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2 जून 2023 को यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने उज़्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान , ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान के राष्ट्राध्यक्षों और तुर्कमेनिस्तान के उपाध्यक्ष के साथ, किर्गिज़स्तान के चोलपन-अटा में दूसरी क्षेत्रीय उच्च स्तरीय बैठक की. इस बैठक में यूरोपीय संघ और मध्य एशिया के बीच सहयोग के साथ साथ, कज़ाख़िस्तान के अस्ताना में 2022 में हुई पहली बैठक के बाद हुए हालात के नतीजों पर समीक्षा की गई. 2022 के बाद से मध्य एशिया में यूरोपीय संघ के उच्च स्तरीय दौरे काफ़ी बढ़ गए हैं. इनमें EU के उच्च प्रतिनिधि (विदेश मंत्री); तमाम आयुक्तों; और यूरोपीय संघ के देशों जैसे कि जर्मनी, फ्रांस और इटली के रक्षा, विदेश और प्रधानमंत्रियों के दौरे शामिल हैं.
मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) में चीन के भव्य और दिखावे वाले दौरे के उलट, यूरोपीय संघ के दौरों का ढोल कम पीटा जाता है. मगर ये दौरे निरंतर हो रहे हैं और इनमें बढ़ोत्तरी भी होती जा रही है.
मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) में चीन के भव्य और दिखावे वाले दौरे के उलट, यूरोपीय संघ के दौरों का ढोल कम पीटा जाता है. मगर ये दौरे निरंतर हो रहे हैं और इनमें बढ़ोत्तरी भी होती जा रही है. यही नहीं, इनके दौरे के साथ साथ अहम नीतिगत समझौते भी जुड़े होते हैं. इनके ज़रिए, यूरोपीय संघ नवीनीकरण योग्य ऊर्जा तकनीक, व्यापार, अंतरराष्ट्रीय नियामक ढांचे, शांति निर्माण, क्षेत्रीय एकीकरण और सामाजिक विकास के क्षेत्र में अपने वैश्विक नेतृत्व का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है.
भू-राजनीतिक और सुरक्षा के संकट, जिनमें रूस और यूक्रेन का युद्ध और अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद के लगातार बने हुए ख़तरे ने मध्य एशियाई देशों को बाध्य किया है कि वो इस क्षेत्र की संप्रभुता, सुरक्षा और स्थिरता को लेकर अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करें.
2022 में मध्य एशियाई देशों ने कनेक्टिविटी, व्यापार और सुरक्षा में अपनी ‘सामरिक स्वायत्तता’ विकसित करने के लिए यूरोपीय संघ को एक साझीदार के तौर पर शामिल होने का न्यौता दिया था. इसके बाद से मध्य एशिया और EU के बीच उच्च स्तर के सलाह मशविरों ने एक महत्वाकांक्षी, दूरगामी और आपसी तालमेल वाले रिश्ते स्थापित करने की कोशिश की है. यूरोपीय संघ के दो सदस्य देश, जर्मनी और फ्रांस तो ख़ास तौर से इस विचार को अहमियत दे रहे हैं. हालांकि, ‘सामरिक स्वायत्तता’ और ‘सामरिक संप्रभुता’ को लेकर उनकी समझ अलग अलग है.
सोवियत संघ के विघटन के बाद, स्वतंत्र देश के तौर पर मध्य एशियाई गणराज्यों के उदय के बाद यूरोपीय संघ ने इन देशों के साथ साझेदारी और सहयोग के समझौते (PCAs) किए थे, ताकि मध्य एशियाई देशों के साथ सामाजिक और आर्थिक संवाद को बढ़ावा दे सकें. वैसे तो 2001 तक इन समझौतों के तहत कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई थी. लेकिन, अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्ध ने EU और मध्य एशिया के रिश्तों को वो प्रोत्साहन दिया, जिसकी सख़्त ज़रूरत महसूस की जा रही थी. जहां मध्य एशियाई देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में नाटो (NATO) सेनाओं को सामान की आपूर्ति का रास्ता मुहैया कराया. वहीं, यूरोपीय संघ ने इस क्षेत्र को पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्र से पैदा होने वाले आतंकवाद और तस्करी की चिंताओं से निपटने में मदद की. EU ने मध्य एशियाई देशों में लोकतंत्र, क़ानून के राज और मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए भी कहा. EU के इस दबाव और ख़ास तौर से ट्यूलिप क्रांति और अंदिजान की अराजकता की वजह से मध्य एशिया की तानाशाही हुकूमतों के लिए चिंता भी पैदा हुई. इसके बाद, यूरोपीय संघ द्वारा अच्छे शासन को संस्थागत बनाने पर ज़ोर देने के कारण मध्य एशिया की तानाशाही सरकारों ने उसके प्रति उपेक्षा का भाव अपना लिया.
