Author : Soumya Bhowmick

Published on Sep 25, 2023 Updated 0 Hours ago

चीन के साथ बढ़ते व्यापारिक रिश्तों के मद्देनज़र भारत को अल्प-कालिक रुकावटों के निपटारे और दीर्घ-कालिक लक्ष्यों की पड़ताल के बीच संतुलन बिठाना होगा.

लड़खड़ाता ड्रैगन: चीनी अर्थव्यवस्था की सुस्त चाल, वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारत के लिए ज़रूरी सवाल

नॉमिनल GDP के हिसाब से चीन, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. साथ ही क्रय शक्ति समानता के हिसाब से उसने 2016 से सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा बनाए रखा है. वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 19 प्रतिशत के अहम योगदान के साथ चीन की आर्थिक सेहत सिर्फ़ उसकी अपनी समृद्धि के लिए ही अहम नहीं है, बल्कि पारस्परिक जुड़ावों वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी इसके दूरगामी प्रभाव हैं. इस कड़ी में व्यापक अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं- श्रीलंका और पाकिस्तान के उदाहरण ख़ास हो जाते हैं, जो ज़बरदस्त आर्थिक गिरावट का सामना कर रहे हैं. श्रीलंका ने 2022 में स्पष्ट आर्थिक पतन का सामना किया और चीन की ‘कर्ज़ के जाल में फंसाने वाली कूटनीति’ का शिकार बन गया. जबकि पाकिस्तान, चीन द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की वजह से चीन के भारी कर्ज़ों के बोझ तले दब गया है.

हिंद-प्रशांत के अधिकांश देशों के साथ चीन के गहरे अंतर-संबंधों का क्षेत्रीय मूल्य नेटवर्कों के भीतर इसकी केंद्रीय भूमिका के पीछे हाथ बताया जा सकता है. ये प्राथमिक बाधा, इस क्षेत्र के देशों को अपने व्यापार और निवेश संबंधों में विविधता हासिल करने से रोकती है.

हिंद-प्रशांत के अधिकांश देशों के साथ चीन के गहरे अंतर-संबंधों का क्षेत्रीय मूल्य नेटवर्कों के भीतर इसकी केंद्रीय भूमिका के पीछे हाथ बताया जा सकता है. ये प्राथमिक बाधा, इस क्षेत्र के देशों को अपने व्यापार और निवेश संबंधों में विविधता हासिल करने से रोकती है. ख़ासतौर से चीन पर निर्भरता से दूर जाने की क़वायदों में ये हालात अड़चन बन जाते हैं. इस सिलसिले में हम ऑस्ट्रेलियाई कृषि उत्पादों की मिसाल ले सकते हैं. वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVCs) के साथ ज़बरदस्त जुड़ावों वाले ऑस्ट्रेलियाई कृषि उत्पादों में भी आयात के एक बड़े हिस्से का स्रोत चीन है.

चित्र 1: हिंदप्रशांत के प्रमुख देशों के साथ चीन की व्यापार मात्रा (अरब अमेरिकी डॉलर में)

स्रोत: ख़ुद लेखक के, विश्व बैंक के वर्ल्ड इंटीग्रेटेड ट्रेड सॉल्यूशंस (WITS) से हासिल डेटा

चीन के आर्थिक तनाव और उनके वैश्विक प्रभाव

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर निराशाजनक आंकड़ों की पूरी श्रृंखला और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा ग्रेड घटाए जाने से चीन की आर्थिक चुनौतियां उभरकर सामने आई हैं. ये तमाम घटनाक्रम, व्यापक अर्थव्यवस्था में चिंताजनक लक्षणों से जूझ रहे देश की तस्वीर पेश करते हैं. हाल के महीनों में, कोविड के प्रकोप के बाद चीन के आर्थिक उभार ने लड़खड़ाहट के संकेत दिखाए हैं. जून 2023 में युवा बेरोज़गारी चिंताजनक रूप से 21.3 प्रतिशत तक बढ़ गई, जबकि 2023 की पहली और दूसरी तिमाही के बीच अर्थव्यवस्था में महज़ 0.8 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई.

