1990 के दशक के आख़िरी हिस्से में सामने आए मिलेनियम बग संकट ने भारत को पहली बार सूचना टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की बड़ी ताक़त बना दिया था. उसी ज़माने से STEM के क्षेत्र में भारत की जानदार प्रतिभा एक स्थापित तथ्य बन गई है. आज भारत के लोग टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इनमें गूगल, यूट्यूब, माइक्रोसॉफ़्ट, IBM और नोकिया शामिल हैं. 2021 में भारत के 34 प्रतिशत स्नातक युवा STEM में थे. इस तरह हिंदुस्तान STEM के क्षेत्र में दुनिया में सबसे बड़ा श्रमबल उपलब्ध करने वाला देश बन गया है. इंटरनेशनल गर्ल्स इन ICT डे के मौक़े पर STEM के क्षेत्र में महिलाओं के दाख़िले में आए उछाल का जश्न मनाना वाजिब क़वायद लगती है. भले ही इस सिलसिले में अब भी पूरी तरह से बराबरी का स्तर हासिल नहीं हो सका है लेकिन 43.2 प्रतिशत हिस्से के साथ महिलाओं की भागीदारी दुनिया में अब तक के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंच गई है.
इंटरनेशनल गर्ल्स इन ICT डे के मौक़े पर STEM के क्षेत्र में महिलाओं के दाख़िले में आए उछाल का जश्न मनाना वाजिब क़वायद लगती है. भले ही इस सिलसिले में अब भी पूरी तरह से बराबरी का स्तर हासिल नहीं हो सका है लेकिन 43.2 प्रतिशत हिस्से के साथ महिलाओं की भागीदारी दुनिया में अब तक के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंच गई है.
इसके बावजूद विडंबना ये है कि STEM डिग्री के साथ स्नातक की योग्यता पूरी करने वाली महिलाओं में से सिर्फ़ 29 प्रतिशत ही श्रमबल में शामिल होती हैं. जैसा कि जानकार पाठक भी महसूस कर रहे होंगे, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में झंडे गाड़ने वाले तमाम भारतीय CEOs में विरले ही महिला CEOs दिखाई देती हैं. दाख़िले की तादाद साफ़ तौर से ज़ाहिर करती है कि STEM का क्षेत्र 'मर्दों' का क्षेत्र नहीं है, ऐसे में सवाल उठता है कि इस क्षेत्र में डिग्री लेने वाली महिलाएं कहां हैं? अतीत में ORF के विश्लेषणों में इस क्षेत्र में हर चरण में आने वाली बाधाओं को रेखांकित किया गया है: साक्षात्कार में पूछे जाने वाले व्यक्तिगत क़िस्म के दख़लंदाज़ी भरे सवाल, काम का प्रतिकूल वातावरण, कार्य के मूल्यांकनों में पूर्वाग्रह और शादी के बाद कामकाज छोड़ने को लेकर सामाजिक दबाव. क्या महिलाएं अपने उद्यम शुरू कर ऐसी रुकावटी चारदीवारी की काट निकाल सकती हैं? हालांकि, ये अब भी एक पहाड़ चढ़ने जैसा संघर्ष है. महिलाओं की अगुवाई वाले ज़्यादातर स्टार्टअप द्वारा निवेश आकर्षित किए जाने की संभावना कम होती है, उद्योग जगत का संजाल "पुरुषप्रधान संस्कृति" में रचा-बसा है, और "महिलाओं द्वारा करियर को लेकर सबसे अहम फ़ैसला यही होता है कि वो किसके साथ शादी करने का निर्णय लेती हैं". अनुभवजन्य साक्ष्य के तौर पर हम पिछले साल ORF द्वारा आयोजित स्टार्ट-अप केंद्रित कार्यक्रम की मिसाल ले सकते हैं, जिसका आयोजन टेक्नोलॉजी से जुड़े हमारे सालाना सम्मेलन CyFy के दौरान किया गया था. स्टार्ट-अप कंपनियों और व्यक्तिगत उद्यमियों की मदद करने वाले इंक्यूबेटर्स से वक्ताओं/संचालकों में लैंगिक समानता से जुड़े अनुरोध को लेकर संपर्क किए जाने पर हमें दो टूक कह दिया गया कि ऐसा करना नामुमकिन होगा.
AI को मौक़ा?
AI एक औज़ार है, लेकिन ये एक आईना भी है जो हमें हमारे पूर्वाग्रहों और ख़ामियों की झलक दिखलाता है. मशीनें बहाना नहीं बनातीं: "एल्गोरिदम्स को लिंग से जुड़े चर कारक की ओर पूरी तरह "आंखें मूंदे" रहने वाली स्थिति की तरह प्रोग्राम किए जाने के बावजूद उनके द्वारा लिंग से जुड़े भेदभाव किया जाना पूरी तरह मुमकिन है". ये बहाली, भर्ती और प्रदर्शन से जुड़े मूल्यांकनों में स्पष्ट पूर्वाग्रहों की पहचान कर सकते हैं.