जनवरी और जुलाई 2022 में कज़ाख़िस्तान और उज़्बेकिस्तान में हुए विरोध प्रदर्शनों के साथ साथ किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच सीमा विवाद ने इन देशों के बीच आपसी संबंध को भी तनावपूर्ण बनाए रखा है. इसी वजह से अब CARs, क्षेत्र के एकीकरण को काफ़ी गंभीरता से लेने लगे हैं. रूस और चीन के प्रभाव को सीमित करने और अपनी ‘सामरिक स्वायत्तता’ बनाए रखने के लिए मध्य एशियाई देशों ने बहुआयामी विदेश नीति अपनाई है. इसके तहत ये देश EU के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाश रहे हैं, और संस्थानों के बीच तालमेल से फ़ैसले लेने की व्यवस्थाएं विकसित करने, एकीकरण के माध्यम और आपस में व्यापार को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. यूरोपीय संघ ने भी इन देशों की तरफ़ से बढ़ाए गए दोस्ती के हाथ को थामा है, और, संवाद को बढ़ाकर सीमा विवाद और संघर्ष का समाधान करने, पूंजी देने, उच्च स्तर के दौरों और संस्थागत तरीक़े से ज्ञान के आदान प्रदान के ज़रिए सहयोग को गति दी है.
यूरोपीय संघ ने इस क्षेत्र को पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्र से पैदा होने वाले आतंकवाद और तस्करी की चिंताओं से निपटने में मदद की. EU ने मध्य एशियाई देशों में लोकतंत्र, क़ानून के राज और मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए भी कहा.
2019 में मध्य एशियाई देशों के लिए EU की नई रणनीति में व्यापक टिकाऊ और नियमों पर आधारित कनेक्टिविटी, अफ़ग़ानिस्तान में शांति और सुरक्षा के लिए सहयोग और एकीकरण पर ज़ोर दिया गया है. 2022 के बाद पैदा हुई भू-राजनीतिक चिंताओं ने इस क्षेत्र के साथ यूरोपीय संघ के संवाद को और बढ़ावा दिया है. मध्य एशियाई देशों के लिए EU एक सकारात्मक कनेक्टिविटी, व्यापार और निवेश का साझीदार बनकर उभरा है. इसकी तुलना में मध्य एशियाई देशों ने यूरोपीय संघ को महत्वपूर्ण कच्चे माल मुहैया कराने के भरोसेमंद स्रोत, पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी एशिया के साथ संपर्क का विकल्प दिया है. इसके अलावा, CARs ने ट्रांस कैस्पियन इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट रूट या मिडिल कॉरिडोर के साथ आपूर्ति श्रृंखलाओं के केंद्र के साथ लिंक मुहैया कराने का भी प्रस्ताव दिया है.
2021 से 2024 के दौरान EU ने मध्य एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण के लिए 15 करोड़ डॉलर की रक़म आवंटित की थी. इसके अलावा EU ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों अपने सदस्य देशों (Team Europe) और मौजूदा ग्लोबल गेटवे फंड के साथ मिलकर इस क्षेत्र की डिजिटल कनेक्टिविटी (जिसमें सैटेलाइट भी शामिल हैं), पनबिजली और तेल-गैस की ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पूंजी उपलब्ध कराने को भी प्राथमिकता दी है. वहीं, मध्य एशियाई देश अपनी ओर से स्वचालित भुगतान व्यवस्थाओं के ज़रिए सीमा के आर-पार कार्गो की आवाजाही में सुधार कर रहे हैं. और ये देश CAREC डिजिटल रणनीति 2030 के तहत ई-लॉजिस्टिक्स मंचों के ज़रिए सूचना के आदान प्रदान को बिना काग़ज़ के करने को प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिससे यूरोपीय संघ और मध्य एशिया के बीच आपसी व्यापार और निवेश को बढ़ावा दिया जा सके.
