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अपने छोटे आकार के बावजूद यूक्रेन की तरफ से रूस के हमलों का जवाब और उसके द्वारा ड्रोन के इस्तेमाल ने युद्ध के भविष्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. माना जा रहा है कि ड्रोन का उपयोग करके यूक्रेन ने काला सागर में रूसी बेड़े के एक-तिहाई हिस्से को नुकसान पहुंचाया है. असमान युद्ध (एसिमेट्रिक वॉरफेयर) के इस कदम ने अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV जिसे इस पूरे लेख में ड्रोन बताया गया है) के इस्तेमाल के इर्द-गिर्द चर्चा के दरवाजे खोल दिए हैं. असमान युद्ध छोटी ताकतों को बड़ी, पारंपरिक रूप से अधिक ख़तरनाक ताकतों को उसी पैमाने पर जवाब देने की अनुमति देता है. यूक्रेन के द्वारा UAV के उपयोग का मामला कोई नया नहीं है. इसी तरह के मामले सऊदी अरब, गज़ा पट्टी और कई दूसरे क्षेत्रों में देखे गए हैं जो अक्सर गैर-सरकारी किरदारों के द्वारा भड़काए जाते हैं. एक हथियार के रूप में ड्रोन का इस्तेमाल न केवल दो देशों के बीच होता है बल्कि अगर दुर्भावनापूर्ण और गैर-सरकारी किरदारों के द्वारा रणनीति के रूप में उपयोग किया जाए तो लोगों की शांति के लिए भी एक गंभीर ख़तरा है.
असमान हमलों के समर्थक के रूप में ड्रोन
ड्रोन की शुरुआत ने युद्ध का परिदृश्य बदल दिया है. ड्रोन को आसानी से हासिल किया जा सकता है और उतनी ही आसानी से इसमें बदलाव किया जा सकता है. ग्रे ज़ोन (संघर्ष और शांति के बीच का क्षेत्र) और नागरिक क्षेत्रों में अधिकतर ड्रोन हमले दो मुख्य श्रेणियों के तहत आते हैं. पहली श्रेणी में ऐसे हमले हैं जो ड्रोन का इस्तेमाल विस्फोटकों के साथ-साथ जैविक और रासायनिक हथियारों को पहुंचाने की प्रणाली के रूप में करते हैं. इनका इस्तेमाल संस्थानों, कारखानों और व्यापक क्षेत्रों में हमले के लिए भी किया जाता है. दूसरी श्रेणी में ड्रोन के ज़रिए जासूसी आती है जहां ड्रोन का उपयोग निगरानी के लिए किया जाता है. वैसे तो ड्रोन स्वार्म (झुंड) और ड्रोन के दूसरे प्रकार के ख़तरे जैसे कि ड्रोन बेस ट्रैफिकिंग और ड्रोन कॉलिज़न (टक्कर) घातक ऑटोनोमस (स्वायत्त) हथियारों और उनके नियमन के साथ ज़रूरी और अनसुलझी समस्याएं बने हुए हैं लेकिन निगरानी और दखल के लिए ड्रोन का इस्तेमाल एक ऐसा मुद्दा है जो महत्वपूर्ण बनता जा रहा है.
एक हथियार के रूप में ड्रोन का इस्तेमाल न केवल दो देशों के बीच होता है बल्कि अगर दुर्भावनापूर्ण और गैर-सरकारी किरदारों के द्वारा रणनीति के रूप में उपयोग किया जाए तो लोगों की शांति के लिए भी एक गंभीर ख़तरा है.
दिलचस्पी पैदा करने वाला एक क्षेत्र है महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे विशेष रूप से रासायनिक कारखानों, जैविक प्रयोगशालाओं और परमाणु केंद्रों, जहां केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर (CBRN) सामग्रियां हो सकती हैं, के हवाई क्षेत्र में ड्रोन का प्रवेश करना. वैसे तो किसी देश की सुरक्षा के लिए बुनियादी ढांचे के सभी क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं लेकिन CBRN केंद्र पर हमला अधिक विध्वंसकारी होगा, दूसरे क्षेत्रों जैसे कि परिवहन प्रणाली पर हमले की तुलना में इसका व्यापक और लंबा प्रभाव होगा. CBRN केंद्र में घुसपैठ का नतीजा न केवल तुरंत जान और माल के नुकसान के रूप में निकल सकता है बल्कि एक बड़ी आबादी के लिए ख़तरनाक सामग्रियों या विकिरण का उत्सर्जन भी हो सकता है. मौजूदा समय में पारंपरिक रडार तकनीक का इस्तेमाल करके ड्रोन का पता लगाना अगर असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रूर है. इसका कारण ड्रोन के उड़ने की रफ्तार और उनका छोटा आकार है. अक्सर इस तरह के रडार सिस्टम ड्रोन और ड्रोन स्वार्म को चिड़ियों का झुंड समझ लेते हैं. ज़्यादातर CBRN केंद्रों ने अभी तक अपनी निगरानी तकनीक को अपग्रेड नहीं किया है और इसलिए उन पर ख़तरा है.
