पिछले कुछ सालों से ‘तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं’ से जुड़े कई तरह के क़िस्से चलन में आ गए हैं. इन विमर्शों के ज़रिए टेक्नोलॉजी के विकास और संरचना में ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को जोड़ने पर ज़ोर दिया गया है. इसके साथ ही तकनीक के क्षेत्र से जुड़ी श्रमशक्ति के साथ लड़कियों को जोड़ने पर भी ध्यान दिया गया है. इस सिलसिले में उन्हें इनसे जुड़े शैक्षणिक कार्यक्रमों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयास भी शामिल है. इतना ही नहीं निजी और सार्वजनिक नीति-निर्माण के दायरों में महिलाओं को जोड़ने का विचार भी इसी विमर्श का हिस्सा है. इसके अलावा दुनिया भर की महिलाओं के सामने प्रस्तुत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मसलों से निपटने के लिए तकनीक के इस्तेमाल का विचार भी इसी सोच के तहत आता है.
आम मान्यता यही है कि तकनीकी विकास लिंग-निरपेक्ष होता है. बहरहाल इस तरह के विमर्शों के ज़रिए इन स्थापित मान्यताओं को सार्थक तौर पर चुनौती देना भी सहज हो सका है.
ये तमाम पहलू बेहद अहम हैं. दरअसल इनके ज़रिए मौजूदा और भावी डिजिटल माध्यमों के साथ न सिर्फ़ उपभोक्ताओं के तौर पर बल्कि सह-निर्माताओं के रूप में भी महिलाओं का जुड़ाव सुनिश्चित किया जा सकता है. हालांकि, आम मान्यता यही है कि तकनीकी विकास लिंग-निरपेक्ष होता है. बहरहाल इस तरह के विमर्शों के ज़रिए इन स्थापित मान्यताओं को सार्थक तौर पर चुनौती देना भी सहज हो सका है. इतना ही नहीं तकनीकी क्षेत्र के साथ महिलाओं और लड़कियों को जोड़ने के अनेक पहलों की नींव रखने में भी ये सहायक साबित हुए हैं. इस लेख में इन प्रयासों की चुनौतियों और कामयाबियों की पड़ताल की गई है. इसके अलावा टेक्नोलॉजी से जुड़े विमर्शों में महिलाओं की ताक़त और कठिनाइयों का भी ब्योरा देने का प्रयास किया गया है.
टेक क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी से जुड़ा मिथक
महिलाओं ने हमेशा विज्ञान और तकनीकी की तरक़्क़ी में योगदान दिया है. हिडन फिगर्स नाम की क़िताब और बाद में इसी शीर्षक से बनी फ़िल्म ने न सिर्फ़ इस पेशे से जुड़े लोगों बल्कि व्यापक रूप से समाज के सामने इस तथ्य को साफ़ तौर पर पेश किया है. सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से विपरीत सोचों की वजह से महिलाओं के योगदान को अक्सर कम करके आंका गया है. मिसाल के तौर पर कोडिंग को महिलाओं के लिए ग़ैर-रसूख़दार और कम आमदनी वाला काम समझा जाता था. जैसे-जैसे कोडिंग के काम की अहमियत बढ़ती गई इस क्षेत्र से धीरे-धीरे महिलाओं का डब्बा गोल कर दिया गया. ऐसे में इस पेशे से जुड़ा रुतबा और रकम पुरुषों के खाते में चला गया. हालांकि, इसमें कोई शक़ नहीं कि महिलाओं के पास इन कामों के लिए ज़रूरी योग्यता से कहीं ज़्यादा प्रतिभा मौजूद थी. बहरहाल विपरीत सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं ने इन कामों से जुड़ा श्रेय और मेहनताना तय करने में अहम भूमिका निभाई. ये ‘आग़ाज़ से जुड़ी एक अहम कहानी’ है. दरअसल ये कहानी उस मिथक को चुनौती देती है जिसमें ये कहा जाता है कि तकनीकी के क्षेत्र में महिलाओं का दखल बेहद सीमित है और टेक्नोलॉजी से जुड़े मानव श्रम बल में काफ़ी कम विविधता मौजूद है. इससे ‘मौलिक योजना से जुड़ी समस्या’ की ओर संकेत मिलता है. ये विमर्श टेक एजुकेशन क्षेत्र और कार्यबल में प्रवेश करने और बरकरार रहने के रास्ते में महिलाओं के समक्ष पेश अड़चनों के संस्थागत पहलुओं को ढक देते हैं. इनमें शैक्षणिक अवसरों तक पहुंच की असमानता, भर्ती प्रक्रियाओं में पूर्वाग्रह और कार्यक्षेत्र का ग़ैर-दोस्ताना माहौल शामिल है. इन मिथकों को दूर करने की प्रक्रिया लगातार जारी है. इसके ज़रिए ‘टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महिलाओं’ के दख़ल और निवेश को और ज़्यादा रणनीतिक तौर पर सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है. तकनीक से जुड़ी मानव श्रमशक्ति में प्रवेश के लिए महिलाओं का समुचित शिक्षण-प्रशिक्षण आवश्यक है. ऐसे में तमाम तरह की पृष्ठभूमियों से ताल्लुक़ रखने वाली महिलाओं द्वारा शैक्षणिक अवसर हासिल करने के रास्ते की बाधाओं को समझने और उनको दूर करने का काम और कार्य-क्षेत्र के वातावरण में सुधार लाने का काम एक-साथ चलना चाहिए. इसके साथ-साथ ‘इस काम के लिए पर्याप्त महिलाओं के न होने’ से जुड़े झूठे विमर्श को जड़ से मिटाना भी ज़रूरी है.
