Published on Nov 02, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत के लिए अनुमानित और वास्तविक जीडीपी दोनों में विकास दर में गिरावट बहुत ज़्यादा है, जो दीर्घकाल में बड़ी मंदी और/या विकासहीनता के जोख़िम को दर्शाता है.

कोविड महामारी के कारण साल 2020 के सभी वैश्विक जीडीपी वृद्धि अनुमान व्यर्थ साबित हुए

प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की अप्रैल-जून 2020 तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर का वास्तविक आकलन अब आधिकारिक तौर पर सामने आ चुका है. जैसी कि उम्मीद थी, चीन को छोड़ लगभग सभी देशों की वास्तविक जीडीपी में गिरावट आई है.

जी-7 और ब्रिक्स देशों के बीच 23.5% गिरावट के साथ भारत पर सबसे खराब मार पड़ी है. फ्रांस, इटली, दक्षिण अफ़्रीका, कनाडा, ब्राज़ील, जर्मनी और जापान सभी की जीडीपी में दोहरे अंकों की गिरावट आई है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 9.1% की गिरावट है और रूस में कठोर सरकारी उपायों के बावजूद जीडीपी 5.6% गिरी. ब्रिटेन में महामारी के लिए अपेक्षाकृत कम कठोर सरकारी उपायों के बावजूद वह सबसे अप्रत्याशित गिरावट वाले देशों में शामिल है, जहां तिमाही विकास दर 21.7% गिर गई. चीन इस तिमाही में पॉजिटिव वृद्धि दर वाला इकलौता देश है, जहां जीडीपी 3.2% (चित्र 1) है.

सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में इतनी बड़ी गिरावट बहुतों के लिए झटका थी. इस साल अप्रैल में भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित एजेंसियों ने महामारी और इसके चलते लगाई गई पाबंदियों का आर्थिक विकास पर काफी कम असर होने का अनुमान लगाया था.

एक उम्मीद यह भी थी कि जिन देशों ने महामारी से निपटने के लिए ज़्यादा कड़े कदम उठाए हैं, आर्थिक मामलों में वह ज़्यादा प्रभावित होंगे. इनमें से कुछ देशों में जन-स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के बीच चुनाव के विकल्प को लेकर ज़बरदस्त बहस चली.

एक उम्मीद यह भी थी कि जिन देशों ने महामारी से निपटने के लिए ज़्यादा कड़े कदम उठाए हैं, आर्थिक मामलों में वह ज़्यादा प्रभावित होंगे. इनमें से कुछ देशों में जन-स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के बीच चुनाव के विकल्प को लेकर ज़बरदस्त बहस चली.

जर्मनी ने बड़े पैमाने पर कठोरता के साथ तिमाही की शुरुआत की, लेकिन तिमाही के मध्य के आसपास कठोरता के स्तर को कम कर दिया, फिर भी इसकी जीडीपी 11.3% गिरी. कठोर उपायों के मामले में ब्रिटेन इस तिमाही के दूसरे अर्धांश में बाकियों की तुलना में (कड़े उपायों के पैमाने पर लगभग 70.0 प्वाइंट) मध्यम स्तर पर बना रहा, फिर भी इस तिमाही में इसकी जीडीपी में 21.7% गिरावट आई. भारत के कठोर उपायों (अप्रैल-मई में) व इन देशों के बीच जीडीपी में सबसे बड़ी गिरावट, और अमेरिका में कठोर उपायों को देर से लागू किए जाने व इसकी अर्थव्यवस्था पर कम असर से संभवत: अभी भी कठोर उपायों को आर्थिक गिरावट (चित्र-2) से जोड़ने को बढ़ावा मिलेगा.

हालांकि, अप्रैल-जून तिमाही की जीडीपी के नतीजों में कुछ आश्चर्यजनक आंकड़े भी हैं. रूस में  अपेक्षाकृत ज़्यादा कठोर सरकारी उपायों को लागू करने के बावजूद वहां अपेक्षाकृत कम 5.6% की गिरावट रही. दूसरी ओर, जापान ने कम कठोर उपायों के साथ तिमाही की शुरुआत की लेकिन फिर भी 10.1% तक गिरावट रही. इस तिमाही में महामारी को लेकर अपेक्षाकृत कम कठोर उपायों के बाद भी फ्रांस की जीडीपी इटली की जीडीपी से ज़्यादा गिरी. इस तिमाही में पर्याप्त कठोर उपायों के बावजूद पॉज़िटिव विकास दर हासिल करने वाला चीन ब्रिक्स और जी-7 देशों के बीच सबसे अलग बना हुआ है.

इस तरह सरकार के कठोर उपायों और उसके बाद जीडीपी की गिरावट के बीच संबंध जोड़ने की कोशिश करना शायद अभी जल्दबाज़ी होगा. इसके उलट आंकड़ों पर पहली नज़र डालने से इन अर्थव्यवस्थाओं में महामारी-पूर्व की स्थिति इस ओर इशारा करती है जिसने जीडीपी में इस गिरावट को बढ़ावा दिया. अपनाए गए प्रतिबंधात्मक उपायों की प्रकृति और अर्थव्यवस्था पर इसके असर  की बारीकी और गहराई से जांच करने की ज़रूरत है. इस पर कोई एकमत फ़ैसला आना अभी बाकी है.

इस बीच, मुख्यतः इस अव्यवस्था के कारण दुनिया भर में पूर्वानुमान लगाने वाली एजेंसियां ​​अर्थव्यवस्था पर इस महामारी के पूरे असर को समझने की कोशिश कर रही हैं. इस महामारी की शुरुआत में विकास दर को लेकर लगाए गए अनुमान लगातार नाकाम रहे हैं.

