Author : Ayjaz Wani

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 11, 2024 Updated 0 Hours ago

दो मोर्चों पर लड़ाई को लेकर अपनी चिंता से निपटने के लिए भारत ने सफलतापूर्वक कश्मीर घाटी और लद्दाख में अपनी कनेक्टिविटी परियोजनाओं को आगे बढ़ाया है.  

‘हर मौसम में कश्मीर और लद्दाख की यात्रा हो आसान; सामरिक कनेक्टिविटी का विकास’

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में चीन की युद्ध जैसी हरकतों के बाद भारत 2019 से सक्रिय तौर पर कश्मीर घाटी और लद्दाख में सभी मौसम (ऑल वेदर) में काम करने वाले, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ा रहा है. मुश्किल क्षेत्र, जटिल भू-भाग, ख़राब मौसम और नौकरशाही की रुकावटों के बावजूद भारत ने इस क्षेत्र के भू-सामरिक और भू-आर्थिक महत्व को देखते हुए बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को उत्साहपूर्वक आगे बढ़ाया है. ज़्यादातर परियोजनाएं, जिनमें दुनिया की सबसे ऊंची चिनाब केबल ब्रिज (1315 मी.), T49 रेल सुरंग (12.77 किमी.) और ज़ोजिला सुरंग (13.5 किमी.) शामिल हैं, भारत की अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि और विरोधियों के ख़िलाफ़ सामरिक प्रभाव को दिखाती हैं. 

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में चीन की युद्ध जैसी हरकतों के बाद भारत 2019 से सक्रिय तौर पर कश्मीर घाटी और लद्दाख में सभी मौसम (ऑल वेदर) में काम करने वाले, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ा रहा है.

LAC पर और POK में चीन की दुश्मनी

शिनजियांग और तिब्बत में अपने भू-सामरिक और भू-राजनीतिक असर को बढ़ाने की कोशिश में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) ने 1949 में सड़कों और दूसरे बुनियादी ढांचे के निर्माण की शुरुआत की. 1954 में शिनजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कॉर्प्स (XPCC) की स्थापना के बाद इस क्षेत्र में चीन का वर्चस्व कई गुना बढ़ गया. XPCC में शुरुआत में सेवामुक्त सैनिकों को शामिल किया गया और इसमें हान समुदाय के लोगों का दबदबा था और इसका काम सीमावर्ती इलाकों में खेती, अर्थव्यवस्था और कनेक्टिविटी को विकसित करना था. 

सैन्य संरचना और एंटरप्राइज़ (उद्यम) एवं नौकरशाही के मिले-जुले तरीके से XPCC ने भारत के अक्साई चिन इलाके से होकर 1958 में शिनजियांग-शिज़ांग (तिब्बत) हाईवे का निर्माण किया. रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण काराकोरम हाईवे, जिसका अधिकतर निर्माण पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीन की सेना) ने किया, 1979 में पूरा हुआ और इसे आवागमन के लिए 1982 में खोला गया. चीन ने रेल के ज़रिए तिब्बती पठार को चीन से जोड़ने के लिए 1958 में लानझाऊ से सिलिंग तक एक रेल लाइन बनाने की शुरुआत भी की. ये परियोजना 1959 में पूरी हुई और 1961 तक चीन ने तिब्बती पठार के साथ रेल के ज़रिए पूरा संपर्क स्थापित कर लिया. दो अन्य रेलवे लाइन ने गांसू को शिनजियांग के उरुमकी से और लानझाऊ को इनर मंगोलिया के बाओतू से जोड़ा. सामरिक कारणों से 1999 में लानझाऊ-शिनजियांग रेल लाइन को काशगर तक बढ़ाया गया और 2011 में खोतान तक. मौजूदा समय में तीन रेल लाइन हैं जो तिब्बत को चीन के अन्य भागों से जोड़ती हैं- किनघई-तिब्बत लिंक (2006), ल्हासा-शिगत्से लिंक (2014) और ल्हासा-न्यिंग्ची लाइन (2021). राजनीतिक मंसूबों और अपनी विस्तारवादी नीतियों को बढ़ाते हुए CPC की योजना LAC के नज़दीक एक रेल लाइन के ज़रिए शिनजियांग को तिब्बत से जोड़ने की है. विवादित अक्साई चिन क्षेत्र से गुज़रने वाली ये रेल लाइन 2035 में पूरा होने की उम्मीद है. 

