Published on Jun 21, 2023 Updated 0 Hours ago
हिंद महासागर के इलाक़े में क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम का विकास

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण इलाक़ा है. ये एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया महादेशों को जोड़ता है और दुनिया भर में सामानों एवं संसाधनों की सप्लाई को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है. अनुमानों के मुताबिक़ दुनिया भर के आधे कंटेनर शिप, थोक (बल्क) कार्गो ट्रैफिक का एक-तिहाई हिस्सा और दुनिया भर के दो-तिहाई तेल से भरे जहाज़ IOR से गुज़रते हैं. लेकिन ये क्षेत्र कई चुनौतियों का भी सामना करता है जिनमें समुद्री डकैती, अवैध ढंग से मछली पकड़ना और सुरक्षा से जुड़े ख़तरे शामिल हैं जो व्यापार की सप्लाई चेन में रुकावट डाल सकते हैं और इस क्षेत्र के आर्थिक विकास को खोखला कर सकते हैं. इन चुनौतियों के जवाब में IOR में स्थित कई देश मेरिटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) को बढ़ाने और इस क्षेत्र की शिपिंग लेन (जहाज़ों के रास्ते) की सुरक्षा को दुरुस्त करने के लिए काम कर रहे हैं. ये काम करने का एक तरीक़ा है राष्ट्रीय और क्षेत्रीय- दोनों स्तरों पर व्यापार को सुगम बनाने के लिए डिजिटल सहयोग जैसे कि सिंगल विंडो सिस्टम (SWS) का विकास. IOR में भारत और ऑस्ट्रेलिया ने इस क्षेत्र के मित्र देशों में इस सिस्टम के विकास को सहारा देने के लिए महत्वपूर्ण क्षमता विकसित की है. 

2022 में भारतीय महासागर आयोग (IOC) ने भी मेरिटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) को बढ़ाने और व्यापार को आसान बनाने के लिए एक क्षेत्रीय समुद्री सिंगल विंडो सिस्टम के विकास पर ध्यान दिया था. 

IOR में सिंगल विंडो सिस्टम

सिंगल विंडो सिस्टम (SWS) एक डिजिटल प्लैटफॉर्म है जो निर्यात और आयात (EXIM) के लिए सभी ज़रूरी सूचनाओं और दस्तावेज़ों को एक सिंगल एंट्री प्वाइट के ज़रिए सौंपने की प्रक्रिया शुरू करके व्यापार को आसान बनाता है. इसका उद्देश्य कस्टम/रेगुलेटरी प्रक्रियाओं को सरल बनाना, सूचना इकट्ठा करने में सुधार करना और व्यापारिक लेन-देन की क्षमता एवं पारदर्शिता को बढ़ाना है. सिंगल विंडो सिस्टम कई भागीदारों (स्टेकहोल्डर) जैसे कि बंदरगाहों (समुद्री एवं ज़मीनी), कस्टम, व्यापारियों, जहाज़ कंपनियों, वित्तीय संस्थानों, इत्यादि को वास्तविक समय में सूचनाओं के आदान-प्रदान (रियल-टाइम इंफॉर्मेशन एक्सचेंज) के लिए एक साझा प्लैटफॉर्म पर लाता है. इससे अलग-अलग एजेंसियों को एक ही सूचना बार-बार मुहैया कराने की ज़रूरत ख़त्म हो जाती है और समय एवं व्यापार की लागत में बचत होती है. 

IOR, जिसमें महत्वपूर्ण बंदरगाहों और सप्लाई चेन के केंद्रों के साथ कई देश शामिल हैं, व्यापार को आसान बनाकर, वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाकर और संचार के समुद्री रास्तों को सुरक्षित बनाकर इस तरह के क्षेत्रीय SWS से काफ़ी फ़ायदा उठा सकता है. सिंगल विंडो सिस्टम IOR में बिना किसी बाधा के और सक्षम व्यापार का माहौल बनाएगा. इससे आर्थिक विकास, नई नौकरियों के अवसर और क्षेत्रीय एकीकरण में तेज़ी आएगी. 

हिंद महासागर क्षेत्र के कई देशों ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय- दोनों प्रकार के सिंगल विंडो सिस्टम के विकास के लिए निवेश किया है. मिसाल के तौर पर, मालदीव के द्वारा राष्ट्रीय SWS के विकास में एशियाई विकास बैंक (ADB) की तरफ़ से मदद की जा रही है. 2022 में भारतीय महासागर आयोग (IOC) ने भी मेरिटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) को बढ़ाने और व्यापार को आसान बनाने के लिए एक क्षेत्रीय समुद्री सिंगल विंडो सिस्टम के विकास पर ध्यान दिया था. 

भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिए भूमिका की तलाश

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और ऑस्ट्रेलिया- दोनों ही देश क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम के विकास के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को साझा करने और योगदान देने के मामले में बेहतर स्थिति में हैं.  

चूंकि दुनिया भर में व्यापार के मामले में पद्धतियों को सरल बनाने के लिए तक़नीक को अपनाया जा रहा है, ऐसे में भारत ने इकोसिस्टम को सुधारने और डिजिटाइज़ेशन एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान के ज़रिए व्यापार को सुगम बनाने के उद्देश्य से व्यापारिक लेन-देन के लिए डिजिटल प्लैटफॉर्म की तरफ़ बदलाव किया है. वित्त मंत्रालय से जुड़े केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सेंट्रल बोर्ड फॉर इनडायरेक्ट टैक्सेज़ एंड कस्टम्स) के द्वारा चलाया जा रहा कस्टम्स ICEGATE (इंडियन कस्टम्स इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स/इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज गेटवे) अन्य सेवाओं के अलावा रिस्क मैनेजमेंट, शिपिंग बिल सबमिशन, जेनरेशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक बिल्स ऑफ लैडिंग और ड्यूटी पेमेंट जैसी सेवाएं मुहैया कराता है. इस सिस्टम ने सीमा पार व्यापार के डेटा मैनेजमेंट और एनालिसिस में सुधार किया है और सभी भागीदारों को एक साथ लाकर व्यापार करने में आसानी (ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस) के लिए देश के माहौल को बेहतर करने में मदद की है. 

हिंद महासागर क्षेत्र में डिजिटलाइज़ेशन और सूचनाओं के आदान-प्रदान के ज़रिए व्यापार और सप्लाई चेन के इकोसिस्टम को सुधारने की भारत की कोशिश में ऑस्ट्रेलिया एक क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम विकसित करके मदद कर सकता है.

ये एक कारण था जिसने UN की तरफ़ से डिजिटल और सस्टेनेबल ट्रेड फेसिलिटेशन पर ग्लोबल सर्वे में भारत का स्कोर सुधारने में योगदान दिया और ये 2019 के 78.49 प्रतिशत के मुक़ाबले 2021 में 90.32 प्रतिशत हो गया. इसी तरह, उदाहरण के तौर पर, भारत के ज़मीनी बंदरगाहों में भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित पेट्रापोल इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट को पार करने में ट्रक के लिए लगने वाला समय पांच दिन से घटकर एक दिन हो गया. लॉजिस्टिक क्षमता में और सुधार करने, निर्यात-आयात की लागत को घटाने और व्यापार की संभावना को बढ़ाने के उद्देश्य से ज़्यादा भागीदारों को शामिल करने और डेटा साझा करने में बढ़ोतरी के लिए भारत अब API (एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) आधारित यूनिफाइड लॉजिस्टिक इंटरफेस प्लैटफॉर्म को विकसित कर रहा है. 

हिंद महासागर क्षेत्र में डिजिटलाइज़ेशन और सूचनाओं के आदान-प्रदान के ज़रिए व्यापार और सप्लाई चेन के इकोसिस्टम को सुधारने की भारत की कोशिश में ऑस्ट्रेलिया एक क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम विकसित करके मदद कर सकता है. इस तरह के सिस्टम के विकास में ऑस्ट्रेलिया का अपना अनुभव है जो उसके इंटीग्रेटेड कार्गो सिस्टम (ICS) के ज़रिए प्रदर्शित हो चुका है. ICS को 2004 में बनाया गया था और ये ऑस्ट्रेलिया के कई विभागों और एजेंसियों के साथ जुड़ा हुआ है.

ऑस्ट्रेलिया के पास सीमा पार डेटा एक्सचेंज को आसान बनाने का भी अनुभव है जो 2017 में न्यूज़ीलैंड के साथ मिलकर कंटेनराइज़्ड ट्रांस-तस्मान समुद्री कार्गो के लिए सिक्योर ट्रेड लेन (सुरक्षित व्यापार लेन) की शुरुआत में दिख चुका है. सिक्योर ट्रेड लेन म्युचुअल रिकॉग्निशन एग्रीमेंट के ज़रिए सप्लाई चेन सुरक्षा का इस्तेमाल करती है और निर्यातकों के द्वारा भेजी गई डिजिटल जानकारी का इस्तेमाल करके सीमा पर क्लीयरेंस की प्रक्रिया को आसान बनाती है. इस तरह की पहल क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम के विकास में योगदान करने की ऑस्ट्रेलिया की क्षमता का प्रदर्शन करती हैं जिसका व्यापार की सप्लाई चेन को सुरक्षित करने में सकारात्मक असर हो सकता है.