मिसाल के तौर पर कोडिंग को महिलाओं के लिए ग़ैर-रसूख़दार और कम आमदनी वाला काम समझा जाता था. जैसे-जैसे कोडिंग के काम की अहमियत बढ़ती गई इस क्षेत्र से धीरे-धीरे महिलाओं का डब्बा गोल कर दिया गया. ऐसे में इस पेशे से जुड़ा रुतबा और रकम पुरुषों के खाते में चला गया
लैंगिक ज़रूरतों के प्रति उत्तरदायी टेक्नोलॉजी
टेक डिज़ाइन और बाज़ारों में उनको उतारे जाने के पीछे एक प्रचलित मान्यता ये होती है कि ये आमतौर पर ‘अंतिम उपयोगकर्ता’ पर लागू होंगे. 2014 में ऐपल इंक. ने अपना HealthKit ऐप लॉन्च किया था. उस समय उसका लक्ष्य उपयोगकर्ताओं के लिए अपने स्वास्थ्य और फ़िटनेस पर नज़र रखने के लिए एक केंद्र का निर्माण करना था. निश्चित रूप से हम महिलाओं के लिए प्रजनन स्वास्थ्य बेहद अहम है, इसके बावजूद इस ऐप को प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े किसी फ़ीचर के बग़ैर ही लॉन्च कर दिया गया था. इससे ज़ाहिर होता है कि ऐप डेवलपर्स ने इस ऐप के उपयोगकर्ताओं के बारे में कल्पना करते वक़्त आधे-अधूरे तरीक़े से काम किया. इसके साथ ही इस घटना से ऐप डेवलप करने वाले लोगों (उस वक़्त ऐपल के इंजीनियरों में सिर्फ़ 20 फ़ीसदी ही महिलाएं थीं) के बारे में भी पता चलता है. ये कोई इकलौती घटना नहीं है. स्मार्टफ़ोन के आकारों से लेकर कृत्रिम दिल तक के मामलों में अक्सर ‘अंतिम उपयोगकर्ता’ के तौर पर महिलाओं की कल्पना ही नहीं की जाती. बहरहाल, इस मसले पर ये दलील दी जा सकती है कि महिलाओं को ख़ुद ही ऐसे मौजूदा तौर-तरीक़ों की काट निकालनी चाहिए. ये दलील भी दी जा सकती है कि महिलाओं को अपने लिए कारगर तकनीक और मशीनों को ख़ुद ही डिज़ाइन करना चाहिए. धीरे-धीरे महिलाएं ख़ुद ही टेक कंपनियों के कारोबार में प्रवेश करने लगी हैं ताकि वो अपनी विविधतापूर्ण ज़रूरतों को पूरा कर सकें. हालांकि इस सिलसिले में उन्हें ढांचागत रुकावटों का सामना करना पड़ता है. इनमें वेंचर कैपिटल फ़ंडिंग हासिल करने जैसी बाधाएं शामिल हैं.
ये दलील भी दी जा सकती है कि महिलाओं को अपने लिए कारगर तकनीक और मशीनों को ख़ुद ही डिज़ाइन करना चाहिए. धीरे-धीरे महिलाएं ख़ुद ही टेक कंपनियों के कारोबार में प्रवेश करने लगी हैं ताकि वो अपनी विविधतापूर्ण ज़रूरतों को पूरा कर सकें.