ड्रोन का पता लगाने की प्रणाली: प्रारूप और चुनौतियां
2019 के बाद से महत्वपूर्ण हवाई क्षेत्रों में ड्रोन का पता लगाने की मुश्किलों को हल करने के लिए कई नए प्रारूपों (मॉडल) को विकसित किया गया है. ये मॉडल अक्सर ड्रोन का पता लगाने और वर्गीकृत करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करते हैं जो रडार, विज़ुअल, ध्वनि और रेडियो-फ्रीक्वेंसी समेत अलग-अलग प्रकार के सेंसर पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इसके अलावा जैसा कि बिलाल ताहा और अब्दुलहादी शूफान ने अपने पेपर में ज़िक्र किया है, ये मॉडल एक ड्रोन और एक पक्षी के बीच, ख़तरनाक और गैर-ख़तरनाक ड्रोन के बीच अंतर कर सकते हैं और ड्रोन के झुंड की पहचान भी कर सकते हैं. भारत में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने तीन प्रकार के ड्रोन डिटेक्शन सिस्टम (DDS) विकसित किए हैं जो हार्ड-किल और सॉफ्ट-किल विकल्पों के साथ ज़मीन और हवाई आधारित निगरानी के लिए हैं.
लेकिन ये सिस्टम अपनी चुनौतियों के बिना नहीं हैं. पहली चुनौती है ड्रोन का व्यापक रेंज जिसका समाधान करना चाहिए जिसके लिए विभिन्न कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल के साथ अलग-अलग सेंसर को एक एकीकृत प्रणाली में जोड़ने के लिए DDS की आवश्यकता होती है. ये एक महंगी और ऊर्जा खपत करने वाली प्रक्रिया है जिसके लिए अलग-अलग तकनीकों को शामिल करने की ज़रूरत होती है.
भारत में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने तीन प्रकार के ड्रोन डिटेक्शन सिस्टम (DDS) विकसित किए हैं जो हार्ड-किल और सॉफ्ट-किल विकल्पों के साथ ज़मीन और हवाई आधारित निगरानी के लिए हैं.
यहां ड्रोन डिटेक्शन और डिटरेंस के क्षेत्र को प्राथमिकता देना और उसमें फंड लगाना ज़रूरी है. साथ ही नई तकनीकों के उपयोग के लिए फंडिंग सुनिश्चित करना भी आवश्यक है. दूसरी चुनौती है झुंड में ड्रोन का पता लगाना. अगर झुंड में किसी ड्रोन में पहचान योग्य रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नेचर नहीं है तो उसे रोकना मुश्किल है. इसका समाधान करने के लिए तकनीक को उन्नत बनाने की आवश्यकता है ताकि ड्रोन की वजह से हवा में पैदा होने वाली मामूली गड़बड़ी की पहचान करके झुंड का पता लगाया जा सके. इसका समाधान करने के लिए ड्रोन सिग्नेचर डेटाबेस की आवश्यकता है. यहां प्राइवेट सेक्टर के ड्रोन उत्पादकों के साथ सहयोग और ड्रोन का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है. इससे बिना रजिस्टर ड्रोन की पहचान ख़तरे के रूप में करने में भी मदद मिलेगी.
अंत में, पता लगाने की तकनीक के साथ हार्डवेयर सैंडबॉक्सिंग और जैमिंग को रोकने की तकनीक को शामिल करना ज़रूरी है जो ड्रोन जैमिंग का विरोध कर सकती है.
CBRN केंद्रों में ड्रोन का पता लगाने की प्रणाली
CBRN केंद्रों, विशेष रूप से जैव सुरक्षा प्रयोगशालाओं और रासायनिक केंद्रों, को अक्सर सुरक्षा आवश्यकताओं में नज़रअंदाज़ किया जाता है लेकिन उन्हें लगातार अपनी रक्षा मज़बूत करनी चाहिए. इस तरह की प्रणाली को वैश्विक स्तर पर पहले से ही शामिल किया गया है. उदाहरण के लिए, गैटविक एयरपोर्ट पर 2019 में ड्रोन की वजह से रुकावटों के बाद यूनाइटेड किंगडम (UK) ने संवेदनशील हवाई क्षेत्रों में ड्रोन की घुसपैठ को रोकने के लिए अपने हवाई अड्डों को ड्रोन विरोधी प्रणालियों से लैस करने में काफी निवेश किया. ड्रोन के नए ख़तरों से निपटने के लिए इन प्रणालियों को नियमित रूप से अपडेट किया जाता है.
अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) ने भी सक्रिय रूप से ड्रोन विरोधी तकनीकें तैनात की हैं, विशेष रूप से केमिकल प्लांट, पावर स्टेशन और सैन्य प्रतिष्ठान जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के आसपास. 2018 में “UAS (अनमैन्ड एयरक्राफ्ट सिस्टम) का मुकाबला करने का कार्यक्रम” शुरू किया गया था. DHS स्थानीय कानून लागू करने वाली एजेंसियों और प्राइवेट सेक्टर के संगठनों के साथ भी काम करता है ताकि ड्रोन से सुरक्षा के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं को स्थापित किया जा सके. साथ ही उभरती ड्रोन तकनीकों और रणनीतियों से आगे रहने के लिए अपनी नीतियों में भी नियमित रूप से बदलाव करता है.
इन केंद्रों की व्यक्तिगत सुरक्षा गाइडलाइन में ड्रोन का पता लगाने की प्रणाली को शामिल करना ज़रूरी है ताकि उन्हें दुर्भावनापूर्ण और गैर-सरकारी किरदारों के हमलों से बचाया जा सके.
जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया है, भारत की BEL सैन्य और नागरिक- दोनों के उपयोग के लिए ड्रोन विरोधी समाधान विकसित कर रही है. इनमें ड्रोन का मुकाबला करने की पहल भी शामिल है जिसका इस्तेमाल रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) करेगा. हालांकि इन तकनीकों को अभी भी स्थापित करने और नियमित तौर पर अपग्रेड करने की ज़रूरत है.
दूसरे देशों में भी ड्रोन का पता लगाने और उसे रोकने की तकनीकों पर ज़ोर देने की आवश्यकता देखी गई है. मिसाल के तौर पर, सऊदी अरब ने 2019 में सऊदी आरामको के तेल केंद्रों पर ड्रोन के हमले का अनुभव किया था. सऊदी सरकार ने भी अमेरिका जैसी दूसरी भू-राजनीतिक ताकतों और अंतर्राष्ट्रीय रक्षा ठेकेदारों के साथ साझेदारी की है और बदलते ड्रोन ख़तरे के जवाब में नियमित रूप से सिस्टम को अपग्रेड कर रही है.
CBRN की सुरक्षा गाइडलाइन में ड्रोन
CBRN केंद्रों की सुरक्षा करने वाली ज़्यादातर नीतियों में साइबर सुरक्षा या तो अक्सर मौजूद होती है या एक खामी के समाधान के रूप में उसकी सिफारिश की जाती है. हालांकि ड्रोन के ज़रिए निगरानी और ड्रोन के द्वारा सेवाओं को जाम करने को नज़रअंदाज़ किया जाता है. इसके अलावा, हवाई अड्डों और कुछ महत्वपूर्ण केंद्रों के अलावा जो क्षेत्र असुरक्षित हैं, उन पर ड्रोन के हमलों का समाधान नहीं किया गया है.
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, पारंपरिक रडार सिस्टम ड्रोन के आकार और गति के कारण उनका पता लगाने में जूझते हैं और कई CBRN केंद्रों में अत्याधुनिक निगरानी तकनीकों की कमी है. इसलिए इन केंद्रों की व्यक्तिगत सुरक्षा गाइडलाइन में ड्रोन का पता लगाने की प्रणाली को शामिल करना ज़रूरी है ताकि उन्हें दुर्भावनापूर्ण और गैर-सरकारी किरदारों के हमलों से बचाया जा सके. व्यापक स्तर पर ऐसे सिस्टम को शामिल करने से नियमित अपडेट की ज़रूरत को पूरा करने में मदद मिलेगी और नौकरशाही को दूर किया जा सकेगा जो प्रक्रिया को धीमा कर सकती है.
इसका समाधान करने के लिए ड्रोन उत्पादकों के साथ सहयोग करना, तकनीकों को नियमित रूप से अपडेट करना और जैमिंग के ख़िलाफ़ मज़बूत रक्षा सुनिश्चित करना ज़रूरी है. ऐसा करने के लिए कुछ विशेष उत्पादकों को नियमित तौर पर प्रमाणित किया जा सकता है, उनकी जांच की जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ड्रोन, DDS और रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नेचर केंद्रीय स्तर पर रजिस्टर और स्वीकृत हैं जबकि तकनीक का इस्तेमाल करने और अपग्रेड करने के काम में दिक्कत न आए. महत्वपूर्ण तकनीक, पर्यावरण की सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर डालने वाले तेज़ी से बदलते क्षेत्र में समय ही सब कुछ है और समय पर तकनीकी अपडेट करना बेहद महत्वपूर्ण है.
श्राविष्ठा अजय कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटजी एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं.
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