ों के भरोसे ही नहीं टिका है. 2020 में पहली दफ़ा कोविड के उभार के तत्काल बाद भारत ने एकजुट होकर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था ताकि बेहद न्यूनतम संसाधनों में संघर्ष कर रहे लोगों की मदद की जा सके. उस वक़्त विकसित दुनिया ने अपना पूरा ध्यान ख़ुद के भीतर लगा रखा था. उनमें से कुछ ने तो अपनी पूरी वयस्क आबादी को 5 बार डोज़ दिए जाने के बराबर टीके इकट्ठा कर रख लिए थे.
हिंदुस्तान पहली बार इतने आला दर्जे के अंतरराष्ट्रीय जमावड़े की मेज़बानी कर रहा है, वो भी तब, जब दुनिया में ज़बरदस्त उथल-पुथल मची है. ऐसे में भारत, बड़ा सोचने और बेहतर नतीजे देने को लेकर अपनी तैयारियों के संकेत दे रहा है. दुनिया के ज़्यादातर देश एक लंबे अर्से से भारत से ऐसी ही उम्मीद लगाए हुए थे.
विश्व व्यवस्था में मौजूद इस संकट के बीच भारत इन्हीं चुनौतियों में छिपे अवसरों का लाभ उठा सकता है. हिंदुस्तान पहली बार इतने आला दर्जे के अंतरराष्ट्रीय जमावड़े की मेज़बानी कर रहा है, वो भी तब, जब दुनिया में ज़बरदस्त उथल-पुथल मची है. ऐसे में भारत, बड़ा सोचने और बेहतर नतीजे देने को लेकर अपनी तैयारियों के संकेत दे रहा है. दुनिया के ज़्यादातर देश एक लंबे अर्से से भारत से ऐसी ही उम्मीद लगाए हुए थे.
निश्चित रूप से आगे की राह कठिन है. जी20 वैश्विक प्रशासन में मौजूद ख़ामियों के इलाज के लिए रामबाण नहीं है. इस रास्ते की बाधाएं बेहद गंभीर हैं. हालांकि भारत की ओर से प्रभावी नेतृत्व के ज़रिए बहुपक्षीय व्यवस्था में नई जान फूंकने का ये माकूल वक़्त हो सकता है. पिछले कुछ वर्षों से इस व्यवस्था में ठहराव आ गया है. जी20 के असरदार प्रबंधन से “संशोधित बहुपक्षीयवाद” से जुड़ी भारत की मुहिम को ज़्यादा विश्वसनीयता हासिल हो सकेगी. भारत आज वैश्विक ज़िम्मेदारियों में अपना योगदान देने को तत्पर है. जी20 में वैश्विक विमर्श को आकार देने में भारत कितना प्रभावी होगा, येइस बात पर भी निर्भर करेगा कि मौजूदा दौर की अव्यवस्था पर दूसरे किरदार कितनी गंभीरता से ध्यान टिकाने की इच्छा दिखाते हैं. भारत अपने स्तर से हर मुमकिन कोशिश कर रहा है और उसकी नज़र ऊंचे लक्ष्य पर टिकी है.
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