नई शताब्दी में आर्थिक मज़बूती मिलने के साथ चीन ने अपनी बढ़ती वित्तीय ताकत के साथ-साथ विवादित और संवेदनशील चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के ज़रिए भारत को घेरने की अपनी सैन्य महत्वाकांक्षाओं को भी तेज़ किया है.

नई शताब्दी में आर्थिक मज़बूती मिलने के साथ चीन ने अपनी बढ़ती वित्तीय ताकत के साथ-साथ विवादित और संवेदनशील चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के ज़रिए भारत को घेरने की अपनी सैन्य महत्वाकांक्षाओं को भी तेज़ किया है. CPEC POK में भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है. चीन ने अशांत शिनजियांग प्रांत को अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया. उसने पाकिस्तान को रक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने में भी मदद की जिनमें LoC के पास बंकर, सड़क, सुरंग और पुल शामिल हैं. आतंकी संगठनों के साथ पाकिस्तान के अधिकारियों के संबंध का शक होने की वजह से चीन ने POK में CPEC की परियोजनाओं की रक्षा के लिए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों और XPCC के सदस्यों को भी तैनात किया है. इसके अलावा भारत के लिए बेहद गंभीर सामरिक अर्थ वाले एक कदम के तहत चीन और पाकिस्तान मुज़फ़्फ़राबाद-शाक्सगाम-यारकंद सड़क की योजना बना रहे हैं जो दोनों देशों के बीच सड़क से मौजूदा दूरी में लगभग 350 किमी. की कमी करेगी. 

भारत की सामरिक रोकथाम और मल्टीमॉडल इंफ्रास्ट्रक्चर

भारत ने चीन के द्वारा अपने उत्तरी इलाके को घेरने में तेज़ी, जो उसकी संप्रभुता और अखंडता के लिए ख़तरा है, को देखते हुए कश्मीर घाटी और लद्दाख में कई बड़े मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. सामरिक रोकथाम की इनमें से ज़्यादातर परियोजनाओं को 2019 के बाद तेज़ किया गया और इनकी नियमित निगरानी सीधे भारत के प्रधानमंत्री के द्वारा की जाती है. 

उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक

272 किमी. लंबी उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक (USBRL), जिसे 2002 में “राष्ट्रीय परियोजना” घोषित किया गया, भारत की सबसे महत्वपूर्ण सामरिक परियोजनाओं में से एक मानी जाती है. 37,021 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना को चार चरणों में पूरा किया जा रहा है. 118 किमी. लंबे बारामूला-क़ाज़ीगुंड सेक्शन की शुरुआत 2009 में की गई. 19 किमी. लंबे क़ाज़ीगुंड-बनिहाल सेक्शन का उद्घाटन 2013 में किया गया जिसके बाद 2014 में 25 किमी. लंबे उधमपुर-कटरा सेक्शन को खोला गया. परियोजना का 111 किमी. लंबा बनिहाल-कटरा सेक्शन, जो कि मुश्किल इलाकों से होकर गुज़रता है, अब पूरा होने के अंतिम चरण में है. मार्च 2024 तक चालू होने वाली USBRL में 38 सुरंगें हैं जिनमें 12.77 किमी. की सबसे लंबी T49 सुरंग शामिल है. 

भारत सरकार ने सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण 295 किमी. के हाईवे (NH44) को चौड़ा करके फोर-लेन सड़क में बदलने की महत्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत 2011 में की थी. इसकी छह में से चार परियोजनाएं पूरी हो गई हैं. बाकी 79 किमी. लंबे फोर-लेन के हिस्से में 14 सुरंगें होंगी जिनकी लागत 5,118 करोड़ है. उम्मीद है कि ये परियोजना 2024 तक पूरी हो जाएगी जिससे श्रीनगर से जम्मू के बीच लगने वाला समय 12 घंटे से कम होकर 4 घंटे हो जाएगा. इस हाईवे में कई लंबी  सुरंगे हैं जैसे कि चेनानी-नाशरी सुरंग (10.89 किमी) और क़ाज़ीगुंड-बनिहाल सुरंग (8.45 किमी). इसके अलावा कई छोटी सुरंगें भी हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में ज़ोजिला सुरंग के लिए आधारशिला रखी. 6,800 करोड़ की निर्माण लागत के साथ ये टनल लद्दाख और श्रीनगर के बीच एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संपर्क मुहैया कराएगी.

