Author : Tanya Aggarwal

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 05, 2024 Updated 0 Hours ago

एलन मस्क का दृष्टिकोण भारत के डिजिटल इंडिया इनिशिएटिव से मेल खाता है. लेकिन, भारत में स्टारलिंक की कामयाबी स्थानीय चुनौतियों के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने और भारत के अनूठे डिजिटल परिदृश्य को अच्छे से समझने पर निर्भर करती है. 

सस्ती और आसानी से उपलब्ध डिजिटल सेवा: भारत में स्टारलिंक का भविष्य

भारत में एलन मस्क की सैटेलाइट से इंटरनेट सुविधा देने वाली स्टारलिंक सेवा के जल्दी ही शुरू होने की उम्मीद है. क्योंकि अमेरिका स्थित स्टारलिंक ने भारत में कारोबार की नियामक शर्तों की बाधाएं पार कर ली हैं. स्टारलिंक ने 2022 में सैटेलाइट सर्विस लाइसेंस के ज़रिए ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन देने की अर्ज़ी लगाई थी. अब इसको आख़िरी मंज़ूरी मिलने पर, ये जियो और वनवेब के बाद भारत में ऐसी सेवा का लाइसेंस पाने वाली तीसरी कंपनी बन जाएगी. भारत के बाज़ार में स्टारलिंक की आमद, देश में मौजूदा डिजिटल असमानता की खाई को पाटने की दिशा में बढ़ा हुआ एक और क़दम होगी. लेकिन, 5G के दौर में इसकी कामयाबी औरों से मुक़ाबला कर पाने की क्षमता पर निर्भर करेगी. इंटरनेट का प्रभाव, विशेष रूप से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में काफ़ी महत्वपूर्ण है. हालांकि, अक्सर ऐसी सेवाओं तक पहुंच इनकी कम लागत पर निर्भर करती है, जो हर देश की ख़ास परिस्थिति के मुताबिक़ तय होती है.

 

भारत में स्टारलिंक की व्यवहारिकता की पड़ताल

 स्टारलिंक, दुनिया के लगभग सभी क्षेत्रों में स्थित देशों में अपनी सेवाएं दे रही है. इनमें नाइजीरिया, पेरू, मेक्सिको, पुर्तगाल, फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं. स्टारलिंक को सबसे प्रमुख बढ़त इस बात से मिलती है कि वो इंटरनेट सेवाएं देने के लिए लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) यानी धरती की निचली कक्षा में स्थित सैटेलाइट का इस्तेमाल करती है. इस वजह से इसके इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड काफ़ी तेज़ होती है. जियो द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मिडिल अर्थ ऑर्बिट (MEO) सैटेलाइट की तुलना में, इसके सैटेलाइट कक्षा में स्थापित करना और सेवाएं देना भी आसान होता है. हालांकि, MEO सैटेलाइट इंटरनेट सेवा का बेहतर कवरेज देते हैं.

 स्टारलिंक को सबसे प्रमुख बढ़त इस बात से मिलती है कि वो इंटरनेट सेवाएं देने के लिए लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) यानी धरती की निचली कक्षा में स्थित सैटेलाइट का इस्तेमाल करती है. इस वजह से इसके इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड काफ़ी तेज़ होती है.

जहां इंटरनेट की स्पीड के मामले में स्टारलिंक को बढ़त हासिल है. वहीं, भारत में इंटरनेट का मौजूदा बुनियादी ढांचा बेहद मज़बूत है. देश में सेलुलर नेटवर्क के ज़रिए दिए जाने वाली मोबाइल इंटरनेट सेवा की औसत स्पीड 18.26 मेगाबाइट प्रति सेकेंड (Mbps) है. वहीं, फिक्स्ड लाइन इंटरनेट कनेक्शन की औसत स्पीड 49.09 Mbps है. इसका अर्थ है कि भारत में सैटेलाइट इंटरनेट की कामयाबी तय करने का सबसे प्रमुख कारक, इसकी क़ीमत होगी. इस वक़्त स्टारलिंक की सेवाओं की दर भारत में सफल होने के लिहाज़ से बेहद महंगी है. ख़ास तौर से ग्रामीण इलाक़ों और ग़रीब परिवारों के बीच. अफ्रीकी देश ज़ैम्बिया जहां स्टारलिंक सबसे सस्ती इंटरनेट सेवा मुहैया कराता है, वहां भी इसका कनेक्शन लेने की लागत लगभग 500 डॉलर (लगभग 42 हज़ार रुपए) है. वहीं, इसका मासिक सब्सक्रिप्शन रेट 36 डॉलर (तीन हज़ार रुपए) है. भारत जैसे देश में जहां अच्छे और सस्ते विकल्प उपलब्ध हैं, वहां स्टारलिंक अगर अपनी सर्विस को कम क़ीमत पर उपलब्ध नहीं करा पाता, तो भारत के बाज़ार में इसकी कामयाबी को नुक़सान पहुंचेगा.

