स्थिति
सितंबर 2021 तक भारत की कुल नॉन फॉसिल फ्यूल पावर पैदा करने की क्षमता 154,825 मेगावाट(एम डब्ल्यू) है जो देश की कुल बिजली पैदा करने की क्षमता 388,848 मेगावाट का लगभग 39.8 फ़ीसदी है. नई रिन्युएबल एनर्जी (Renewable energy) क्षमता (न्यूक्लियर और हाइड्रो पावर को छोड़कर) कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 26 फ़ीसदी है, जिसकी हिस्सेदारी कोयला आधारित बिजली उत्पादन के बाद दूसरा सबसे बड़ा है. नॉन फॉसिल फ्यूल आधारित क्षमता के तहत सौर ऊर्जा, हवा, छोटे हाइड्रोपावर, बायोमास और दूसरे संसाधनों की हिस्सेदारी 65 फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा है जबकि हाइड्रोपावर से बिजली उत्पादन क्षमता 30 फ़ीसदी और न्यूक्लियर संसाधनों से बिजली उत्पादन महज 4 फ़ीसदी होती है.
स्टैंड-बाय क्षमता
क्षमता की हिस्सेदारी के आधार पर अक्षय ऊर्जा (Renewable energy) आधारित बिजली उत्पादन 101,532 मेगावाट की क्षमता दूसरी सबसे ज़्यादा है, जो साल 2020-21 के कुल बिजली उत्पादन का महज 10 फ़ीसदी है, जो हाइड्रो पावर उत्पादन की बराबरी करता है और आरई की क्षमता का आधा है. कोयला आधारित बिजली उत्पादन का साल 2020-21 में 79 फ़ीसदी बिजली उत्पादन क्षमता में 54 फ़ीसदी हिस्सेदारी थी. विशिष्ट उत्पादन या क्षमता की प्रति इकाई उत्पन्न बिजली के संदर्भ में जो आर्थिक दक्षता का संकेत है, साल 2020-21 में न्यूक्लियर पावर सबसे ज़्यादा सक्षम रहा जिसका स्कोर 6 से ज़्यादा है, जबकि आरई पावर सबसे कम सक्षम है जिसका स्कोर 1 से भी कम रहा. ऐसा आरई की निम्न क्षमता के कारणों से है जो सबसे बेहतर 15-20 फ़ीसदी की रेंज में रहता है. बिना स्टैंड-बाय क्षमता के, उच्च आरई पावर व्यवस्था आपूर्ति की सुरक्षा को लेकर समझौता करने की स्थिति है, जैसा कि हाल ही में देश भर में बिजली की किल्लत की स्थिति ने आभास कराया था. किसी भी वक्त आरई पर आपूर्ति के लिए पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता है, अन्य संसाधन जैसे भुगतान कर स्टैंड-बाय क्षमता को सुनिश्चित करना (या तो बैटरी के रूप में या फिर गैस या फिर कोयला आधारित बिजली उत्पादन) या फिर जब ज़रूरी हो तो उपभोक्ताओं को कम मांग के लिए क्षतिपूर्ति करना जैसे विकल्प अपनाए जा सकते हैं. भारत अक्सर दूसरे विकल्प का चुनाव करता रहा है जिसके तहत मांग को रोकने के लिए ग्रामीण इलाके के उपभोक्ताओं (या फिर चुनाव के दौरान जब कुछ समय के लिए जनता की चिंता ज़्यादा होती है तब औद्योगिक उपभोक्ताओं) की बिजली की कटौती की जाती है. हालांकि यह भारत के लिए बैक-अप सिस्टम है लेकिन यह उल्टा है और इसे फौरन ख़त्म करने की ज़रूरत है. आपूर्ति सुनिश्चित करने का दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि बिजली, क्षमता और सहायक सेवाओं के लिए जीवंत बाज़ार पैदा करना चाहिए. भारत तकनीकी रूप से सिर्फ़ ऊर्जा का एक बाज़ार है लेकिन भारत के बिजली सेक्टर के लिए बाज़ार शब्द का इस्तेमाल इसे जबरन विस्तार देना है जैसा कि बिजली शुल्क बाज़ार के संकेतों का जवाब नहीं देता है.
