Published on Feb 07, 2024 Updated 0 Hours ago
भारत से अलगाव और अन्य देशों के साथ मालदीव के बढ़ते रिश्तों का विश्लेषण!

जैसी कि उम्मीद का जा रही थी, भारत से तनाव के बाद मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू तेज़ी के साथ भारत की जगह चीन को अपना नज़दीकी साझीदार बनाने में जुट गए हैं. इसी प्रकार से नागरिक और सैन्य व्यापार के क्षेत्र में भी मालदीव द्वारा बहुत दूर स्थित तुर्किये के साथ नई साझेदारी की जा रही है. इतना ही नहीं मुइज़्ज़ू द्वारा अमेरिका के साथ भी संपर्क बढ़ाया जा रहा है, ताकि चीनी नियंत्रण को कुछ हद तक सीमित किया जा सके. राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की इन रणनीतियों ने पूरे क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी है. मुइज़्ज़ू सरकार ने चीन के ग्लोबल स्ट्रैटेजिक इनीशिएटिव यानी वैश्विक रणनीतिक पहल (GSI) में शामिल होने का निर्णय लिया है. इसके अलावा मालदीव द्वारा चावल और आटा जैसी ज़रूरी खाद्य सामग्री का तुर्किये से भी आयात किया जा रहा है, इसका मकसद यह है कि एक देश के भरोसे नहीं रहा जाए. ज़ाहिर है कि मालदीव सरकार की इन रणनीतियों ने भी जिज्ञासा के साथ चिंता पैदा करने का काम किया है.

 मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने हाल ही में चीन का दौरा किया था और सभी की नज़रें उनकी चीन यात्रा पर थी. लेकिन इसी बीच मुइज़्ज़ू ने एक बड़ा क़दम उठाते हुए तुर्किये से 'सैन्य ड्रोन' ख़रीदने के लिए 37 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा किया है.

मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने हाल ही में चीन का दौरा किया था और सभी की नज़रें उनकी चीन यात्रा पर थी. लेकिन इसी बीच मुइज़्ज़ू ने एक बड़ा क़दम उठाते हुए तुर्किये से 'सैन्य ड्रोन' ख़रीदने के लिए 37 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा किया है. उनके इस सौदे से महसूस होता है कि वे मालदीव के 900,000 वर्ग किलोमीटर के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की हवाई निगरानी के कार्य से भारत को हटाना चाहते हैं. इससे यह भी लग रहा है कि वे रणनीतिक लिहाज़ से अहम हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक नए देश के लिए दरवाज़े खोल सकते हैं. इतना ही नहीं, चीन के साथ मालदीव के द्विपक्षीय रिश्तों कोरणनीतिक सहयोगका दर्ज़ा देने के उनके फैसले ने भी क्षेत्रीय स्तर पर परिस्थितियों को बदलने का काम किया है. इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू द्वारा भारत के साथ साझा हाइड्रोग्राफिकल सर्वेक्षण को आगे नहीं बढ़ाने के निर्णय के तुरंत बाद जिस प्रकार से चीन के रिसर्च और जासूसी जहाज जियांग यांग हाँग 03 ने माले में लंगर डाला है, उससे साफ पता चलता है कि मुइज़्ज़ू का चीन की तरफ ज़बरदस्त झुकाव है. हालांकि, मालदीव की ओर से सफाई दी गई है कि चीनी जहाज तेल और ज़रूरी सामान के लिए रुका था, लेकिन उसका यह दावा खोखला लगता है. ऐसा इसलिए है कि पिछले वर्षों में चीन का यह जासूसी जहाज श्रीलंका का दौरा कर चुका है. हाल ही में एक बार फिर यह चीनी ख़ुफिया जहाज जब श्रीलंका पहुंचा, तो वहां की सरकार ने उसे अपने क्षेत्र में घुसने नहीं दिया. इसके बाद इस जासूसी जहाज ने मालदीव की ओर रुख किया था. राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के भारत विरोधी क़दमों की कड़ी में एक और क़दम तब जुड़ गया, जब उन्होंने सरकार की असांधा सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कवरेज स्कीम के अंतर्गत अपने नागरिकों को भारत और श्रीलंका के अस्पतालों में उपचार की सुविधा पर रोक लगा दी और इसकी जगह पर दुबई एवं थाईलैंड के अस्पतालों में इस सुविधा को बढ़ाने का निर्णय लिया. देखा जाए तो उनके इन प्रयासों के पीछे कहीं कहीं मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन (2013-18) केइंडिया आउटअभियान को हाईजैक करने की सुनियोजित रणनीति दिखाई देती है

 