हालांकि, EU के बहुत से बड़े अधिकारी और पास-पड़ोस में स्थित भारत और तुर्की जैसे देशों ने, ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यूरोप कॉकेशस एशिया (TRACECA) के लिए ज़्यादा पूंजी देने की ज़रूरत को रेखांकित किया है, क्योंकि ये मिडिल कॉरिडोर तक सामान इसी के ज़रिए पहुंच सकता है. यूक्रेन के संकट ने मिडिल कॉरिडोर के मौजूदा व्यापारिक और आवाजाही के रास्तों पर दबाव बढ़ा दिया है. ऐसे में रूस से बचते हुए ये गलियारा, कम लागत में 75,000 से 100,000 TEU (20 फुट के बराबर इकाई) तक सामान पहुंचा सकता है. यूरोप के पुनर्निर्माण और विकास बैंक (EBRD) के हालिया मूल्यांकन के मुताबिक़ मिडिल कॉरिडोर में 18 अरब यूरो के निवेश की ज़रूरत है, जिससे अलग अलग देशों के नियमों में तालमेल, जहाज़ निर्माण की सुविधाएं, सुधरे हुए और ज़्यादा कुशल संपर्क केंद्र, अफ़सरशाही को कम करने और, क्षेत्र के भीतर और मध्य एशियाई देशों के बीच सीमा शुल्क का तालमेल बढ़ाया जा सके और इस कॉरिडोर की पूरी क्षमता 600,000 TEU का इस्तेमाल किया जा सके.
सुरक्षा के नज़रिए से यूरोपीय संघ और CARs, अफ़ग़ानिस्तान के बिगड़ते हालात को लेकर सहमत हैं. उनकी मुख्य चिंता जातीय अल्पसंख्यकों और महिलाओं की बिगड़ी हालत, कट्टर आतंकवाद की रोकथाम और अफ़ग़ानिस्तान में सभी वर्गों की भागीदारी वाली सरकार की वकालत करने को लेकर है. 2022 में इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान (ISKP) और दूसरे आतंकवादी संगठनों ने उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में अपने अड्डों से उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान पर रॉकेट से हमले किए थे. अप्रैल 2023 में ताजिकिस्तान के सुरक्षा बलों ने बेहद उथल-पुथल भरी ताजिक अफ़ग़ान सीमा पर दो आतंकवादियों को मारा था और उनसे ऑटोमैटिक हथियारों की भारी खेप बरामद की थी.
इसके साथ साथ, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में ISKP और अल क़ायदा जैसे संगठनों में मध्य एशिया स्थित आतंकवादी संगठनों जैसे कि इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ उज़्बेकिस्तान (IMU), इस्लामिक जिहाद यूनियन (IJU), जमात अंसारुल्लाह और उज़्बेक व ताजिक आतंकवादियों की मौजूदगी ने भी मध्य एशियाई देशों की फ़िक्र को बढ़ा दिया है.
मध्य एशियाई देशों के साथ अपने बेहतर हुए संबंधों और क्षेत्र के हितों को देखते हुए, अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान में आतंकवादियों की मौजूदगी, यूरोपीय संघ की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा पैदा करती है. आतंकवाद, संघर्ष, ज़ोर ज़बरदस्ती से अप्रवास और यूरोपीय संघ समेत पूरे क्षेत्र में आतंकवाद के असर की बेहद गंभीर और साझा चिंताओं को देखते हुए, EU की संसद ने कई अंदरूनी मेमो जारी किए हैं. इनमें कॉमन सिक्योरिटी ऐंड डिफेंस पॉलिसी (CSDP) जैसी व्यवस्थाओं या फिर निगरानी और प्रशिक्षण के अन्य मिशनों के ज़रिए सुरक्षा पर अधिक केंद्रित नज़रिया अपनाने की अपील की है.
वहीं दूसरी तरफ़, रूस और चीन ने बिल्कुल दूसरी तरह का मॉडल अपनाया है. दोनों देश इस क्षेत्र की दूरगामी स्थिरता, विकास और प्रशासन को तरज़ीह देने के बजाय, फ़ौरी हितों जैसे कि, सुरक्षा और निवेश को प्राथमिकता देते हैं. आपसी सहयोग से दबदबा क़ायम करने का मॉडल इस्तेमाल करते हुए रूस इस क्षेत्र में सुरक्षा की गारंटी देता है, वहीं चीन शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का इस्तेमाल करते हुए अपना आर्थिक दबदबा बढ़ाता है.
चीन ने अपने बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का इस्तेमाल भी इस क्षेत्र की सामरिक स्थिति और संसाधनों से लाभ उठाने के लिए किया है, जिससे वो साझा मालिकाना हक़ के सिद्धांतों को दरकिनार करके अपने संकीर्ण हित साधता है, जिससे मध्य एशियाई देश क़र्ज़ के बोझ तले दब गए हैं. BRI के निवेश के ज़रिए चीन, अपनी क्षेत्रीय आकांक्षाएं पूरी करने और शिनजियांग की सुरक्षा के लिए ख़तरे कम करने की कोशिश कर रहा है, जो उसका सबसे उथल-पुथल वाला और दुनिया में सबसे ज़्यादा सेना की मौजूदगी वाला सूबा है. इसकी वजह से चीन के BRI क़र्ज़ के जाल ने ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे ग़रीब देशों में चिंता बढ़ा दी है. अगर ये देश क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहते हैं तो चीन के BRI के ठेकों की अनिवार्य शर्तों के तहत उन्हें अपनी राष्ट्रीय संपत्तियां चीन के हवाले करनी पड़ सकती हैं.
