Published on Sep 16, 2022 Updated 1 Hours ago

डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनी) लगातार राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने का साधन बने हुए हैं. उनकी अकार्यक्षमता वितरण क्षेत्र के निजीकरण को सही साबित करती है.

भारत में बिजली वितरण: सुधारों का अनुक्रमण

यह आलेख ‘काप्रीहेंसिव एनर्जी मॉनिटर : इंडिया एंड द वर्ल्ड’ सीरिज का हिस्सा हैं.


विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2022 (द इलेक्ट्रिीसिटी (अमेंडमेंट) बिल, 2022/ईए2022) लोकसभा (संसद का निचला सदन) में 8 अगस्त, 2022 को पेश किया गया. इस विधेयक का उद्देश्य विद्युत कानून, 2003 (ईए2003) में संशोधन करना है, जिसके अंतर्गत भारत में विद्युत क्षेत्र का संचालन किया जाता है. ईए 2022 को बाद में संसद की ऊर्जा स्थायी समिति के पास भेज दिया गया, क्योंकि विपक्ष के अनेक सदस्यों ने इसको लोकसभा में पेश करने का विरोध किया. उनका आरोप था कि यह संविधान में दिए गए संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. ईए2022 का किसानों ने भी यह कहते हुए विरोध किया कि उन्हें आशंका है कि इसकी वजह से उन्हें बिजली पर मिलने वाली सबसिडी बंद हो जाएगी. इसी प्रकार श्रमिक संगठनों ने यह आशंका जताते हुए विरोध किया कि सरकार का यह फैसला इस क्षेत्र में अपने पसंदीदा कार्पोरेट लोगों के प्रवेश को सुगम बनाने के लिए लिया गया है और इससे उनकी नौकरियां प्रभावित होंगी.

बिजली के विषय को भारतीय संविधान की समवर्ती सूची (केंद्र और राज्यों के बीच साझा की गई जिम्मेदारी) के तहत रखा गया है बिजली का वितरण पूरी तरह से राज्य बिजली बोर्ड अर्थात एसईबी (अब डिस्कॉम) के माध्यम से राज्य सरकार की जिम्मेदारी है.

विद्युत संशोधन विधेयक

बिजली के विषय को भारतीय संविधान की समवर्ती सूची (केंद्र और राज्यों के बीच साझा की गई जिम्मेदारी) के तहत रखा गया है बिजली का वितरण पूरी तरह से राज्य बिजली बोर्ड अर्थात एसईबी (अब डिस्कॉम) के माध्यम से राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. विपक्षी दलों ने यह चिंता जताई है कि ईए2022 के माध्यम से केंद्र सरकार इस कानून के माध्यम से संविधान संशोधन करना चाहती है ताकि केंद्र केंद्र सरकार को राज्य सरकार के कुछ उपयुक्त अधिकार हासिल हो सके.

ईए2022 ईए 2003 की धारा 42 में संशोधन करना चाहता है ताकि वितरण लाइसेंसधारी के वितरण नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुंच को सुगम बनाया जा सके. ईए2002 का उद्देश्य ईए2003 की धारा 42 में संशोधन करना है, ताकि वितरण करने के लाइसेंसधारी के आपूर्ति नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से ओपन एक्सेस को आसान बनाया जा सके. इससे पहले सरकार बिजली वितरण का निजीकरण करने से हिचकिचाती थी क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें संरक्षण प्रदान करने का शक्तिशाली साधन उसके हाथ से निकल जाता. हालांकि अब सरकारें गरीबों के संरक्षण के बजाय कार्पोरेट्स का संरक्षण चाहती हैं और इसके लिए तरसती भी हैं, क्योंकि कॉरपोरेट धन और मीडिया चैनल, जिन्हें वे नियंत्रित करते हैं वे संरक्षण समान ही चुनावी परिणाम मुहैया करने में सक्षम है.

इस संशोधन को लेकर राज्य सरकारों की चिंता यह है कि उन्हें आशंका है कि, इस संशोधन के बाद केंद्र सरकार अपने पसंदीदा कार्पोरेट्स बिजली वितरण क्षेत्र में उतारकर अनेक राज्यों में उन्हें काम करने की अनुमति दे देगी

