Published on Dec 26, 2022 Updated 0 Hours ago

बदलती भू-राजनीतिक वास्तविकता ने फ्रांस और UK- दोनों देशों को इस बात के लिए मजबूर किया कि वो अपने संबंधों की फिर से पड़ताल करें.

फ़्रांस-यूके संबंध: एक बेहद ज़रूरी नई शुरुआत

फ्रांस-UK संबंध की विशेषता रही है सहयोग में बंधे मनमुटाव का एक लंबा और जटिल इतिहास-100 साल के कथित युद्ध के दौरान एक-दूसरे के दुश्मन से लेकर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सहयोगी होने तक. गहरी दुश्मनी और अतीत का भारी बोझ वर्तमान के संबंध पर भी मंडरा रहा है. साझा मूल्यों के बावजूद ये अलग-अलग रूपों में दिखाई देता है.

जिस एंग्लो-फ्रेंच संबंध का आधार एनटेंटे कोऑर्डियेले- समझौतों की एक श्रृंखला जो संबंधों में सुधार और 1,000 साल के संघर्ष को ख़त्म करने के लिए 1904 में की गई थी- था, वो अब पूरी तरह शत्रुता में बदल गई है.

2016 में जब से ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ (EU) से अलग होने का फ़ैसला लिया, तब से इस अप्रिय अलगाव के कारण ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कई मुद्दों जैसे कि मछली पकड़ने के अधिकार, इंग्लिश चैनल के पार प्रवासन, उत्तरी आयरलैंड सीमा और परमाणु पनडुब्बी को लेकर काफ़ी गरमागरम हालात बन चुके हैं.

2016 में जब से ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से अलग होने का फ़ैसला लिया, तब से इस अप्रिय अलगाव के कारण ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कई मुद्दों पर काफ़ी गरमागरम हालात बन चुके हैं.

ब्रिटेन और फ्रांस के बीच बेहद पुराने झगड़े की एक जड़ है इंग्लिश चैनल के पार अवैध प्रवासन और UK-फ्रांस की सीमा की निगरानी परंपरागत रूप से 2003 के ले तूकेत समझौते के आधार पर होती रही है. लेकिन नवंबर 2021 में फ्रांस से छोटी नाव पर UK जाने की कोशिश कर रहे 27 लोगों की मौत हो गई. इस त्रासदी के लिए दोनों देशों ने एक-दूसरे को ज़िम्मेदार ठहराया. ब्रेग्ज़िट से पहले के डब्लिन नियम, जिसके तहत ब्रिटेन प्रवासियों को दूसरे यूरोपीय देशों को वापस कर सकता था, के निलंबन के परिणाम के रूप में 2022 में रिकॉर्ड 40,000 लोगों ने ख़तरनाक ढंग से इंग्लिश चैनल को पार कर ब्रिटेन में प्रवेश किया. इसके कारण UK सरकार को उनके ठहरने का इंतज़ाम करने में रोज़ाना 6.8 मिलियन यूरो खर्च करना पड़ा. 2018 में UK में प्रवेश करने वाले 300 लोगों के मुक़ाबले खर्च में ये नाटकीय बढ़ोतरी थी.

एक और विवाद जर्सी में मछली पकड़ने के लाइसेंस को लेकर है. जर्सी ब्रिटेन पर निर्भर एक चैनल आइलैंड है जो अपनी बिजली की आपूर्ति के लिए फ्रांस पर भरोसा करता है. मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर 2018 में झड़प हुई थी. उस वक़्त फ्रांस और ब्रिटेन के मछुआरों के बीच समुद्र में लड़ाई हुई. इसे “ग्रेट स्केलॉप वॉर’ का नाम दिया गया. लेकिन मई 2021 में जी7 शिखर सम्मेलन के बाद उस वक़्त तनाव और ज़्यादा बढ़ गया जब घोंघे को लेकर कहा-सुनी के बाद फ्रांस और ब्रिटेन ने युद्धपोत भेज दिया और ब्रिटेन के द्वारा फ्रांस के मछुआरों को परमिट देने से इनकार करके ब्रेग्ज़िट समझौते को न मानने के जवाब में फ्रांस ने जर्सी की बिजली आपूर्ति काटने की धमकी दे दी. मत्स्य पालन का दोनों देशों की अर्थव्यवस्था में मामूली योगदान है, फ्रांस की अर्थव्यवस्था में जहां 0.06 प्रतिशत का योगदान है तो ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में 0.1 प्रतिशत. लेकिन इसके बावजूद मत्स्य पालन उद्योग का दोनों देशों के लिए बड़ा सांकेतिक महत्व है.