इस बढ़ती नकारात्मक छवि से निपटने के लिए मई 2023 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पांच मध्य एशियाई देशों के साथ बीजिंग में C+C5 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी. इसका मक़सद चीन को इस क्षेत्र के दादा के बजाय विकास में साझीदार के तौर पर पेश करना था.
हालांकि, चीन जिस तरह से शिनजियांग में वीगर मुसलमानों पर ज़ुल्म ढा रहा है, उस वजह से मध्य एशिया के आम लोगों के बीच चीन विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से इन देशों के संबंध शिंजियांग से रहे हैं. 2015 के बाद से CARs और ख़ास तौर से किर्गिस्तान , ताजिकिस्तान और कज़ाख़िस्तान में 150 से ज़्यादा चीन विरोधी प्रदर्शन हुए हैं. इस बढ़ती नकारात्मक छवि से निपटने के लिए मई 2023 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पांच मध्य एशियाई देशों के साथ बीजिंग में C+C5 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी. इसका मक़सद चीन को इस क्षेत्र के दादा के बजाय विकास में साझीदार के तौर पर पेश करना था. C+C5 शिखर सम्मेलन के बाद चीन और उज़्बेकिस्तान के बीच 15 अरब डॉलर के व्यापार, निवेश और सहयोग का समझौता हुआ था. इस समझौते में चीन, किर्गिस्तान और उज़्बेकिस्तान (CKU) के बीच रेलवे लाइन बिछाने का भी प्रस्ताव है.
EU के साथ मध्य एशियाई गणराज्यों के रिश्ते साझा सामरिक सिद्धांतों पर आधारित हैं. CARs द्वारा सामरिक स्वायत्तता पर नए सिरे से ज़ोर देना, भारत के उस रुख़ से मेल खाता है, जिसके तहत वो 21वीं सदी में बड़ी ताक़तों की प्रतिद्वंदिता में किसी भी एक देश का पक्ष लेने से परहेज़ करने पर ज़ोर देता है. इसके साथ साथ मिडिल कॉरिडोर में यूरोपीय संघ की दिलचस्पी, भारत की महत्वाकांक्षी उत्तर दक्षिण व्यापार गलियारे की महत्वाकांक्षा के लिए भी मुफ़ीद है.
मध्य एशियाई गणराज्यों में राजनीतिक सुधारों की मांग लगातार बढ़ रही है. इनमें से बहुत से देश जैसे कि उज़्बेकिस्तान और कज़ाख़िस्तान ने अपनी जनता की पसंद से संवैधानिक सुधार भी किए हैं, जिससे क़ानून के राज और धीरे धीरे लोकतंत्र लाने की उनकी आकांक्षाएं पूरी की जा सकें. यूरोपीय संघ इन राजनीतिक और आर्थिक सुधारों के साथ अपना तालमेल बिठा सकता है. लेकिन, उसे इस मामले में सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि EU का मुक़ाबला रूस और चीन से है, जिनका इन मूल्यों से कोई वास्ता नहीं है. यूरोपीय संघ को चाहिए कि वो क्षेत्रीय अस्थिरता को लेकर इन देशों की वाजिब चिंताओं को भी समझे. EU की मध्य एशियाई रणनीति को व्यवहारिक, कारोबारी और स्थिरता बढ़ाने वाले लोकतांत्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो इसके नए और सोच समझकर लाए गए विधेयकों से मेल खाते हों. यूरोपीय संघ को चाहिए कि वो क़ानून के राज और कामगारों के अधिकारों को प्राथमिकता देने के साथ साथ इस क्षेत्र में नई आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारी रक़म निवेश करने की गारंटी भी दे.
मध्य एशिया और EU की नई नीतियों को भारत जैसे साझीदार सुरक्षा, लोकतंत्र और कारोबार के नज़रिए से समर्थन देने की अच्छी स्थिति में हैं. ख़ास तौर से तब और जब सभी देश, एक स्वतंत्र, और सामरिक रूप से स्वायत्त नीति निर्माण की नई भावना का सम्मान करने वाले हैं.
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
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