Author : Soumya Bhowmick

Published on Oct 14, 2021 Updated 14 Days ago

महामारी की वजह से उपजी विषम परिस्थिति से गुजरता राष्ट्र : अर्थव्यवस्था ने भी इस दौरान अपने हिस्से की सीख प्राप्त की.

अगले दस सालों के लिए पाँच ट्रैक: क्या ये भारत का दशक होगा?

साल 2020 में जहां सम्पूर्ण विश्व ने जीवन और आजीविका के क्षेत्र में अभूतपूर्व बाधाओं का सामना किया, वहीं भारत भी उनसे अछूता नहीं रहा. हालांकि, भारत की अर्थव्यवस्था अपनी सुदृढ़ लोकतान्त्रिक व्यवस्था और मजबूत भागेदारी पर आधारित रही है, के बावजूद इनमें काफी महत्वपूर्ण जोख़िम अब भी उपलब्ध है. एक तरफ जहां भारत पहले से अपने यहाँ बढ़ती बेरोजगारी कि समस्या से जूझ रहा था, तब, सन्  2020 में आई महामारी और उसके उपरांत लागू हुई लॉकडाउन ने भारत की रोजगार बाजार की खस्ता हालत को उजागर कर दिया. इसके साथ ही, और भी कई ज्वलंत मुद्दे जैसे घटती खपत की मांग, आर्थिक समावेश की कमी, ख़राब कौशलस्तर, ईंधन की  बढ़ती कीमतें, और महिलाओं में श्रम बल प्रतिनिधित्व की कमी आदि आज भारत के विकास गाथा की राह में सबसे बड़ी बाधा है.

एक तरफ जहां देश महामारी से उत्पन्न कठिनाइयों से जूझ रहा था, तो साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को भी अपने हिस्से की सीख मिली. उद्योगों के अपार लचीलेपन के कारण और नए एवं सामान्य परिस्थितियों का सृजन कर पाने की क्षमता की वजह से , काफी लोगों को विश्वास है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वापस से उबरने की राह पर चल  पड़ी है और शीघ्र ही वो पुनःविश्व में तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरेगी. यह लेख मुख्य रूप से उन 5 परस्पर पथ के बारे में चर्चा करेगी, जो ‘कार्यवाही के दशक’ के अंतर्गत, भारत की आर्थिक प्रमुखता को परिभाषित करेगी.

1. ‘विश्व की फार्मेसी ’

2001 अतीत का पुनरावलोकन . अफ्रीका जब प्रमुख स्वास्थ्य संकट से गुजर रहा था, उस वक्त अकेले अफ्रीका के उप –सहारा क्षेत्र में ही सिर्फ  2 करोड़ 30 लाख से भी ज़्यादा एच.आई. व्ही. पाज़िटिव मरीज़ पाए गए थे. उस वक्त पश्चिमी दवा कॉम्पनियों द्वारा ही मुहैया करवाए गए पेटेंटेड दवाओं की कीमत, प्रति मरीज़ ही सिर्फ अमेरिकी डॉलर 10000 तक आती थी – और वो एक औसत मरीज़ के पहुँच से बाहर की होती थी – उस वक्त वर्तमान कीमत से 125 प्रतिशत से भी कम कीमत में उन्ही दवाओं के समकक्ष की जेनेरिक दवाइयों के साथ इस खेल में सीपला फार्मा की धमाकेदार एंट्री हुई. इसका अनुसरण करते हुए, भारत की अन्य दवा कंपनीयों ने भी आर्थिक रूप से कमजोर अर्थव्यवस्था को काफी सहारा दिया, जिससे वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों की जान बचाई जा सकी. इस वजह से उस दशक के दौरान एड्स से पीड़ित मरीजों के स्वास्थ लाभ में 18 प्रतिशत कि वृद्धि दर्ज हुई.

भारतीय फार्मेसिउटीकल्स सेक्टर, २०० से ज़्यादा देशों मे, अपनी दवाएं निर्यात करती है, और उस तरह से विभिन्न टीकों की वैश्विक मांग का कुल ६२ प्रतिशत पूर्ति, अकेले भारत ही करता है. इसके अलावे भारत , यू.एस. की ४० प्रतिशत और यू. के. के २५ प्रतिशत जेनेरिक दवाएं उत्पाद करके अकेले भारत को सम्पूर्ण विश्व में जेनेरिक दवाइयाँ मुहैया करवाने वाला सबसे बाद देश बनाता है. भारत, सम्पूर्ण विश्व में फर्मासिउटीकल और बायोटेक कार्यक्षमता प्रदान करने वाला, दूसरा सबसे बड़ा देश है. 2018 के बाद, साल दर साल 9.8 प्रतिशत की दर से विकास दर्ज करते करते , भारतीय फर्मासिउटीकल उद्योग आज 2019 तक की कुल वार्षिक टर्न ओवर यू. एस. डॉलर 20.03 बिलियन तक की हो गई है; यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की आज भारत ‘विश्व फार्मेसी का बाजार’ बन चुका है.