भारत अक्सर दूसरे विकल्प का चुनाव करता रहा है जिसके तहत मांग को रोकने के लिए ग्रामीण इलाके के उपभोक्ताओं (या फिर चुनाव के दौरान जब कुछ समय के लिए जनता की चिंता ज़्यादा होती है तब औद्योगिक उपभोक्ताओं) की बिजली की कटौती की जाती है. हालांकि यह भारत के लिए बैक-अप सिस्टम है लेकिन यह उल्टा है और इसे फौरन ख़त्म करने की ज़रूरत है.
सिर्फ ऊर्जा और क्षमता बाज़ार
ऊर्जा क्षमता बाज़ार का मकसद प्रतिभागियों को भविष्य में वितरण वर्षों के लिए बिजली उत्पादन करने के लिए भुगतान करके ग्रिड की विश्वसनीयता को सुनिश्चित करना होता है. सिर्फ ऊर्जा बाज़ार, इसके इतर, जनरेटर को तभी भुगतान करते हैं जब वे प्रतिदिन के आधार पर बिजली सप्लाई करते हैं. क्षमता बाज़ार उत्पादन क्षमता को रोकते हैं जो केवल ऊंची कीमतों पर अतिरिक्त ऊर्जा की आपूर्ति करता है जबकि थोक बिजली बाज़ार का इतना इस्तेमाल करता है कि यह व्यवस्था की विश्वसनीयता पर असर डाल सकता है. एडवांस में आय के वर्षों को सुनिश्चित करने का मौका जनरेटर वालों को नए प्लांट लगाने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करता है. लेकिन यह मॉडल बेकार भी हो सकता है, क्योंकि संबंधित उपयोगिता को लेकर सिर्फ वही भुगतान होगा जो लोडिंग की क्षमता की लागत होगी, जो हो सकता है कि आने वाले वर्षों में अमल में नहीं लाया जाएगा. क्षमता बाज़ार भी मंदी से प्रभावित होती है जो बाज़ार से बाहर सब्सिडी का परिणाम है. अगर ऐसे संसाधन भी बिना किसी रोक-टोक के कीमत लेने वालों के तौर पर क्षमता बाज़ार में एंट्री कर लेते हैं, तो नियामक आय के संतुलन स्थापित करने के लिए क्षमता बाज़ार की योग्यता से समझौता कर लेता है. क्षमता को लेकर भुगतान भी व्यापारिक बाज़ारों पर मूल्य संकेतों को प्रभावित कर सकता है, जो बाज़ार की कमी को रोकता है. क्षमता को लेकर पारिश्रमिक भी जनरेटर के दोहरे भुगतान का जोख़िम बढ़ा देता है.
सहायक सेवा बाज़ार उत्पादन गुणवत्ता के लिए संसाधनों के सही संयोजन को हासिल करने के लिए होता है ना कि उत्पादन पर्याप्तता के लिए. इन सेवाओं का प्रतिस्पर्धी कारोबार कुछ थोक बिजली बाज़ारों का नहीं बल्कि सभी का हिस्सा होता है.