 

भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी

 जून 2023 तक भारत में इंटरनेट के लगभग 90 करोड़ (89.583) यूज़र थे. वहीं, फरवरी 2024 तक भारत की आबादी 1 अरब 40 करोड़ थी. इस लिहाज़ से देखें, तो देश की क़रीब 35 प्रतिशत जनता के पास इंटरनेट की सेवा नहीं उपलब्ध थी. इसका असर देश की तरक़्क़ी और विकास पर पड़ता है. आज जब समाज पढ़ने लिखने, रोज़गार और नागरिक संवाद के लिए डिजिटल तकनीकों पर निर्भर होता जा रहा है. तब, जिनके पास इंटरनेट की पर्याप्त सेवा उपलब्ध नहीं होती, वो तरक़्क़ी की रेस में नुक़सान में रहते हैं, और पीछे छूट जाते हैं, और आधुनिक दुनिया में पूरी तरह से भागीदार नहीं बन पाते. ये डिजिटल खाई, सामाजिक आर्थिक विभेदों को आगे बढ़ाती जाती है. जिससे हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए प्रगति के अवसर सीमित हो जाते हैं. यही नहीं, इस फ़ासले की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की असमानताएं भी बढ़ती जाती हैं, क्योंकि आज टेलीमेडिसिन और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी अहम होती जा रही हैं. इसके अतिरिक्त, डिजिटल साक्षरता के अभाव की वजह से ज्ञान की खाई और गहरी होती जाती है, और सामाजिक ध्रुवीकरण की स्थिति और ख़राब हो जाती है. ऐसे में समावेशिता को बढ़ावा देने और तकनीक की उन्नति से सामाजिक विकास में योगदान सुनिश्चित करने के लिए इस डिजिटल खाई को पाटना ज़रूरी है, ताकि मौजूदा असमानताएं और अधिक न बढ़ सकें.

 इस डिजिटल खाई को पाटने के लिए निजी क्षेत्र भी अपनी ओर से प्रयास कर रहा है. दूर-दराज़ के इलाक़ों में इंटरनेट की कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए, प्रोजेक्ट तारा जैसे अभियान भी चलाए जा रहे हैं, जो गूगल की मालिकाना कंपनी अल्फाबेट और एयरटेल का संयुक्त उद्यम है

स्टारलिंक का लक्ष्य भारत के ग्रामीण और इंटरनेट से महरूम इलाक़ों में कनेक्टिविटी मुहैया कराना है. ये उस डिजिटल खाई को पाटने के लिहाज़ से अहम क़दम है, जो अभी बनी हुई है. लेकिन, स्टारलिंक को अन्य विकासशील देशों की तुलना में, भारत के बाज़ार को लेकर अपने नज़रिए पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है. सरकार का डिजिटल इंडिया इनिशिएटिव, भारत को तकनीक के एक अग्रणी बाज़ार में तब्दील करने का लक्ष्य रखता है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने ग्रामीण, आदिवासी और दूर-दराज़ के इलाक़ों पर शिक्षा के कार्यक्रम उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया है, ताकि डिजिटल समावेश को बढ़ाया जा सके. 2020 में दूरसंचार विभाग द्वारा डिजिटल संचार के मूलभूत ढांचे को बढ़ाने और मज़बूत बनाने के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री मोदी ने मंज़ूरी दी थी. प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI) की ‘परिकल्पना है कि सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट सेवाएं देने वालों के ज़रिए ब्रॉडबैंड की सुविधा दी जाए’. इस डिजिटल खाई को पाटने के लिए निजी क्षेत्र भी अपनी ओर से प्रयास कर रहा है. दूर-दराज़ के इलाक़ों में इंटरनेट की कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए, प्रोजेक्ट तारा जैसे अभियान भी चलाए जा रहे हैं, जो गूगल की मालिकाना कंपनी अल्फाबेट और एयरटेल का संयुक्त उद्यम है, ताकि ऐसी मशीनों के ज़रिए गांवों में सस्ती इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराई जा सके, जिनकी किरणें ‘बिना केबल के फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट सेवा’ देती हैं. ओपेन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ORAN) जैसे अन्य विकल्प भी संचालित किए जा रहे हैं. ये सब, सेल्यूलर रेडियो कनेक्शन का इस्तेमाल करते हुए लोगों के पर्सनल डिवाइस और नेटवर्क के अन्य हिस्सों के बीच संपर्क स्थापित करते हुए, मोबाइल नेटवर्क के मूलभूत ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. ऐसे अभियानों का मक़सद इन नेटवर्कों को एक दूसरे से अलग करते हुए, एक मानक तैयार करना, एक दूसरे के नेटवर्क के साथ आसानी से काम करना और इनोवेशन को बढ़ावा देना है. क्योंकि, इन प्रयासों में सेवाएं देने वालों के लिए अलग अलग कंपनियों के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को मिलाकर इस्तेमाल करने का विकल्प खुला रहता है.

