France-US Partnership: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के अमेरिका दौरे का उद्देश्य था आर्थिक, रक्षा और राजनीतिक साझेदारी की फिर से पुष्टि करना. ये दौरा उस समय हुआ जब अटलांटिक के दोनों तरफ़ स्थित साझेदारों के लिए बढ़ती आर्थिक असुरक्षा, यूक्रेन में मौजूदा संघर्ष और ऊर्जा की तेज़ होती क़ीमत के कारण मुश्किल घड़ी है. वैसे तो इस दौरे से ज़्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ लेकिन इसने दोनों नेताओं को एक अवसर प्रदान किया कि वो उन मुद्दों पर चर्चा करें जिनको लेकर उनके विचार मिलते हैं जैसे कि द्विपक्षीय संबंध; या जिनको लेकर उनके अलग-अलग दृष्टिकोण हैं जैसे कि इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट या महंगाई में कमी अधिनियम (IRA). इस दौरे ने दोनों नेताओं को उन मुद्दों पर भी बातचीत का मौक़ा दिया जिनको लेकर उनके हित तो एक समान हैं लेकिन उनका दृष्टिकोण अलग-अलग है जैसे कि यूक्रेन संकट.
इस दौरे का एक प्रमुख परिणाम ये था कि इसने एक सकारात्मक संकेत दिया कि फ्रांस और अमेरिका- दोनों के लिए द्विपक्षीय संबंध सही दिशा में हैं. दोनों देशों के बीच संबंध 2021 में उस वक़्त बेहद ख़राब हो गए थे जब अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम के साथ मिलकर ऑकस की घोषणा की थी. इसकी वजह से फ्रांस के द्वारा ऑस्ट्रेलिया को पनडुब्बी देने की कई अरब यूरो की परियोजना रद्द हो गई थी. फ्रांस के विदेश मंत्री जीन-यवेस ली द्रियान ने ऑकस को ‘बर्बर, एकतरफ़ा एवं अप्रत्याशित’ और “पीठ में छुरा घोंपने” की तरह बताया था. ऑकस के ऐलान की वजह से फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया था. लेकिन यूक्रेन संकट ने दोनों देशों के संबंधों की राह बदल दी और यूरोप में अमेरिका के प्रमुख सहयोगी के रूप में फ्रांस उभरा है. मैक्रों के राजकीय दौरे ने इस बात की तरफ़ इशारा किया कि दोनों देशों में संबंध सामान्य हो गए हैं क्योंकि दोनों नेताओं ने यूरोप में संकट का समाधान करने के लिए अपने-अपने रवैये को एक जैसा कर लिया. बाइडेन प्रशासन के तहत फ्रांस की तरफ़ से पहले राजकीय दौरे और उसमें भी ख़ुद फ्रांस के राष्ट्रपति के दौरे ने यूरोप में साझेदार के तौर पर अमेरिका की प्राथमिकता का संकेत दिया.
इस दौरे का एक प्रमुख परिणाम ये था कि इसने एक सकारात्मक संकेत दिया कि फ्रांस और अमेरिका- दोनों के लिए द्विपक्षीय संबंध सही दिशा में हैं.
यात्रा का प्रभाव
इसके अलावा, दोनों नेताओं की मुलाक़ात के बाद जारी साझा बयान में इस बात को उजागर किया गया है कि महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि जलवायु, अंतरिक्ष, ऊर्जा, व्यापार, इत्यादि पर अमेरिका और फ्रांस का रवैया एक जैसा है. बयान में “सुरक्षा को मज़बूत करने एवं पूरे विश्व में समृद्धि को बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने, जलवायु परिवर्तन के असर के ख़िलाफ़ अधिक लचीलापन का निर्माण करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए साझा दृष्टिकोण की रूप-रेखा खींची गई है”. हालांकि साझा बयान में दो मुद्दे लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं: पहला, रूस के “ग़ैर-ज़िम्मेदाराना परमाणु धमकियों और कथित रसायनिक हमलों, और जैव एवं परमाणु हथियारों से जुड़े कार्यक्रम को लेकर उसके दुष्प्रचार” पर दोनों साझेदारों ने ग़ौर किया और इस बात का इरादा जताया कि “रूस के नियमित सशस्त्र बलों और उसकी तरफ़ से लड़ने वालों बाहरी लोगों के द्वारा विस्तृत रूप से दर्ज अत्याचारों और युद्ध अपराधों के लिए रूस को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा”. इस तरह दोनों देशों ने रूस के ख़िलाफ़ अपने रवैये को कठोर बना लिया है जबकि यूक्रेन को समर्थन के लिए एक बार फिर से प्रतिबद्धता जताई है. दूसरा मुद्दा जो ध्यान आकर्षित करता है वो है इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में दोनों देशों के द्वारा चीन को एक प्रमुख प्रतिद्वंदी के साथ-साथ साझेदार मानना. दोनों नेताओं ने इस बात को दोहराया कि “नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को चीन की चुनौतियों को लेकर हमारी चिंताओं पर समन्वय लगातार जारी है. इनमें मानवाधिकार के लिए सम्मान और जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर चीन के साथ मिलकर काम करना शामिल हैं”.
