ऊर्जा निर्धनता की समस्या का निपटारा ज़रूरी है. बहरहाल पश्चिमी देशों को अपनी मौजूदा नीतियों के मद्देनज़र निर्धन देशों में ऊर्जा सब्सिडियों को ख़त्म करने की अपनी मांग की समीक्षा करनी चाहिए.
साल 2021 के शुरुआती दौर से लेकर अब तक कच्चे तेल की क़ीमतें दोगुनी हो चुकी हैं. कोयले के दाम में चार गुणा और प्राकृतिक गैस की क़ीमतों में (यूरोप में) सात गुणा से भी ज़्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है. जनवरी 2020 और अप्रैल 2022 के बीच विश्व बैंक के ऊर्जा क़ीमत सूचकांक में 76 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हो चुका है. अंकित मूल्य के हिसाब से कच्चे तेल की क़ीमतें 350 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं. 1970 के दशक से लेकर अब तक 2 वर्षों के किसी भी समान कालखंड में क़ीमतों में आई ये सबसे ऊंची छलांग है. वास्तविक दरों पर कोयले और यूरोपीय प्राकृतिक गैस के दाम अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच चुके हैं. 2008 में अपने पिछले शिखर के मुक़ाबले मौजूदा दरें काफ़ी ऊपर बनी हुई हैं.
चूंकि अल्पकाल में ऊर्जा की मांग बेलोचदार होती है, लिहाज़ा महंगी ऊर्जा दरों के चलते दुनिया भर में परिवारों की क्रय शक्ति में भारी गिरावट आ गई है. महंगी ऊर्जा क़ीमतों की मार तमाम परिवारों पर अलग-अलग तरह से पड़ रही है.
चूंकि अल्पकाल में ऊर्जा की मांग बेलोचदार होती है, लिहाज़ा महंगी ऊर्जा दरों के चलते दुनिया भर में परिवारों की क्रय शक्ति में भारी गिरावट आ गई है. महंगी ऊर्जा क़ीमतों की मार तमाम परिवारों पर अलग-अलग तरह से पड़ रही है. सबसे ज़्यादा चपत सबसे ग़रीब तबक़े को लग रही है. पश्चिम की कई सरकारें इससे निपटने के लिए करों में कटौतियों और क़ीमतों पर अंकुश लगाने की नीतियों का सहारा ले रही हैं. सबसे नाज़ुक हालात वाले परिवारों के लिए रियायतों का भी एलान हुआ है, ताकि गैस और बिजली की दरों में भारी उछाल की मार से उनका बचाव किया जा सके. बाक़ी दुनिया (ख़ासतौर से भारत) भी महंगी ऊर्जा से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही है. भारत में नागरिकों की औसत पारिवारिक आय की तुलना में ऊर्जा की क़ीमतें हमेशा ही ऊंची रही हैं.
ऊर्जा की क़ीमतों में बेतहाशा उछाल के चलते कई परिवारों के सामने ऊर्जा निर्धनता का ख़तरा पैदा हो गया है. सर्दियों में इस समस्या के और विकराल हो जाने की आशंका है. इसी ख़तरे को देखते हुए पश्चिम के ज़्यादातर देशों ने परिवारों के लिए आपात आय सहायता, कंपनियों के लिए सरकारी मदद और करदाताओं के लिए लक्षित कर कटौतियों का प्रस्ताव किया है. यूरोपीय आयोग (EC) ने ऊर्जा निर्धनता से निपटने के इरादे से EU के सदस्य देशों के लिए कई उपायों वाला दस्तावेज़ जारी किया है. इनमें आर्थिक सहायता और सब्सिडियों की सिफ़ारिश की गई है. बहरहाल, यूरोपीय परिवारों को होने वाला ये भुगतान निर्धन दुनिया के बाक़ी हिस्से के औसत परिवार की सालाना आमदनी से कहीं ज़्यादा है.
