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यूएनजीए की बैठक की अध्यक्षता अब्दुल्ला शाहिद ने की और उसमें राष्ट्रपति सोलिह ने कोशिश की, कि यूएनजीए के मंच से अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों मामले समाहित हो सकें.
अपने हाल के न्यूयॉर्क दौरे समेत अन्य मंचों और संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने फ़िलिस्तीन, अफ़ग़ानिस्तान, आतंकवाद, पर्यावरण बदलाव जैसे तमाम प्रासंगिक मुद्दों पर चर्चा की. इसे लेकर जो महत्वपूर्ण बात थी वह ये कि भले ही यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए मंच था लेकिन यहां दिए गए वक्तव्य की गूंज उनके घरेलू क्षेत्र में भी सुनाई दी होगी. यूएनजीए का यह सत्र बेहद ख़ास इसलिए भी था क्योंकि इसकी अध्यक्षता कोई और नहीं बल्कि मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद कर रहे थे जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र के लिए भारी बहुमत से चुना गया था. राष्ट्रपति सोलिह ने इसे ऐतिहासिक पल बताया और कहा कि “यह एक छोटे, संप्रभु राष्ट्र के रूप में मालदीव की सफलताओं” की एक “जीती जागती मिसाल’ है.
एक छोटे से राष्ट्र के मुखिया के नाते सोलिह ने कहा कि,“आज मैं आप सभी के बीच खड़ा हूं और वक्तव्य दे रहा हूं क्योंकि मेरे देश को एक संप्रभु राष्ट्र की पहचान मिली हुई है”. उन्होंने पूछा कि “आखिर फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पहचान देने से इस दुनिया का क्या नुकसान होगा?”.
एक छोटे से राष्ट्र के मुखिया के नाते सोलिह ने कहा कि,“आज मैं आप सभी के बीच खड़ा हूं और वक्तव्य दे रहा हूं क्योंकि मेरे देश को एक संप्रभु राष्ट्र की पहचान मिली हुई है”. उन्होंने पूछा कि “आखिर फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पहचान देने से इस दुनिया का क्या नुकसान होगा?”. उन्होंने इस बात को साफ़ किया कि कैसे फ़िलिस्तीन के आवाम के हक़ को इज़रायल की लगातार कार्रवाई से कुचला जा रह है और ऐसा तब है कि जब वर्षों से संयुक्त राष्ट्र फ़िलिस्तीनियों को न्याय दिलाने की कोशिश में जुटा है.
हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर राष्ट्रपति सोलिह ने अंतर्राष्ट्रीय भावनाओं के मुताबिक ही टिप्पणी की. उन्होंने एक समावेशी और ऐसी सरकार की वकालत की जिसमें सभी का प्रतिनिधित्व हो और महिलाओं के हक की रक्षा को सुनिश्चित किए जाने पर जोर दिया. मुल्क के आवाम में ‘एक मध्यम इस्लामिक राष्ट्र’ बनाने को लेकर लोगों की ज़ोर मारती भावना को समझते हुए राष्ट्रपति सोलिह ने बेहद सावधानीपूर्वक ख़ुद के वक्तव्यों को अफ़ग़ानिस्तान में काबुल की सत्ता पर काबिज़ तालिबान शासन से अलग रखा, क्योंकि तालिबान के समर्थन में कही हुई उनकी बातों का उनके मुल्क में सक्रिय तमाम छोटे बड़े समूहों के बीच गलत संदेश जा सकता था. क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान से जल्दबाज़ी में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहां मौजूदा संकट बेहद गंभीर है.
सोलिह ने कहा कि दुनिया की सभी चुनौतियों से निपटने के लिए विवेचना और निर्णय लेने के लिए संयुक्त राष्ट्र सबसे मह्तवपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मंच है, जिसमें अकाल से लेकर महामारी और आतंकवाद जैसी समस्याओं पर भी चर्चा होती है. अपने घरेलू मोर्चे पर जैसे सोलिह व्यक्तिगत तौर पर देश के सामने बोल रहे हों, उन्होंने कहा कि मालदीव भी कट्टरपंथी उग्रवादियों के ख़तरे से मुक्त नहीं है.