चीनी अर्थव्यवस्था संकुचनकारी (डिफ्लेशनरी) दबावों से जूझती आ रही है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) और उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI), दोनों में गिरावट से इसके प्रमाण मिलते हैं. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ने जुलाई 2023 में साल-दर-साल के हिसाब से 0.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की, जो फरवरी 2021 के बाद इसकी पहली गिरावट है. इसके अलावा, PPI में लगातार दसवें महीने गिरावट का दौर देखा गया. इसमें 4.4 प्रतिशत की कमी आई, जो 4.1 प्रतिशत की अनुमानित गिरावट को पार कर गई. ये आंकड़े उस आर्थिक तनाव को बेपर्दा करते हैं, जिससे चीन फ़िलहाल जूझ रहा है.

घरेलू स्तर पर परिवारों की खपत को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करने की बजाए चीन इन दो क़वायदों पर ज़्यादा ज़ोर देता रहा है. इस व्यापक आर्थिक रणनीति के चलते एक नाज़ुक संतुलन बना है और इसका असर चीन की सीमाओं और वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर महसूस किया जा रहा है. 

चीन की मौजूदा आर्थिक स्थिति के लिए ज़िम्मेदार प्राथमिक कारकों में कर्ज़ से संचालित निवेश पर निर्भरता और प्रॉपर्टी मार्केट पर ज़ोर देना शामिल है. घरेलू स्तर पर परिवारों की खपत को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करने की बजाए चीन इन दो क़वायदों पर ज़्यादा ज़ोर देता रहा है. इस व्यापक आर्थिक रणनीति के चलते एक नाज़ुक संतुलन बना है और इसका असर चीन की सीमाओं और वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर महसूस किया जा रहा है. इन चुनौतियों को देखते हुए, चीन की वित्तीय सेहत और उसके बाद भारत समेत उसके तमाम व्यापारिक साझेदारों पर पड़ने वाले प्रभाव पर सावधानीपूर्वक विचार किए जाने की आवश्यकता है.

भारतचीन व्यापार से जुड़े समीकरण

साल 2022, भारत-चीन व्यापार में प्रभावशाली मील का पत्थर साबित हुआ. पिछले साल द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा, रिकॉर्ड 135.98 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई. मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध से पैदा तनावों के बावजूद ये उपलब्धि हासिल हुई. 2022 के व्यापार आंकड़ों ने 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाई, जो 2021 के 125 अरब अमेरिकी डॉलर के आंकड़े से भी आगे निकल गई. जैसे-जैसे ये आर्थिक साझेदारी फल-फूल रही है, दो अहम घटनाक्रमों के व्यापक आर्थिक प्रभाव के संबंध में विश्लेषण किया जाना ज़रूरी हो जाता है.

जुलाई 2023 में चीन ने गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात पर नियंत्रण लागू करने का निर्णय किया. चीन का ये फ़ैसला आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटें डालकर संभावित रूप से भारत के उद्योगों में अल्पकालिक अड़चनें पैदा कर सकता है. सेमीकंडक्टर क्षेत्र से जुड़ी भारत की योजनाएं और उद्योग, विशेष रूप से असुरक्षित हैं. इन पर निर्यात नियंत्रण का कुप्रभाव पड़ सकता है. इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे उत्पादों में चिप्स के व्यापक उपयोग के मद्देनज़र, गैलियम और जर्मेनियम की क़ीमतों में बढ़ोतरी, अर्थव्यवस्था में खलबली मचा सकती है. इससे लागत और उपलब्धता दोनों पर मार पड़ सकती है. हालांकि दीर्घकालिक प्रभाव कई कारकों पर निर्भर करेंगे. इनमें घरेलू स्तर पर सेमीकंडक्टर उत्पादन की क्षमताएं, आपूर्ति के वैकल्पिक स्रोत और रणनीतिक गठजोड़ (जैसे नाज़ुक और उभरती टेक्नोलॉजी पर भारत-अमेरिका पहल यानी iCET) शामिल हैं. ये कारक, सामूहिक रूप से भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र के लिए एक स्थिर आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने में योगदान देते हैं.

बहरहाल, चीनी कार्रवाई की प्रतिक्रिया में भारत ने अगस्त 2023 में सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लैपटॉप, टैबलेट और चुनिंदा कंप्यूटरों पर आयात प्रतिबंध आयद कर दिए. ‘मेक इन इंडिया’ पहल के लक्ष्यों के अनुरूप होने के बावजूद भारत के इस क़दम से अल्पकालिक रुकावटें पैदा हो सकती हैं. ये क़वायद, भारत को घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने का मौक़ा देती है, लेकिन संक्रमण काल ​​में नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए सावधानीपूर्वक प्रबंधन किए जाने की दरकार है.

