Author : Basu Chandola

Published on May 27, 2022 Updated 16 Hours ago

आज के दौर में जब अभूतपूर्व तकनीकी और डिजिटल उन्नति की शुरुआत हुई है, भारत डिजिटल संपन्न और वंचित लोगों के बीच बढ़ती गैरबराबरी से गुज़र रहा है.

भारत में बढ़ती डिजिटल खाई की पड़ताल

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) डिजिटल खाई को ‘सूचना एवं संचार तकनीकों (आईसीटी) तक पहुंच के अवसरों और तरह-तरह की गतिविधियों के लिए इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में व्यक्तियों, घरों, व्यवसायों और भौगोलिक क्षेत्रों के बीच विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों पर अंतर (गैप)’ के रूप में परिभाषित करता है. आसान ढंग से कहें तो, डिजिटल खाई को इंटरनेट और आईसीटी तक पहुंच के मामले में डिजिटल संपन्नों और वंचितों के बीच गैरबराबरी के रूप में समझाया जा सकता है. इंटरनेट की सर्वकालिक बढ़ती महत्ता और कोविड-19 महामारी की वजह से तेज़ डिजिटल रूपांतरण के चलते, संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना मोहम्मद ने यहां तक कहा कि डिजिटल खाई ‘गैरबराबरी का नया चेहरा’ बन सकती है. डिजिटल खाई को मापने के लिए उपलब्धता, वहनीयता और डिजिटल साक्षरता जैसे भिन्न मानदंड इस्तेमाल किये जा सकते हैं, लेकिन यह लेख एक ज़्यादा आसान दृष्टिकोण अपनाता है तथा उपयोग के आयाम (मसलन, ‘इंटरनेट का इस्तेमाल’) और भौतिक पहुंच के आयाम (मसलन, ‘मोबाइल फोन तक पहुंच’) की पड़ताल करता है. इन मानदंडों का इस्तेमाल कर, यह लेख पूरे भारत में मौजूद डिजिटल खाई को उजागर करता है. 

यह लेख एक ज़्यादा आसान दृष्टिकोण अपनाता है तथा उपयोग के आयाम और भौतिक पहुंच के आयाम की पड़ताल करता है. इन मानदंडों का इस्तेमाल कर, यह लेख पूरे भारत में मौजूद डिजिटल खाई को उजागर करता है. 

भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ता 

आईटीयू के वर्ल्ड टेलीकम्युनिकेशन/आईसीटी इंडीकेटर्स डेटाबेस के मुताबिक, भारत की केवल 43 फ़ीसद आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. आईएएमएआई-कैंटर रिपोर्ट ICUBE 2020 बताती है कि भारत के इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में 58 फ़ीसद पुरुष और 42 फ़ीसद महिलाएं हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (एनएफएचएस) इंटरनेट उपयोग के मामले में ज़्यादा बड़ा लैंगिक अंतर (जेंडर गैप) दिखाता है. एनएफएचएस की रिपोर्ट बताती है कि भारत में केवल 57.1 फ़ीसद पुरुष आबादी और 33.3 फ़ीसद महिला आबादी ने कभी-न-कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया. ग्राफ 1 सभी राज्यों में मौजूद इस लैंगिक अंतर को दिखाता है.   

ग्राफ 1 : व्यक्ति (%) जिन्होंने कभी-न-कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है – राज्यवार लैंगिक खाई

Source: Data from NFHS 2019-21

एनएफएचएस शहरी-ग्रामीण खाई को बताने वाले आंकड़े भी मुहैया कराता है. देश में 72.5 फ़ीसद शहरी पुरुषों और 51.8 फ़ीसद शहरी महिलाओं ने कभी-न-कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया, जबकि केवल 48.7 फ़ीसद ग्रामीण पुरुषों और 24.6 फ़ीसद ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा किया. यह ग़ौर करना दिलचस्प है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने के मामले में सभी राज्यों में शहरी पुरुषों का प्रतिशत सर्वाधिक है, जबकि ग्रामीण महिलाओं का प्रतिशत सबसे कम. इसे ग्राफ 2 और 3 में देखा जा सकता है.

ग्राफ 2 : व्यक्ति (%) जिन्होंने कभी-न-कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया – राज्यवार लैंगिक एवं ग्रामीण-शहरी खाई

Source: Data from NFHS 2019-21

ग्राफ 3 : व्यक्ति (%) जिन्होंने कभी-न-कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया – राज्यवार लैंगिक एवं ग्रामीण/शहरी खाई

Source: Data from NFHS 2019-21 (Cont.)

इसके अलावा, विभिन्न वंचित जातीय समूहों के बीच ठीकठाक डिजिटल खाई मौजूद है. उदाहरण के लिए, कुछ अध्ययन यहां तक बताते हैं कि ‘अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों की इंटरनेट तक पहुंच दूसरे व्यक्तियों के मुक़ाबले 27 प्रतिशत बिंदु कम है.’