विकसित ऊर्जा बाज़ार में यह ऊर्जा और क्षमता दोनों को लेकर मान्य होती है. नियामक अभावग्रस्त मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया द्वारा विश्वसनीयता को बहाल करते हैं, जो दिन में जब सबसे ज़्यादा मांग रहती है तब रियल टाइम बिजली की कीमत को बढ़ाने की अनुमति देता है. क्षमता बाज़ार के जरिए उत्पादन राजस्व की गारंटी देने के बजाय, उच्च कीमत के वादे का मतलब यह है कि यह नए संयंत्र बनाने और उन्हें संचालित करने के लिए जनरेटर को प्रोत्साहित करता है. सिर्फ ऊर्जा बाज़ार में ग्रिड के संरक्षित मार्जिन को उच्च स्तर पर बनाए रखा जाता है जिससे जनरेटर अपनी पूंजीगत लागतों को वसूल कर सकते है. हालांकि चिंता की बात यह है कि ऊर्जा बाज़ार बिजली की कम कीमतों के चलते लगातार अस्थिर हो सकता है – कुछ ऊर्जा स्वरूपों पर सब्सिडी देने या फिर मांग में कमी होने की वजह से – जनरेटर को क्षमता बाज़ार को बिना गारंटी आय दिए जाने पर नए पावर प्लांट निर्माण करने से रोक सकता है. अनिवार्य तौर पर सिस्टम में पर्याप्त लचीलेपन को सुनिश्चित कर भविष्य की क्षमताओं के लिए निवेश सुनिश्चित करना एक अलग विषय है.
इस तरह से डिज़ाइन किया गया है क्षमता बाज़ार
एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि केवल ऊर्जा वाले बाज़ार में, जनरेटर को उस दिन का इंतज़ार करना चाहिए जब वास्तविक समय की कीमतों में काफी बढ़ोतरी दर्ज़ की जाएगी. क्षमता बाज़ार के साथ कुछ हद तक आय की गारंटी है. क्षमता बाज़ार इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि जो निम्न ऊर्जा बाज़ार कीमतों में क्षमता बाज़ार में जनरेटर के लिए उच्च आय के साथ संतुलन लाता है. क्षमता पारिश्रमिक प्रक्रिया होलसेल बाज़ार और ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में मांग को लेकर गतिविधियों में निवेश के प्रोत्साहन को कम कर देता है. वे व्यापार को लाभदायक बनाने वाले शीर्ष कीमतों को कम करके सीमा पार बिजली व्यापार में भी अवरोध डालने का काम करते हैं. लंबी अवधि में, केवल ऊर्जा और क्षमता बाज़ार निर्माण ही उपभोक्ताओं को समान लागत का नतीजा दे सकते हैं.
तीसरा विकल्प जो अक्सर क्षमता बाज़ार मान लिया जाता है, उसका सहायक सेवाओं के बाज़ार के इस्तेमाल के लिए होता है, जो प्रतिदिन सिस्टम की स्थिरता के लिए कम अवधि के लिए संरक्षित उत्पादन और ग्रिड सपोर्ट की खरीद करता है. जैसा कि आरई के अनुपात में वृद्धि जारी रहती है, लिहाजा दैनिक परिचालन स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सहायक सेवाओं की मांग बढ़ने की संभावना रहती है. सहायक सेवाओं की खरीद बिक्री महीने, सप्ताह, दिन और घंटे के हिसाब से होती है ना कि साल भर में क्षमताओं के लिए. दरअसल सहायक सेवा बाज़ार उत्पादन गुणवत्ता के लिए संसाधनों के सही संयोजन को हासिल करने के लिए होता है ना कि उत्पादन पर्याप्तता के लिए. इन सेवाओं का प्रतिस्पर्धी कारोबार कुछ थोक बिजली बाज़ारों का नहीं बल्कि सभी का हिस्सा होता है. यदि उत्पादक सहायक सेवाओं की बिक्री से राजस्व पैदा हो सकता है तो संयंत्रों को ऑनलाइन रखने के लिए क्षमता भुगतान की आवश्यकता को कम करना इससे आसान हो सकता है. एक उचित तरीके से काम करने वाली ऊर्जा और सेवा बाज़ार भारतीय ग्रिड को आवश्यक सभी क्षमता प्रदान कर सकने में सक्षम है.
दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि बिजली उत्पादन क्षमता के रणनीतिक भंडार को बचा कर रखा जा सकता है और क्षमता तंत्र पूरी तरह से थोक बाज़ार से बाहर खरीदा जाए, जिससे यह भारत में ऊर्जा बाज़ार विकसित करने की दिशा में उठाए गए कदमों से समझौता नहीं करने जैसा साबित हो.
