Author : Abhijit Singh

Published on Sep 01, 2018 Updated 0 Hours ago

राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुखों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए नियमित रूप से बैठकें की हैं, जिस दौरान एक आम या साझा सुरक्षा स्थल के रूप में बंगाल की खाड़ी को मान्यता देने के लिए विशेष जोर दिया जाता रहा है।

BIMSTEC शिखर सम्‍मेलन में समुद्री सुरक्षा पर फोकस!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सप्ताह के उत्‍तरार्द्ध में नेपाल का दौरा करेंगे और इस दौरान काठमांडू में होने वाले BIMSTEC (बहुक्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) के चौथे शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। क्षेत्रीय राजनेताओं के साथ अपने विचार-विमर्श के दौरान प्रधानमंत्री हालिया बैठकों के दौरान चर्चा का एक प्रमुख विषय रही बंगाल की खाड़ी में समुद्री सुरक्षा के साथ-साथ कनेक्टिविटी, कट्टरता और आतंकवाद का मुकाबला करने पर भी विशेष जोर दे सकते हैं।

अक्टूबर 2016 में आयोजित BRICS-BIMSTEC आउटरीच शिखर सम्मेलन के बाद से ही बंगाल की खाड़ी के निकट अवस्थित देश अपने साझा तटीय इलाकों में व्यापक’ सुरक्षा को लेकर काफी गंभीर हो गए। इसके बाद से ही उनकी चर्चाएं कड़ी सुरक्षा और सामान्‍य विकास दोनों ही मुद्दों के आसपास निरंतर घूमती रही हैं जिनमें पर्यावरण संरक्षण एवं ‘ब्लू ग्रोथ’ भी शामिल हैं और जो कई क्षेत्रीय सरकारों के लिए एक विकास प्राथमिकता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुखों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए नियमित रूप से बैठकें की हैं, जिस दौरान एक आम या साझा सुरक्षा स्थल के रूप में बंगाल की खाड़ी को मान्यता देने के लिए विशेष जोर दिया जाता रहा है।

फिर भी, इस दिशा में प्रगति काफी धीमी रही है। मानव सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दों पर पहले के मुकाबले अब कहीं ज्‍यादा जोर देने के बावजूद बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती छोटे देशों को सशस्त्र लूट, आतंकवाद, अवैध ढंग से मछली पकड़ने और प्रवासन जैसी परेशानीदायक चुनौतियों से निपटने के लिए उपर्युक्‍त प्रणालियां और प्रक्रियाएं विकसित करने में मुश्किलों से जूझना पड़ रहा है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि क्षेत्रीय सरकारें साझा तटीय इलाकों में अवस्थित प्राकृतिक वास में हो रहे क्षरण पर विराम लगाने में विफल रही हैं। विशेषकर अवैध ढंग से बड़े पैमाने पर मछली पकड़े जाने के कारण मछली का स्‍टॉक काफी घट गया है। अवैध तौर-तरीकों जैसे कि तलहटी पर महाजाल में मछलियों को फंसाने और समुद्री जाल के उपयोग ने समुद्री संसाधन को काफी हद तक कम कर दिया है, जिस वजह से बंगाल की खाड़ी के ठीक बीच में एक विशाल ‘मृत क्षेत्र’ बन गया है।

इस बीच, तटीय क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण का तेजी से विस्तार हो रहा है। अध्ययनों से पता चला है कि इस वजह से समुद्री पारिस्थितिकी को हर साल 13 अरब अमेरिकी डॉलर का जो भारी-भरकम क्षति होने का अनुमान लगाया गया है उसका एक बड़ा हिस्सा दक्षिण एशिया से ताल्‍लुकात रखता है। दुर्भाग्यवश, इस चुनौती से निपटने के लिए किया गया क्षेत्रीय प्रयास अपर्याप्त रहा है। वैश्विक पर्यावरण सुविधा, एशियाई विकास बैंक और खाद्य एवं कृषि संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी करने संबंधी शुरुआती प्रयासों के बावजूद बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती देश समुचित समुद्री व्‍यवस्‍था सुनिश्चित करने के मार्ग में मौजूद इन प्रमुख बाधाओं को प्रभावकारी ढंग से दूर करने के लिए आगे नहीं आए हैं: मछली पकड़ने के नुकसानदेह तरीके, प्रदूषण एवं प्राकृतिक वास का विनाश और बदलते जलवायु से तटीय समुदायों के लिए उत्‍पन्‍न जोखिम।

भारत के लिए एक जटिल पहलू यह है कि वह मत्स्य पालन सब्सिडी कार्यक्रम पर लगाम लगाने में असमर्थ रहा है। सरकार ईंधन, नावों को मोटर युक्‍त करने, और गियर के प्रावधान जैसी रियायतों के जरिए छोटे मछुआरों को निरंतर सहायता दे रही है।

दिसम्बर 2017 में ब्यूनस आयर्स में आयोजित विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठक में भारतीय अधिकारियों ने मत्स्यपालन सब्सिडी के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम तब तक जारी रखने पर विशेष जोर दिया, जब तक कि इसके सदस्यगण विकासशील देशों के लिए विशेष और कुछ अलग व्‍यवस्‍था करने पर सहमत न हो जाएं। चूंकि सब्सिडी कार्यक्रम ने मछुआरों को भारत के समुद्र में अपेक्षा से अधिक दोहन करने और मछली पकड़ने के लिए प्रेरित किया है और जिसके परिणामस्वरूप अवैध ढंग से मछली पकड़ने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, इसलिए यह विचार-विमर्श के दायरे से बाहर प्रतीत हो रहा है।

