Author : Ivan Shchedrov

Published on Mar 20, 2024 Updated 23 Hours ago

यूक्रेन संघर्ष, पीढ़ीगत बदलाव और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन रूस के चुनाव में नई चीज़ें हैं.

रूस के चुनावों में इस बार क्या ‘नया’ है?

15 से 17 मार्च के बीच रूस में राष्ट्रपति चुनाव हुए. लगभग 11.2 करोड़ लोग देश के भीतर वोट डालने के लिए योग्य थे जबकि 19 लाख पात्र मतदाता रूस के बाहर थे. 

रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 87.32 प्रतिशत वोट मिले. विपक्ष के सभी उम्मीदवारों को कुल मिलाकर 12 प्रतिशत से कम वोट मिले.

रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 87.32 प्रतिशत वोट मिले. विपक्ष के सभी उम्मीदवारों को कुल मिलाकर 12 प्रतिशत से कम वोट मिले. चुनाव के नतीजे उम्मीद के मुताबिक लगते हैं. फिर भी इन अनुमानों से चुनावी परिदृश्य की बारीक जटिलताओं का शायद ही पता चलता है. इसकी वजह कुछ विशेषताएं हैं जो मौजूदा राजनीतिक प्रक्रिया का आधार हैं. ध्यान देने की बात है कि 33 नामांकन दायर किए गए थे जो अलग-अलग राजनीतिक श्रेणियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन उम्मीदवारों में से कुछ ऐसे थे जो सेना विरोधी रुख की नुमाइंदगी करते हैं जबकि कुछ उदारवादी एजेंडे की. दूसरा, सिस्टम में विपक्ष की पार्टियों को “पीढ़ीगत बदलाव” से जुड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. LDPR (लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ रशिया) और CPRF (कम्युनिस्ट पार्टी) के नेताओं के बीच से ‘राजनीतिक डायनासोर’ के धीरे-धीरे हटने से इसका संकेत मिल रहा है. उनकी जगह पर नए चेहरे सामने आए. तीसरा, ये चुनाव यूक्रेन संघर्ष की पृष्ठभूमि में कराए गए. वोट देने वालों में केवल नए क्षेत्रों के निवासी शामिल नहीं थे बल्कि वो लोग भी थे रूस को छोड़कर भाग गए हैं. चौथा, ये पहली बार हुआ कि राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल किया गया. 

उम्मीदवार 

अंतिम मतदान में केवल चार उम्मीदवार थे. आधुनिक रूस के इतिहास में ये ऐतिहासिक रूप से सबसे कम संख्या है. ये संख्या 2008 के चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की संख्या की तरह थी जिसमें दिमित्री मेदवेदेव की जीत हुई थी. 

उम्मीदवारों के बीच वोट का बंटवारा

स्रोत: रूस का केंद्रीय चुनाव आयोग 

LDPR और CPRF के भीतर “पीढ़ीगत बदलाव” बहुत ज़्यादा संकोच के साथ हो रहा है. एक तरफ हमने नए नेताओं के साथ व्यवस्था को ताज़ा करने की कुछ कोशिशें देखीं. CPRF के 90 के दशक के नेता गेन्नाडी ज़्यूगैनॉव की जगह 2018 में कारोबारी पावेल ग्रूडिनिन उम्मीदवार बने. LDPR में व्लादिमीर झिरिनोवस्की के 2022 में निधन के बाद अब 56 साल के लियोनिड स्लूट्स्की नेता बन गए हैं. हालांकि मौजूदा समय में कम्युनिस्ट पार्टी की नुमाइंदगी 75 साल के निकोलाई खारितोनॉव करते हैं. ये दोनों नेता राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे लेकिन मीडिया में उनके पूर्ववर्ती नेताओं को प्राथमिकता दी जाती है. ये एक कारण है कि वो नया राजनीतिक नैरेटिव और अपनी-अपनी पार्टी का एजेंडा साफ तौर पर बताने में सक्षम नहीं हो पाए हैं. एक और ताज़ा चेहरा 40 साल के व्लादिस्लैव दवानकोव का है जो 2020 में बनी “न्यू पीपुल” पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं. कई लोगों को उम्मीद है कि वो राजनीतिक दायरे में नई जान फूंकेंगे. 

