यह लेख रायसीना एडिट 2022 नामक सीरिज़ का हिस्सा है.
शांति को बढ़ावा देने के लिए यूरोपीय संघ (ईयू) का नैरेटिव इससे पहले कभी इतना ज़्यादा प्रासंगिक नहीं रहा. दुनिया भर में लाखों लोगों की जान लेने वाली घातक कोरोना महामारी के दो साल बाद, जिसने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर कहर बरपाया, और राजनीतिक और सामाजिक दरारों को और ज़्यादा गहरा कर दिया, यूरोपीय संघ आज उसी चीज़ का सामना करने पर मज़बूर है जो पिछले सात दशकों तक अकल्पनीय लग रहा था: यह यूरोपीय महादेश में ज़मीन पर छिड़ी जंग के बारे में है. यूक्रेन पर क्रूर और बेवज़ह हमले के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने न केवल एक पड़ोसी राज्य की संप्रभुता को तहत-नहस किया है बल्कि उन्होंने यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था को भी सीधी चुनौती दी है.
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने अपने करीबी सहयोगियों के साथ, रूस पर एक साथ कई सख़्त आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान किया है और यूक्रेन को हथियार ख़रीदने और उसे वितरित करने के लिए गठबंधन जोड़ा है.
पुतिन की आक्रामकता के मद्देनज़र, यूरोपीय संघ और पश्चिमी देशों ने उल्लेखनीय संकल्प और एकजुटता का प्रदर्शन किया है. जिन नीतियों पर लंबे समय से बहस जारी थी उन्हें अचानक ही रातों रात अपना लिया गया है. यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने अपने करीबी सहयोगियों के साथ, रूस पर एक साथ कई सख़्त आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान किया है और यूक्रेन को हथियार ख़रीदने और उसे वितरित करने के लिए गठबंधन जोड़ा है. यूक्रेन के पड़ोसियों सहित कई देशों ने शरणार्थियों के लिए अपनी सरहदें खोल दी हैं, जिन्हें यूरोपीय संघ में रहने और काम करने का अधिकार दिया गया है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर ज़ेलेंस्की के जज़्बे और बहादुरी से प्रेरित होकर यूरोपीयन यूनियन भी अपनी गहरी भू-सामरिक नींद से बाहर निकला है. लंबे समय के बाद इसने उन सिद्धान्तों की रक्षा के लिए जो इसके और दूसरे देशों के बीच किए गए समझौतों का हिस्सा है, ख़ुद को पुन:संवर्धित किया है और एकजुट हुआ है – मानवीय गरिमा, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता, कानून के शासन और मानव अधिकारों के लिए सम्मान, जिसमें अल्पसंख्यकों के हक़ भी शामिल हैं.(अनुच्छेद 2,यूरोपीयन यूनियन संधि).
कोल्ड वॉर के परिणामस्वरूप बिना किसी सवाल के भरोसे के उदार लोकतंत्र को बढ़ावा दिए जाने के ठीक उलट यूरोपीय महादेश और उससे भी इतर देशों में शांति, स्वतंत्रता और प्रजातंत्र को स्थापित करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. यूक्रेन पर पुतिन की आक्रामकता मौज़ूदा वैश्विक व्यवस्था को नज़रअंदाज़ करने का सबसे ताज़ा उदाहरण है.
बनने के क्रम में इतिहास
जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर (24 फरवरी, 2022) हमला बोला वह तारीख़ ख़ुद में ही एक ऐतिहासिक बदलाव की घड़ी थी. हालांकि, अब जो हम देख रहे हैं वो ना तो इतिहास ख़त्म होने की मुनादी है और ना ही उदारीकरण का अंत है बल्कि यह शुरुआत है अव्यवस्था, अवरोध और असंतोष का जो दशकों तक जारी रह सकता है. ऐसे में लोकतंत्र के लिए संघर्ष और एक संप्रभु राष्ट्र के लिए उसे अपनी तक़दीर चुनने का हक़ अब ज़्यादा प्रासंगिक हो गए हैं लेकिन ऐसे मूल्य भी इस दौर में लगातार ख़तरे की ज़द में हैं. हालांकि यूरोप द्वारा फैलाए जा रहे नैरेटिव आज कितने भी प्रासंगिक हों, यह तेज़ी से बदलते हुए विश्व में धीरे-धीरे अपनी जगह बनाता जा रहा है.