सैद्धांतिक रूप से बिजली वितरण के क्षेत्र में ओपन एक्सेस लागू करने से अनेक कंपनियां इस क्षेत्र में उतर सकेंगी, ठीक उसी तरह जैसा मोबाइल सेवा कंपनियों के मामले में हुआ था. इस संशोधन को लेकर मध्यम और संपन्न वर्ग के लोगों में काफी उत्सुकता देखी गई है, जो राज्य विद्युत वितरण कंपनियों के स्थान पर कुशल निजी आपूर्तिकर्ता से बिजली लेना चाहते हैंइस संशोधन को लेकर राज्य सरकारों की चिंता यह है कि उन्हें आशंका है कि, इस संशोधन के बाद केंद्र सरकार अपने पसंदीदा कार्पोरेट्स बिजली वितरण क्षेत्र में उतारकर अनेक राज्यों में उन्हें काम करने की अनुमति दे देगी. ईए2022 के माध्यम से वितरण कंपनी और वितरण लाइसेंसी के बीच का जो अंतर है उसे धुंधला अथवा अस्पष्ट कर दिया जाएगा. अर्थात् किसी भी कंपनी को वितरण क्षेत्र में उतरने के लिए केवल बिजली ट्रेड करने का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. इसके विपरीत वितरण लाइसेंसी को किसी विशेष क्षेत्र में बिजली वितरण की अनुमति हासिल करने के लिए राज्य बिजली नियामक आयोग की पैनी निगाहों और यथोचित प्रक्रिया का पालन करते हुए अपना लाइसेंस हासिल करना होता है. किसी ऐसे क्षेत्र में जहां विभिन्न वर्गों के ग्राहक रहते हो और  जिनके ऊपर  विभिन्न श्रेणियों की दर (टैरिफ स्लैब) लागू होती है, वहां अगर एक से ज्यादा आपूर्तिकर्ता होगा तो इससे कठिन प्रशासनिक और वित्तीय चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी. ईए2022 के तहत कम दबाव वाले ग्राहकों के स्तर पर ओपन एक्सेस देने का प्रस्ताव है. सैद्धांतिक रूप से इसका मतलब यह हो सकता है कि आपूर्तिकर्ता कंपनी शहरी इलाकों में संपन्न वर्ग की बस्तियों को तो आपूर्ति करने का निर्णय ले सकती हैं, लेकिन वे गरीब और कम आय वाले आवासों को हाशिए पर भी डाल सकती है. अगर ऐसा हुआ तो वस्तुत: दो तरह के बाजार क्षेत्र तैयार होंगे, एक जिसमें उच्च श्रेणी के वाणिज्यिक बिजली लेने वाले शहर और दूसरे कम गुणवत्ता वाली सामाजिक बिजली वाला ग्रामीण क्षेत्र, जहां डिस्कॉम के पास आपूर्ति की जिम्मेदारी होगी.

 

ईए2022 के अनुसार, बिजली आपूर्ति में कमी की स्थिति में एसईआरसी को यह अधिकार रहेगा कि वह बिजली की खरीद और बिक्री के लिए अधिकतम और न्यूनतम दर को तय करें. यह बहुवर्षीय टैरिफ आदेशों के खिलाफ होगा, जो बिजली दरों में आने वाली अस्थिरता को रोकने अथवा सीमित करने के लिए जारी किए गए हैं. ईए2022 में केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित रिन्यूएबल पॉवर पर्चेस ऑब्लिगेशन (आरपीओ) का यदि डिस्कॉम ने अनुपालन नहीं किया तो इसके लिए उस पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान भी किया गया है. इसके अलावा रिन्यूएबल पॉवर (आरई) के लिए ‘‘मस्ट रन’’ स्टेटस का प्रावधान, बिजली आपूर्ति की अतिरिक्त मांग न होने की स्थिति में भी यह सुनिश्चित करेगा कि बड़े कार्पोरेट्स के सोलर प्लांट्स से बिजली की निकासी आसानी से हो सके. यह लगभग ‘‘लो या भुगतान करो’’ (‘‘टेक और पे’’) के अनुबंध जैसा होगा, जिसकी वजह से पहले से ही वित्तीय परेशानी झेल रहे डिस्कॉम पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा.

बिजली वितरण एक नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री है, जिसे परंपरागत रूप से ‘प्राकृतिक एकाधिकार’ विशेषताओं के साथ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गतिविधि के रूप में देखा जाता है. ऐसे में एसईआरसी के माध्यम से राज्य के स्वामित्व को उचित कहा जा सकता है.

ईए2022 को उम्मीद है कि केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) केंद्र सरकार की नीतियां प्रभावी रूप से लागू करेगा, ऐसे में स्वायत्त रूप से काम करने वाले आयोग के काम के साथ समझौता होने की भी संभावना है. इसके अलावा यह एसईआरसी की उपयोगिता भी समाप्त कर देगा. यह संभवत: वितरण सुधारों पर नीति आयोग की एक रिपोर्ट का अनुसरण है, जिसमें नियामक कार्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप को सीमित करने के लिए राज्य बिजली नियामक प्राधिकरणों के ऊपर केंद्र सरकार की भागीदारी के साथ क्षेत्रीय बिजली नियामक आयोगों के निर्माण की सिफारिश की गई थी.