जबसे कोविड 19 के फलस्वरूप महामारी की स्थिति के बाद से, देश वेकसीन डिप्लोमसी को मोहरे के तौर पर तोलता रहा है, भारत ने ना केवल कई देशों को हाइड्रोक्लोरोक्वीन मुहैया करा रहा है, बल्कि उसने कोविड-19 वैक्सीन विशिष्ट संपत्ति के अधिकार (the temporary suspension of COVID-19 vaccine intellectual property rights) को भी अस्थाई तौर पर निरस्त कर दिया है, ताकि नए वेकसीन को जेनेरिक तरीकों से उत्पादित किया जा सके. आशा की जाती है कि भारत सन 2021 तक कुल 3.5 बिलियन कोरोनावायरस वेकसीन बना पाएगा. एक तरफ जहां ख़ुद की जनसंख्या के लिए भारत को मात्र बिलियन टीकों की खुराक की जरूरत है, वही, अपने पड़ोसी देशों  जैसे नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान, सेशेल्स और मॉरीशस को अपनी अनुदान सहायता कार्यक्रम के अंतर्गत 20 मिलियन खुराक प्रदान करने की योजना रखता है. अन्य देश, जिन्होंने भारत के साथ- सरकार से सरकार वेकसीन समझौता किया है, उन्हे भी शीघ्र ही वेकसीन मुहैया करवायी जाएगी. इसलिए इस बात में कोई शक नहीं है कि भारत अगले कुछ वर्षों मे, जल्द ही सम्पूर्ण विश्व में कोविड डिप्लोमसी के नए माणक स्थापित कर पाएगा और इस महत्वपूर्ण टीकाकरण मुहिम का एक अहम भागीदार  बन जाएगा.  

2. टिकाऊ विकास और व्यापर की सुगमता

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित टिकाऊ विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals (SDGs) को प्राप्त करने का भारतीय उद्देश्य पूर्णरूपरेन संघवाद के प्रकार और शासन पर उसके प्रभाव पर निर्भर करता है. यह काफी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि एस.डी. जी. का प्रसार और प्रचार  एक उचित व्यापार का माहौल बनाने में सफल होता है, और अपने पूर्ण मानवीय, सामाजिक, प्राकृतिक और भौतिकी परिवेश में और ज़्यादा विदेशी निवेश को आकर्षित कर पाने में सफल होगा. ठोस सांख्यिकी आँकड़े, प्रमाणित करते है कि, भारतीय राज्यों में प्रवाहित होने वाली व्यापार की सुगमता (EDB)सूचकांक, और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की वजह से भारतीय राज्यों के अनुपात मे, राज्यों के  एस.डी.जी. स्कोर में काफी सकारात्मक करणीय संबंध बने है’हाल के वर्षों मे, भारतीय एस.डी. जी.(SDG) और ई.डी.बी. (EDB) में एक स्थिर बढ़त दर्ज की गई है – एस. डी. जी. स्कोर में 2016 में 48.4 प्रतिशत से 2020 में 61.9 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई है, जबकि उसी समय, देश ने अपने ईडीबी रैंकिंग में जबरदस्त उछाल दर्ज करते हुए, कुल 190 देशों के बीच, 130वे स्थान से 63वें पायदान की छलांग लगायी. एक तरफ जहां ये  माना जाता है की ये संकेत कोई आदर्श मानक नहीं है, फिर भी कोई शक नहीं, की आगामी वर्षों मे, भारतीय ट्रेंड, एक समावेशित व्यापारिक माहौल बनाने और विदेशी फंड को आमंत्रित करने के लिए, एक अच्छा संकेटसूचक अवश्य है.

3. ‘सुपर स्टार’ सेक्टर

इस महामारी ने भारत के वैश्विक स्तर पर एक विशाल उत्पादक हब बनने की संभावना को काफी प्रबल बना दिया है. मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे प्रभावशाली पहल की बदौलत, सरकार ने भारत के प्रतिस्पर्धी श्रम लागत और  विश्वसनीय आपूर्ति के साथ मजबूत आई.टी. कौशल आधार और कुशल परिवहन आधारभूत संरचना को एक सीरे से जोड़ पाने में सफल हुई  है. छोटे छोटे भारतीय शहरों में स्थापित कीये गए तकनीक पर आधारित मूल्य शृंखला से लेकर छोटे छोटे शहरों मे, औरतों द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूह (SHG’s) में उत्पाद कीये जाने वाले फेस मास्क से लेकर सेनीटाइज़र तक की मदद से – भारतीय अर्थव्यवस्था राष्ट्र के उत्पादन क्षमता को बढ़ा पाने में सफल हुई है.