अंतिम उम्मीदवारों की सीमित संख्या के बावजूद रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के दौरान कुछ अप्रत्याशित घटनाएं हुईं. रूस में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार चुनाव में ख़ुद के द्वारा नामांकित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भागीदारी कर सकते हैं या किसी राजनीतिक पार्टी की तरफ से. केंद्रीय चुनाव आयोग (CEC) के नियमों के अनुसार रजिस्ट्रेशन के बाद उन्हें राजनीतिक अभियान शुरू करने की अनुमति है. चुनाव प्रक्रिया के हिस्से के रूप में उम्मीदवारों को अपने समर्थकों का हस्ताक्षर इकट्ठा करना पड़ता है. जिन पार्टियों की नुमाइंदगी संसद में नहीं है उनके लिए न्यूनतम हस्ताक्षरों की संख्या 1 लाख है जबकि ख़ुद के द्वारा नामांकित उम्मीदवारों के लिए 3 लाख. 

औपचारिक नियमों के पालन की वजह से शुरुआत के 33 आवेदनों में से केवल 15 को स्वीकार किया गया. उनमें से भी सात को हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने दूसरे उम्मीदवारों के लिए मतदान करने का अनुरोध किया था. चार और उम्मीदवारों की दावेदारी नामांकन की अंतिम शर्तों की वजह से खारिज हुई यानी अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में ज़रूरी संख्या में हस्ताक्षर जमा करना. ध्यान देने की बात है कि उम्मीदवारी के लिए बहुत ज़्यादा अवैध हस्ताक्षर जमा करने की वजह से बोरिस नदेझदिन को हटना पड़ा. नदेझदिन एक लोकप्रिय उम्मीदवार थे और व्यवस्था से अलग विपक्ष के एक प्रमुख प्रतिनिधि हैं. CEC ने दावा किया कि उनके द्वारा इकट्ठा किए गए हस्ताक्षरों में से 15 प्रतिशत से ज़्यादा अवैध थे जो कि 5 प्रतिशत की निर्धारित सीमा से ज़्यादा है. 

विदेशों में वोटिंग 

एक और ज्वलंत मुद्दा विदेश में मतदान की प्रक्रिया थी जो कि भू-राजनीतिक तनावों की पृष्ठभूमि में हुई थी. इसमें माइग्रेशन में बढ़ोतरी से और तेज़ी आई. सबसे ज़्यादा मतदान केंद्र अबखाज़िया और साउथ ओसेशिया में थे जिनकी संख्या क्रमश: 30 और 12 थी. वैसे तो इन क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम जनसंख्या है लेकिन वहां के निवासियों के एक बड़े हिस्से के पास रूस की नागरिकता है. इसका मुख्य कारण नागरिकता देने की सुव्यवस्थित प्रक्रिया है. मौजूदा समय में अबखाज़िया के 50 प्रतिशत और साउथ ओसेशिया के 95 प्रतिशत लोगों के पास रूस की नागरिकता है.

चुनाव प्रक्रिया के हिस्से के रूप में उम्मीदवारों को अपने समर्थकों का हस्ताक्षर इकट्ठा करना पड़ता है. जिन पार्टियों की नुमाइंदगी संसद में नहीं है उनके लिए न्यूनतम हस्ताक्षरों की संख्या 1 लाख है जबकि ख़ुद के द्वारा नामांकित उम्मीदवारों के लिए 3 लाख. 

विदेशों में मतदान केंद्रों की संख्या 

स्रोत: https://www.kommersant.ru/doc/6524296

इस बार रूस के बाहर 295 मतदान केंद्र खोले गए थे जो कि पिछले चुनाव के 394 की तुलना में कम है. आधिकारिक तौर पर इसकी वजह कॉन्सुलर कर्मियों की कमी और सुरक्षा पर ध्यान में बढ़ोतरी बताई गई. 

कुछ देशों में वोटिंग सिस्टम तक पहुंच की समस्या अधिक गंभीरता से दिखाई देती है. कूटनीतिक संबंध नहीं होने की वजह से जॉर्जिया में मतदान की व्यवस्था अव्यावहारिक है. एस्टोनिया में दूतावास के परिसर के बाहर रूसी चुनाव होने के ख़िलाफ़ आपत्ति दर्ज की गई. इसके कारण 2018 के नौ की तुलना में इस बार मतदान केंद्रों की संख्या काफी कम होकर एक रह गई. इसी तरह की स्थिति लिथुआनिया में भी सामने आई जहां पांच शहरों में मतदान केंद्रों की तुलना में इस बार केवल राजधानी विनियस में एक पोलिंग स्टेशन बनाया गया. लातविया में केवल राजधानी रीगा में दूतावास के भीतर दो पोलिंग स्टेशन बनाए गए थे. 