इस दौरे का एक मुख्य एजेंडा था अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के बीच एक संभावित व्यापार युद्ध को टालना. अमेरिकी कांग्रेस के द्वारा पारित दो विधेयक- इनफ्लेशन रिडक्शन एक्ट (IRA) और चिप्स एंड साइंस एक्ट- दोनों साझेदारों के बीच बातचीत के दौरान चर्चा के केंद्र में रहे हैं. IRA के तहत स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने और उसकी तरफ़ बदलाव के लिए लगभग 370 अरब अमेरिकी डॉलर की पेशकश की गई है. इस विधेयक के प्रमुख पहलुओं में शामिल है अमेरिका में तैयार की गई इलेक्ट्रिक गाड़ियों और अमेरिका या ‘मुक्त व्यापार साझेदारों’ के द्वारा बनाए गए उनके पुर्जों के लिए टैक्स क्रेडिट. चिप्स एक्ट के तहत सेमीकंडक्टर कंपनियों को अमेरिका में अपना प्लांट लगाने के लिए 52 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रावधान किया गया है. अमेरिका के इन दोनों अधिनियमों को उसके यूरोपीय साझेदारों के द्वारा अन्यायपूर्ण माना जाता है क्योंकि उन्हें लगता है कि यूरोपीय प्रतिस्पर्धा की क़ीमत पर इनके माध्यम से अमेरिकी कंपनियों को अनुचित सब्सिडी दी जाएगी. इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध की वजह से आर्थिक मंदी आने के कारण इस साझेदारी में दूसरे आर्थिक मुद्दे भी काम कर रहे हैं. अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर संगठित रवैया बरकरार रखा है लेकिन जैसे-जैसे ये संघर्ष आगे की तरफ़ बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ये महसूस किया जा रहा है कि यूरोप के देशों ने ऊर्जा के अधिक दाम और महंगाई के रूप में युद्ध की ज़्यादा क़ीमत अदा की है. इसके कारण यूरोप के उद्योग नुक़सान की स्थिति में हैं और अमेरिका के दोनों अधिनियमों से यूरोप में आर्थिक बहाली की प्रक्रिया को और हानि पहुंचेगी. यूरोप के देशों ने अमेरिकी प्रशासन पर विदेशी कंपनियों के ख़िलाफ़ भेदभाव और ‘अमेरिकी उत्पादों को ख़रीदने’ की सोच को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. इसके जवाब में यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों ने ‘यूरोप में बने उत्पादों की ख़रीद’ को शामिल करने के लिए एक यूरोपीय सब्सिडी व्यवस्था बनाने की अपील की है.
इस दौरे का एक मुख्य एजेंडा था अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के बीच एक संभावित व्यापार युद्ध को टालना. अमेरिकी कांग्रेस के द्वारा पारित दो विधेयक- इनफ्लेशन रिडक्शन एक्ट (IRA) और चिप्स एंड साइंस एक्ट- दोनों साझेदारों के बीच बातचीत के दौरान चर्चा के केंद्र में रहे हैं.
इन अलग-अलग रुख़ वाले मुद्दों पर बातचीत राष्ट्रपति मैक्रों के एजेंडे का प्रमुख हिस्सा था. एक तरफ़ जहां राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि IRA के लिए ‘अमेरिका माफ़ी नहीं मांगता’, वहीं उन्होंने ये भी जोड़ा कि इस अधिनियम में कुछ ‘सुधार’ की ज़रूरत है. राष्ट्रपति मैक्रों ने अमेरिका के सहयोगियों के ऊपर इस क़ानून के असर को लेकर ‘फिर से तालमेल और चर्चा’ पर ज़ोर दिया. हालांकि अधिनियम में क्या ‘सुधार’ किए जाएंगे या दोनों देश इस मुद्दे का कैसे समाधान करेंगे, इसकी कोई विस्तृत जानकारी नहीं प्रदान की गई है. साथ ही, ये भी साफ़ नहीं है कि इसे लागू कैसे किया जाने वाला है क्योंकि IRA को पहले ही अमेरिकी कांग्रेस के द्वारा पारित किया जा चुका है और ये 1 जनवरी 2023 से अमल में आने वाला है.