 

सुधार पहलों का अनुक्रमण

 

बिजली उत्पादन का क्षेत्र निजी क्षेत्र के लिए ईए2003 के बाद खोला गया था. अब निजी क्षेत्र 39 प्रतिशत बिजली पैदा कर रहा है, जबकि उसकी तुलना में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत और राज्य सरकारों की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत ही है. ईए2022 में वितरण के निजीकरण का प्रावधान किया गया है, जिसमें कम प्रतिस्पर्धा और विनियमन होगा. लेकिन इन्हें चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए और इनका अनुक्रमण भी सही होना बेहद आवश्यक है. अधिकांश अध्ययनों ने साबित किया है कि निजीकरण से पहले विनियमन ढांचा तैयार कर प्रतिस्पर्धा की व्यवस्था की जानी चाहिए. बिजली वितरण एक नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री है, जिसे परंपरागत रूप से ‘प्राकृतिक एकाधिकार’ विशेषताओं के साथ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गतिविधि के रूप में देखा जाता है. ऐसे में एसईआरसी के माध्यम से राज्य के स्वामित्व को उचित कहा जा सकता है. आर्थिक, संस्थागत और तकनीकी विकास ने एसईबी की प्रतिस्पर्धा को आमंत्रित करने के फैसले को उचित ठहराने की अर्थव्यवस्था के पैमाने के महत्व को कम कर दिया है. लेकिन एसईबी उतनी भी अकुशल वाणिज्यिक संस्थाएं नहीं हैं, जैसा उन्हें निरुपित किया जाता है.

 

2000 के शुरुआती दिनों में भारतीय ऊर्जा क्षेत्र का अध्ययन करने वाले फ्रेंच अर्थशास्त्री जोएल रुएट ने कहा था कि यदि लेनिन के अनुसार समाजवाद का अर्थ ‘‘सोविएट्स और विद्युत’’ होता है तो आजाद भारत को काफी हद तक ‘‘लोकतंत्र और राज्य बिजली बोर्ड’’ कहा जा सकता है. रुएट के अनुसार एसईबी अकुशल उद्यम नहीं हैं, बल्कि ऐसे प्रशासन हैं जिनकी प्रकृति उन विविध उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की थी. अत: केवल आर्थिक मानदंडों को आधार बनाकर निर्णय लेना उनके लिए असंभव और असंगत था. रुएट का विचार एसईबी की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रतिपादित करने वाला है. एसईबी ने पहले ग्राहकों तक बिजली को विकास का साधन (पहले कृषि के लिए सिंचाई क्षेत्र के विस्तार में तथा बाद में ग्रामीण विद्युतीकरण में) बनाकर पहुंचाने वाले माध्यम की भूमिका अदा की थी. लेकिन इसका उपयोग हमेशा ही एक ऐसे हथियार के रूप में किया गया, जिसका अंतिम उद्देश्य राजनीतिक लक्ष्य (चुनाव के ठीक पहले सबसिडी अथवा मुफ्त बिजली के आश्वासन के अनुसार) हासिल करना ही था. आज लगभग संपूर्ण भारत में बिजली नेटवर्क मौजूद है, जबकि अन्य देश उच्च आय का स्तर हासिल करने के बाद ही ऐसा कर पाए हैं. लेकिन बिजली वितरण क्षेत्र की समस्या को हमेशा ही एसईबी अथवा डिस्कॉम की अकुशलता साबित किया गया, ताकि वितरण क्षेत्र का निजीकरण किया जा सके. आज जब एसर्ईबी को टुकड़ों में बांटकर डिस्कॉम को नए अवतार में पेश किया गया है, तब भी उनका उपयोग राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के साधन के रूप में ही किया जा रहा है. इसी कारण बिजली आपूर्ति पर होने वाले असल खर्च को बिजली दरों के माध्यम से वसूल करने को लेकर डिस्कॉम की क्षमताएं सीमित हैं. यही डिस्कॉम की खस्ता हालत का असल और सबसे अहम कारण भी है. राजनीतिक दलों की ओर से बिजली की दरों में घोषित की जाने वाली रियायतों के कारण राजनीतिक दलों को चुनावी लाभ तो मिल जाता है, लेकिन इसकी खामी यह है कि इसका बोझ डिस्कॉम के मत्थे मढ़ दिया जाता है. ऐसे में डिस्कॉम का न केवल घाटा बढ़ता जाता है बल्कि उसकी रेटिंग भी ‘सी’ हो जाती है.

