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पतन के गर्त में गिरती शिक्षा व्यवस्था को संभालने के लिए लक्ष्य आधारित उपाय करने होंगे, तभी जाकर घाटी में आर्थिक और वैचारिक परिवर्तन हो सकेगा.
8 मार्च को जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र के एक सरकारी कॉलेज ने एक सर्कुलर जारी किया. वैसे तो ये किसी ख़ास विषय के जानकार के लिए नहीं था. मगर सर्कुलर को विषय विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए लिखा गया था कि वो उन विभागों में जाकर पढ़ाएं जहां पर पढ़ाने के लिए शिक्षकों की कमी है. सर्कुलर में रसायन विभाग के अध्यापकों से कहा गया था कि वो लोक प्रशासन का विषय पढ़ाएं; वनस्पति विज्ञान के टीचर्स से कहा गया था कि वो अर्थशास्त्र पढ़ाएं. इसी तर्ज पर इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंसेज रिसर्च (ICSSR) ने दो दिनों का एक राष्ट्रीय सेमिनार प्रायोजित किया, जिसका शीर्षक ‘समावेशी और टिकाऊ शहरी क्षेत्रों का निर्माण: कश्मीर के विशेष संदर्भ में शहरीकरण और शहरी योजना निर्माण’ था. इस सेमिनार का आयोजन कश्मीर यूनिवर्सिटी (KU) के राजनीति विज्ञान विभाग ने किया था, जबकि शहरी मामलों से इस विभाग का कोई ताल्लुक़ नहीं है. आदर्श रूप में ICSSR को चाहिए तो ये था कि वो इस सेमिनार को कश्मीर के स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायरमेंट साइंस के साथ मिलकर आयोजित करता. क्योंकि इस संस्थान को शहरीकरण और टिकाऊ विकास के मामले में विशेषज्ञता हासिल है. मार्च महीने का सर्कुलर इसलिए जारी करना पड़ा था, क्योंकि बहुत से विषय पढ़ाने के लिए अध्यापकों का अभाव है. ऐसे में ऐसे सेमिनार उन छात्रों के लिए बहुत फ़ायदेमंद होते जो शहरी पर्यावरण की पढ़ाई करते है. हालांकि, पक्षपात से फ़ायदा पहुंचाने के मौजूदा माहौल और अच्छी शिक्षा को लेकर सोच की कमी ने एक बिल्कुल ही अप्रासंगिक विभाग को ICSSR से मेलजोल करने को मजबूर कर दिया.
इस संघर्ष का घाटी की शिक्षा व्यवस्था पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ा है, जिससे मानवीय पूंजी और आर्थिक विकास की प्रगति को बाधित किया है. आतंकवादियों और सरकार विरोधी ताक़तों ने स्कूल जला डाले. अलगाववादी बार बार हड़ताल का आह्वान करते और पथराव के लिए उकसाते है.
कई दशकों से पाकिस्तान के समर्थन से जारी उग्रवाद हज़ारों लोगों की जान ले चुका है. इसने लोगों को मनोवैज्ञानिक सदमा पहुंचाया है, और सरकार के सामान्य कामकाज को भी तबाह कर दिया है. इस संघर्ष का घाटी की शिक्षा व्यवस्था पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ा है, जिससे मानवीय पूंजी और आर्थिक विकास की प्रगति को बाधित किया है. आतंकवादियों और सरकार विरोधी ताक़तों ने स्कूल जला डाले. अलगाववादी बार बार हड़ताल का आह्वान करते और पथराव के लिए उकसाते है. इसके बाद सरकार द्वारा लगाए जाने वाले कर्फ्यू और सुरक्षा के सख़्त उपायों ने छात्रों को महीनों और बरसों तक शिक्षण संस्थानों से दूर रखा.
इसके बाद पाकिस्तान से समर्थन पाने वाले अलगाववादियों और क्षेत्रीय सियासी नेताओं ने प्राइमरी से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर तक छात्रों में अलगाववाद की भावना भड़काने के लिए अपने लोगों को भर्ती किया. भयंकर भाई-भतीजावाद और अवैध नियुक्तियों ने शिक्षण संस्थानों को अलगाववाद के अड्डे बना डाला. इसके अलावा युवाओं में सरकार विरोधी जज़्बात भरे गए. शिक्षा के बिगड़ते माहौल और बड़े पैमाने पर हिंसा और संघर्ष ने लोगों के बीच सामाजिक मनोवैज्ञानिक सदमे के भाव को और गहरा कर दिया और इससे हज़ारों छात्रों का जीवन बर्बाद हो गया.
दु:ख की बात ये है कि धारा 370 हटाए जाने के बाद भी इस परेशान करने वाली स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. अप्रैल 2022 में कश्मीर यूनिवर्सिटी के राजनीति विभाग के प्रमुख ने अपने भतीजे के साथ मिलकर सोशल साइंस विभाग के डीन पर हमला किया और छात्रों के सामने ही दोनों बड़ी देर तक लड़ते और गाली-गलौज करते रहे. यूनिवर्सिटी कैंपस के भीतर घटी इस शर्मनाक घटना ने अकादमी तबक़े के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष को उधेड़कर रख दिया. हालांकि, इस मुद्दे को हल करने के लिए दख़ल देने के बजाय यूनिवर्सिटी प्रशासन ने विवाद सुलझाने के लिए एकदम अकल्पनीय क़दम उठाया और वनस्पति विज्ञान के एक प्रोफ़ेसर को सामाजिक विज्ञान विभाग का प्रमुख नियुक्त कर दिया. एक और हैरान करने वाली घटना तब देखने को मिली जब इसी साल फ़रवरी महीने में कॉलेज के दो प्रोफ़ेसर्स को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 60 हज़ार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ़्तार कर लिया. इनमें से एक तो कॉलेज के प्रिंसिपल थे.