निष्कर्ष
साथ ही राष्ट्रपति मैक्रों की यात्रा के दौरान यक्रेन संकट को लेकर अमेरिका और फ्रांस के बारीक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला गया. यूक्रेन युद्ध के 10वें महीने में जाने के बाद अटलांटिक पार के दोनों साझेदारों ने इस संघर्ष के नतीजों का समाधान करने में एक संयुक्त रवैया दिखाया है. लेकिन युद्ध को लेकर अमेरिका और फ्रांस के दृष्टिकोण में एक महीन अंतर भी दिखाई दिया. राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि “पुतिन से संपर्क करने की उनकी कोई तात्कालिक योजना नहीं है” लेकिन “अगर रूस के राष्ट्रपति ये फ़ैसला लेते हैं कि वो युद्ध ख़त्म करने का कोई रास्ता तलाश रहे हैं” तो वो बातचीत के लिए तैयार हैं. दूसरी तरफ़ राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि फरवरी से ही उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन के साथ बार-बार संपर्क बनाए रखा है. राष्ट्रपति मैक्रों ने यूक्रेन को लेकर फ्रांस के द्वारा उठाए गए तीन तरह के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला- ‘पहला, मुक़ाबले करने में यूक्रेन की मदद; दूसरा, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर कोई समझौता नहीं एवं युद्ध में बढ़ोतरी के किसी भी जोखिम को रोकना; और तीसरा, ये सुनिश्चित करना कि जब समय आए तो यूक्रेन के लोगों के द्वारा निर्धारित शर्तों के आधार पर शांति बहाली में मदद करना’. फ्रांस ने जहां लचीला रुख़ बनाए रखा है और आने वाले महीनों में युद्ध के और तेज़ होने की आशंका को लेकर चिंतित है, दूसरी तरफ़ अमेरिका ‘जब तक संभव हो तब तक’ यूक्रेन का समर्थन करने के रुख़ पर बना हुआ है. वैसे तो ठंड के महीनों में यूक्रेन युद्ध क्या रूप लेता है, ये देखा जाना अभी बाक़ी है लेकिन ये तय है कि यूरोप और अमेरिका में ‘युद्ध की थकान’ एक वास्तविक मुद्दा बन सकता है और दोनों साझेदारों को बातचीत के लिए एक बीच का रास्ता तलाशने की तरफ़ काम करने की ज़रूरत है.
संक्षेप में कहें तो राष्ट्रपति मैक्रों के द्वारा अमेरिका का राजकीय दौरा दो उद्देश्यों को हासिल करने के लिए लगता है: पहला, द्विपक्षीय और अटलांटिक पार संबंधों में प्रमुख चुनौतियों से पार पाने की तरफ़ एक क़दम; और दूसरा, विदेश नीति से जुड़े मुद्दों पर नज़दीकी तौर पर तालमेल. इस राजकीय दौरे ने एक साफ़ संदेश दिया है कि दोनों देशों का संबंध 2021 की चुनौतियों से आगे बढ़ गया है. साथ ही फ्रांस को एक अवसर मिला है कि वो अपने विदेश संबंधों को फिर से दुरुस्त करे जबकि अमेरिका को मौक़ा मिला है कि वो यूरोप महादेश में अपने पुराने साझेदार के साथ संबंधों को बढ़ावा दे. ये मुख्य रूप से ऐसा इसलिए है क्योंकि यूरोप में अमेरिका के सहयोगी अभी भी मज़बूत होकर उभरने की कोशिश कर रहे हैं- यूके राजनीतिक संकटों की वजह से जबकि जर्मनी एंगेला मर्केल के सत्ता से हटने के कारण. इस वजह से राष्ट्रपति मैक्रों एक तरफ़ तो जी7 के किसी भी देश में सबसे लंबे समय से सत्ता में रहने वाले नेता बन गए हैं, वहीं दूसरी तरफ़ यूरोप में यूक्रेन को लेकर सबसे प्रमुख और अटल आवाज़ हैं. फ्रांस के लिए ये दौरा महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने यूरोप में अमेरिका के प्रमुख और सबसे पुराने सहयोगी के रूप में फ्रांस की स्थिति को मज़बूत किया है, साथ ही यूरोपीय संघ के भीतर फ्रांस की नेतृत्व क्षमता को फिर से साबित किया है. हो सकता है कि मैक्रों और बाइडेन ने अलग-अलग मुद्दों पर एक-दूसरे के रुख़ को पसंद नहीं किया होगा लेकिन इस यात्रा ने दोनों सहयोगियों को एक अवसर प्रदान किया है कि वो द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाएं और अटलांटिक पार संबंधों को मज़बूत करें.
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