25 जुलाई को म्यांमार के चार लोकतंत्र समर्थक सदस्यों को फांसी की सज़ा दिए जाने का ऐलान सुनकर दुनिया सदमे में आ गई. दुनिया को हैरत इसलिए हुई कयोंकि सबको यही उम्मीद थी कि म्यांमार के सैन्य तानाशाह, इन चार लोकतंत्र समर्थकों को मिली फांसी की सज़ा को अंजाम नहीं देंगे, क्योंकि उन पर लगातार अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय दबाव पड़ रहा है. दुनिया को लगा था कि पिछले कई दशकों के दस्तूर के मुताबिक़, म्यांमार की जुंता इन लोकतंत्र समर्थकों को उम्र क़ैद की सज़ा ही देगी. लेकिन, इन चारों को फांसी दिए जाने के बाद से ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जो ख़ुद सैन्य शासकों के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.
23 जुलाई को म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के चार अहम कार्यकर्ताओं और सांसदों को जिमी और को फ्यो ज़ेया को सूली पर लटका दिया गया. उनके साथ को ऑन्ग थुरा ज़ॉ और को ह्ला म्यो ऑन्ग को भी इस सैन्य शासकों के ख़िलाफ़ हथियारबंद बग़ावत के जुर्म में फांसी दे दी गई. इन चारों को फांसी दिए जाने से आठ महीने पहले गिरफ़्तार किया गया था और इन पर निष्पक्ष रूप से मुक़दमा भी नहीं चलाया गया. जिन लोगों को फांसी पर लटकाया गया, उनके परिवार के सदस्यों के साथ सैन्य शासकों का बर्ताव भी डरावना था. इससे पहले म्यांमार की जुंता ने जब भी किसी को फांसी की सज़ा दी थी, तब भी उनके परिजनों को पहले जानकारी नहीं दी गई. यहां तक कि इस मामले में भी जब परिवार के सदस्यों ने अपने दिल के टुकड़ों से शुक्रवार यानी 22 जुलाई को बात की थी, तो भी उन्हें ये नहीं बताया गया था कि वो अपने परिजनों से आख़िरी बार बात कर रहे हैं. शनिवार को चारों को फांसी पर लटका दिया गया. इसके बाद उन्हें सूली पर लटकाने की जानकारी, सेना के नियंत्रण वाले अख़बारों के ज़रिए इस तरह दी गई कि अगर भविष्य में किसी सेना से बग़ावत करने का इरादा हो तो वो समझ ले कि उसका अंजाम भी यही होगा.
फाँसी देने को जायज़ ठहराने की कोशिश
म्यांमार के जनरलों को चार लोकतंत्र समर्थकों को सिर्फ़ फांसी पर लटकाने से संतोष नहीं हुआ. इसके बाद, सैन्य शासकों ने भाषण दिया और इस बात पर ख़ास तौर से ज़ोर दिया कि ‘ये चारों क़ैदी कई बार फांसी दिए जाने के हक़दार थे क्योंकि, उन्होंने सैन्य सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत की’ थी. फांसी पर लटकाने के बाद, चारों के शव भी उनके परिवारों को नहीं सौंपे गए और परिजनों से कहा गया कि वो इनके अंतिम संस्कार जैसा कुछ न करें. एक तरह से नई नीच हरकत करते हुए, जुंता ने फांसी पर चढ़ाए गए लोगों पर पत्थर फेंककर उन्हें शर्मिंदा करने की कोशिश की, क्योंकि सज़ा पाने वालों के परिवार के सदस्यों ने मीडिया से बात की थी और कहा था कि उन्हें अपने भाइयों, पतियों या पिताओं की उपलब्धि पर गर्व है और वो उन्हें शहीद मानते हैं. एक और भयावाह हरकत ये हुई कि जुंता ने फांसी पर लटकाए गए लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता को ऑन्ग थुरा ज़ॉ की मां को हिरासत में ले लिया और मीडिया से बात करने को लेकर पूछताछ की. उनके बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है.
सैन्य शासकों के समर्थको ने तो इससे भी आगे बढ़कर फांसी दिए जाने को समर्थन देने के लिए रैलियां आयोजित कीं. म्यांमार के सैन्य शासक पहले भी अपने पक्ष में एकजुटता दिखाने के लिए ऐसे नुस्खे आज़माते रहे हैं. फिर चाहे उन्हें देश के भीतर या बाहर से किसी भी हद तक नाराज़गी या नफ़रत का सामना करना पड़े. वैसे तो जुंता ने कहा है कि अब किसी और को फांसी नहीं दी जाएगी. लेकिन, कम से कम अभी के हालात में तो इस पर यक़ीन नहीं किया जा सकता है.