इन सबके बीच, इससे पहले कि फिर से कोरोना महामारी को लेकर देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी जाए, सोलिह प्रशासन ने कॉम्बिंग ऑपरेशन के साथ-साथ ही सामाजिक और शैक्षणिक कार्यक्रमों की शुरुआत की है जिससे उग्रवाद और कट्टरपंथी विचारधारा को समाज से ख़त्म किया जा सके
ख़ास कर उन्होंने छह मई की घटना का ज़िक्र किया जब राष्ट्रपति मोहम्मद ‘अन्नी’ नाशिद, जो मौजूदा समय में मालदीव संसद के स्पीकर हैं, पर बम से हमला किया गया था. उन्होंने कहा कि ऐसे ‘कायरतापूर्ण’ हमले को लेकर जब साजिशों का ताना-बाना बुना जा रहा हो तब मुल्क ‘चुपचाप बैठ कर ऐसी गतिविधियों को नहीं देख सकता’ है. यह टिप्पणी इस बात का संकेत थी कि राष्ट्रपति सोलिह अपने देश में विकास और समृद्धि के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं.
साल 2019 की याद करें जब पहली बार राष्ट्रपति सोलिह ने संयुक्त राष्ट्र महासभा(यूएनजीए) को संबोधित किया था, जो कि सात सालों के लंबे अंतराल के बाद पहली बार किसी मालदीव के राष्ट्राध्यक्ष की इस मंच पर उपस्थिति थी. उन्होंने आतंक निरोधी कानून में दूसरे संशोधन की पुष्टि की थी जिसके तहत राजनीतिक और धार्मिक उग्रवाद के साथ-साथ कट्टरवाद को आतंकवाद मानने पर दबाव बनाना मकसद था. स्थानीय मीडिया, राज्जे टीवी और न्यूज़ ने अपनी परिचर्चा में कहा कि “इस संशोधन के तहत, किसी भी तरह से उग्रवाद और कट्टरपंथ को बढ़ावा देना या फिर ऐसी गतिविधियों में शामिल होने को बतौर आतंकी गतिविधियों में शामिल होना माना जाएगा”.
कानून में यह संशोधन ऐसे समय में हो रहा है जब सोलिह द्वारा एक राष्ट्रपति जांच आयोग(पीसीओआई) की स्थापना की गई जिसने मुल्क के अंदर ‘अल क़ायदा और आईएस समूहों’ की मौजूदगी की बात कही है साथ ही इस बात को रेखांकित किया है कि किस गंभीरता से सरकार धार्मिक उग्रवाद की चुनौतियों से निपटने में जुटी हुई है. संयोगवश संसद की 241 समिति, जिसकी अध्यक्षता सत्ताधारी दल के मोहम्मद असलम कर रहे हैं, उन्होंने भी ‘नाशिद बम हमला’ मामले में सुरक्षा संबंधी मुद्दों को लेकर ऐसे ख़तरों से जुड़ी बातों की ओर ध्यान दिलाया था.
सोलिह ने इस मौके पर दुहराया कि उनका देश पर्यावरण में हो रहे बदलावों को लेकर कितना सजग और गंभीर है क्योंकि एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि मालदीव कुछ सालों में पानी में डूब सकता है. बेहद सख़्त होकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि “दुनिया में किसी भी देश के अस्तित्व की कोई गारंटी नहीं है जहां मालदीव का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ता दिखाई दे रहा है.”
इन सबके बीच, इससे पहले कि फिर से कोरोना महामारी को लेकर देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी जाए, सोलिह प्रशासन ने कॉम्बिंग ऑपरेशन के साथ-साथ ही सामाजिक और शैक्षणिक कार्यक्रमों की शुरुआत की है जिससे उग्रवाद और कट्टरपंथी विचारधारा को समाज से ख़त्म किया जा सके. हालांकि नशीद पर बम से हुए दुर्भाग्यपूर्ण हमले की जांच ने सुरक्षा एजेंसियों को आतंकियों की धर-पकड़ के लिए तत्पर किया और एक बार देश में कोरोना महामारी का ख़तरा कम होते ही फिर से शैक्षणिक कार्यक्रमों को रफ़्तार दे दी जाएगी.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री शाहिद के ‘प्रेसिडेंसी ऑफ होप’ के जुमले के एक साल के समय की बात करते हुए सोलिह ने कहा कि यह शीर्षक बेहद सटीक है, ख़ासकर मौजूदा संकट के समय में उम्मीद सबसे ज़्यादा मांगी जाने वाली चीज है. उन्होंने यह कहते हुए कि “एक साथ एकता और समन्वय के साथ काम करते हुए अपने सपनों को एक साथ पूरा करना है” वैश्विक समुदाय से उम्मीद को मजबूती से आगे बढ़ाने की अपील की. इस संदर्भ में उन्होंने बताया कि कैसे कोरोना महामारी के प्रभावों ने एक छोटे से प्रायद्वीप वाले देश से लेकर बड़े-बड़े महादेशों में एक जैसा दुष्प्रभाव पैदा किया. उन्होंने कहा कि चाहे मालदीव हो या फिर पूरी दुनिया कोरोना महामारी एक बड़ी चुनौती थी. इस महामारी से बचने का एक ही उपाय है और वो है वैक्सीनेशन और ‘वैक्सीन के लिए समानता’ की स्थिति इसमें सबसे महत्वपूर्ण है.