हालात को और बिगाड़ते हुए पिछले साल सितंबर में ऑकस- परमाणु पनडुब्बी समझौते को लेकर  ऑस्ट्रेलिया, UK और अमेरिका के बीच इंडो-पैसिफिक सुरक्षा साझेदारी- ने 2016 में ऑस्ट्रेलिया के साथ किए गए फ्रांस के फ़ायदेमंद पनडुब्बी समझौते को कपटपूर्ण ढंग से ख़त्म कर दिया. इसकी वजह से 56 अरब यूरो की डील फ्रांस के हाथ से निकल गई. अपमान की स्थिति से गुज़र रहे फ्रांस को शांत करने के बदले ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री जॉनसन ने अंग्रेज़ी रंग वाली फ्रेंच कहावत “डोंज़-मोई अन ब्रेक” के ज़रिए फ्रांस का मज़ाक उड़ाया. इस कहावत का अर्थ है “मुझे रियायत दो”.

हालांकि दोनों देशों के बीच सबसे विवादित मुद्दों में से एक है उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल का दर्जा जिस पर ब्रिटेन ने ब्रेग्ज़िट को लेकर बातचीत के दौरान हस्ताक्षर किए थे ताकि EU के अकेले बाज़ार को बचाते हुए आयरलैंड गणराज्य और उत्तरी आयरलैंड के बीच खुली सीमा को बरकरार रखा जा सके. अतीत की जॉनसन और ट्रस सरकारों ने इस प्रोटोकॉल के कुछ हिस्सों में फेरबदल की कोशिश की और इस तरह EU के साथ संभावित व्यापार युद्ध को बढ़ावा दिया. EU के ऊपर फ्रांस के भारी प्रभाव और हिस्सेदारी को देखते हुए स्वाभाविक तौर पर इस तरह के तनाव का असर फ्रांस-यूके संबंधों पर भी पड़ा. फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों इस मुद्दे पर EU के सभी नेताओं में सबसे ज़्यादा आक्रामक हैं.

2016 में जब से ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से अलग होने का फ़ैसला लिया, तब से इस अप्रिय अलगाव के कारण ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कई मुद्दों पर काफ़ी गरमागरम हालात बन चुके हैं.

दोनों देशों के बीच झगड़े के कई मुद्दों में से एक मुद्दा ऊर्जा सुरक्षा भी है. 2020 में जब से EU ने ब्रिटेन को नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर उत्तरी सागर ऊर्जा सहयोग समूह से बाहर किया है, तब से ये विवाद खड़ा हो गया है.

दुर्भाग्यवश, संबंधों में सुधार लाना न तो फ्रांस की सबसे बड़ी प्राथमिकता है, न ही ब्रिटेन की. दोनों देश विकट आर्थिक संकट के साथ-साथ बढ़ती महंगाई का सामना कर रहे हैं. इसके अलावा यूक्रेन पर रूस के हमले के कारण ऊर्जा लागत में बढ़ोतरी भी हुई है. यूरोप के एजेंडे में ब्रेग्ज़िट नीचे चला गया है जबकि यूक्रेन से लेकर ऊर्जा सुरक्षा और चीन से लेकर इंडो-पैसिफिक तक के मुद्दे को महत्व दिया जा रहा है.

एक नये प्रधानमंत्री का शासन

वैसे ब्रिटेन में प्रधानमंत्री के तौर पर ऋषि सुनक के आने से संबंधों में मज़बूती की नई उम्मीदें जग गई हैं. मिस्र में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप27) के दौरान मैक्रों और सुनक की पहली बैठक ने वास्तव में एक सकारात्मक माहौल तैयार किया है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया समय से पहले दोनों के बीच संबंधों में नज़दीकी की बात कर रहा है लेकिन इसके बावजूद इस बात के कई कारण हैं कि इस मुद्दे पर एहतियात के साथ आशावादी रहा जाए.