कोल्ड वॉर के परिणामस्वरूप बिना किसी सवाल के भरोसे के उदार लोकतंत्र को बढ़ावा दिए जाने के ठीक उलट यूरोपीय महादेश और उससे भी इतर देशों में शांति, स्वतंत्रता और प्रजातंत्र को स्थापित करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. यूक्रेन पर पुतिन की आक्रामकता मौज़ूदा वैश्विक व्यवस्था को नज़रअंदाज़ करने का सबसे ताज़ा उदाहरण है. बयानबाजी ने इस पूरी आक्रामकता को बढ़ाने में अपनी भूमिका भी निभाई है. चीन और रूस दोनों ने ही हथियार संबंधी अपने नैरेटिव का इस्तेमाल किया है और लगातार बेहद चालाक तरीक़े से दुष्प्रचार अभियान को आगे बढ़ाया है. एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था की उनकी दृष्टि मौज़ूदा परिस्थितियों की नाज़ुकता को उजागर करती है. फ्रीडम हाउस के मुताबिक़,कई देशों में लोकतांत्रिक शासन पिछले 16 वर्षों से धीरे-धीरे नेपथ्य में जा रहा है. यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जो केवल कोरोना महामारी के दौरान और भी तेज़ी से फैली है. यूरोप में भी अलोकतांत्रिक और गैरउदारवादी विचारों ने ज़ोर पकड़ना शुरू कर दिया है.
अपने अंधेरे अतीत को खुले तौर पर स्वीकार करने की नाकामी इस बात का जोख़िम बढ़ा देती है कि यूरोप के विरोधी पश्चिमी सभ्यता की आक्रामकता और अहंकार का जो नैरेटिव फैलाने में लगे हैं उसे कहीं इससे ज़्यादा बल ना मिल जाए और यह बात खुले तौर पर कही जाने लगे कि उदार प्रजातंत्र को लेकर पश्चिमी देश पाखंड कर रहे हैं.
इसके अलावा यूरोप और व्यापक पश्चिमी राष्ट्रों की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय की रक्षा के लिए जो उत्साह दुनिया के अन्य हिस्सों में दिखना चाहिए उसे लेकर भी कोई ख़ास प्रगति होती नहीं दिख रही है. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की आलोचना करने में चीन की आनाकानी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. अन्य शक्तियां- जैसे भारत, दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम- जिनके साथ यूरोपीय संघ लंबे समय से अपने संबंधों को और गहरा करने की बात कहता रहा है, उन्होंने ने भी खुलकर रूस के युद्ध की निंदा करने से परहेज़ किया है. ऐसे में यह सब इस बात का प्रतीक है कि यूरोप के तत्काल सहयोगियों से परे, मौज़ूदा वैश्विक व्यवस्था की रक्षा के लिए समर्थन मिलना मुश्किल होगा. अगर यूरोप की वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति को ज़्यादा सक्रिय बनाना है तो इसके लिए फौरन पश्चिमी देशों से परे देशों की स्थितियों को समझाना महत्वपूर्ण होगा. एक व्यापक वैश्विक आम सहमति के लिए ख़ुद की एकता को ताक पर रखने से अन्य शक्तियों के यूरोपीय गठबंधन से बाहर जाने का जोख़िम बढ़ जाता है.