एक क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम (SWS) का निर्माण

एक क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम को विकसित करने के लिए कई स्तर पर दखल देने की ज़रूरत होती है. इनमें एक स्पष्ट क़ानूनी ढांचा, साझेदार देशों या क्षेत्र के साथ सेवा स्तर के समझौते, डेटा सामंजस्य और भागीदारों का सहयोग शामिल हैं. 

सबसे पहले क़ानूनी ढांचे की बात करें तो हिंद महासागर क्षेत्र के कई देशों ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के व्यापार सुविधा समझौते को मंज़ूरी दी है और वो एक राष्ट्रीय सिंगल विंडो सिस्टम को विकसित कर रहे हैं. इन देशों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के FAL (फेसिलिटेशन ऑफ इंटरनेशनल मेरिटाइम ट्रैफिक) समझौते पर भी दस्तख़त किए हैं जो रिस्क मैनेजमेंट को बेहतर बनाने के लिए अलग-अलग बंदरगाहों में शिपिंग के रास्तों के द्वारा डेटा साझा करने को संभव बनाते हैं. IOR देशों, जहां क़ानूनी ढांचा सुगम है, में भारत और ऑस्ट्रेलिया- दोनों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम के प्रोजेक्ट में दाखिल होना और एक क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम के लिए सामंजस्य का ढांचा विकसित करना आसान होगा. जिन देशों में क़ानूनी ढांचे को अभी तक लागू नहीं किया गया है, वहां भारत और ऑस्ट्रेलिया- दोनों देश तकनीकी कार्यक्रमों के ज़रिए इस सिस्टम के विकास में समर्थन दे सकते हैं. द्विपक्षीय स्तर पर ये भारत की विकास सहायता के हिस्से के रूप में इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (ITEC) प्रोग्राम या ऑस्ट्रेलियन एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के ज़रिए भी किया जा सकता है. 

क्षेत्रीय संस्थागत प्लैटफॉर्म जैसे कि इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन या भारतीय महासागर आयोग सिस्टम के सामान्य मैनेजमेंट पर निगरानी रख सकते हैं. इसे भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान सप्लाई चेन रिजिलियंस (लचीलापन) इनिशिएटिव का हिस्सा भी बनाया जा सकता है. 

दूसरी बात ये कि भारत, ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर के छोटे द्वीप सिंगल विंडो सिस्टम बनाने और डेटा मैनेजमेंट, सामंजस्य और आदान-प्रदान के लिए क्षमता बढ़ाने में भागीदारी के उद्देश्य से सेवा स्तर के समझौते (द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और क्षेत्रीय स्तर) पर दस्तख़त कर सकते हैं. इसके लिए एक मज़बूत संस्थागत (इंस्टीट्यूशनल) प्लैटफॉर्म की ज़रूरत भी होगी जो पारदर्शिता और डेटा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इस सिस्टम का समर्थन कर सके. क्षेत्रीय संस्थागत प्लैटफॉर्म जैसे कि इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन या भारतीय महासागर आयोग सिस्टम के सामान्य मैनेजमेंट पर निगरानी रख सकते हैं. इसे भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान सप्लाई चेन रिजिलियंस (लचीलापन) इनिशिएटिव का हिस्सा भी बनाया जा सकता है. 

अंत में, तकनीकी दखल से परे एक क्षेत्रीय सिंगल विंडो सिस्टम को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए अलग-अलग स्तरों- सरकारी, सुरक्षा संस्थान (बॉर्डर गार्ड, नौसेना, तटीय सुरक्षा), व्यापार से जुड़े वर्ग और प्राइवेट सेक्टर- पर ठोस कोशिशों की ज़रूरत होगी. सिंगल विंडो सिस्टम के विकास और मैनेजमेंट के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में व्यापार के रास्तों को सुरक्षित करने के राजनीतिक भरोसे और दीर्घकालीन प्रतिबद्धता की ज़रूरत होती है. ये साझा व्यापार सुविधा के इंतज़ाम और अलग-अलग स्तरों पर बॉर्डर मैनेजमेंट की बैठकों के ज़रिए भी हासिल किया जा सकता है. 


रिया सिन्हा सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस में एसोसिएट फेलो हैं. 

ये लेख ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विभाग के समर्थन से ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट के रक्षा कार्यक्रम के तहत लिखा गया था. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के हैं.

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