Author : Abhishek Mishra

Published on Apr 20, 2023 Updated 0 Hours ago
विदेश मंत्री जयशंकर का अफ्रीका पड़ाव भारत-अफ्रीका भागीदारी में ‘निरंतरता’ दर्शाता है.

भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पिछले दिनों युगांडा और मोज़ाम्बिक की अपनी दो देशों की यात्रा संपन्न की. ये यात्रा द्विपक्षीय आर्थिक एवं रक्षा संबंधों को बढ़ावा देने की एक कोशिश थी. युगांडा ने हाल के वर्षों में भारत की तरफ़ से कई उच्च-स्तरीय दौरों का स्वागत किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में युगांडा का दौरा किया था. उस यात्रा के दौरान उन्होंने युगांडा की संसद को संबोधित किया था और अफ्रीका की तरफ़ भारत की अति महत्वपूर्ण नीति को व्यक्त किया था जिसे आमतौर पर कंपाला सिद्धांत के नाम से जाना जाता है. इस सिद्धांत में वो तत्व हैं जो अफ्रीका महादेश को लेकर भारत की निरंतरता और दृष्टिकोण में बदलाव- दोनों के बारे में बताते हैं. 

डॉ. जयशंकर का दौरा उस समय हुआ जब अफ्रीका के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय विकास साझेदारों जैसे कि अमेरिका, चीन, तुर्किए, जापान और यूरोपीय संघ (EU) ने हाल के वर्षों में अफ्रीका+1 शिखर सम्मेलन के अपने संस्करण का आयोजन किया है.

दूसरी तरफ़ मोज़ाम्बिक़ हिंद महासागर की एक व्यापक तटरेखा होने की शेखी बघारता है और भारत के लिए सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण है. मॉरिशस के बाद मोज़ाम्बिक अफ्रीका में भारत के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना है. इसका प्रमाण भारत की तेल कंपनियों के द्वारा रोवुमा गैस बेसिन के “ऑफशोर एरिया 1” प्रोजेक्ट में 30 प्रतिशत हिस्सा लेने से मिलता है जिसकी लागत 20 अरब अमेरिकी डॉलर है. भारत के द्वारा लिक्विफाइड नैचुरल गैस के आयात से अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करने और आयात के स्रोतों को अलग-अलग करने के लिए मोज़ाम्बिक़ एक महत्वपूर्ण साझेदार है. भारत ने अपने कई “मेड इन इंडिया” आत्मरक्षा के देसी उपकरणों जैसे कि फास्ट इंटरसेप्टर बोट और बख़्तरबंद गाड़ियों का निर्यात मोज़ाम्बिक़ को किया है ताकि वो अपनी रक्षा तैयारी और सैन्य क्षमता को बढ़ा सके. 

यात्रा मायने क्यों रखती है

डॉ. जयशंकर का दौरा उस समय हुआ जब अफ्रीका के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय विकास साझेदारों जैसे कि अमेरिका, चीन, तुर्किए, जापान और यूरोपीय संघ (EU) ने हाल के वर्षों में अफ्रीका+1 शिखर सम्मेलन के अपने संस्करण का आयोजन किया है. यहां तक कि रूस भी जुलाई 2023 में सेंट पीटर्सबर्ग में दूसरे रूस-अफ्रीका शिखर सम्मलेन का आयोजन करने जा रहा है. शिखर सम्मेलन कूटनीति के संचालन और भू-राजनीतिक आकांक्षा को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण साधन के रूप में उभरा है. अफ्रीका का विशाल प्राकृतिक संसाधन, जनसांख्यिकीय लाभांश और अफ्रीकी महादेश मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) के माध्यम से बढ़ते एकीकरण ने वैश्विक शक्तियों के लिए अफ्रीका को एक आकर्षक ठिकाना बना दिया है जहां वो प्रतिस्पर्धा करेंगे और विकास के लिए अपने स्वयं के दृष्टिकोण का प्रचार करेंगे. 