नए प्रदेश  

दोनेत्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (DPR), लुहांस्क पीपुल्स रिपब्लिक (LPR) के साथ-साथ ज़ेपोरिजिया और खेरसॉन ओब्लास्ट में नए मतदाताओं की संख्या लगभग 45.6 लाख है. इन क्षेत्रों में मतदान की शुरुआत फरवरी के आख़िर में हुई, ख़ास तौर पर युद्ध के मोर्चे के नज़दीक के क्षेत्रों में. इन क्षेत्रों को आधिकारिक रूप से “पहुंचने में कठिन” घोषित किया गया. इसकी वजह से नागरिकों और सैन्य अभियान में भागीदारों के लिए जल्दी मतदान ज़रूरी हो गया. संपर्क रेखा (कॉन्टैक्ट लाइन) के नज़दीक स्थायी मतदान केंद्र खोले गए और ज़्यादातर सैन्य कर्मियों ने अस्थायी मतदान केंद्रों की तुलना में स्थायी मतदान केंद्रों में मतदान किया. ऐहतियाती उपाय के तौर पर मतदान केंद्रों की जगह के बारे में सार्वजनिक रूप से ख़ुलासा नहीं किया गया. ये उम्मीद की जाती है कि शुरुआती मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव के दौरान 2.2 लाख मतदाताओं की भागीदारी से ज़्यादा होगा. मतदान DPR में 36 प्रतिशत से लेकर खेरसॉन रीजन में 58 प्रतिशत तक हुआ जो इन क्षेत्रों में बढ़ी हुई भागीदारी के बारे में बताता है. 

डिजिटल वोटिंग 

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल राष्ट्रपति के चुनाव में एक क्रांतिकारी कदम है. हालांकि अतीत में स्थानीय चुनावों में आंशिक तौर पर इन मशीनों का उपयोग किया गया था. ध्यान देने की बात है कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने 3.8 करोड़ मतदाताओं के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल का अनुमान लगाया था लेकिन इस नई प्रणाली का इस्तेमाल करने की इच्छा जताने वालों की वास्तविक संख्या 49 लाख थी. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के आगमन की वकालत और आलोचना- दोनों हुई. नौकरशाही से जुड़ी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और वित्तीय खर्च में कटौती करने में सरकार इसके असर का ढिंढोरा पीटती है. हालांकि पारदर्शिता को लेकर लोगों का संदेह बना हुआ है और साइबर ख़तरों की आशंका सरकारी विभागों के बीच चिंता और बढ़ाती है. 

ध्यान देने की बात है कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने 3.8 करोड़ मतदाताओं के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल का अनुमान लगाया था लेकिन इस नई प्रणाली का इस्तेमाल करने की इच्छा जताने वालों की वास्तविक संख्या 49 लाख थी.

हालांकि, इन घटनाक्रमों ने मतदान के अंतिम नतीजों को प्रभावित नहीं किया लेकिन लोगों के बर्ताव की गतिशीलता, सामाजिक जनसांख्यिकी (डेमोग्राफिक्स) और हासिल वोट के अनुपात को समझने में ये महत्वपूर्ण हैं. वैसे तो चुनाव नतीजों से ज़ाहिर तौर पर विदेश नीति में बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं आना चाहिए लेकिन वो राजनीतिक और आर्थिक फैसलों के असर का आकलन करने के लिए मापदंड के तौर पर काम कर सकते हैं. इस तरह आने वाले हफ्ते व्यापक नीतिगत नैरेटिव पर संभावित प्रभाव के बारे में समझ का भरोसा देते हैं. 


इवान शेदरोव ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विज़िटिंग फेलो हैं. 

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Ivan Shchedrov

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Ivan Shchedrov is presently a Visiting Fellow at Observer Research Foundation, New Delhi. He is also a research fellow at the Center of Indo-Pacific Region ...

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