श्रीनगर-लेह हाईवे पर ज़ेड-मोड़ और ज़ोजिला सुरंग

2019 के बाद भारत ने लद्दाख तक दूरी कम करने और हर मौसम में पहुंचने के लिए सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर दो सुरंगों का निर्माण भी तेज़ किया. गगनगीर और सोनमर्ग के बीच 6.5 किमी. लंबी ज़ेड-मोड़ सुरंग पर काम पूरा हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में ज़ोजिला सुरंग के लिए आधारशिला रखी. 6,800 करोड़ की निर्माण लागत के साथ ये टनल लद्दाख और श्रीनगर के बीच एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संपर्क मुहैया कराएगी. एशिया में अपनी तरह की सबसे लंबी कही जाने वाली ज़ोजिला सुरंग 13.5 किमी. लंबी है और ज़ोजिला पास को पार करने के लिए लगने वाला समय चार घंटे से कम करके 15 मिनट कर देगी. ख़राब मौसम और तूफान की आशंका वाला इलाका होने के बावजूद ये सुरंग अपने तय समय से दो साल पहले बनकर तैयार हो जाएगी.  

भारत सभी मौसम में मनाली से पश्चिमी लद्दाख और ज़ांस्कर के लिए 298 किमी. लंबी एक और सड़क का निर्माण कर रहा है. इस सड़क के 65 प्रतिशत हिस्से पर काम पूरा हो चुका है और उम्मीद है कि ये आवागमन के लिए 2026 तक खुल जाएगी. इस सड़क में 4.1 किमी. लंबी ट्विन-ट्यूब (दो समानांतर) शिंकुन ला सुरंग भी है जो हर मौसम में हिमाचल प्रदेश से लद्दाख तक कनेक्टिविटी स्थापित करेगी. लेह-मनाली हाईवे में इंजीनियरिंग का एक और चमत्कार रोहतांग पास में अटल सुरंग है जो लाहौल-स्पीति घाटी के लिए हर मौसम में संपर्क प्रदान करती है. 3,000 मीटर की ऊंचाई पर बनी 9.02 किमी. की अटल सुरंग का उद्घाटन 2020 में हुआ था. इस सुरंग ने मनाली और लेह के बीच दूरी 46 किमी. घटा दी. 

भारत ने LAC के पास लद्दाख में भी कई नई सड़क और पुल परियोजनाओं को तेज़ किया है. 2014 और 2019 के बीच भारत के द्वारा लद्दाख में सड़क निर्माण में 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और 2021 में 87 पुलों का निर्माण किया गया. 2022 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2,180 करोड़ रुपये की 75 परियोजनाओं का उद्घाटन किया जिनमें से 18 परियोजनाएं लद्दाख में थीं

निष्कर्ष

LAC और POK में चीन के विवादित इंफ्रास्ट्रक्चर ने दो मोर्चों पर युद्ध की वास्तविक आशंका पैदा कर दी और चारों तरफ से घेरने को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ा दी. चीन ने ये बुनियादी ढांचा बनाने के लिए पाकिस्तान के साथ एक तालमेल वाला नज़रिया अपनाया और पाकिस्तान को सैन्य सहायता भी मुहैया कराई. भारत ने अपने दो दुश्मनों के बीच इस बुद्धिमानी वाले दृष्टिकोण और गुपचुप ढंग से सहयोग का रणनीतिक तौर पर समाधान किया और उन्हें रोकने के लिए तेज़ी से बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर अमल किया. ऐसा करते हुए उसने सुरंग बनाने की अपनी नई क्षमता का भी प्रदर्शन किया. इन परियोजनाओं ने न सिर्फ़ भारत को अपने दोनों विरोधियों के ख़िलाफ़ रणनीतिक असर मुहैया कराया बल्कि ये सुरक्षा, एकीकरण, विकास, प्रभावी गवर्नेंस और आपातकाल की स्थिति में जवाब भी सुनिश्चित करेंगी. 

भारत को अब समय पर दूसरे प्रोजेक्ट जैसे कि ऐतिहासिक मुग़ल रोड पर सुरंग, 489 किमी. लंबी बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे लाइन और गुरेज़ की तरफ हर मौसम में कनेक्टिविटी को पूरा करने के लिए संसाधनों को प्राथमिकता देनी चाहिए. कश्मीर तक ट्रेन कनेक्टिविटी के साथ-साथ लेह तक ट्रेन कनेक्टिविटी भी मुहैया करानी चाहिए. ये रेल लिंक न सिर्फ ख़ूबसूरत LAC के पास सैलानियों की संख्या बढ़ाने के लिए अहम है बल्कि तेज़ी से सैन्य टुकड़ियों और उपकरणों की तैनाती के लिए भी.


एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज प्रोग्राम में फेलो हैं.

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