विश्व युद्ध के बाद के इतिहास में दोनों नेता अपने-अपने देशों के सबसे कम उम्र के प्रमुख हैं और दोनों अतीत में बैंकिंग सेक्टर से जुड़े रहे हैं. साथ ही दोनों पहले की सरकारों में वित्त मंत्री के पद पर भी रह चुके हैं और उन्हें अक्सर अपने देश के लोगों के आर्थिक संघर्षों से दूर अमीरों के रूप में देखा जाता है. मैक्रों के द्वारा उदारवादी-दक्षिणपंथ की तरफ़ झुकाव के साथ उनकी राजनीति के बीच जो  फर्क़ था, वो भी कम हो गया है.

इस तरह की समानताएं सुनक के पूर्ववर्तियों जॉनसन, जिनकी सरकार के दौरान फ्रांस के साथ संबंध अविश्वास और कड़वाहट के अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गया था, और ट्रस, जिन्होंने ये कहने से इनकार कर दिया था कि फ्रांस के राष्ट्रपति दोस्त हैं या दुश्मन, के बिल्कुल उलट हैं. तब भी, दोनों देशों के बीच संबंधों में गरमाहट की शुरुआत यूरोपीय राजनीतिक समुदाय के शिखर सम्मेलन- एक नया मंच जिसकी शुरुआत मैक्रों के द्वारा की गई थी और जो EU के सभी 27 सदस्य देशों और 17 ग़ैर-EU यूरोपीय देशों को एकजुट करता है- में ट्रस की मौजूदगी से हुई थी.

फ्रांस और यूके के बीच द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन 2023 की शुरुआत में होता है. इसका इंतज़ार लगभग पांच साल पहले हुए 35वें सैंडहर्ट शिखर सम्मेलन के समय से किया जा रहा है जब टेरेसा मे ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थीं. महत्वपूर्ण बात ये है कि मैक्रों और सुनक ने हाल में 72.2 मिलियन यूरो का एक प्रवासन समझौता किया है जिसके ज़रिए फ्रांस की पुलिस फ्रांस के तटीय इलाक़ों में गश्ती दल में बढ़ोतरी करके ब्रिटेन में शरण की चाह रखने वाले लोगों की संख्याको नियंत्रित करेगी. वैसे तो ऊपर जो समस्या बताई गई है, वो इस समझौते से सुलझने की संभावना काफ़ी कम है लेकिन तब भी इसने संबंधों में मज़बूती की एक उम्मीद तो पैदा कर ही दी है.

इसके बावजूद एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर मैक्रों और सुनक की राय अलग-अलग है और ये मुद्दा है ब्रेग्ज़िट. सुनक जहां अपनी कंजर्वेटिव पार्टी के ज़्यादातर नेताओं की तरह EU को लेकर शंका करने वाले और ब्रेग़्ज़िट के समर्थक हैं, वहीं मैक्रों EU के बड़े समर्थक हैं.

फ्रांस और ब्रिटेन के बीच इस अलग-अलग राय की जड़ ऐतिहासिक और मूलभूत है. अपने द्वीपीय भूगोल के साथ ब्रिटेन जिसे महाद्वीपीय परियोजना मानता था, उसमें ब्रिटेन की पहचान न्यूनतम थी. ब्रिटेन ने EU के बदले अटलांटिक के पार संबंधों का समर्थन किया जबकि फ्रांस हमेशा यूरोपीय एकजुटता के समर्थन में खड़ा रहा.

मैक्रों, जिन्होंने ख़ुद को हमेशा यूरोप के मुख्य रणनीतिकार के रूप में पेश किया है, के लिए सफलतापूर्वक EU से बाहर निकलने वाला ब्रिटेन उनकी यूरोपीय परियोजना, जिसके लिए वो काफ़ी प्रतिबद्ध हैं, को सीधी चुनौती देता है. इसके बदले मैक्रों एक संघर्षरत ब्रिटेन चाहेंगे जो इस बात को दिखाए कि EU से बाहर निकलने की क़ीमत क्या होती है और ब्रिटेन को देखकर EU के बाक़ी 27 सदस्य देश ऐसा करने के बारे में नहीं सोचेंगे. इन मूलभूत विरोधी मजबूरियों ने पहले से ही एक जटिल संबध को दिशाहीन बना दिया है जिसमें ऊपर बताए गए कई मुद्दे ब्रेग्ज़िट का परिमाण हैं.