इन शिखर सम्मेलनों के बराबर भारत के सम्मेलन को भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (IAFS) के रूप में जाना जाता है जो काफ़ी पहले 2015 में आयोजित हुआ था. वैसे तो भारत के द्वारा IAFS के आख़िरी संस्करण में 10 अरब अमेरिकी डॉलर रियायती कर्ज़ के तौर पर, 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर अनुदान सहायता के रूप में और अफ्रीका के 50,000 छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने का वादा पहले ही पूरा हो चुका है लेकिन इसके बावजूद आठ वर्षों का अंतर काफ़ी ज़्यादा है. 

हालांकि, इस अवधि के दौरान भारत ने कई नई पहल की है जैसे कि अफ्रीका-इंडिया फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज़ (AF-INDEX), इंडिया-अफ्रीका डिफेंस मिनिस्टर्स कॉन्क्लेव (IADMC) और इंडिया-मोज़ाम्बिक़-तंज़ानिया ट्राईलेटरल एक्सरसाइज़ (IMT-TRILAT). इसके अलावा तंज़ानिया जैसे देशों में छोटे स्तर की रक्षा प्रदर्शनी का आयोजन किया है जबकि सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला में अफ्रीका की संस्कृति और शिल्प का प्रदर्शन किया है. पुरानी पहल जैसे कि CII-एग्ज़िम बैंक इंडिया-अफ्रीका प्रोजेक्ट कॉन्क्लेव को नियमित तौर पर आयोजित किया जा रहा है और इसका 17वां संस्करण जुलाई 2022 में हुआ था. वैसे तो IAFS के चौथे संस्करण की मेज़बानी में भारत की असमर्थता के पीछे कोविड-19 महामारी मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है लेकिन इसे जल्द-से-जल्द आयोजित करना भारत के हित में है. 

डॉ. जयशंकर ने सोलर वॉटर पंप प्रोजेक्ट के निर्माण का भी शिलान्यास किया जिसके बारे में उम्मीद है कि बन जाने के बाद 20 ज़िलों में फैले 5 लाख से ज़्यादा युगांडा के लोगों को स्वच्छ पानी की आपूर्ति करेगा.

फिर भी नियमित तौर पर उच्च-स्तरीय बातचीत जैसे कि डॉ. जयशंकर का हाल में कंपाला और मापुतो का दौरा सांकेतिक है और इससे संभावित चिंताओं को शांत करने में मदद मिलती है, साथ ही अफ्रीका के नेताओं को फिर से भरोसा मिलता है कि अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी को मज़बूत करने को भारत कितना महत्व देता है. निरंतरता भारत-अफ्रीका भागीदारी में एक मुख्य विशेषता है और आगे भी बनी रहनी चाहिए. 

डॉ. जयशंकर की यात्रा के दौरान विभिन्न नई परियोजनाओं का उद्घाटन हुआ जो कि अफ्रीका के साथ भारत की विकास साझेदारी के मॉडल का प्रतीक है- मांग से प्रेरित, बिना किसी शर्त के और नीतियों का निर्देश नहीं. 

युगांडा में नतीजे

युगांडा के जिंजा प्रांत में युगांडन पीपुल्स डिफेंस फोर्स (UPDF) के सहयोग से भारत की नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) के उद्घाटन ने सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोरी. ये NFSU का पहला विदेशी कैंपस है और फॉरेंसिक विज्ञान, व्यवहारवादी विज्ञान, साइबर सुरक्षा और डिजिटल साइंस में कोर्स कराएगा. युगांडा को इस यूनिवर्सिटी के पहले विदेशी कैंपस के रूप में चुना जाना बढ़ते भारत-युगांडा द्विपक्षीय संबंधों की गवाही देता है. अफ्रीका के एक देश में NFSU का कैंपस खोले जाने के पीछे मूल कारण है भारत सरकार के अलग-अलग छात्रवृत्ति कार्यक्रमों के तहत अफ्रीकी छात्रों की तरफ़ से फोरेंसिक विज्ञान के कोर्स की ज़्यादा मांग. 