AI की कुछ आधारभूत नौकरियां (जैसे डेटा लेबलिंग) युवा महिलाओं को पूरक आमदनी जुटाने का मौक़ा मुहैया करवा रही हैं. हालांकि, इस परिप्रेक्ष्य को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. डेटा लेबलिंग के क्षेत्र में एक केंद्र की तरह उभरने के बाद भारत में कुछ इकाइयां महिलाओं को काम के घंटों और स्थानों और कौशलों में लचीलापन देने की अपनी अनोखी हैसियत का प्रचार करने लगी हैं. इन कौशलों को तैयार कर महिलाएं AI के दायरे में अन्य प्रकार के करियरों की तरफ़ मुख़ातिब हो सकती हैं. इनमें Playment और iMerit जैसी इकाइयां शामिल हैं. AI से जुड़े विशाल क्षितिज के मद्देनज़र कुछ विश्लेषक AI और स्वचालन को बराबरी लाने वाली बड़ी ताक़त के तौर पर देखते हैं: "स्वचालन के चलते 2030 तक नौकरीपेशा 20 प्रतिशत महिलाएं नौकरी से विस्थापित हो सकती हैं जबकि पुरुषों के लिए ये आंकड़ा 21 प्रतिशत होने के आसार हैं" लेकिन "आज के मुक़ाबले 2030 तक 20 फ़ीसदी ज़्यादा महिलाएं नौकरी में आ सकती हैं जबकि पुरुषों के लिए ये आंकड़ा 19 प्रतिशत रहने की संभावना है".
डेटा लेबलिंग के क्षेत्र में एक केंद्र की तरह उभरने के बाद भारत में कुछ इकाइयां महिलाओं को काम के घंटों और स्थानों और कौशलों में लचीलापन देने की अपनी अनोखी हैसियत का प्रचार करने लगी हैं. इन कौशलों को तैयार कर महिलाएं AI के दायरे में अन्य प्रकार के करियरों की तरफ़ मुख़ातिब हो सकती हैं.
पहले से ही हमें हमारी ज़िंदगी के बेहद 'आम' पहलुओं में AI के सकारात्मक फ़ायदे देखने को मिलने लगे हैं. मिसाल के तौर पर सोशल मीडिया महिलाओं के लिए सशक्तिकरण का कारक बन सकता है. एल्गोरिदम्स हमें एकजुट करता है, हममें सामुदायिक भावना पैदा करता है और साझा मसलों पर एकजुटता के आह्वान को मुखर बनाता है. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स महिला उद्यमियों और छोटे कारोबारियों को कई प्रकार के अवसर मुहैया कराते हैं. इनके ज़रिये वो व्यापक आबादी तक पहुंचकर ऑनलाइन क्षेत्र में अपने जुड़ावों को फलने-फूलने योग्य बनाती हैं. हमने अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्मों पर प्रतिभाशाली महिला कंटेट क्रिएटर्स का उदय होते देखा है. ये महिलाएं अपनी आवाज़ का इस्तेमाल कर प्रचलित मान्यताओं को चुनौती दे रही हैं, अपने अनुभव साझा कर रही हैं और दूसरे को प्रेरित भी कर रही हैं.
AI के इस्तेमाल के कई अन्य रचनात्मक तौर-तरीक़े भी हैं: AI-संचालित प्लेटफ़ॉर्म STEM में महिलाओं के लिए नेटवर्किंग और सलाहकारी अवसरों की सुविधा दे सकते हैं. सामाजिक दीवारों को अकेले नहीं तोड़ा जा सकता. महिलाओं को प्रशिक्षकों, सहयोगियों और उद्योग जगत के पेशेवरों के साथ जोड़कर AI एक मददगार इकोसिस्टम तैयार करने में सहायक हो सकता है. ये तंत्र करियर के विकास और तरक़्क़ी को आगे बढ़ा सकता है.
निष्कर्ष
बहरहाल, AI एकल, स्पष्ट और चमकदार भविष्य का रास्ता नहीं बनाता. लैंगिक स्तर पर आंखें मूंदने वाले रुख़ से लैंगिक समानता हासिल नहीं की जा सकती. काम के बदले भुगतान की अस्थायी कार्य-व्यवस्था (gig work) से भले ही लचीलापन मिलता है लेकिन ये रोज़गार सुरक्षा से जुड़े मसले का समाधान नहीं करती. ऑनलाइन दुनिया के भीतर महिलाओं को अब भी बेहिसाब परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इनमें अप्रिय बर्ताव, यातना, हिंसा की खुली धमकियां और दबे-छिपे रूप में शैतानी यौन दुरुचार शामिल हैं. STEM में महिलाओं की भागीदारी कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व का विषय नहीं बननी चाहिए. ये ऐसा मुद्दा भी नहीं बनना चाहिए जो किसी कंपनी के विकास का सहायक तत्व बन जाए. महिला-केंद्रित तमाम प्लेटफ़ॉर्मों को इन तथ्यों से अपना ध्यान नहीं हटाना चाहिए.
टेक्नोलॉजी जगत में समानता सुनिश्चित करने की राह में विविधता और समावेश की संस्कृति तैयार करने की क़वायद जुड़ी होती है. इसके तहत महिलाओं और प्रतिनिधित्व में पिछड़ गए तबक़ों को जगह मिलनी चाहिए. इतना ही नहीं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी आवाज़ सुनी जानी चाहिए. वैसे तो महिलाओं को अपनी और अन्य महिलाओं के हक़ों की वक़ालत करती रहनी पड़ेगी, लेकिन हमारे पुरुष सहयोगियों को भी इस संदर्भ में ख़ुद को अप्रासंगिक किरदार के तौर पर नहीं देखना चाहिए.
और हां, महिलाओं की नुमाइंदगी की अहमियत के बारे में (सिर्फ़ पुरुषों के जमावड़े में महिलाओं के मसलों पर) भाषण देने और हालात को सार्थक रूप से बेहतर बनाने के तरीक़ों पर ईमानदार संवाद करने में बड़ा फ़र्क़ है.
त्रिशा रे सेंटर फ़ॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में डिप्टी डायरेक्टर हैं.
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