फ्रांस और ब्रिटेन- दोनों देश ख़ुद को ब्रेग्ज़िट के बाद फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. EU की संस्थागत व्यवस्था के बंधन से अपनीवैश्विक ब्रिटिश रणनीति की तलाश में UK ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड एवं अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है. इसके अलावा UK भारत और जापान जैसी महत्वपूर्ण ताक़तों से भी संबंध बढ़ाने में लगा हुआ है. दूसरी तरफ़ फ्रांस अमेरिका एवं नेटो पर यूरोप की सुरक्षा निर्भरता कम करने के लिए सामरिक स्वायत्तता को बढ़ावा दे रहा है और EU में ताक़तवर लेकिन हाल के दिनों में तनावपूर्ण फ्रांस-जर्मनी के समझौते को मज़बूत करने को प्राथमिकता दे रहा है.

मतभेदों को अलग रखना

फ्रांस और यूके के बीच संबंधों में स्वाभाविक तनावों के बावजूद 2016 से वैश्विक संदर्भ में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है. इसकी वजह से सहयोग और बेहद ज़रूरी नई शुरुआत के लिए काफ़ी प्रोत्साहन मिला है. रूस और चीन की कार्रवाई ने भू-राजनीतिक उथल-पुथल को तेज़ किया है. इसके कारण लोकतांत्रिक देशों के बीच मूल्य आधारित संबंधों को प्राथमिकता दी जाने लगी है. ब्रिटेन की 2021 की एकीकृत समीक्षा और EU की 2016 की वैश्विक रणनीति पर सरसरी निगाह डालने से भी ब्रिटेन और फ्रांस के साझा दृष्टिकोण और उसके बाद हितों के गठबंधन का पता चलता है. पश्चिमी देशों के बीच मुख्य किरदार के रूप में इंडो-पैसिफिक में फ्रांस और UK के हितों का मज़बूत मेलजोल एवं इस क्षेत्र में सहयोग भारत जैसे दोस्त देशों के लिए भी मददगार रहेगा क्योंकि वो भी इस क्षेत्र में शक्ति के न्यायसंगत बंटवारे को सुनिश्चित करने के लिए कोशिशें तेज़ कर रहा है.

पुतिन के आक्रमण के ख़िलाफ़ब्रिटेन का सैन्य समर्थन पश्चिमी देशों के जवाब में बेहद अहम साबित हुआ है. इसकी वजह से बाल्टिक और मध्य यूरोपीय देशों में ब्रिटेन की ख्याति में बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह यूक्रेन में युद्ध ने एक सामरिक किरदार के रूप में EU के उदय को तेज़ किया है जो रूस के ख़िलाफ़ EU के आर्थिक प्रतिबंधों की 8 किस्तों में दिखता है.

परमाणु हथियारों के साथ यूरोप के अग्रणी रक्षा किरदारों के रूप मेंफ्रांस और ब्रिटेन की सुरक्षा साझेदारी, जो 2010 में ऐतिहासिक लैंकेस्टर हाउस संधि की परिधि में हुई थी, यूरोप महाद्वीप में हो रहे युद्ध और 2024 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के बाद शक्ति में संभावित बदलाव, जो पश्चिमी गठबंधन को कमज़ोर करेगा, को देखते हुए बेहद महत्वपूर्ण है.

ब्रिटेन और फ्रांस के लिए ये उपयोगी होगा कि वो अपने अहंकार को अलग रखकर ब्रेग्ज़िट के घावों को भरने, बकाया मुद्दों का समाधान करने और बड़ी चीज़ों को नहीं भुलाने पर ध्यान दें. फ्रांस और ब्रिटेन के बीच एक रचनात्मक साझेदारी के लिए व्यावहारिक EU-UK संबंध महत्वपूर्ण है. दोनों को ब्रेग्ज़िट के बाद एक सहयोगपूर्ण भविष्य के लिए ठीक से काम करने के ज़रूरत है. दांव पर बहुत कुछ लगा है और मैक्रों-सुनक की मिलनसारिता से दोनों देशों के बीच संबंधों को जो ताज़ा गति मिली है, वो आगे का रास्ता दिखाएगी.

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