भारत एक लंबे अरसे से अपने ‘मितव्ययी और मांग संचालित नवीनता’ की वजह से विश्व गुरु बना हुआ है. अपने 50-90 प्रतिशत सस्ती और गुणवत्ता के मामले में अव्वल होने की वजह से भारत ने नवीकरणीय और फर्मासिउटीकल्स के क्षेत्र में एक अति विशालकाय कद बना लिया है. वाहन, एलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और डिजाइन, सड़क और हाइवै मार्ग, और फूड प्रोसेसिंग आदि ऐसे अन्य सुपरस्टार सेक्टर भी है जिन्होंने अपेक्षाकृत बेहतर एवं उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है. नतिजन अब भारत में भी अब नया चलन विकसित हो रहा है और राष्ट्र का निर्यात बाजार अब कच्चे माल और कृषि उत्पाद से, और भी उच्च ज्ञान भागफल आधारित, जटिल उत्पाद की ओर  स्थानांतरित हो रहा है – जो की पहले से ही चली आ रही उन्नत अर्थशास्त्र की आदतन प्रवृत्ति रही है.

अपने 50-90 प्रतिशत सस्ती और गुणवत्ता के मामले में अव्वल होने की वजह से भारत ने नवीकरणीय और फर्मासिउटीकल्स के क्षेत्र में एक अति विशालकाय कद बना लिया है.

4. विदेशी निवेश

पिछले कई वर्षों से, इस बात पर काफी चर्चा हो रही है कि भारत किस तरह से उन उद्योग घरानों को अपने देश में निवेश के लिए आमंत्रित कर सकता है, जो किसी भी तरह से चीन से निकलने को इच्छुक है. शुरुआत में तो चीन में आर्थिक बदलाव जैसे बढ़ती श्रम लागत, और गुणवत्ता में कमी जैसी खामियों ने इस चर्चा को अपनी प्रेरणा प्रदान की. किन्तु अब, यू.एस., जर्मनी और जापान जैसी ज़्यादातर विकसित आर्थिक ताकतें, महामारी की वजह से प्रभावित हुई सप्लाई चेन और यू. एस. – चीन के बीच व्याप्त व्यापार युद्ध, की वजह से भी चीन के ऊपर अपनी निर्भरता को कम करने को इच्छुक है, तो ये भारत के लिए स्वर्णिम अवसर है जब वो विदेशी फंड को अपने देश में आमंत्रित कर सकती है.

इसलिए ही विदेशी मुद्रा के आने के रास्ते खोलने को आतुर, केंद्र ने विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेप के विकल्प की शुरुआत की है, जैसे स्वाभाविक रूट के अंतर्गत अनुबंधित विनिर्माण में 100 प्रतिशत की एफ़डीआई जारी की है, चार श्रम धारा अंतर्गत मजदूरी कानून का मजबूटिकरण, विदेशी कॉम्पनियों के लिए 461,589 हेक्टेयर की जमीन पूल का प्रावधान, और नई स्थापित उत्पादक कंपनीयों कॉर्पोरेट टैक्स दर में 15 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान. जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न औद्योगिक संस्था जैसे एप्पल, हार्ले डेविडसन, स्केचर्स और वों वेलक्स ने, महामारी के दौरान, अपनी उत्पादन यूनिट को चीन से भारत स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है.

5. उप-क्षेत्रवाद

तमाम आर्थिक और राजनीतिक अवरोधों के बावजूद, पिछले दो दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में छह गुणा वृद्धि हुई है – जो कि यूएस डालर आधा ट्रिलियन जैसी मामूली जीडीपी  से लगभग यूएस डॉलर 2.7 ट्रिलियन तक की हो गई है. इसके अलावा, भारत के पास विश्व भर में सबसे मौलिक रूप से मजबूत इनपुट और आउट्पुट बाजार है, और विभिन्न कार्य कुशलता के क्षेत्र में एक अति विशाल मानव संसाधन होने की वजह से भी, भविष्य मे,भारत ही वो बाजार है, जिसपर सारी दुनिया की नजर रहेगी.

इसलिए, चीन के बेल्ट और सड़क परियोजना (BRI) के प्रति भारत का संदेह, एक ऐसा मजबूत संकेत सूचक है कि अब राष्ट्र अपने बाजार के आधार और क्षेत्रीय संप्रभुता को पूरी सक्षमता और पूर्ण आक्रामकता के साथ सुरक्षित रखना चाहता है. इसके साथ ही, भारत ख़ुद से उप-प्रांतीय समूहों जैसे एसियन (ASEAN) और बिमस्टेक (BIMSTEC)  के साथ संवाद की स्थिति में इस उम्मीद से जा रहा है ताकी प्रांतीय व्यापारिक भागेदारी को और ज़्यादा प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इन प्रांतों को भौतिकी संपर्क से जोड़ा जा सके.

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