इसे प्रभावी ढंग से अमल में लाने के लिए यूरोपीय देशों को – व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से – अपने औपनिवेशिक अतीत की आक्रामकता को स्वीकार करना होगा. क्योंकि उपनिवेशवाद की गूंज अभी भी स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर यूरोप के नए नैरेटिव पर हावी दिखती है. और अक्सर यह अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के देशों के साथ भागीदारी बढ़ाने में बाधा के तौर पर खड़ा होता है. अपने अंधेरे अतीत को खुले तौर पर स्वीकार करने की नाकामी इस बात का जोख़िम बढ़ा देती है कि यूरोप के विरोधी पश्चिमी सभ्यता की आक्रामकता और अहंकार का जो नैरेटिव फैलाने में लगे हैं उसे कहीं इससे ज़्यादा बल ना मिल जाए और यह बात खुले तौर पर कही जाने लगे कि उदार प्रजातंत्र को लेकर पश्चिमी देश पाखंड कर रहे हैं.
प्रजातंत्र के रक्षक का ‘नैरेटिव’
इसके साथ ही यूरोप को रूस और चीन के नव साम्राज्यवादी रवैये के लिए खुल कर आवाज़ उठानी होगी जो अपने पड़ोसी देशों की स्वतंत्रता को चुनौती देने या अफ्रीकी महाद्वीप के ज़्यादातर हिस्सों में अपने कच्चे माल को खपाने को लेकर किए जा रहे शोषण से जुड़ा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने भाषण के दौरान यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को “पिछले साम्राज्यों के शोलों को भड़काने” के तौर पर आलोचना करते हुए संयुक्त राष्ट्र में केन्याई राजदूत, मार्टिन किमानी ने साफ कर दिया कि इसका इस्तेमाल कैसे अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है.
अगर पश्चिमी राष्ट्र मानवता के परिप्रेक्ष्य में स्वंतंत्रता और लोकतंत्र की अवधारणा की चर्चा करेंगे और इसे एक ऐसी चुनौती के तौर पर लेंगे जिसका सामना सभी यूरोपीय देश कर रहे हैं, तब यूरोपीय राष्ट्रों का प्रजातंत्र के रक्षक होने के नैरेटिव की गूंज ज़्यादातर देशों में सुनी जा सकेगी.
यह समान रूप से यूरोपीय यूनियन के लिए भी अहम है कि वो उदार लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देने वालों के ख़िलाफ़ सख़्ती के साथ खड़ा हो. अपने घर में प्रजातंत्र और कानून सम्मत व्यवस्था को लेकर कमियों को खुले तौर पर स्वीकार कर लेने से यूरोपीय यूनियन उन देशों के साथ रिश्ता बना पाएगा जहां ऐसी ही समस्याओं ने उन्हें जकड़ा हुआ है. अगर पश्चिमी राष्ट्र मानवता के परिप्रेक्ष्य में स्वंतंत्रता और लोकतंत्र की अवधारणा की चर्चा करेंगे और इसे एक ऐसी चुनौती के तौर पर लेंगे जिसका सामना सभी यूरोपीय देश कर रहे हैं, तब यूरोपीय राष्ट्रों का प्रजातंत्र के रक्षक होने के नैरेटिव की गूंज ज़्यादातर देशों में सुनी जा सकेगी.
मौजूदा रूस यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोप को इसे लेकर एक नई स्पष्टता समझ आई है कि वह किन मूल्यों के लिए असल में खड़ा है. शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए लड़ने के सामूहिक प्रयासों के इर्द-गिर्द निर्मित एक नैरेटिव की गूंज आज भी उतनी ही तेज़ी से सुनाई दे रही है. भरोसे के लिए एक समूह का समर्थन जुटाकर यूरोपीय संघ एकता और निर्णायकता की मिसाल सामने रख सकता है, जिसके लिए उसे पहले घरेलू स्तर पर भू-राजनीतिक, आर्थिक, पारिस्थितिक और घरेलू चुनौतियों का सामना करना होगा. दुनिया भर के अपने साझेदारों के साथ अपनी ख़ुद की दुर्दशा को बताने के लिए, यूरोपीय संघ को यह सुनने और आत्मसात करने की भी ज़रूरत है कि दुनिया भर के अन्य लोग इसे किस रूप में देखते हैं.
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