यूरोपीय आयोग (EC) ने ऊर्जा निर्धनता से निपटने के इरादे से EU के सदस्य देशों के लिए कई उपायों वाला दस्तावेज़ जारी किया है. इनमें आर्थिक सहायता और सब्सिडियों की सिफ़ारिश की गई है.
इटली ने ऊर्जा की बढ़ती लागतों और आसमान छूती उपभोक्ता क़ीमतों से कारोबारी इकाइयों और परिवारों के बचाव के लिए तक़रीबन 17 अरब यूरो के नए सहायता पैकेज को मंज़ूरी दी है. स्पेन ने ऊर्जा बिलों पर मूल्य-वर्धित कर (VAT) को 21 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया है. साथ ही वहां बिजली पर मौजूदा टैक्स को 7 प्रतिशत से घटाकर 0.5 प्रतिशत कर दिया गया है. पुर्तगाल और स्पेन ने भी गैस की क़ीमतों पर एक साल तक के लिए सीमा आयद कर दी है. इससे औसत क़ीमतों के 50 यूरो/MWh से नीचे के स्तर पर रहना सुनिश्चित हो गया है.
नीदरलैंड्स में परिवारों के औसत सालाना ऊर्जा बिल में 1,264 यूरो की बढ़ोतरी होने का अंदेशा था. वहां की सरकार ने सभी परिवारों के लिए सहायता उपायों का ऐलान किया है. इनमें ऊर्जा पर आयद टैक्स में कटौती के साथ-साथ ऊर्जा बिल पर लगने वाले करों में दी जाने वाली एकमुश्त रियायत में बढ़ोतरी जैसे उपाय शामिल हैं. निम्न आय वाले परिवारों के लिए स्थानीय निकायों के ज़रिए 800 यूरो की अतिरिक्त सहायता का भी एलान किया गया है. साथ ही सरकार ऊर्जा पर VAT 21 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत कर चुकी है. पेट्रोल और डीज़ल पर शुल्क में 21 प्रतिशत की कटौती की गई है. ये उपाय साल के अंत तक लागू रहेंगे.
नीदरलैंड्स में परिवारों के औसत सालाना ऊर्जा बिल में 1,264 यूरो की बढ़ोतरी होने का अंदेशा था. वहां की सरकार ने सभी परिवारों के लिए सहायता उपायों का ऐलान किया है.
डेनमार्क में बुज़ुर्गों के लिए नक़द आर्थिक सहायता समेत कई और उपाय लागू किए गए हैं. वहां बिजली की दरों पर वसूले जाने वाले शुल्क में कटौती की गई है. कुल 41.7 करोड़ यूरो की लागत वाले इन उपायों में “हीट चेक” का प्रावधान भी शामिल है. इसके तहत बढ़ती ऊर्जा क़ीमतों के बोझ तले दबे तक़रीबन 4 लाख परिवारों को 26.9 करोड़ यूरो का भुगतान किया जाएगा.
जर्मनी ने प्राकृतिक गैस पर VAT को 19 फ़ीसदी से घटाकर 7 फ़ीसदी करने की घोषणा की है. ये कटौती मार्च 2024 के अंत तक प्रभावी रहेगी. इसके अलावा जर्मनी ने इस साल बढ़ती ऊर्जा क़ीमतों के बीच अपने नागरिकों की मदद के लिए कुल 30 अरब यूरो के 2 राहत पैकेजों को मंज़ूरी दी है. जर्मन सरकार सभी करदाताओं को ऊर्जा क़ीमतों से जुड़ी सहूलियत के तौर पर 300 यूरो की सहायता मुहैया कराएगी. ये मदद सिर्फ़ एक बार दी जाएगी. इस कड़ी में ग़रीब परिवारों को ज़्यादा मदद दी जाएगी. इसी तरह EU के सभी सदस्य देश अपने नागरिकों की मदद के लिए आर्थिक सहायता, करों में रियायत और सब्सिडियों जैसे क़दम उठा रहे हैं.
