बैंकिग नियामकों ने आम लोगों और अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिए स्टेबलकॉइन्स की तेज़ वृद्धि के प्रति लगातार सतर्क रहने की भावना दिखाई है. मूल रूप से पारंपरिक क्रिप्टोकरेंसियों के उतार-चढ़ाव की रोकथाम के लिए तैयार स्टेबलकॉइन्स के साथ सवाल उठता है कि क्या वो अपने नाम के अनुरूप स्थिरता का कारक बन पाए हैं. बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक आकार या समर्थन का प्रकार चाहे कुछ भी हो, कोई भी स्टेबलकॉइन अपने आधार (पेग) के साथ लगातार समानता नहीं बना पाया है. फ़िलहाल इस बात के कोई आश्वासन नहीं हैं कि स्टेबलकॉइन के जारीकर्ता, स्टेबलकॉइन के उपयोगकर्ताओं को उनकी मांग पर उन्हें पूर्ण रूप से भुनाने में सक्षम होंगे. रिपोर्ट में ये बात रेखांकित की गई है कि मौजूदा स्टेबलकॉइन्स मूल्य के सुरक्षित भंडार के तौर पर आवश्यक पात्रता पूरी करने में विफल है, और वो वास्तविक अर्थव्यवस्था में भुगतान के भरोसेमंद साधन नहीं बन पाए हैं.
यूरोपीय संघ ने 2023 में मार्केट्स इन क्रिप्टो एसेट्स (MiCA) को क्रियान्वित किया. इससे ये समग्र क्रिप्टोकरेंसी नियमनों की स्थापना का प्रारंभिक प्रमुख न्यायिक क्षेत्राधिकार बन गया. MiCA 30 दिसंबर 2024 से लागू होगा और जून 2024 से ही स्टेबलकॉइन के प्रावधान प्रभावी हो जाएंगे..
उथल-पुथल से स्थिरता
बिटकॉइन जैसी परंपरागत क्रिप्टोकरेंसियों की अंतर्निहित अस्थिरता की रोकथाम के लिए स्टेबलकॉइन्स का निर्माण किया गया था. अपने विकेंद्रीकृत स्वभाव और सीमा-रहित लेन-देनों के चलते क्रिप्टोकरेंसी भले ही क्रांतिकारी हों, लेकिन अक्सर उनके मूल्य में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखा गया है. इससे रोज़मर्रा के लेन-देनों और मूल्य के भंडार के तौर पर इनकी व्यावहारिकता कम हो जाती है. स्टेबलकॉइन्स ने इस मसले का समाधान किया और स्थिर मूल्य बरक़रार रखते हुए क्रिप्टोकरेंसी के लाभ उपलब्ध कराए.
इन डिजिटल परिसंपत्तियों को आम तौर पर परंपरागत फिएट करेंसियों के मूल्य के साथ जोड़ दिया जाता है, जिनमें अमेरिकी डॉलर या सोना या अन्य वस्तुओं जैसी दूसरी स्थिर परिसंपत्तियां होती हैं. मूल्य जोड़ने का तंत्र स्टेबलकॉइन्स के मूल्य को स्थिर रखने में मदद करता है, जिससे वो क्रिप्टोकरेंसी के व्यापक बाज़ार में देखे जा रहे अंधाधुंध मूल्य परिवर्तनों के प्रति कम संवेदनशील बन जाते हैं.
सौ बात की एक बात यही है कि ये मूल्यांकन एक बुनियादी चुनौती को रेखांकित करता है: अपने नामकरण के बावजूद स्टेबलकॉइन अंतर्निहित अस्थिरता से जूझ रहे हैं. स्थिर मूल्य बरक़रार रखने का वादा पूरा कर पाना चुनौतीपूर्ण लगता है..
स्टेबलकॉइन्स क्रिप्टो क्षेत्र में अनेक उद्देश्य पूरा करते हैं. क्रिप्टो और परंपरागत वित्तीय प्रणालियों के बीच पुल की तरह काम करके वो आदान-प्रदान का एक विश्वसनीय माध्यम प्रस्तुत करते हैं. उपयोगकर्ता अन्य क्रिप्टोकरेंसियों की चरम अस्थिरता के संपर्क में आए बिना ब्लॉकचेन-आधारित लेनदेनों की कार्यकुशलता और सुरक्षा से लाभ उठा सकते हैं. स्टेबलकॉइन्स आसानी और तेज़ रफ़्तार से सीमा पार लेन-देनों की भी सुविधा मुहैया कराते हैं और विकेंद्रीकृत प्रयोगों के लिए ज़्यादा अनुमान-योग्य खाता इकाई के तौर पर काम करते हैं. इस तरह ये ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी की व्यापक स्वीकार्यता और उपयोगिता में अपना योगदान देते हैं.