घटनाओं का सिलसिलेवार विवरण

मालदीव के राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद मुइज़्ज़ू ने तुर्किये की पहली आधिकारिक यात्रा की थी. दरअसल, मुइज़्ज़ू पहले मालदीव के पारंपरिक सहयोगी और समर्थक सऊदी अरब की आधिकारिक यात्रा पर जाने वाले थे, लेकिन आख़िरी समय में बगैर कोई कारण बताए उनका यह दौरा टाल दिया गया था. इसके बाद मुइज़्ज़ू ने आनन-फानन में चीन का दौरा किया था और इसके लिए ज़ल्दबाज़ी में तैयारी की गई थी. मुइज़्ज़ू की चीन यात्रा के पश्चात यह स्पष्ट हो गया था कि उन्हें इससे काफ़ी उम्मीदें थीं.

 

राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने चीन यात्रा के दौरान बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौज़ूदगी में 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. इसके अलावा बीजिंग पहुंचने से पहले फुजियान में भी उन्होंने चीन के साथ तमाम समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. इस दौरान चीन की कई अंतरराष्ट्रीय पहलों में मालदीव शामिल हो गया, जैसे कि वैश्विक रणनीतिक पहल (GSI), ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव (GDI) और ग्लोबल सिविलाइजेशन इनिशिएटिव (GCI). इतना ही नहीं, मुइज़्ज़ू ने यामीन सरकार के समय मालदीव और चीन के बीच लागू किए गए बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव और मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को भी दोबारा शुरू किया. ज़ाहिर है कि यामीन के बाद राष्ट्रपति बने सोहिल ने इन दोनों समझौतों से मालदीव को अलग कर दिया था. राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की चीन द्वारा वित्त पोषित महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह और माले अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का विस्तार भी शामिल है. इस हवाई अड्डे के संचालन को लेकर वर्ष 2011-12 में मालदीव की तत्कालीन सरकार का भारत की जीएमआर कंपनी के साथ विवाद हुआ था.

 

राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू का एक और ड्रीम प्रोजेक्ट फुशी ढिगारू लैगून में 1,153 हेक्टेयर की 'रास माले' भूमि-सुधार और निर्माण परियोजना है. इस परियोजना में भी चीन मदद कर रहा है और रास माले में 30,000 'सामुदायिक आवास' इकाइयां बनाने पर सहमत हो गया है. जब श्रीलंका का कॉन्ट्रैक्टर आठ महीनों में 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर के भूमि-सुधार कार्य को पूरा कर लेगा, तब चीन यहां आवास बनाने का कार्य शुरू करेगा और इसके लिए कोई पैसा नहीं, बल्कि 70 हेक्टेयर ज़मीन लेगा. हालांकि, आवास निर्माण वोटरों को आकर्षित करने का बेहतरीन ज़रिया है, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति सोलिह की हार से ऐसा नहीं लगता है. ऐसे में रोज़गार सृजन ही एकमात्र ज़रिया है, जिससे नागरिकों को आश्वस्त किया जा सकता है. लेकिन मुइज़्ज़ू जिस प्रकार से चीन को धड़ाधड़ परियोजनाएं सौंपते जा रहे हैं और चीन का काम करने का जो अपना पारंपरिक तरीक़ा है, उसमें रोज़गार पैदा होने की संभावनाएं ना के बराबर हैं.

 

संसद की मंज़ूरी

मालदीव की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक है. पड़ोसी देश श्रीलंका की तरह ही मालदीव आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के ऋण में डूबा हुआ है. ऐसे में मालदीव को भी नकद ऋण या फिर बजटीय मदद की ज़रूरत है. लेकिन चीन ने मालदीव को विकासात्मक वित्त पोषण के तौर पर सिर्फ़ 130 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने का वादा किया है. राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू को विरासत में खस्ताहाल अर्थव्यवस्था मिली थी और आर्थिक हालात को सुधारने के लिए उनकी सरकार ने हाल ही में ट्रेजरी बिल में 4.2 बिलियन एमवीआर की पेशकश की है. ज़ाहिर है कि अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए अगर मुइज़्ज़ू करेंसी नहीं छापने का निर्णय लेते हैं, तो इससे पहले से ही संकट में घिरे बैंकिंग सेक्टर पर और ज़्यादा दबाव पड़ेगा, या उसे अधिक उधार लेने पर मज़बूर होना पड़ेगा, या फिर दोनों ही स्थितियों से जूझ़ना होगा.

यह घटनाक्रम कहीं न कहीं मतदाताओं की बदली मनोदशा को दिखाता है, साथ ही निसंदेह तौर पर इसके पीछे दल-बदल एवं नए भारत का नज़रिया भी है.

राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने चुनाव के दौरान यह भी वादा किया था कि सभी विदेशी समझौतों को लेकर पहले संसद की अनुमति ली जाएगी. फिलहाल यह देखना बाकी है कि वे अपने इस वादे को पूरा करते हैं, या नहीं. जिस तरह से 17 मार्च को होने वाले संसदीय चुनावों से पहले 13 सांसद सोलिह की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) छोड़कर मुइज़्ज़ू के साथ गए हैं, ऐसे में मुइज़्ज़ू अपने इस वादे के पूरा होने की उम्मीद कर सकते हैं. यह घटनाक्रम कहीं कहीं मतदाताओं की बदली मनोदशा को दिखाता है, साथ ही निसंदेह तौर पर इसके पीछे दल-बदल एवं नए भारत का नज़रिया भी है.

 

मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी ने मुसलमानों के पवित्र महीने रमजान में चुनाव कराने एवं चुनाव प्रचार करने पर पाबंदी लगाने के लिए एक विधेयक भी पेश किया है. ज़ाहिर है कि राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने रमजान के महीने में हर परिवार को 10 किलो आटा एवं 10 किलो चावल मुफ्त देने का वादा किया है और इसके लिए तुर्किये से आटा चावल आपूर्ति का एक समझौता किया है. इस सबके बीच राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद 5 फरवरी को मुइज़्ज़ू पहली बार संसद को संबोधित करने वाले हैं और मालदीव के भीतर बाहर दोनों ही जगहों पर उनके मित्र एवं विरोधी बेसब्री से उनके संबोधन का इंतज़ार कर रहे हैं, ज़ाहिर है कि सभी उनकी नीतियों के बारे में जानना चाहते हैं.

 

मिशन मोड

भारत और श्रीलंका प्राचीन समय से ही मालदीव में ज़रूरी वस्तुओं की आपूर्ति करने वाले प्रमुख देश रहे हैं. कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के दौरान भारत ने 'पड़ोसी प्रथम' नीति के तहत मालदीव की आगे बढ़कर सहायता की, साथ ही सबसे पहले खाद्यान्न दवाओं की आपूर्ति की. भारत ने मालदीव को स्वदेश निर्मित कोरोना वैक्सीन की भी आपूर्ति की और इस पूरी सहायता को वहां के लोगों के लिए उपहार बताया. लेकिन जिस प्रकार से मुइज़्ज़ू ने चुनाव प्रचार के वक़्त भारत के ख़िलाफ ज़हर उगला और सत्ता में आने बाद चिकित्सा और आपातकालीन निकासी के कार्य में लगे भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने की मांग को दोहराया, जिसकी वजह से एक किशोर की जान चली गई, देखा जाए तो इन सब घटनाओं ने कहीं कहीं द्विपक्षीय रिश्तों में कड़वाहट पैदा की है.

 

देखा जाए तो मालदीव के 'इंडिया मिलिट्री आउट' के आह्वान का भी कुछ ख़ास मतलब नहीं है. भारतीय सैनिकों के पुराने अभियानों पर नज़र डालें तो ये ताज़ा आह्वान बेमानी लगता है. गौरतलब है कि पहले कई बार भारतीय सैनिकों को मालदीव में राहत और बचाव अभियानों के लिए भेजा जा चुका है और कार्य समाप्त होने के बाद वे वापस लौट आए. जैसे कि 1988 में 'ऑपरेशन कैक्टस', उसके बाद वर्ष 2004 में सुनामी से उपजे हालातों को काबू करने के लिए राहत और बचाव अभियान और वर्ष 2014 में माले पेयजल संकट से राहत के लिए भारतीय सैनिक मालदीव भेजे गए थे और इन अभियानों के समाप्त होने के बाद सैनिक मालदीव से लौट गए.

 

इसके बावज़ूद राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू जब चीन से अपने हालिया दौरे से लौटे, तो उन्होंने परोक्ष रूप से भारत पर निशाना साधते हुए जमकर बयानबाज़ी की. उन्होंने कहा किमालदीव किसी का मोहताज नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र और संप्रभु देश. हम छोटे देश ज़रूर है, लेकिन इससे किसी को धमकाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है.ज़ाहिर है कि मुइज़्ज़ु का इतना तीखा बयान तब सामने आया, जब चीन यात्रा के दौरान बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उनसे कहा था कि मालदीव में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का चीन सख़्त विरोध करता है. ज़ाहिर है कि जब मालदीव की सुप्रीम कोर्ट ने 1 फरवरी 2018 को पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को सभी आरोपों से बरी करने का आदेश दिया था, जो उस वक़्त स्व-निर्वासन में रह रहे थे, तब भारत ने मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति यामीन की कड़ी आलोचना की थी. उस वक़्त भी चीन की ओर से इसी प्रकार का रुख जताया गया था.