बाक़ी दुनिया की सब्सिडियां
पश्चिम के ऊर्जा बाज़ारों में सरकारी दख़ल को जायज़ ठहराने के लिए दी जाने वाली दलीलों में ऊर्जा आपूर्ति में अचानक आने वाले खललों को रोक पाने में बाज़ार की नाकामी का हवाला दिया जा रहा है. ये कहा जा रहा है कि ऐसी नाकामियों से ऊर्जा क़ीमतों में बढ़ोतरी की आशंका को देखते हुए सरकारों ने ऐसे क़दम उठाए हैं. निश्चित रूप से ऊर्जा सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक आवश्यक घटक है. ये हरेक परिवार के बजट का हिस्सा है, लिहाज़ा ऊर्जा की क़ीमतों का अर्थव्यवस्था और समाज पर ग़ैर-आनुपातिक प्रभाव पड़ता है. ऊर्जा क़ीमतों में उछाल से उपभोक्ता मांग में गिरावट आ जाएगी. इससे कारोबार जगत नई भर्तियों और निवेश करने से परहेज़ करने लगेगा. इन तमाम कारकों का अर्थव्यवस्था पर घातक असर होगा.
बाक़ी की विकासशील दुनिया के लिए ऊर्जा निर्धनता सीधे-सीधे आधुनिक ऊर्जा स्रोतों तक पहुंच के अभाव से जुड़ी है. यहां ऊर्जा सब्सिडियों को जायज़ ठहराती दलील ये है कि इससे ग़रीबों को ऊर्जा तक पहुंच मिलती है. ये बात कुछ हद तक सही भी है, पर ये व्यापक सामाजिक ख़र्च की क़ीमत पर हासिल होती है. भारत में ऊर्जा सब्सिडी और आर्थिक सहायता पिछले पांच दशकों से सामाजिक ख़र्च का हिस्सा रही हैं, लिहाज़ा भारतीय तजुर्बे का अध्ययन दिलचस्प साबित हो सकता है. भारत अतीत में ऊर्जा (ख़ासतौर से पेट्रोलियम उत्पादों) की क़ीमतों में बढ़ोतरी को सीमित करने के लिए मूल्यों में हस्तक्षेप करने की नीति का इस्तेमाल करता रहा है. इसके अलावा नागरिकों तक बिजली और लिक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG) की पहुंच को सुगम बनाने के लिए भी बाज़ार में बिगाड़ लाने वाली मूल्य नीति अपनाई जाती रही. मूल्यों में रियायत देने की उत्पाद आधारित व्यवस्था अब काफ़ी हद तक ख़त्म हो चुकी है. फ़िलहाल पेट्रोलियम सेक्टर में शुद्ध सब्सिडी का भुगतान नहीं हो रहा है. दरअसल पेट्रोलियम उत्पादों पर करों से जुटाई जाने वाली रकम का आकार इसके मुक़ाबले बड़ा है.
अब चूंकि पश्चिमी दुनिया ख़ुद ही सब्सिडियों का सहारा ले रही है तो उन्हें निर्धन देशों में इसे ख़त्म किए जाने से जुड़ी अपनी मांग की समीक्षा करनी चाहिए.
ऐसे में पश्चिम के लिए कुछ अहम सबक़ सामने हैं. दरअसल पश्चिमी देश लगातार ये मांग करते रहे हैं कि ग़रीब देशों में दी जा रही ऊर्जा सब्सिडियों को ख़त्म कर दिया जाए. अब चूंकि पश्चिमी दुनिया ख़ुद ही सब्सिडियों का सहारा ले रही है तो उन्हें निर्धन देशों में इसे ख़त्म किए जाने से जुड़ी अपनी मांग की समीक्षा करनी चाहिए. बाक़ी दुनिया के लिए सीख यही है कि सब्सिडी और आर्थिक सहायता से जुड़ी नीतियां विकास, आय निर्माण और कुल मिलाकर जीवन की गुणवत्ता में होने वाले सुधारों की जगह नहीं ले सकतीं.
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Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change.
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