अध्ययनों से पता चलता है कि निजीकरण, प्रतिस्पर्धा और विनियमन जरूरी तो है, लेकिन यदि इन्हें एक साथ लागू नहीं किया गया तो इसका उचित परिणाम भी नहीं निकलता. सैद्धांतिक और अनुभवजन्य दोनों कार्यों ने निजीकरण होने पर आर्थिक दक्षता बढ़ाने में प्रतिस्पर्धा के महत्व की ओर इशारा किया है. नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिग्लट्ज के अनुसार सफल आर्थिक कार्यक्रमों में सुधार के क्रम का अनुक्रमण करने में बेहद सावधानी बरते जाने की आवश्यकता होती है. हाल के अनुभवजन्य अनुसंधान का निष्कर्ष है कि विकासशील देशों में सुधार गतिमान होने चाहिए. इस अनुसंधान ने प्रतिस्पर्धी औद्योगिक संरचनाओं और उपयुक्त नियामक प्रणालियों की स्थापना सहित बाजार की ताकतों के लिए अनुकूल संस्थागत बुनियादी ढांचे की स्थापना के महत्व पर भी जोर दिया है. 1981 से 2001 की अवधि के लिए 25 विकासशील देशों को कवर करने वाले पैनल डेटा सेट पर आधारित अध्ययन में पाया गया है कि एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण की स्थापना और निजीकरण से पहले प्रतिस्पर्धा शुरू करना उच्च बिजली उत्पादन, उच्च उत्पादन क्षमता और बेहतर पूंजी उपयोग के साथ सहसंबद्ध था. 1985 से 2000 की अवधि में 51 विकासशील देशों को शामिल करने वाले एक बड़े डेटा सेट का उपयोग करने वाले इसके पूर्व के एक अध्ययन में पाया गया था कि निजीकरण की तुलना में प्रतिस्पर्धा से ही बिजली उत्पादन पर होने वाले खर्च का बेहतर परिणाम हासिल किया जा सकता है. यूके समेत औद्योगिक पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में दिखाई देता है कि केवल निजीकरण से ही प्रदर्शन में सुधार को उत्प्रेरित नहीं किया जा सकता. खासकर प्राकृतिक एकाधिकार विशेषताओं वाली सार्वजनिक उपयोगिताओं यानी पब्लिक यूटीलिटीज् में.

अध्ययनों से पता चलता है कि निजीकरण, प्रतिस्पर्धा और विनियमन जरूरी तो है, लेकिन यदि इन्हें एक साथ लागू नहीं किया गया तो इसका उचित परिणाम भी नहीं निकलता. सैद्धांतिक और अनुभवजन्य दोनों कार्यों ने निजीकरण होने पर आर्थिक दक्षता बढ़ाने में प्रतिस्पर्धा के महत्व की ओर इशारा किया है

भारत के ऊर्जा क्षेत्र में निजीकरण की तुलना में (ईए2003 के बाद उत्पादन में) मजबूत स्वायत्त नियामक व्यवस्था स्थापित करने की रफ्तार धीमी रही है. हालांकि नियामक निकायों (सीईआरसी, एसईआरसी) की स्थापना की गई है, लेकिन इन्हें या तो सरकार या फिर सरकार के माध्यम से कार्पोरेट्स ने ‘‘बंधक’’ बना लिया है. कुशल और किफायती बिजली नेटवर्क हासिल करने के लिए निजीकरण की आड़ लेकर अपने अंतिम उद्देश्य हासिल किए गए. ऐसे में निजीकरण का जो मतलब ईए 2022 में दर्शाया गया है, उसे भी ऐसा ही समझा जाना चाहिए. वितरण के क्षेत्र में होने वाले सुधार यदि परिवर्तनकारी, न्यायोचित और समान चाहिए तो सरकार को पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि बिजली दरों में सुधार लागू हो और सब्सिडी का लाभ लाभार्थी तक सीधे पहुंचे. दूसरे सरकार यह सुनिश्चित करे कि नियामक निकाय सही मायनों में स्वायत्त हो. तीसरा, सरकार को डिस्कॉम का विभाजन करना चाहिए और उन्हें एक दूसरे से मुकाबला करने की अनुमति देनी चाहिए ताकि डिस्कॉम के प्रदर्शन में सुधार हो और प्रतिस्पर्धा बढ़े. यदि यह उपाय सफल हो उसके बाद ही निजीकरण किया जाना चाहिए.

 

बिजली क्षेत्र में निजीकरण बनाम बाजार में बदलाव

स्त्रोत: विश्व बैंक

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Authors

Akhilesh Sati

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Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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