 एलन मस्क की महत्वाकांक्षी परियोजना को भले ही निचली कक्षा (LEO) के उपग्रहों से बढ़त हासिल हो. पर भारत जैसे बाज़ार में इसको मुक़ाबला करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि भारत में पहले से ही कद्दावर कंपनियां इंटरनेट सेवाएं दे रही हैं.

तकनीकी प्रगति को लेकर भारत की प्रतिबद्धता के लिए एक ऐसी व्यापक रणनीति की ज़रूरत है, जो बहुआयामी चुनौतियों से निपट सके. स्वदेश में डिजिटल खाई को पाटने के लिए सरकार को चाहिए कि वो ग्रामीण इलाक़ों और कम सुविधाओं वाले क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दे. इन इलाक़ों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने वाली समावेशी नीतियां लागू करना अहम है. क्योंकि, इससे न केवल आर्थिक विकास में मदद मिलती है, बल्कि तकनीकी तरक़्क़ी तक जनता को समान रूप से पहुंच भी हासिल हो पाती है. वैसे तो संचार और इंटरनेट सेवा की पहुंच को अधिकतम स्तर तक ले जाने में लाइसेंसिंग और निजीकरण एक प्रभावी माध्यम हैं. लेकिन, नियामक ढांचों को ऐसा होना चाहिए कि वो न्यायोचित मुक़ाबले के लिए ख़ुद को वक़्त के मुताबिक़ ढाल सकें.

 

निष्कर्ष

 भारत न्यायोचित व्यापारिक बर्ताव की वकालत करके और अंतरराष्ट्रीय नियमों के विकास में योगदान देकर के ख़ुद को एक ज़िम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी के तौर पर पेश कर रहा है. दुनिया के तकनीकी मंज़र पर भारत की प्रमुख हैसियत बनाए रखने के लिए घरेलू स्तर पर इनोवेशन पर ज़ोर देने की ज़रूरत है. देश के भीतर डिजिटल फ़ासले पाटने पर ध्यान देकर और वैश्विक मानकों के निर्धारण में सक्रियता से भागीदार बनकर, भारत न केवल तकनीकी होड़ में अगुवा बन सकता है, बल्कि सबके लिए अधिक समावेशी और समतावादी डिजिटल भविष्य के निर्माण में अर्थपूर्ण ढंग से योगदान भी दे सकता है. एलन मस्क की महत्वाकांक्षी परियोजना को भले ही निचली कक्षा (LEO) के उपग्रहों से बढ़त हासिल हो. पर भारत जैसे बाज़ार में इसको मुक़ाबला करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि भारत में पहले से ही कद्दावर कंपनियां इंटरनेट सेवाएं दे रही हैं. संचार के उद्योग में होड़ काफ़ी गंभीर है. पर इंटरनेट स्पीड के मामले में अपनी बढ़त को देखते हुए स्टारलिंक को भी भारत में कामयाबी हासिल होनी चाहिए. हालांकि, भारत में स्टारलिंक की सफलता कम क़ीमत पर सेवाएं देने के सबसे अहम कारक पर निर्भर करेंगी, ख़ास तौर से पहले से स्थापित कंपनियों से मुक़ाबला करने के मामले में. बाज़ार के आयामों से इतर, भारत में डिजिटल खाई के व्यापक मसले से निपटने के लिए एक व्यापक नज़रिया अपनाने की ज़रूरत है. जिसमें स्टारलिंक जैसी नई तकनीकों का तालमेल प्रोजेक्ट तारा और ORAN जैसी पहलों से बिठाया जाए. एलन मस्क का दृष्टिकोण भारत के डिजिटल इंडिया इनिशिएटिव से मेल खाने वाला है, और उनकी कामयाबी स्थानीय चुनौतियों से निपटने में तालमेल बिठाने और व्यापक वैश्विक संदर्भ के भीतर देश के अनूठे डिजिटल मंज़र को समझने पर निर्भर करेगी.

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