आईएमएफ़ ने अपने वैश्विक आर्थिक अनुमान (वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक-  डब्ल्यूईओ) अपडेट में समय-समय पर विभिन्न देशों की वास्तविक जीडीपी विकास दर की भविष्यवाणी की है. सालाना वृद्धि दर भी आमतौर पर संशोधित और समायोजित की जाती है. अगर ब्रिक्स और जी-7 देशों के लिए अप्रैल 2020 और जून 2020 के आईएमएफ़-डब्ल्यूईओ के वार्षिक अनुमानों के बीच अंतर (टेबल 1 में नीले रंग वाला कॉलम) को देखा जाए, तो वास्तविक आंकड़े पूर्वानुमान से बहुत अलग हैं. ये आंकड़े और पूर्वानुमान वित्त वर्ष के आधार पर हैं. आईएमएफ़ ने अप्रैल में जताए गए वार्षिक अनुमानों में जून में बड़े पैमाने पर संशोधन किया है.

सामान्य हालात में, किसी भी वास्तविक जीडीपी की वृद्धि दर के पूर्वानुमान से बहुत मामूली बढ़ोत्तरी 0.5% से 0.6% के बीच होती है. लेकिन यह सामान्य समय नहीं है, और माना जा सकता है कि पूर्वानुमान इकाई अंक में फ़ीसद बिंदु तक ग़लत हो सकते हैं. लेकिन इस पैमाने से भी यहां तक ​​कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही में नौ देशों की सालाना जीडीपी वृद्धि के अनुमान पहले ही उस त्रुटि-सीमा से बहुत आगे निकल चुके हैं. भारत के मामले में अंतर सबसे ज़्यादा है. आईएमएफ़-डब्ल्यूईओ का अप्रैल में जारी सालाना वास्तविक जीडीपी विकास दर अनुमान जून में घटकर -6.4% रह गया है. यहां, याद रखने वाली सबसे ख़ास बात यह है कि आईएमएफ़ का जून अपडेट चालू वित्त वर्ष में इन देशों की पहली तिमाही के वास्तविक आंकड़े तक पहुंच नहीं थी. अभी भी आकलन में फिसलन जारी है. अक्टूबर के अगले अपडेट में इन अंतरालों के और बढ़ने की संभावना है.

सामान्य हालात में, किसी भी वास्तविक जीडीपी की वृद्धि दर के पूर्वानुमान से बहुत मामूली बढ़ोत्तरी 0.5% से 0.6% के बीच होती है. लेकिन यह सामान्य समय नहीं है, और माना जा सकता है कि पूर्वानुमान इकाई अंक में फ़ीसद बिंदु तक ग़लत हो सकते हैं.

इससे भी ख़ास बात यह है कि वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाने में नाकाम आईएमएफ़ इकलौती एजेंसी नहीं है. इस साल सभी की भविष्यवाणियां ग़लत साबित हो रही हैं, और लगभग सभी मामलों में मुख्य समस्या उच्च-अनुमान (ओवर प्रेडिक्शन) की है.

सप्लाई श्रृंखला बाधित है, उत्पादन छिटपुट हो रहा है, इनपुट और आउटपुट मांग अनिश्चित और अस्थिर है. मांग पक्ष को देखें तो– पूरे देश में बेरोज़गारी बढ़ गई, क्रय शक्ति कम हो गई, खपत में गिरावट आई है, निवेश की मांग स्वाभाविक रूप से कम हो गई है, और दुनिया में कहीं भी समग्र निर्यात मांग बढ़ने की फिलहाल संभावना नहीं है. इसलिए, आर्थिक विकास संचालकों की अंतर्निहित श्रृंखला मांग और आपूर्ति दोनों तरफ़ से बुरी तरह टूट गई है.

ऐसी हालत में आम पूर्वानुमान मॉडल (जो इन ग्रोथ ड्राइवर्स पर निर्भर होते हैं) नाकाम हो गए हैं. मौजूदा समय में सभी वैश्विक पूर्वानुमान संस्थाओं के साथ ऐसा हो रहा है.

भारत के लिए अनुमानित और वास्तविक जीडीपी दोनों में विकास दर में गिरावट बहुत ज़्यादा है, जो दीर्घकाल में बड़ी मंदी और/या विकासहीनता के जोख़िम को दर्शाता है.

पूर्वानुमान की भविष्यवाणी सामान्य हालात में नीति-निर्माण में बहुत उपयोगी होती हैं. लेकिन महामारी ने फिलहाल ज़ाहिर तौर इन भविष्यवाणियों को अविश्वसनीय बना दिया है. बदलते विकास अनुमानों पर अब उम्मीदें लगाना नासमझी है, और इनके किसी भी अर्थव्यवस्था को मंदी या लंबे समय के लिए विकासहीनता में धकेल देने की क्षमता भी है. भारत के लिए अनुमानित और वास्तविक जीडीपी दोनों में विकास दर में गिरावट बहुत ज़्यादा है, जो दीर्घकाल में बड़ी मंदी और/या विकासहीनता के जोख़िम को दर्शाता है.

राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों से सिस्टम में मांग पैदा करना और दोषपूर्ण पूर्वानुमानों पर भरोसा करने के बजाय घरेलू उपभोक्ता बाज़ारों को सहारा देकर अर्थव्यवस्था की रक्षा करना एक सुरक्षित रास्ता है. कम से कम अगले एक साल के लिए, भारतीय आर्थिक नीति बनाने के लिए यही बेहतर और बेहतर रास्ता दिखता है.

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