सोलिह ने इस मौके पर दुहराया कि उनका देश पर्यावरण में हो रहे बदलावों को लेकर कितना सजग और गंभीर है क्योंकि एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि मालदीव कुछ सालों में पानी में डूब सकता है. बेहद सख़्त होकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि “दुनिया में किसी भी देश के अस्तित्व की कोई गारंटी नहीं है जहां मालदीव का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ता दिखाई दे रहा है.” उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को उन चिट्ठियों को सौंपा जिसे मालदीव के बच्चों ने लिखा था और जिसमें उनकी पीढ़ी की वास्तविक समस्याओं के बारे में लिखा गया था. इन चिट्ठियों में बताया गया था कैसे पर्यावरण बदलाव पर अंतर-सरकारी पैनल ने कितनी गंभीर बातों का ज़िक्र किया था जिसे हम लंबे समय से सुनते आ रहे थे. उन्होंने कहा कि “पर्यावरण बदलाव के ख़तरे को लेकर हम ख़ामोशी से नहीं बैठ सकते हैं,”
अब चूंकि पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता मालदीव कर रहा था, इससे भी समूचे देश के लोगों की निगाहें इस बात पर टिकी हुई थी कि आखिर राष्ट्रपति सोलिह न्यूयॉर्क में विश्व के सबसे बड़े मंच से क्या बोलने वाले हैं. इसके अतिरिक्त इस भाषण पर लोगों की नजरें इसलिए भी टिकी हुई थी कि अक्टूबर 2023 में मालदीव में राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है
इसी अंदाज़ में एक सामानान्तर अलायंस ऑफ स्माल आइलैंड स्टेट्स (एओएसआईएस) के सम्मेलन को संबोधित करते हुए सोलिह ने अपने राष्ट्र के शास्वत पर्यावरण चिंताओं को दुनिया के साथ साझा किया,जो कि लगातार समुद्र के जलस्तर के बढ़ने से पैदा हो रहा है. इस बात को लेकर तब चिंता जाहिर की गई थी जबकि पूर्व राष्ट्रपति ममून अब्दुल गयूम (1978-2008) ने पहली बार स्मॉल आइलैंड डेवलपिंग स्टेटस (एसआईडीएस) का सम्मेलन साल 1989 में आयोजित किया था. इसके बाद 2009 में कोपेनहेगेन सम्मेलन के दौरान भी राष्ट्रपति नाशिद ( 2008-12) ने इन चिंताओं की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था,जब उन्होंने दुनिया में पहली बार समुंदर की गहराइयों में कैबिनेट बैठक का आयोजन किया था. तब उन्होंने एसआईडीएस देशों की अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए बहुआयामी गठजोड़ और पर्यावरण के लिए टिकाऊ रणनीति बनाने के लिए मौद्रिक सहयोग, तकनीकों के आदान-प्रदान और कैपेसिटी बिल्डिंग बनाने की वकालत की थी.
‘डर्बन डिक्लेरेशन एंड प्रोग्राम ऑफ एक्शन’ को लागू करने के 20 वें वर्षगांठ के मौके पर बुलाई गई एक उच्च स्तरीय बैठक, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के इतर आयोजित किया गया था, उसमें राष्ट्रपति सोहिह ने कर्ज़ के बोझ को आसान करने और नस्लवाद और असमानता को ख़त्म करने के लिए दी जाने वाली मदद के बोझ को कम करने की वकालत की. उन्होंने कहा कि “मालदीव जैसे कई छोटे विकासशील प्रायद्वीपीय मुल्क बाहरी आघातों के प्रति काफी संवेदनशील हैं”. उन्होंने इस बात को स्पष्ट किया कि ऐसे देश अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों की हर चीज को बाहर से आयात करते हैं.
