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व्यापक सामरिक साझेदारी के तहत दोनों देशों ने साइबर और साइबर संबंधी अहम तकनीक के क्षेत्र में सहयोग को भी शामिल किया है.
10 जून को भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रतिनिधियों की मुलाक़ात हुई जिससे दोनों देश साइबर सुरक्षा सहयोग का संवाद शुरू करने के लिए साझा कार्यकारी समूह (JWG) गठित कर सकें. ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप की इस बैठक से व्यापक सामरिक साझेदारी के एक पहलू पर आगे बढ़ने की शुरुआत हुई. भारत और ऑस्ट्रेलिया ने पिछले साल जून में इस व्यापक सामरिक साझेदारी पर दस्तख़त किए थे. इस व्यापक सामरिक साझेदारी का मक़सद कोविड-19 से निपटने के लिए क्षेत्रीय समन्वय स्थापित करना, और तकनीकी, क्षेत्रीय, समुद्री और आर्थिक क्षेत्रों में लंबी अवधि के लिए द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत बनाना है. व्यापक सामरिक साझेदारी के तहत दोनों देशों ने साइबर और साइबर संबंधी अहम तकनीक के क्षेत्र में सहयोग को भी शामिल किया है. दोनों देशों ने अहम और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण खनिजों के खनन और उनके प्रसंस्करण के क्षेत्र में सहयोग के लिए भी एक सहमति पत्र पर दस्तख़त किए थे. ये सहमति पत्र विज्ञान, तकनीक और अनुसंधान में आपसी सहयोग बढ़ाने से जुड़ा हुआ है. अब जबकि भारत और ऑस्ट्रेलिया साइबर नीति पर बातचीत करने की तैयारी कर रहे हैं, और सूचना, संचार व तकनीक के क्षेत्र में ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप की पहली बैठक भी होने वाली है तो, इस लेख में हम उन बातों पर चर्चा करेंगे कि किस तरह ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी से भारत की साइबर सुरक्षा संबंधी क्षमताओं को मज़बूत किया जा सकता है. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के वैश्विक प्रशासन में भारत के प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है और अहम खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका में इज़ाफ़ा किया जा सकता है.
किसी देश की सरकार के समर्थन से होने वाले ऐसे साइबर हमलों से किसी भी देश की गतिविधियां रोकी जा सकती हैं. इसीलिए आपसी सहयोग से ऐसे साइबर हमले रोकने के तकनीकी समाधान तलाश करना बहुत अहम हो जाता है.
नवंबर 2020 में महाराष्ट्र के बेहद महत्वपूर्ण ऊर्जा ढांचे को निशाना बनाकर बेहद जटिल साइबर हमला किया गया था. ऑस्ट्रेलिया भी अपने अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ऐसे ही शायद चीन से होने वाले साइबर हमलों का निशाना बना है. इन साइबर हमलों के चलते ऑस्ट्रेलिया की सरकार और उसकी अस्पताल जैसी ज़रूरी सेवाओं के कामकाज पर बुरा असर पड़ा है. किसी देश की सरकार के समर्थन से होने वाले ऐसे साइबर हमलों से किसी भी देश की गतिविधियां रोकी जा सकती हैं. इसीलिए आपसी सहयोग से ऐसे साइबर हमले रोकने के तकनीकी समाधान तलाश करना बहुत अहम हो जाता है. जैसा कि ऑस्ट्रेलिया की साइबर सुरक्षा रणनीति 2020 में कहा गया था, ऑस्ट्रेलिया की सरकार साइबर हमले करने वालों की जवाबदेही तय करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साझीदारों की तलाश कर रही है, जिनकी मदद से ऐसे हमले रोकने के लिए काम करने वाली एजेंसियों के बीच अंतरराष्ट्रीय साझेदारी विकसित की जा सके. ऑस्ट्रेलिया और भारत आपसी सहयोग से सरकार समर्थित ऐसे साइबर हमलों का डेटाबेस तैयार कर सकती हैं, जिनकी मदद से इन हमलों के स्वरूप, उनके लक्ष्य और अपनी कमज़ोरियों का पता और प्रभावी ढंग से लगाया जा सके. इस डेटाबेस का इस्तेमाल विशेषज्ञों का एक ख़ास समूह कर सकेगा, जो दोनों देशों के साझा कार्यकारी समूह का हिस्सा होंगे, जो साइबर हमले रोकने के प्रबंधन से जुड़े होंगे.
ऑस्ट्रेलिया ने 2020 में अपने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से जुड़े नैतिक नियमों को जारी किया था. इसी तरह भारत के नीति आयोग ने भी जवाबदेह आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के सिद्धांत 2021 की शुरुआत में जारी किए थे. दोनों देशों को आपस में मिलकर इस बात का आकलन करना होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े उनके प्रस्तावित नैतिक नियमों में कौन सी बातें एक जैसी हैं और क्या कमियां हैं. इसकी मदद से दोनों देश आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के विकास और उनके इस्तेमाल के ठोस प्रोटोकॉल तय कर सकेंगे. वैसे तो दोनों देशों द्वारा जारी एआई के नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों जैसे कि निष्पक्षता, पारदर्शिता, और व्यवहारिकता में काफ़ी समानताएं देखने को मिलती हैं. वहीं, ऑस्ट्रेलिया ने अपने फ्रेमवर्क में, ‘विवाद के सिद्धांतों’ का भी हवाला दिया है. एक जैसे मानक होने से दोनों देश सूचना की असमानता से जुड़े नियमों की बाधाओं से आसानी से पार पा सकेंगे. क्योंकि कुछ नैतिक मानक तो बनाए रखने ज़रूरी होंगे. पर पहले कई बार ऐसे मानक स्टार्ट अप कंपनियों द्वारा अपने बाज़ार का विस्तार कर पाने की राह में बाधा बन चुके हैं. अगर दोनों देश अपने नियमों को एक दूसरे से मेल खाने वाला बना लेंगे, तो इससे दोनों देशों के बीच विशेषज्ञता और डेटा का लेन देन आसानी से हो सकेगा.
भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिए कुछ नीतिगत जोखिमों और प्राथमिकताओं को लेकर आम सहमति बनाना मुश्किल होगा, क्योंकि दोनों देश विकास के अलग अलग स्तर पर हैं. इससे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल के अलग अलग मक़सद देखने को मिल सकते हैं. उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया दूसरे या तीसरे दर्जे के आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके अपने यहां शिक्षा को बेहतर बनाना चाहेगा. वहीं भारत चाहेगा कि वो अपने नागरिकों की डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ा सके. दोनों देशों के अकादेमिक क्षेत्र, उद्योग और समाज से जुड़े भागीदार इस मामले में ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप को आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल की प्राथमिकताएं तय करने में मदद कर सकते हैं.
भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिए कुछ नीतिगत जोखिमों और प्राथमिकताओं को लेकर आम सहमति बनाना मुश्किल होगा, क्योंकि दोनों देश विकास के अलग अलग स्तर पर हैं. इससे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल के अलग अलग मक़सद देखने को मिल सकते हैं.
अधिक विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत और ऑस्ट्रेलिया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल में काफ़ी पीछे चल रहे हैं. विकास के किन क्षेत्रों में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करना है, इस बारे में विकसित देशों को शायद कहने का ज़्यादा अधिकार मिले और वो शायद नैतिकता को उतनी तरज़ीह न दें. ऐसे में दोनों देश अगर अपनी व्यापक सामरिक साझेदारी के तहत आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से जुड़े नैतिक मानकों की पहचान कर लेगें, तो विश्व स्तर पर एआई के प्रशासन में उनकी आवाज़ को मज़बूती मिलेगी. वो ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन एआई के मंच पर ज़िम्मेदार एआई और डेटा के प्रशासन से जुड़ी बातचीत की अगुवाई कर सकेंगे. इससे दोनों देशों को तमाम क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने के समझौते को साकार करने का मौक़ा भी मिलेगा. फिर दोनों देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में दुनिया भर में अगुवा के रूप में स्थापित हो सकेंगे.
भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का उद्योग बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है. भारत के कई राज्यों ने इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उद्योग को बढ़ावा देने की नीतियां या तो जारी की हैं या लागू कर दी हैं. इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने के लिए जो कच्चा माल चाहिए, उसमें ऊर्जा के लिए लिथियम आयन बैटरी की ज़रूरत होती है. हाल के वर्षों तक भारत लिथियम आयन बैटरियां चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से आयात कर रहा था. पिछले साल गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत ने चीन से होने वाले लिथियम के आयात पर व्यापार कर बढ़ा दिया है.
दोनों ही देशों ने पहले भी व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते पर बातचीत की है. लेकिन, 2015 में ये वार्ता पटरी से उतर गई थी. क्योंकि, भारत से व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रेलिया, चीन के ख़िलाफ़ खुलकर अपने इरादे ज़ाहिर नहीं करना चाहता था.
अब लिथियम के आयात के लिए भारत की उम्मीदें ऑस्ट्रेलिया पर टिकी हैं. इस समय भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच जितना व्यापार हो सकता है, उतना हो नहीं रहा है. अब ऑस्ट्रेलिया भी लिथियम के निर्यात का अपना बाज़ार बढ़ाना चाह रहा है, क्योंकि वो केवल चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहता. भारत और ऑस्ट्रेलिया ने अपनी व्यापक सामरिक साझेदारी के तहत, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण खनिजों के खनन और प्रॉसेसिंग के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक सहमति पत्र पर दस्तख़त करने की योजना बनाई है. इस साझेदारी से दो देशों को व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता करने का मौक़ा भी मिलेगा, जिससे दोनों देशों में निवेश को बढ़ावा मिलेगा. दोनों ही देशों ने पहले भी व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते पर बातचीत की है. लेकिन, 2015 में ये वार्ता पटरी से उतर गई थी. क्योंकि, भारत से व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रेलिया, चीन के ख़िलाफ़ खुलकर अपने इरादे ज़ाहिर नहीं करना चाहता था. दोनों देशों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते की शुरुआत, प्रॉसेस किए गए तत्वों पर टैक्स संबंधी रियायतें देकर हो सकती है. इससे भारत के निजी क्षेत्र में दुर्लभ खनिज तत्वों में टिकाऊ निवेश को बढ़ावा मिलेगा. कई भारतीय कंपनियों ने हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया में तकनीकी समाधान के क्षेत्र में काफ़ी पूंजी निवेश किया है.
कई वर्षों से लंबी अवधि की साझेदारी बनाने की कोशिशों को टालते रहने के बाद, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने कोविड-19 संकट और चीन- अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध के मौक़े का फ़ायदा उठाकर कई क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाया है. ऊपर जिन प्रस्तावों का ज़िक्र किया गया है, उन्हें अपनाकर दोनों देश साइबर सुरक्षा और ऑर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के प्रशासन में तकनीकी सहयोग करें, और अहम खनिजों के व्यापार का विस्तार करें, तो ऑस्ट्रेलिया और भारत, हिंद प्रशांत में क्षेत्रीय सहयोग की नई मिसाल बनकर उभर सकते हैं.
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