 

नई राष्ट्रवादी सोच

इन सभी घटनाक्रमों के बीच भारत और मालदीव ने पारस्परिक भरोसा बरक़रार रखने की कोशिशें भी की हैं. इसी क्रम में राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू और प्रधानमंत्री मोदी की पहली मुलाक़ात के बाद दोनों नेताओं की पहल पर दोनों सरकारों के 'उच्च-स्तरीय कोर ग्रुप' ने माले में बैठक की थी. इस बैठक में कई आपसी मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया, साथ ही मालदीव के लोगों को मानवीय और आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने वाले भारतीय एविएशन प्लेटफार्मों के निरंतर संचालन को बरक़रार रखने के लिए पारस्परिक रूप से व्यावहारिक और मुमकिन समाधान तलाशने पर चर्चा की गई. इसके अतिरिक्त इस उच्च स्तरीय बैठक में दोनों देशों के अधिकारियों ने भारत के वित्त पोषण से पहले से संचालित परियोजनाओं की गति तेज़ करने समेत आपसी साझेदारी को दूसरे क्षेत्रों में बढ़ाने जैसे मुद्दों पर भी बातचीत की. ज़ाहिर है कि मुइज़्ज़ू द्वारा चुनाव के पहले और राष्ट्रपति बनने के बाद इसकी मांग की गई थी. माले में आयोजित हुई इस अहम बैठक के बाद दोनों देशों के विदेश मंत्रियों यानी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर एवं मालदीव के विदेश मंत्री मूसा ज़मीर ने युगांडा में मुलाक़ात की थी. दरअसल, दोनों विदेश मंत्री युगांडा में आयोजित NAM मंत्री स्तरीय बैठक में शिरकत करने पहुंचे थे और इसी बैठक के अलग दोनों के बीच भेंट हुई थी, यानी दोनों देशों के बड़े नेता एक बार फिर किसी तीसरे देश के आयोजन स्थल पर मिले थे. तब से ही मालदीव के विदेश मंत्रालय द्वारा कोर ग्रुप की बैठक में भारत द्वारा कही गई बातों को दोहराया जाता रहा है, हालांकि सैनिकों की वापसी के मुद्दे ने इसमें कुछ व्यवधान पैदा करने का काम किया है.

 मालदीव की हर सरकार की विदेश नीति में चीन के साथ संबंध बनते-बिगड़ते रहते हैं. ज़ाहिर है कि भारत और भारतीयों को मालदीव की इन मौज़ूदा असामान्य परिस्थितियों को समझने एवं इनके साथ मेलजोल स्थापित करने की ज़रूरत है.

इस दरम्यान सोशल मीडिया पर एक नया विवाद शुरू हो गया. दरअसल, मालदीव सरकार में शामिल कुछ मंत्रियों ने भारतीय प्रधानमंत्री के विरुद्ध कुछ अपमानजनक बातें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी, इसके जवाब में भारतीयों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पर्यटन स्थल के रूप में मालदीव का बहिष्कार करने की मुहिम शुरू कर दी गई. इस विवाद के बढ़ने के बाद मालदीव की सरकार बैकफुट पर गई और हालात को संभालने के लिए पहले तो खुद को मंत्रियों की बयानबाज़ी से अलग किया और फिर आनन-फानन में तीन उप-मंत्रियों को निलंबित कर दिया. इतना सब होने के बाद भी भारतीयों का गुस्सा शांत नहीं हुआ और भारत के तमाम चर्चित लोगों, जिनमें बॉलीवुड कलाकार, बड़े क्रिकेटर तक शामिल थे, राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित इस अभियान में कूद पड़े और पर्यटन स्थल के रूप में मालदीव का बहिष्कार करने की मुहिम में शामिल हो गए.

 

इन हालातों से परेशान मुइज़्ज़ू ने चीन की ओर रुख किया और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के शासन के दौरान चीन के साथ जो समझौते हुए थे, ज़ल्दबाज़ी में उन्हें फिर से लागू करने में जुट गए. गौरतलब है कि मालदीव की हर सरकार की विदेश नीति में चीन के साथ संबंध बनते-बिगड़ते रहते हैं. ज़ाहिर है कि भारत और भारतीयों को मालदीव की इन मौज़ूदा असामान्य परिस्थितियों को समझने एवं इनके साथ मेलजोल स्थापित करने की ज़रूरत है. जहां तक मालदीव के तुर्किये के साथ रातों-रात प्रगाढ़ हुए संबंधों की बात है, तो इसमें भी मालदीव सरकार की दूरदर्शिता नज़र नहीं आती है. क्योंकि तुर्किये के साथ गलबहियां करते हुए मालदीव की सरकार ने इस पर तनिक भी विचार नहीं किया कि इसका सऊदी अरब एवं दूसरे साझीदार गल्फ देशों के साथ उसके ऐतिहासिक रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा.