उच्च शिक्षा व्यवस्था में कई प्रोफेसर और प्रशासक अलगाववादी विचारधारा से मिले हुए है और फंड की धोखाधड़ी में संलिप्त हैं, जिससे राष्ट्रीय आकांक्षाओं को चोट पहुंचती है. अध्यापकों को केवल मोटी तनख़्वाह में दिलचस्पी है और उन्हें अकादमी कामों और पढ़ाने का कोई ख़याल नहीं रहता.
उच्च शिक्षा व्यवस्था में कई प्रोफेसर और प्रशासक अलगाववादी विचारधारा से मिले हुए है और फंड की धोखाधड़ी में संलिप्त हैं, जिससे राष्ट्रीय आकांक्षाओं को चोट पहुंचती है. अध्यापकों को केवल मोटी तनख़्वाह में दिलचस्पी है और उन्हें अकादमी कामों और पढ़ाने का कोई ख़याल नहीं रहता. अध्यापकों का ये अनदेखी वाला रवैया उस वक़्त सामने आ गया, जब छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रशासन ने उन्हें शाम की क्लास के साथ पूरक कक्षाएं लेने के लिए अधिक पैसे देना शुरू किया. ज़्यादा पैसे लेने के बाद भी अध्यापकों ने दूसरे सत्र में कभी भी नहीं पढ़ाया. या तो वो दोनों सत्र के छात्रों को मिलाकर पढ़ाते या फिर अपने काबिल छात्रों को ही क्लास लेने को कह दिया करते थे.
इसका नतीजा ये हुआ कि कश्मीर में जो पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है, वो न तो राष्ट्रवादी है और न ही बाज़ार की ज़रूरतें पूरी करने वाला है. इससे तो शिक्षा का बुनियादी मक़सद ही हल नहीं हो पाता. भयंकर भ्रष्टाचार और अलगाववादी प्रवृत्तियों के कारण ऐसे लोगों को नौकरियां दे दी गई है, जो उस पद के उपयुक्त नहीं है और नाकारे लोग है. इससे सामाजिक आर्थिक विकास की संभावना रखने वाले काबिल लोगों को हाशिए पर धकेल दिया गया है और जम्मू-कश्मीर में बेरोज़गारी की दर भी बहुत बढ़ गई है. जम्मू-कश्मीर के पढ़े लिखे नौजवानों द्वारा चयन की ग़लत प्रक्रियाओं और भ्रष्ट भर्ती कंपनियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करना तो आम बात हो गई है. अक्टूबर 2022 में क्षेत्र की बेरोज़गारी दर 22.2 प्रतिशत पहुंच गई थी, जो पूरे भारत में सबसे ज़्यादा है. इससे लोकसभा में सरकार के उस दावे की पोल खुल गई थी कि जम्मू-कश्मीर में बेरोज़गारी में कमी आई है. शिक्षण संस्थाओं में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद ने समाज को इस हद तक गिरा दिया है कि ज़्यादातर सरकारी नौकरियां बेची जाती है. इस वक़्त सीबीआई जम्मू-कश्मीर में सभी सरकारी और अर्ध सरकारी भर्तियां करने वाली जानी मानी संस्थान जम्मू-कश्मीर सेवा चयन बोर्ड में गड़बड़ियों की पड़ताल कर रही है. जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने भी स्वास्थ्य और स्वास्थ्य शिक्षा विभाग में 2274 अवैध भर्तियों की जांच के लिए एक समिति बनाई है.
केंद्र सरकार कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद पर काफ़ी हद तक क़ाबू पाने में सफल रही है; हालांकि इस क्षेत्र की संघर्ष की शिकार शिक्षा व्यवस्था में गंभीरता से दखल देने की ज़रूरत है. शिक्षा के गिरते माहौल को सुधारते के लिए लक्ष्य आधारित उपाय करने की आवश्यकता है जिससे संघर्ष पर चलने वाले समाज का आर्थिक और वैचारिक परिवर्तन करके उसे भारत के बाक़ी हिस्सों से और अधिक एकीकृत और जोड़ा जा सका. उपराज्यपाल के प्रशासन को चाहिए कि वो शिक्षा व्यवस्था को प्राथमिकता देकर उसे बाज़ार की ज़रूरतों के अनुरूप बनाएं और युवाओं के कौशल विकास के अवसरों में वृद्धि करें. जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश को चाहिए कि विशेषज्ञता वाले ऐसे कॉलेज स्थापित करे जहां औद्योगिक विशेषज्ञ, इस क्षेत्र की ज़रूरत के हिसाब से खास विषय की शिक्षा दें. मिसाल के तौर पर चूंकि कश्मीर का मुख्य उद्योग पर्यटन
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
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