आपातकाल को बढ़ाने की घोषणा
लोकतंत्र समर्थकों को फांसी देने के बाद, 1 अगस्त को राज्य प्रशासन परिषद (SAC) ने ऐलान किया कि देश में आपातकाल को अगले छह महीनों के लिए और बढ़ाया जा रहा है क्योंकि अन्य लोगों (सेना के ख़िलाफ़ लड़ रहे आतंकवादियों) के चलते देश में अभी भी अस्थिरता का माहौल है. इस बयान में लोकतंत्र को लेकर अपनी ईमानदारी की नुमाइश के तौर पर सैन्य शासकों ने कहा कि वो वास्तविक बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के समर्थक हैं और म्यांमार की जनता की इस ख़्वाहिश को समझते हैं. लेकिन अब देश में लोकतंत्र अनुशासित होगा और उस पर मौजूदा प्रशासन का नियंत्रण होगा.
इस मामले में सैन्य जुंता, देश के राजनीतिक दलों के पंजीकरण के क़ानून में बदलाव करने की योजना बना रही है, जिससे ये सुनिश्चित हो सके कि चुनाव के नतीजे किसी एक पार्टी के हक़ में न जाएं. जिससे किसी एक पार्टी के लिए भविष्य में वैसा विशाल बहुमत हासिल कर पाना असंभव हो जाए, जैसा साल 2015 और 2020 में देखने को मिला था. इस संशोधन से निश्चित रूप से लोकतंत्र समर्थक दलों की भागीदारी सीमित हो जाएगी और एक ऐसी व्यवस्था खड़ी होगी, जिसमें धांधली करके, सत्ता का संतुलन सैन्य शासकों के हक़ में इस तरह बनाए रखा जा सकेगा, जिससे भविष्य में भी सेना ही हुकूमत करती रहे.
साफ़ है कि म्यांमार की सेना देश पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, जिससे इस बार कोई और दल या संस्था सत्ता पर उसकी पकड़ कमज़ोर कर सके या उसे सत्ता से हटा सके. मुमकिन है कि इसीलिए चार लोकतंत्र समर्थको को फांसी दी गई तो इसके पीछे दो कारण रहे होंगे. पहला तो ये कि फांसी देकर, जुंता ने एक संदेश ये दिया है कि वो इंसाफ और सत्ता को लेकर अपनी सोच के हिसाब से ही चलेगी. कितना भी अंतरराष्ट्रीय या क्षेत्रीय दबाव पड़े. मगर उसके फ़ैसलों पर इनका कोई असर नहीं पड़ने वाला है. दूसरा, ये कारण हो सकता है कि सैन्य शासकों ने नामचीन लोकतंत्र समर्थक नेताओं को फांसी देने का फ़ैसला इसलिए किया, ताकि उन लोकतंत्र समर्थकों के बीच भय का माहौल बन सके जिन्होंने नई सरकार के लिए काम करना मुश्किल बना दिया है. लेकिन हुआ इसके उलट है. चार लोकतंत्र समर्थकों को फांसी दिए जाने के बाद सेना के ख़िलाफ़ आंदोलन चला रहे लोगों और जातीय समूहों का हौसला और बढ़ गया है.
बढ़ता विरोध
जातीय हथियारबंद संगठनों जैसे कि म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी, तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी और अराकान आर्मी ने चार लोगों को फांसी देने की कड़ी आलोचना करते हुए, इसका बदला लेने की धमकी दी है. करेन नेशनल यूनियन, करेन्नी नेशनल प्रोग्रेसिव पार्टी. चिन नेशनल फ्रंट और ऑल बर्मा स्टूडेंट्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ने राष्ट्रीय एकता सरकार (NUG), पिडाउंगसू ह्लूत्ताव और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) की नुमाइंदगी करने वाली समिति साथ मिलकर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करने वाला बयान जारी किया है. काचिन पॉलिटिकल इंटेरिम को-ऑर्डिनेशन टीम, जिसमें काचिन इंडिपेंडेंट ऑर्गेनाइज़ेश और 18 चिन सशस्त्र बलों की चिनलैंड ज्वाइंट डिफेंस कमेटी ने भी फांसी दिए जाने की आलोचना की है और इसके बदले में युद्ध का ऐलान किया है. फांसी दिए जाने के विरोध में 28 जुलाई तक सेना के 20 जवान मारे जा चुके हैं और कई थानों पर बमबारी की जा चुकी है. ये संख्या और बढ़नी तय है.
घरेलू मोर्चे पर तो जुंता के सामने चुनौती बनी ही हुई है. मगर, इन हरकतों ने म्यांमार के सैन्य शासकों को पश्चिमी और क्षेत्रीय संगठनों से भी और दूर कर दिया है.
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
चार लोकतंत्र समर्थकों को फांसी दिए जाने पर कई देशों ने सख़्त नाख़ुशी ज़ाहिर की है. अमेरिका, कनाडा और थाईलैंड में रह रहे म्यांमार मूल के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं. फ्रांस और जर्मनी के विदेश मंत्रियों ने अपने यहां मौजूद म्यांमार के बड़े राजनयिकों को तलब करके उनके सामने अपनी नाराज़गी जताई. रूस और चीन समेत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों ने चारों को फांसी दिए जाने की निंदा की. हालांकि, पहले की तरह इस बार भी इन देशों ने हालात को बेहतर बनाने के लिए अपनी कोई ठोस योजना सामने नहीं रखी.