यदि समुद्र तल में खनन और समुद्र तल में मौजूद संसाधनों पर आधिकारिक रूप से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, तो ऐसे में समुद्री जीवन के संरक्षण में शायद ही किसी की रुचि होगी। ‘ब्लू इकोनॉमी’ के मामले में भी भारत ने बड़े-बड़े वादे किए हैं, लेकिन इसके सकारात्‍मक परिणाम देने में उसे एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। सरकार में कई लोगों का यह मानना है कि इस शब्‍द का अर्थ महासागर पर निर्भर आर्थिक विकास है। जैसा कि उनका मानना है कि‍ वैसे तो समावेशी सामाजिक विकास, पर्यावरणीय संतुलन और पारिस्थितिकी सुरक्षा महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनके चलते वित्तीय विस्तार और औद्योगिक विकास के बड़े उद्देश्‍यों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए।

विडंबना यह है कि भारत की समुद्री विकास पहल के केंद्र में 8,000 करोड़ रुपये का समुद्री अन्वेषण प्रस्ताव है जिसके तहत मुख्य रूप से समुद्री ऊर्जा और समुद्र तल में मौजूद खनिज संसाधनों पर ध्‍यान केंद्रित किया जा रहा है।

हालांकि, किसी भी विकास रणनीति द्वारा तब तक अपेक्षित परिणाम देने की संभावना नहीं है जब तक कि इसके तहत तटीय समुदायों के जीवन में सुधार नहीं लाया जाएगा। इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व को प्रौद्योगिकी आधारित आर्थिक विकास की सीमा तय करने की जरूरत है, जिसके तहत तटीय एवं समुद्री पारिस्थितिकी की हिफाजत और संरक्षण के लिए उद्योग जगत पर अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के लिए दबाव डालना होगा। बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती देशों के लिए बड़ी चुनौती यह है कि वह उद्योग जगत को ‘ब्‍लू ग्रोथ’ के सामाजिक मॉडल को अपनाने के लिए तैयार करे जिसके तहत मुख्‍यत: वाणिज्यिक हितों पर ही ध्‍यान केंद्रित नहीं किया जाता है।

बेशक, आतंकवाद इस क्षेत्र में अब भी सबसे महत्वपूर्ण खतरा बना हुआ है। BIMSTEC के सदस्य देश हिंसक अतिवाद और कट्टरता के प्रसार को रोकने की दिशा में निरंतर काम कर रहे हैं। इस साल मार्च में ढाका में आयोजित की गई सुरक्षा प्रमुखों की बैठक के दौरान कानून पर अमल संबंधी सामंजस्‍य और खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

क्षेत्रीय सहयोग को और ज्‍यादा मजबूत करने के संबंध में सदस्य देशों को यह पता है कि उनकी सुरक्षा पहलों पर उच्चस्तरीय राजनीतिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसका मतलब है BIMSTEC को संसाधन उपलब्‍ध कराना, सुधारों के जरिए क्षमताओं को मजबूत करना और पहले की तुलना में ज्‍यादा राजनीतिक फोकस करना।

चौतरफा हित के अन्य क्षेत्रों में कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना और समुद्री बुनियादी ढांचे का निर्माण करना शामिल हैं। बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती देश कनेक्टिविटी हेतु एक मास्टर प्लान बनाने के लिए आपस में मिल-जुलकर काम करते रहे हैं। ये देश ग्रिड इंटरकनेक्शन की स्थापना करने और यहां तक कि सीमा शुल्क मामलों पर पारस्परिक सहायता के लिए भी समझौता करने में रुचि रखते हैं। उम्‍मीद है कि तटीय नौवहन पर एक समझौता जल्‍द ही हो जाएगा।

काठमांडू में शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद पुणे में संयुक्त सैन्य अभ्यास के दौरान खाड़ी देशों के सेना प्रमुखों द्वारा इस पर चर्चा करने की संभावना है कि आखिरकार किस तरह से आपस में मिल-जुलकर आम या साझा चुनौतियों से पार पाया जा सकता है।

तथापि, भारत इस बात को लेकर कहीं ज्‍यादा चिंतित है कि दक्षिण एशिया में चीन की निरंतर मजबूत होती राजनीतिक और आर्थिक पैठ का सटीक जवाब किस तरह प्रभावशाली ढंग से दिया जाए। चूंकि चीन के सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम भारत के निकटतम तटवर्ती देशों में अपनी मजबूत मौजूदगी सुनिश्चित कर रहे हैं, इसलिए यह माना जा रहा है कि राजनीतिक मामलों में भारत की विशिष्‍ट बढ़त को लगातार क्षीण किया जा रहा है। यह भी एक अहम कारण है कि आखिरकार मोदी सरकार क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को मजबूत करने पर इतना जोर क्‍यों दे रही है, जिसके तहत पूर्वोत्तर भारत दरअसल दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एक पुल के रूप में कार्य कर रहा है।

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