बढ़ रही है फोन रखने वाली महिलाओं की संख्या  

जीएसएमए की रिपोर्ट कनेक्टेड वीमेन : द मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के मुताबिक़, भारत में 79 प्रतिशत बालिग पुरुषों और 67 प्रतिशत बालिग महिलाओं के पास अपना मोबाइल फोन है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में फोन की मालिक महिलाओं की संख्या बढ़ने का सामान्य रुझान है. एनएफएचएस भी इसकी पुष्टि करता है. 2015-16 और 2019-21 के बीच भारत में महिलाओं के बीच फोन के मालिकाने में स्पष्ट वृद्धि दर्ज की गयी. इसे ग्राफ 4 प्रदर्शित करता है.

ग्राफ 4 : महिलाएं (%) जिनके पास मोबाइल फोन है और जिसे वे इस्तेमाल करती हैं – 2015-16 और 2019-21 के बीच हुई वृद्धि 

एनएफएचएस के आंकड़े मोबाइल के मालिकाने के मामले में ग्रामीण-शहरी खाई को भी ज़ाहिर करते हैं. आंकड़े दिखाते हैं कि मोबाइल फोन मालिकाने में एक स्पष्ट अंतर मौजूद है, जहां सामान्य रुझान यह है कि फोन रखने वाली ग्रामीण महिलाओं के मुक़ाबले शहरी महिलाओं का प्रतिशत ज़्यादा है. केरल, लद्दाख,  दिल्ली, अंडमान एवं निकोबार जैसे कुछ राज्यों व संघ शासित क्षेत्रों में यह रुझान उलटा है और ग्रामीण महिलाओं की मोबाइल फोन तक पहुंच ज़्यादा है. मोबाइल फोन पर महिलाओं के मालिकाने में राज्यवार शहरी-ग्रामीण खाई को ग्राफ 5 में प्रदर्शित किया गया है. यहां ग़ौरतलब है कि उम्र और जातीय समूह के आधार पर भी खाई मौजूद है. 

ग्राफ 5 : महिलाएं (%) जिनके पास मोबाइल फोन है और जिसे वे इस्तेमाल करती हैं – राज्यवार ग्रामीण-शहरी खाई

Source: Data from NFHS 2019-21

डिजिटल खाई के रुझान

जैसा कि हमने देखा, भारत में एक गहरी डिजिटल खाई मौजूद है, जहां इंटरनेट के इस्तेमाल और डिजिटल बुनियादी ढांचे तक पहुंच में लिंग, निवास क्षेत्र (शहरी है कि ग्रामीण), जाति या उम्र के आधार पर अंतर मौजूद है. सामान्य तौर पर यह देखा गया कि पुरुषों की इंटरनेट तक ज़्यादा पहुंच है और वे मोबाइल फोन के मालिक भी अधिक हैं. अलग-अलग जगहों पर थोड़ी-बहुत भिन्नता हो सकती है, लेकिन जब शहरी महिलाओं, ग्रामीण पुरुषों तथा ग्रामीण महिलाओं से तुलना की जाती है तो शहरी पुरुष इंटरनेट तक पहुंच और फोन का मालिक होने के मामले में अन्य सभी से काफ़ी बेहतर स्थिति में हैं. इसी तरह, ग्रामीण महिलाएं हमेशा कमतर स्थिति में रहती हैं. उदाहरण के लिए, ग्रामीण महिलाओं के पास शहरी महिलाओं के मुकाबले फोन का मालिकाना ज़्यादा होने पर भी, इंटरनेट तक उनकी पहुंच अब भी कम है. हालांकि, यह ग़ौरतलब है कि 2015-16 और 2019-21 के बीच महिलाओं की सेल फोन तक पहुंच में कुछ सुधार हुआ है, जो दिखाता है कि डिजिटल खाई को कम करने की कोशिशें फलदायी साबित हो रही हैं.  

आगे की राह

डिजिटल खाई के गंभीर सामाजिक प्रभाव हैं. तकनीक तक पहुंच हासिल करने में अक्षमता मौजूदा सामाजिक बहिष्करण (सोशल एक्सक्लूजन) को बढ़ा सकती है और व्यक्तियों को आवश्यक संसाधनों से वंचित कर सकती है. डिजिटल तकनीकों और इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए, डिजिटल खाई शिक्षा, स्वास्थ्य, गतिशीलता, सुरक्षा, वित्तीय समावेशन और जीवन के अन्य सभी कल्पनीय पहलुओं को प्रभावित करती है. 

डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए नेशनल डिजिटल साक्षरता मिशन और प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसी कई सरकारी पहलक़दमियां ली गयी हैं, फिर भी ऐसी कोशिशों को और बढ़ाये जाने की ज़रूरत है. 

डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए नेशनल डिजिटल साक्षरता मिशन और प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसी कई सरकारी पहलक़दमियां ली गयी हैं, फिर भी ऐसी कोशिशों को और बढ़ाये जाने की ज़रूरत है. समाज के विभिन्न तबकों तक आईसीटी की भौतिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार करना भी अहम है. इसके साथ ही साथ, वंचित समूहों को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में तकनीक को शामिल करने के लिए प्रेरित करने की ज़रूरत है और ऐसा बदलाव संभव बनाने के लिए डिजिटल कौशल प्रदान किये जाने की ज़रूरत है.

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