क्षेत्रीय संगठन आसियान (ASEAN) का मौजूदा अध्यक्ष कंबोडिया जो अब तक म्यांमार की जुंता का समर्थन कर रहा था और ये दावा कर रहा था कि अंतत: म्यांमार के जनरल पांच बिंदुओं वाली आम सहमति का पालन करेंगे, वो भी फांसी दिए जाने की घटना से हैरान रह गया और सैन्य शासकों के इस क़दम पर अपनी नाख़ुशी जताई.
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने चार लोकतंत्र समर्थकों को फांसी देने पर गहरा क्षोभ जताया और इस क़दम को, ‘बेहद निंदनीय बताते हुए कहा कि इससे आसियान के अध्यक्ष द्वारा मदद के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए तगड़ा झटका बताया’. हुन सेन ने कहा कि जुंता के इस क़दम से पांच बिंदुओं वाली आम सहमति (5PC) को लागू करने में तेज़ी आने के बजाय और झटका लगा है.’ इस बयान के साथ साथ कंबोडिया के प्रधानमंत्री ने ये बात भी जोड़ी कि म्यांमार की जनता के हित के लिए आसियान, म्यांमार को हालात सामान्य बनाने और पांच बिंदुओं वाली आम सहमति लागू करने में मदद करता रहेगा.
ये बात सबको मालूम है कि कंबोडिया के विदेश मंत्री और म्यांमार के लिए आसियान के विशेष दूत प्रैक सोखोन्न को जून में म्यांमार की पूर्व नेता ऑन्ग सान सू की और अन्य जातीय दलों के नेताओं से मिलने से रोक दिया गया था, जो सैन्य सरकार से नहीं जुड़े हैं. ऐसा दूसरी बार हुआ था. जब प्रैक सोखोन्न ने सैन्य शासकों से सू की को रिहा करने की अपील की, तो उसे भी अनसुना कर दिया गया और अब फांसी की सज़ा देते वक़्त भी आसियान के ऐतराज़ों का ख़याल नहीं रखा गया. इसलिए, इस मोड़ सैन्य शासकों से पांच बिंदुओं वाली आम सहमति के फॉर्मूले पर अमल की उम्मीद करना दिन में ख्वाब देखने जैसा ही है. म्यांमार की जुंता, इस सहमति के उन्हीं बिंदुओं पर अमल करती है, जो उसे ठीक लगते हैं और शांति स्थापना की व्यापक आम सहमति वाले उस पूरे फॉर्मूले को लागू करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं दिखती, जिनसे ये अपेक्षा की जाती है कि उससे ठोस नतीजे निकलेंगे. तीन अगस्त को आसियान की मंत्रिस्तरीय बैठक में म्यांमार के जनरलों पर तब तक प्रतिबंध लगा दिया गया, जब तक वो शांति प्रक्रिया पर आगे नहीं बढ़ते हैं. हालांकि इस मौक़े पर विशेष दूत प्रैक सोखोन्न ने कहा कि वो कोई सुपरमैन नहीं हैं, जो म्यांमार की स्थिति में बदला ला सकें. ख़ुद को महज़ एक दूत बताते हुए सोखोन्न ने कहा कि इस वक़्त म्यांमार में जैसे हालात हैं, उन्हें तो कोई सुपरमैन भी नहीं बदल सकता है.
पिछले 18 महीने से भी ज़्यादा समय से म्यांमार में सैन्य शासन और उसके ज़ुल्म ने ज़बरदस्त मानवीय संकटों को जन्म दिया है. अब तक दस लाख से ज़्यादा लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं. आधी से अधिक आबादी ग़रीबी में जीवन गुज़ार रही है. इन लोगों की मदद की कोशिशों में कटौती की जा रही है या उसे सैन्य शासक हथिया रहे हैं. देश के आर्थिक हालात बिगड़ रहे हैं और मरने वालों की तादाद बढ़ रही है. इन हालात में सैन्य शासकों ने आपातकाल को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया है. इससे जुंता को लोगों को अगवा करने, गिरफ़्तार करने, सज़ा देने और मार डालने के साथ साथ संसाधनों को अपने हिसाब से लूटने की खुली छूट मिल गई है और इसके लिए न तो उनकी कोई जवाबदेही बनेगी और न ही कोई मुक़दमा चलेगा. क्षेत्रीय संगठन आसियान द्वारा कोई फौरी कार्रवाई करने और जनरलों की मज़बूत राजनीतिक इच्छा दिखाए बग़ैर, हालत में किसी तरह का बदलाव नहीं आने वाला है.
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