भारत इस स्थिति से काफी दूर है क्योंकि यह केवल एक अधूरा ऊर्जा बाज़ार है, बल्कि इसलिए भी कि भारत की ऊर्जा आपूर्ति गैर-ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करती है जैसे विकास के लिए सब्सिडी प्रदान करना. हालांकि, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, भारत के केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) ने एक सहायक सेवा बाज़ार विकसित करने की संभावना का अध्ययन किया है लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि एक बेहतर तरीके से डिज़ाइन किया गया बाज़ार जो जनरेटर के लिए फायदे का सौदा हो जिससे सहायक सेवाएं (अल्प अवधि के संसाधन और ग्रिड सपोर्ट करने वाले उत्पाद) भारत में भविष्य की क्षमताओं में निवेश को बढ़ावा दे सकें. चिंता की बात यह है कि निरंतर नीति समर्थित आरई परिवर्धन बिजली की कीमतों को कम रख सकता है, जिससे जनरेटर के लिए नए प्लांट बनाने के लिए प्रोत्साहन कम हो सकता है. अधिकांश आरई “आकांक्षापूर्ण क्षमता” है, जो क्षमता सीधे तौर पर जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अनुबंधित है, हालांकि ज़रूरी नहीं कि इन क्षमताओं की आवश्यकता होती है. नई पीढ़ी के लिए बाज़ार प्रोत्साहन को संरक्षित करने की ज़रूरत के साथ ही ज़्यादा आरई की मांग करने वाले पर्यावरण के लक्ष्यों को समेटना एक महत्वपूर्ण चुनौती है.
अगर भारत का बिजली सेक्टर आगे चलकर एक बेहतर बाज़ार में परिवर्तित होता है, तो सैद्धान्तिक तौर पर कम से कम, मूल्य विश्वसनीयता के साथ ही निवेशकों को संसाधनों की आपूर्ति के लिए क्षतिपूर्ति कर सकती है. एक अच्छी तरह से काम कर रहे थोक बिजली बाज़ार को आपूर्ति और मांग की बदलती ताकतों के जवाब में ऊर्जा, समर्थन सेवाओं और क्षमता को अहमियत देनी चाहिए. सहायक सेवा बाज़ार जो अपनी कीमत को बढ़ाकर लचीले संसाधनों के अभाव को कम करता है, वह पीकिंग प्लांट को संचालित करने के लिए लाभदायक बना सकता है.
दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि बिजली उत्पादन क्षमता के रणनीतिक भंडार को बचा कर रखा जा सकता है और क्षमता तंत्र पूरी तरह से थोक बाज़ार से बाहर खरीदा जाए, जिससे यह भारत में ऊर्जा बाज़ार विकसित करने की दिशा में उठाए गए कदमों से समझौता नहीं करने जैसा साबित हो. सामरिक तेल भंडार के संदर्भ में भी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा (ऊर्जा सुरक्षा) के लिए सरकार द्वारा स्वामित्व और संचालित किया जाना चाहिए जो सार्वजनिक रूप से बेहतर हो सकता है. हालांकि बिजली उत्पादन के लिए रणनीतिक भंडार कम समय के लिए व्यवस्था में उपजी मांग को पूरा करने के लिए एक व्यावहारिक और अपेक्षाकृत सरल समाधान हो सकता है लेकिन रणनीतिक रिजर्व के साथ जोख़िम यह होता है कि समय के साथ यह क्षमता बाज़ार जैसा ही महंगा हो सकता है.
सहायक बाज़ार के मूल्यांकन और आरक्षित क्षमता की खरीद में हस्तक्षेप किए बिना भविष्य की पर्याप्त क्षमता में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए भी ज़रूरी है कि फायदे की एक नई प्रक्रिया या फिर पूरी तरह से एक नया बाज़ार बनाया जाए, जो हो सकता है कि परिपक्व बाज़ार की जटिलता को अपने में समेटे हो और भारत में ऐसे बाज़ार से भी संभावनाएं कम नहीं हैं.
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