 

अमेरिकी दख़ल

इस सबके बीच राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के चीन दौरे से वापस आने के कुछ दिनों बाद अमेरिका की हिंद-प्रशांत कमान के कमांडर एडमिरल जॉन एक्विलिनो ने उनसे भेंट की थी. दोनों की इस मुलाक़ात ने भारत ही नहीं क्षेत्र के सभी देशों में दिलचस्पी पैदा कर दी. राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के चीन जाने से पहले अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मालदीव के विदेश मंत्री मूसा ज़मीर के साथ टेलीफोन पर बातचीत की थी और इस दौरान दोनों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को लेकर चर्चा हुई थी.

 

जहां तक अमेरिकी कमांडर एडमिरल एक्विलिनो की राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू से मुलाक़ात की बात है, तो एक्विलिनो द्वारा केवल पिछली सरकार के दौरान लागू किए गए समझौते को जारी रखने के बात कही गई, बल्कि रक्षा बलों की क्षमता को बढ़ाने में सहायता के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता को भी दोहराया गया. इसके अलावा, अमेरिकी कमांडर द्वारा मालदीव की संप्रभुता का संरक्षण करते हुए शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में आगे भी सहयोग बनाए रखने की बात भी कही गई. हालांकि, चीन के साथ निकटता बढ़ाने वाले राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू का अमेरिका को लेकर क्या नज़रिया है, इसके बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है. यह अलग बात है कि अक्टूबर 2020 में जब अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने मालदीव का दौरा किया था, उस दौरान जेल में बंद अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्व वाले मुइज़्ज़ू के गठबंधन ने 'इंडिया आउट' अभियान के बीच पोम्पिओ की यात्रा का स्वागत किया था.

 

उल्लेखनीय है कि अमेरिका और मालदीव के बीच रक्षा सहयोग का लंबा इतिहास है. वर्ष 2012-13 के दौरान कुछ समय के लिए मालदीव के राष्ट्रपति पद पर रहे मोहम्मद वहीद के कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने मालदीव के सैन्य मामलों को लेकर स्टेटस फॉर फोर्सेस एग्रीमेंट (SOFA) और वहां एक सैन्य बेस स्थापित करने की कोशिश की थी, लेकिन तब यह कोशिश परवान नहीं चढ़ पाई थी. बताया जाता है कि इससे पहले दोनों देशों के बीच पूर्ववर्ती राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद (2008-12) के शासन के दौरान 10 साल के 'एक्विजिशन एंड क्रॉस-सर्विसिंग एग्रीमेंट' (ACSA) पर हस्ताक्षर किए गए थे. ऐसा भी कहा जाता है कि उस वक़्त मालदीव द्वारा अमेरिका को सैन्य अड्डा स्थापित करने की भी पेशकश की गई थी, लेकिन तब यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका था.

 

अब चाहे इन बातों में सच्चाई हो या हो, लेकिन एक बात तो तय है कि भारत और मालदीव के रिश्तों में पहले की तरह मज़बूती इस पर निर्भर करती है कि दोनों देशों के राजनेता अपने यहां नई राष्ट्रवादी सोच वालों पर किस हद तक लगाम लगा पाते हैं. भारत में व्यापक स्तर पर चलाए गए 'मालदीव के बहिष्कार' वाले अभियान के पश्चात राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू इतने ज़्यादा दबाव में गए थे कि अपनी चीन यात्रा के दौरान उन्होंने चीन से आग्रह किया कि वो अधिक संख्या में पर्यटकों को मालदीव भेजे और सबसे अधिक चीनी पर्यटकों की कोविड काल से पहले की स्थिति को हासिल करे, साथ ही पर्यटकों की संख्या के मामले में भारत को पीछे छोड़ दे. ज़ाहिर है कि चीन यात्रा के दौरान राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के एजेंडे में यह मुद्दा शामिल नहीं था, लेकिन भारत में चल रहे विरोध के चलते उन्हें चीन के समक्ष पर्यटन से जुड़ा मसला उठाने पर मज़बूर होना पड़ा


एन. सथिया मूर्ति नीति विश्लेषक और राजनीतिक टिप्पणीकार है एवं चेन्नई में रहते हैं.

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