नियम-क़ायदों की सूची बनाना
प्रारंभ में उपयोग के मामलों के संभावनापूर्ण संकेतों को देखते हुए एक अप्रत्याशित और अस्थिरतापूर्ण परिसंपत्ति में स्थिरता की शुरुआत को उत्साहपूर्वक स्वीकार किया गया. स्टेबलकॉइन बिना किसी रुकावट के पीयर-टू-पीयर डिजिटल हस्तांतरणों को सक्षम बनाते हैं, जिससे कई अंतरराष्ट्रीय बैंक खाते रखने की आवश्यकता ख़त्म हो जाती है. महज़ एक क्रिप्टो वॉलेट के साथ उपयोगकर्ता सीमाओं के आर-पार दक्ष रूप से रकम भेज सकते हैं, नतीजतन डिजिटल वित्त के अनुभव में सरलता आ जाती है. हालांकि स्टेबलकॉइनों की सफलता का निर्धारण करने वाला अहम कारक उनकी वास्तविक स्थिरता पर टिका होता है. कठोर नियमनों और लाइसेंसिंग के तहत काम करने वाले पारंपरिक बैंकों के विपरीत, एक प्रमुख स्टेबलकॉइन टीथर न्यूनतम निगरानी के साथ संचालित हो रहा है, जो क्रिप्टोकरेंसी उद्योग में एक आम बात है. ये ख़ुलासा होने पर कि टीथर के पास पर्याप्त भंडार का अभाव है, हाउस ऑफ कार्ड्स बिखरना शुरू हो गया, जिसके चलते नियामकों को स्टेबलकॉइन्स की ज़्यादा व्यापक छानबीन करनी पड़ी. स्टेबलकॉइन से जुड़े पिछले विवादों ने वैश्विक अधिकारियों को कठोर ढांचे और नियमन स्थापित करने को प्रेरित किया.
यूरोपीय संघ ने 2023 में मार्केट्स इन क्रिप्टो एसेट्स (MiCA) को क्रियान्वित किया. इससे ये समग्र क्रिप्टोकरेंसी नियमनों की स्थापना का प्रारंभिक प्रमुख न्यायिक क्षेत्राधिकार बन गया. MiCA 30 दिसंबर 2024 से लागू होगा और जून 2024 से ही स्टेबलकॉइन के प्रावधान प्रभावी हो जाएंगे. “ई-मनी टोकन” (EMTs) के रूप में नामित स्टेबलकॉइन्स के फिएट मुद्रा के मूल्य या “परिसंपत्ति-संदर्भित टोकन” (ARTs) के साथ जुड़े होने पर MiCA ने विशिष्ट नियम प्रस्तुत किए हैं. इन स्टेबलकॉइनों को पर्याप्त भंडार बनाए रखना चाहिए और ठोस प्रशासकीय मानकों का पालन करना चाहिए. टोकनों के व्यापक उपयोग के साथ इसकी नियामक बाधाएं बढ़ गईं. जो स्टेबलकॉइन यूरो से जुड़े नहीं थे उन्हें रोज़ाना 10 लाख लेन-देनों की संख्या पार करने पर पूर्ण प्रतिबंध का सामना करना पड़ा. इस क़वायद का लक्ष्य यूरो के दबदबे वाली स्थिति का बचाव करना था. भले ही MiCA एक अहम प्रगति का सूचक है, लेकिन ये नियमन के क्षेत्र में आख़िरी शब्द नहीं था. इसने स्टेबलकॉइन प्रावधानों के क्रियान्वित होने से पहले उद्योग जगत के किरदारों और नियामकों को तैयारियों के लिए छह महीने की अवधि दी है.