सोलिह ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से वैश्विक समुदाय को कहा कि “ज़िंदगी की अच्छाइयों को समेटे मालदीव एक बार फिर तैयार है, हमारे यहां आप आइए”. सोलिह ने कहा कि कोरोना महामारी के बुरे प्रभावों से मालदीव बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है क्योंकि पर्यटन ही वहां की अर्थव्यवस्था की आधारभूत बुनियाद है. देश की अर्थव्यवस्था पर कोरोना महामारी के चलते गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़े. सरकार ने पिछले साल 15 जुलाई से ही देश में विदेशी पर्यटकों को आने के लिए सारी पाबंदियां ख़त्म कर दी थी. पर्यटकों की आवाजाही जो पहले घट गई थी एक बार फिर से बढ़ने लगी है, जिसमें भारत से मालदीव छुट्टियां मनाने आने वालों की तादाद सबसे ज़्यादा है.
महत्वपूर्ण है कि इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में वक्ताओं की लंबी सूची में सोलिह तीसरे स्थान पर थे. परंपरागत तौर पर सबसे पहले ब्राजील को वक्तव्य रखने के लिए आमंत्रित किया जाता है फिर संयुक्त राष्ट्र सत्र के आयोजनकर्ता के तौर पर अमेरिका का स्थान आता है. शायद ही ऐसा पहले कभी हुआ है कि तीसरा स्थान मालदीव जैसे छोटे राष्ट्र को दिया गया हो. यही वजह है कि मालदीव को जो महत्व दिया गया है उसे देश के अंदर और बाहर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह थी राष्ट्रपति सोलिह ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनी मातृभाषा धीवेही में भाषण दिया.
अब चूंकि पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता मालदीव कर रहा था, इससे भी समूचे देश के लोगों की निगाहें इस बात पर टिकी हुई थी कि आखिर राष्ट्रपति सोलिह न्यूयॉर्क में विश्व के सबसे बड़े मंच से क्या बोलने वाले हैं. इसके अतिरिक्त इस भाषण पर लोगों की नजरें इसलिए भी टिकी हुई थी कि अक्टूबर 2023 में मालदीव में राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है और उसके लिए चुनावी प्रचार का आगाज़ हो चुका है. यही वजह है कि राष्ट्रपति सोलिह के संयुक्त राष्ट्र महासभा और न्यूयॉर्क में दूसरे मंचों पर दिए गए भाषणों में इस्लाम केंद्रित फ़िलिस्तीन से लेकर अफ़ग़ानिस्तान और धार्मिक कट्टरपंथ और उग्रवाद जैसे मुद्दे शामिल रहे. इसके अलावा भी मालदीव की आंतरिक चिंताएं जैसे पर्यावरण बदलाव, आर्थिक असमानता और कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों का ज़िक्र कर उन्होंने घरेलू स्तर पर अपनी जनता को संबोधित किया.
अपनी गुटबाजी के साथ जमीनी पकड़ बना कर रखने वाली उनकी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में सोलिह के वक्तव्य चुनावों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं. प्रसंगवश, दूसरे गुट के नेता स्पीकर नाशिद भी विदेश गए हुए थे. ब्रिटेन, जहां नाशिद बम हमले के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, वहां से अपने खेमे के लिए वो भी प्रचार का प्रबंधन कर रहे थे.
अब जबकि पार्टी चुनाव के नतीजे अनाधिकारिक तौर पर सामने आ चुके हैं तो नाशिद को 97 चयनित पदाधिकारियों में से 53 का समर्थन हासिल है. यह मौजूदा सरकार की संसदीय व्यवस्था से अलग बदलाव लाने की उम्मीद में दिया गया समर्थन है. हालांकि सोलिह खेमा अभी तक किसी आधिकारिक आंकड़े का ज़िक्र ख़ुद के लिए नहीं कर रहा है लेकिन मीडिया परिचर्चाओं में सोलिह खेमा अभी सबसे ऊपर है जिसमें दूसरे मतदाता सदस्य भी शामिल हैं. इसमें एमडीएम के कैबिनेट मंत्री और सांसद शामिल हैं जो पार्टी सम्मेलन से पहले राष्ट्रीय आयोग में उन्हें एक कथित व्यापक नेतृत्व प्रदान करते हैं. एक साफ तस्वीर उभर कर तब सामने आएगी जबकि पार्टी के चुनावी संचालनकर्ताओं द्वारा एक आख़िरी आंकड़ा प्रस्तुत किया जाएगा और आने वाले दिनों में राष्ट्रव्यापी आंकड़ा तैयार किया जाएगा.
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N. Sathiya Moorthy is a policy analyst and commentator based in Chennai.
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