ये बस कुछ चंद उदाहरण हैं जो ये बताते हैं कि किस तरह टेक उद्योग के लिए अब भी लैंगिक ज़रूरतों के प्रति उत्तरदायी बनना बाक़ी है. टेक नीति-निर्माण में भी ‘लैंगिक ज़रूरतों के प्रति अनदेखी भरा रवैया’ झलकता है. लिहाज़ा अक्सर ग़ैर-मुनासिब नीतियों का निर्माण होता है. साथ ही इस तरह के निवेश किए जाते हैं जो महिलाओं और लड़कियों तक पहुंचते ही नहीं हैं. इस सिलसिले में इंटरनेट तक पहुंच कायम करने से जुड़े निवेश की मिसाल ले सकते हैं. अक्सर नीतियों में सार्वजनिक रूप से इंटरनेट सुविधा हासिल करने से जुड़े केंद्रों जैसे साइबर कैफ़े स्थापित करने पर ज़ोर दिया जाता है. ये प्रयास सराहनीय भी हैं, लेकिन हर बार इस बात की गारंटी नहीं होती कि ऐसे स्थान महिलाओं के लिए सुरक्षित भी होंगे. इतना ही नहीं इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने वाले ऐसे केंद्रों तक जाने-आने के दौरान महिलाओं की सुरक्षा का भी कोई भरोसा नहीं होता.
‘महिलाओं से जुड़े मुद्दों’ के लिए टेक्नोलॉजी
हाल के वर्षों में टेक में लैंगिक असमानताओं को दूर किए जाने से जुड़ी मांगों ने ज़ोर पकड़ा है. ऐसे में विकास से जुड़ी फ़ंडिंग से प्रेरित एक नया घरेलू उद्योग उभरकर सामने आया है. इसका लक्ष्य तकनीकी नवाचार, प्रयोगों और नए-नए विचारों से जुड़े साधनों के इस्तेमाल के ज़रिए महिलाओं का सशक्तिकरण करना और लैंगिक समानता लाना है. इन प्रयासों के नतीजे के तौर पर अक्सर नई-नई तरह की क़वायद देखने को मिली हैं. इनमें तमाम दूसरी पहलों के साथ-साथ लिंग-आधारित हिंसा पर हैकेथॉन चैलेंज और लैंगिक समानता के लिए टेक इनोवेशन चैलेंज शामिल हैं. हालांकि इनके पीछे का इरादा नेक है, लेकिन ‘महिलाओं से जुड़े मुद्दों’ पर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने की इस रणनीति में कुछ ख़ामियां भी मौजूद हैं. दरअसल इसमें उन ढांचागत चुनौतियों की अनदेखी की जाती है जो टेक्नोलॉजी का युग शुरू होने के पहले से मौजूद हैं. इतना ही नहीं टेक्नोलॉजी के चलते खड़ी हुई समस्याओं पर भी इस रणनीति के तहत ध्यान नहीं जाता. इसी तरह लिंग-आधारित हिंसा की जानकारी देने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की सुविधा तैयार की जा सकती है. हालांकि नवाचार भरे इन समाधानों को क़ानून का पालन कराने वाली एजेंसियों के साथ जोड़ने की ज़रूरत होगी. इसके अलावा आश्रय स्थलों और दूसरी कल्याणकारी व्यवस्थाओं के साथ भी टेक्नोलॉजी से जुड़ी इन सुविधाओं को जोड़ना ज़रूरी होगा. इस पूरी क़वायद की कामयाबी का पैमाना सिर्फ़ ऐसे ऐप या वेबसाइट के इस्तेमाल में बढ़ोतरी या फिर इनके ज़रिए ऐसी वारदातों को दर्ज कराए जाने की संख्या में इज़ाफ़ा भर ही नहीं हो सकता. इतना ही नहीं लैंगिक समानता का मुद्दा कोई ‘पिटारे में बंद’ मुद्दा नहीं है जिसके समाधान के लिए टेक्नोलॉजी कंपनियों को अपने तौर-तरीक़े इस्तेमाल करने पड़ें.
इस पूरी क़वायद की कामयाबी का पैमाना सिर्फ़ ऐसे ऐप या वेबसाइट के इस्तेमाल में बढ़ोतरी या फिर इनके ज़रिए ऐसी वारदातों को दर्ज कराए जाने की संख्या में इज़ाफ़ा भर ही नहीं हो सकता.
निश्चित तौर पर किसी मसले पर खड़ा हुआ विमर्श बेहद शक्तिशाली उत्प्रेरक होता है. वो चुनौतियों को आकार देने और उनसे निपटने के लिए ज़रूरी काल्पनिक दायरों को विस्तार देने में लंबी दूरी तक सहायक होते हैं. निश्चित तौर पर टेक्नोलॉजी में महिलाओं की भूमिका से जुड़े विमर्श का शिक्षा, टेक उद्योग और सार्वजनिक नीति-निर्माण के दायरों पर प्रभाव पड़ा है. हालांकि हमें लगातार ये सुनिश्चित करना होगा कि सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों के जटिल घालमेल को दबाने-ढकने के लिए इन तत्वों का दुरुपयोग न हो. यही कारक ये तय करते हैं कि महिलाएं और उनसे जुड़े मुद्दे कब, कहां और कैसे प्रभावित होते हैं और वो किस प्रकार टेक्नोलॉजी में अपना योगदान देते हैं.
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