तेज़ी से बढ़ते वैश्विक नियमनों को देखते हुए इन डिजिटल परिसंपत्तियों और क्रिप्टोकरेंसी के व्यापक प्रभावों की निरंतर जांच-पड़ताल की दरकार है. देखना दिलचस्प होगा कि क्या विनियमनों से सचमुच स्टेबलकॉइन की सुसंगत और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित हो पाएगी..
स्टेबलकॉइन ने भारत में बहस छेड़ दी है और हो सकता है कि इसने भारत के केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) के विकास में अहम भूमिका निभाई हो. भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रबि शंकर ने स्टेबलकॉइंस को लेकर चिंता जताई है, इन्हें नीति संप्रभुता के लिए ख़तरे के तौर पर देखा है और इनसे केवल कुछ मुट्ठीभर देशों को लाभ मिलने पर ज़ोर दिया है. शंकर ने दृढ़ता से कहा है कि CBDCs हर देश को स्टेबलकॉइन की तुलना में ज़्यादा स्थिर समाधान उपलब्ध कराते हैं. स्टेबलकॉइन अमेरिका और यूरोप जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए फ़ायदेमंद हो सकते हैं, जहां ये उनकी अपनी-अपनी मुद्राओं से जुड़े होते हैं, लेकिन शंकर ने भारत जैसे देश के लिए इसके संभावित जोख़िमों की चेतावनी दी है. इन ख़तरों में घरेलू अर्थव्यवस्था में भारतीय रुपये की जगह लेने का जोख़िम भी शामिल है.
नीतिगत संप्रभुता के मसले के अलावा ये सुनिश्चित करना कि स्टेबलकॉइन अपना मूल्य बरक़रार रखें और पर्याप्त भंडारों द्वारा समर्थित हों (दो स्थितियां जो उन्हें स्टेबलकॉइन के रूप में परिभाषित करती हैं), भारत में स्टेबलकॉइन विनियमन का अहम तत्व बनाती हैं. हालांकि लगातार ऐसा देखा जा रहा है कि मामला ऐसा नहीं है.
जांच और परीक्षा के घेरे में स्थिरता
स्टेबलकॉइन्स के मूल्यांकन से परेशान करने वाली सच्चाई बेपर्दा होती है: इन डिजिटल परिसंपत्तियों ने जिस स्थिरता का वादा किया था वो अब भी हासिल नहीं हुई है. स्थिर मूल्य क़ायम रखने के लिए परंपरागत फिएट मुद्राओं या वस्तुओं से जुड़े रहने के इच्छित उद्देश्य के बावजूद इनके प्रदर्शन पर क़रीबी नज़र से अलग ही कहानी सामने आती है. BIS के अध्ययन से विभिन्न प्रकार के स्टेबलकॉइनों के बीच ज़बरदस्त विषमता का पता चलता है. परंपरागत मुद्राओं से जुड़े फिएट-समर्थित स्टेबलकॉइन्स अपने आधारों के साथ समानता बरक़रार रखने में, उनके क्रिप्टो- और कॉमोडिटी समर्थित समकक्षों की तुलना में बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड प्रदर्शित करते हैं. स्टेबलकॉइन्स (चाहे फिएट मुद्राओं, वस्तुओं या अन्य क्रिप्टो परिसंपत्तियों से समर्थित हों) आम तौर पर उनके बार-बार बताए गए उद्देश्यों में से एक को हासिल करते हैं. वो उद्देश्य है- परंपरागत क्रिप्टोकरेंसियों जैसे बिटकॉइन की तुलना में कम अस्थिरता का प्रदर्शन करना.
हालांकि फिएट समर्थित स्टेबलकॉइन्स की ज़्यादा स्थिर समझी जाने वाली श्रेणियों में भी चुनौतियां बरक़रार हैं. टीथर और USD कॉइन जैसे केवल कुछ मुट्ठीभर स्टेबलकॉइन्स ने ही अपने अस्तित्व के एक अहम हिस्से में अपने आधार से विचलन को लगातार 1 प्रतिशत से नीचे बनाए रखा है. ग़ौरतलब है कि अपेक्षाकृत कामयाब रहे ये स्टेबलकॉइन्स भी अपने आधार के इर्द-गिर्द प्रत्याशित बैंड से परे उतार-चढ़ाव करते हैं, जिससे स्थिरता की परिकल्पना पर संदेह होता है.