डॉ. जयशंकर ने सोलर वॉटर पंप प्रोजेक्ट के निर्माण का भी शिलान्यास किया जिसके बारे में उम्मीद है कि बन जाने के बाद 20 ज़िलों में फैले 5 लाख से ज़्यादा युगांडा के लोगों को स्वच्छ पानी की आपूर्ति करेगा. सुरक्षित, स्वच्छ और पाइप के ज़रिए पानी का मिलना एक मूलभूत विकास से जुड़ी चुनौती है जिसका सामना भारत और युगांडा- दोनों देश कर रहे हैं. इसलिए भारत इस मामले में युगांडा के साथ अपने अनुभवों को साझा करना चाहता है. 

मोज़ाम्बिक में नतीजे

मोज़ाम्बिक में डॉ. जयशंकर ने भारत के इस इरादे को दोहराया कि वो G20 की अपनी अध्यक्षता का उपयोग विकासशील देशों की आवाज़ को बढ़ाने में करेगा. उन्होंने सामूहिक रूप से वैश्विक एजेंडे को आकार देने के लिए, विशेष रूप से कर्ज़, स्वास्थ्य, हरित विकास, डिजिटल डिलीवरी और सतत विकास लक्ष्य (SDG) के विकास से जुड़े एजेंडे के क्षेत्र में, विकासशील देशों के बीच आपसी सहयोग के महत्व पर ज़ोर दिया.

ट्रेन के नेटवर्क, जल मार्ग से संपर्क और इलेक्ट्रिक गाड़ियों से आवागमन के विस्तार पर मोज़ाम्बिक के परिवहन मंत्री के साथ चर्चा हुई. डॉ. जयशंकर ने भारत से 95 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रियायती लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) पर मिली एक डीज़ल इलेक्ट्रिक मोटर यूनिट (DEMU) ट्रेन की सवारी की. इसके अतिरिक्त बुज़ी पुल का उद्घाटन डॉ. जयशंकर ने किया. इस पुल को भारत की कंपनी एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर ने 132 किलोमीटर लंबी टिका-बुज़ी-नोवा-सोफाला सड़क पुनर्वास परियोजना के हिस्से के रूप में बनाया है. उम्मीद की जा रही है कि इस पुल के बनने से मोज़ाम्बिक की राजधानी मापुतो और बंदरगाह शहर बीरा के बीच संपर्क में सुधार होगा, साथ ही सामाजिक-आर्थिक विकास और वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त आवागमन को बढ़ावा मिलेगा. डॉ. जयशंकर ने मटोला में फैब्रिका नेसनल डी मेडिकामेंटोस की सुविधाओं का निरीक्षण भी किया. इसने वैक्सीन के उत्पादन और तकनीक के हस्तांतरण को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ एक संयुक्त उपक्रम स्थापित किया है. 

आगे का रास्ता 

डॉ. जयशंकर के युगांडा और मोज़ाम्बिक दौरे ने उस समय अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों पर फिर से चर्चा तेज़ की है जब वैश्विक शक्तियां इस महादेश में अपने लिए जगह बनाने की खातिर संघर्ष कर रही हैं. अफ्रीका के अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों को ये एहसास हो चुका है कि अफ्रीका के भागीदार अपनी सामरिक स्वायत्तता के लिए कोशिश कर रहे हैं और पूरे अफ्रीका के लिए एक समन्वित रणनीति पेश कर रहे हैं. वर्तमान में G20 की अध्यक्षता भारत के पास है और वो एक अधिक समावेशी विश्व व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में अफ्रीकन यूनियन (AU) को G20 के स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल करने का एक अच्छा अवसर है. दक्षिण अफ्रीका, जिसकी आबादी अफ्रीका की कुल आबादी का लगभग 4 प्रतिशत है, वर्तमान में G20 का अकेला अफ्रीकी सदस्य है. अफ्रीकन यूनियन को शामिल करके G20 अफ्रीका की 96 प्रतिशत जनसंख्या की आवाज़ को बाहर रखने की दुर्भाग्यपूर्ण रुकावट का समाधान कर सकता है. 

ये प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा “सुधारे हुए बहुपक्षवाद” की अपील को हासिल करने में मददगार होगा और इससे अफ्रीका एवं भारत एक न्यायसंगत, प्रतिनिधित्व पर आधारित और लोकतांत्रिक वैश्विक व्यवस्था के लिए साथ मिलकर काम करेंगे. 

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