टेबल 1: चीन के साथ भारत का व्यापार (मिलियन अमेरिकी डॉलर में)

चीन को भारतीय निर्यात चीन से भारतीय आयात
जनवरी 2022 जनवरी 2023 वृद्धि/गिरावट जनवरी 2022 जनवरी 2023 वृद्धि/गिरावट
1,273.94 1,154.51 -9.37 9,061.00 7,885.01 -12.98
फरवरी 2022 फरवरी 2023 वृद्धि/गिरावट फरवरी 2022 फरवरी 2023 वृद्धि/गिरावट
1,407.53 1,429.06 1.53 8,568.69 6,968.81 -18.67
मार्च 2022 मार्च 2023 वृद्धि/गिरावट मार्च 2022 मार्च 2023 वृद्धि/गिरावट
1,455.49 1,706.13 17.22 9,137.87 7,789.07 -14.76
अप्रैल 2022 अप्रैल 2023 वृद्धि/गिरावट अप्रैल 2022 अप्रैल 2023 वृद्धि/गिरावट
1,455.18 1,388.19 -4.6 7,941.12 7,499.76 -5.56
मई 2022 मई 2023 वृद्धि/गिरावट मई 2022 मई 2023 वृद्धि/गिरावट
1,618.48 1,283.91 -20.67 7,522.07 8,249.64 9.67
जून 2022 जून 2023 वृद्धि/गिरावट जून 2022 जून 2023 वृद्धि/गिरावट
1,571.59 1,190.03 -24.28 8,844.02 7,849.31 -11.25

स्रोत: ख़ुद लेखक के, भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़े

भारतीय अर्थव्यवस्था को दिशा देना

परंपरागत रूप से भारत-चीन व्यापार नीतियों में बदलाव, अक्सर सरहद पर तनावों से जुड़े कालखंडों के बाद होते रहे हैं. 2020 में भारत द्वारा चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना भी इसी की मिसाल है. हालांकि, मौजूदा संदर्भ इस रुझान से परे जाता है. व्यापार नीतियों में हालिया बदलाव एक ऐसे रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार में चीन की प्रबल स्थिति का प्रतिकार करना है. हालिया सीमा विवादों की ग़ैर-मौजूदगी में, भारत आर्थिक विचारों के आधार पर चीन के साथ अपने व्यापार संबंधों को नए सिरे से व्यवस्थित कर सकता है. इससे अधिक संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी जुड़ावों को बढ़ावा मिल सकता है.

व्यापार संतुलन को फिर से व्यवस्थित करने और समानांतर रूप से घरेलू क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए भारत को एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी. इस दृष्टिकोण के तहत आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना, स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना और रणनीतिक साझेदारियां विकसित करना ज़रूरी हो जाता है.

व्यापार संतुलन को फिर से व्यवस्थित करने और समानांतर रूप से घरेलू क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए भारत को एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी. इस दृष्टिकोण के तहत आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना, स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना और रणनीतिक साझेदारियां विकसित करना ज़रूरी हो जाता है. चीनी आयातों पर निर्भरता कम करके भारत आपूर्ति श्रृंखला में संभावित रुकावटों से ख़ुद को बचा सकता है, और अहम घटकों पर अधिक नियंत्रण भी रख सकता है. इसके साथ ही घरेलू क्षमताओं को आगे बढ़ाने की क़वायद, विनिर्माण और सतत आर्थिक विकास में आत्मनिर्भरता से जुड़े भारत के व्यापक लक्ष्यों के भी अनुरूप हैं.

चीन की आर्थिक चुनौतियां, सीमाओं के आर-पार निकलती हैं, जिससे उसके व्यापार संबंधों (ख़ासकर भारत जैसे देशों के साथ) पर असर पड़ता है. भारत-चीन व्यापार में उछाल, उनकी आर्थिक साझेदारी के महत्व को रेखांकित करता है, जबकि चीन के निर्यात नियंत्रण और भारत की नपी-तुली प्रतिक्रियाएं, इन समीकरणों में पेचीदगियों की परतें जोड़ती हैं. बहरहाल, अल्पकालिक रुकावटों के निपटारे और दीर्घकालिक लक्ष्यों की तलाश के बीच संतुलन क़ायम करने के लिए विवेकपूर्ण निर्णय प्रक्रिया, अंतरराष्ट्रीय सहभागिता और सक्रियतापूर्ण आर्थिक रणनीतियों की दरकार होती है.


सौम्या भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं

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