ये विश्लेषण उस मुद्रा के प्रभाव को भी रेखांकित करता है जिसके साथ स्टेबलकॉइन्स जुड़े होते हैं. अमेरिकी डॉलर और यूरो से जुड़े स्टेबलकॉइन्स, अन्य स्टेबलकॉइन्स या रुपिया (इंडोनेशियाई मुद्रा), सिंगापुर डॉलर, और तुर्की की लीरा जैसी अस्थिर मुद्राओं से जुड़े स्टेबलकॉइन्स की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं.
सौ बात की एक बात यही है कि ये मूल्यांकन एक बुनियादी चुनौती को रेखांकित करता है: अपने नामकरण के बावजूद स्टेबलकॉइन अंतर्निहित अस्थिरता से जूझ रहे हैं. स्थिर मूल्य बरक़रार रखने का वादा पूरा कर पाना चुनौतीपूर्ण लगता है.
सौ बात की एक बात यही है कि ये मूल्यांकन एक बुनियादी चुनौती को रेखांकित करता है: अपने नामकरण के बावजूद स्टेबलकॉइन अंतर्निहित अस्थिरता से जूझ रहे हैं. स्थिर मूल्य बरक़रार रखने का वादा पूरा कर पाना चुनौतीपूर्ण लगता है. इससे मूल्य के सुरक्षित भंडार या डिजिटल वित्त के निरंतर उभरते परिदृश्य में विनिमय के माध्यम के रूप में स्टेबलकॉइन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं.
स्थिरता की तलाश में...
दीर्घस्थायी चुनौतियां स्टेबलकॉइन्स को घेरे रहती हैं, जिससे स्थिर आधार को बरक़रार रखने की उनकी क्षमता पर अनिश्चितता के बादल गहराने लगते हैं. जिन स्टेबलकॉइन्स का मूल्यांकन हुआ है, उनमें से किसी ने भी पूरी मूल्य स्थिरता हासिल नहीं की है, नतीजतन उनकी विश्वसनीयता और सुरक्षित भंडार की पारदर्शिता के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं. जारीकर्ताओं के पास कॉइन को भुनाने के लिए आवश्यक परिसंपत्तियां होने को लेकर भरोसा का अभाव इन अनिश्चितताओं को और बढ़ा देता है. इससे मूल्य के सुरक्षित भंडार और भुगतान के भरोसेमंद तरीक़े के रूप में स्टेबलकॉइन्स पर विश्वास में बाधाएं खड़ी होती हैं. उपयोग, उपयोगकर्ताओं और वास्तविक गतिविधियों के बारे में डेटा में भारी अंतरालों की वजह से स्टेबलकॉइन्स के जोख़िमों को पूरी तरह से समझने में अड़चनें पेश आती हैं.
अपनी अस्थिरता के बावजूद स्टेबलकॉइनों का प्रसार जारी है. अगस्त 2023 में PayPal द्वारा PYUSD की शुरुआत स्टेबलकॉइन्स की संभावना को रेखांकित करता है. हालांकि ये बाज़ार के एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस क्षेत्र के उभरते और छलावे भरे स्वभाव को देखते हुए निरंतर निगरानी और पूर्व सक्रियता के साथ नीति निर्माण अनिवार्य हो जाता है. वैसे तो विनियमन कुछ खामियों को दूर करेगा लेकिन कुछ पूरक प्रयास आवश्यक हैं. इन क़वायदों में भुगतान से जुड़े बुनियादी ढांचे की उन्नति और केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं (CBDCs) की पड़ताल शामिल हैं. इन प्रयासों का मक़सद भुगतान और वित्तीय सेवाओं में वैध लाभ उपलब्ध कराना है, जिससे सीमा के आर-पार किफ़ायती लेन-देनों और प्रोग्रामेबिलिटी की सार्वजनिक मांग का निपटारा होगा. तेज़ी से बढ़ते वैश्विक नियमनों को देखते हुए इन डिजिटल परिसंपत्तियों और क्रिप्टोकरेंसी के व्यापक प्रभावों की निरंतर जांच-पड़ताल की दरकार है. देखना दिलचस्प होगा कि क्या विनियमनों से सचमुच स्टेबलकॉइन की सुसंगत और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित हो पाएगी.
सौरदीप बाग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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