Author : Ramanath Jha

Published on Sep 12, 2022 Updated 0 Hours ago

हाल ही में नोएडा के ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करने से यह साफ हो गया है कि अब गृहनिर्माण उद्योग (रियल एस्टेट) में शहरी कानूनों के उल्लंघन को कदापि बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

नोएडा टॉवर्स का विध्वंस: नियमों के उल्लंघन को लेकर एक ज़ीरो सहनशीलता वाली नीति!

नोएडा के 100 मीटर ऊंचे ट्विन टॉवर्स एपेक्स और सियान को 28 अगस्त 2022 को ध्वस्त कर दिया गया. इसके विध्वंस को लेकर चारों ओर काफी दिलचस्पी देखी गई. हालांकि, यह उत्सुकता इन्हें ध्वस्त करने में इस्तेमाल की गई ‘कंट्रोल्ड इम्प्लोजन’ को लेकर अधिक थी. इसका इस्तेमाल करने के लिए इमारतों के आसपास के 500 मीटर के दायरे को निषिद्ध क्षेत्र घोषित करते हुए यहां से सभी लोगों को बाहर कर दिया गया था. अभियंताओं और ‘विस्फोट विशेषज्ञों’ ने इन दो आवासीय इमारतों की नींव और दीवारों में छेद करते हुए 3700 किलो विस्फोटक भर दिए थे. जब इसमें धमाका किया गया तो वे तय तिथि और समय पर एक के बाद एक लगातार फटते चले गए. ट्विन टॉवर्स की मंजिलें एक के ऊपर एक ढहती चली गई, जिसे ‘‘वॉटरफॉल इफेक्ट’’ कहा जाता है. इसमें से अनुमानित 80,000 टन मलबा निकलेगा, जिसे हटाने के लिए तीन माह का वक्त लगने वाला है. एमरल्ड कोर्ट के नागरिकों के साथ की गई धोखाधड़ी और शहरी कानूनों के उल्लंघन की इस घिनौनी कहानी में सटीक तरीके से किया गया विध्वंस ही एकमात्र सकारात्मक बात कही जा सकती है. इस संपूर्ण ऑपरेशन को नेशनल डिजास्टर रिसपॉन्स फोर्स अर्थात राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के लोगों और बड़ी मात्रा में पुलिस के सहयोग से अंजाम दिया गया.

अभियंताओं और ‘विस्फोट विशेषज्ञों’ ने इन दो आवासीय इमारतों की नींव और दीवारों में छेद करते हुए 3700 किलो विस्फोटक भर दिए थे. जब इसमें धमाका किया गया तो वे तय तिथि और समय पर एक के बाद एक लगातार फटते चले गए. ट्विन टॉवर्स की मंजिलें एक के ऊपर एक ढहती चली गई, जिसे ‘‘वॉटरफॉल इफेक्ट’’ कहा जाता है.

11 मंज़िल की मंज़ूरी

इस मामले की कहानी यह है कि 2004 और 2006 में न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) ने सुपरटेक लिमिटेड को एक भूखंड (54,819.51 वर्ग मीटर) एमरल्ड कोर्ट नामक समूह आवासीय सोसाइटी विकसित करने के लिए आवंटित किया था. 2005 और 2006 के बीच, प्राधिकरण ने 37 मीटर ऊंचाई वाले 16 टॉवर्स, जिसमें तल मंजिल के साथ 11 मंजिल (जी+11) होनी थी, के बिल्डिंग प्लान को मंजूरी दी. प्राधिकरण ने जी+1 के एक शॉपिंग कॉम्पलेक्स की भी अनुशंसा की. प्लान में टॉवर 1 के सामने हरित क्षेत्र रखने की मंशा जताई गई थी. संभावित खरीददारों को सुपरटेक की ओर से सौंपे गई विवरण पुस्तिका में भी इस हरित क्षेत्र को दर्शाया गया था. 2008 में जारी कम्पलीशन सर्टिफिकेट में भी यही स्थिति थी. 2009 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एफएआर (फ्लोर एरिया रेशियो) में संशोधन करते हुए इसे 2 से बढ़ाकर 2.75 कर दिया. इस संशोधन को अधिसूचित किए जाने से पहले ही सुपरटेक ने दो अतिरिक्त टॉवर्स, एपेक्स और सियान, का निर्माण शुरू करते हुए अन्य इमारतों में पहले ही फ्लैट खरीदने वालों को सूचित कर दिया कि टी-16 और टी-17 की इमारतों को अलग से प्रवेश सुविधा, निकासी, अन्य सुविधाएं तथा बुनियादी ढांचा उपलब्ध करवाया जाएगा. इसके अलावा यह भी बताया गया कि इन दोनों टॉवर्स, जिनकी ऊंचाई 73 मीटर थी और जिसमें जी+24 मंजिलें बनाई जानी थी, को जुदा करने के लिए एक विशेष चारदीवारी भी बनाई जाएगी.

30 नवंबर 2010 को, न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एरिया बिल्डिंग रेग्यूलेशन्स 2010 (न्यू ओखला औद्योगिक विकास क्षेत्र भवन अधिनियम 2010) लागू किए गए. इसके एक अधिनियम में यह शर्त रखी गई थी कि दो इमारतों के बीच एक निश्चित दूरी बनाए रखनी होगी और जैसे-जैसे इमारतों की ऊंचाई बढ़ेगी, इस दूरी को भी बढ़ाना होगा. इसके बाद एक और संशोधन में टी-16 और टी-17 को मंजिलों की संख्या 24 से बढ़ाकर 40 करने अर्थात जी+40 की अनुमति दी गई, जिसकी वजह से इमारत की ऊंचाई 121 मीटर तक बढ़ जानी थी. एमरल्ड कोर्ट के रेजीडेंट वेल्फेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) ने इसकी गहरी जांच करने का निर्णय लिया और अधिकारियों से स्वीकृत नक्शों की प्रतियां मांगी. उनसे मिले जवाब से असंतुष्ट आरडब्ल्यूए ने सूचना के अधिकार के तहत इस संबंध में जानकारी मांगी. जब आरडब्ल्यूए ने देखा कि यहां अधिनियमों का धड़ल्ले से उल्लंघन किया जा रहा है, तो उन्होंने कानूनी सलाह लेकर इस मामले को अदालत तक पहुंचाया और वहां एक दशक तक लड़ाई लड़ी. अंतत: सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का निपटारा करते हुए ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया.

इसके एक अधिनियम में यह शर्त रखी गई थी कि दो इमारतों के बीच एक निश्चित दूरी बनाए रखनी होगी और जैसे-जैसे इमारतों की ऊंचाई बढ़ेगी, इस दूरी को भी बढ़ाना होगा. इसके बाद एक और संशोधन में टी-16 और टी-17 को मंजिलों की संख्या 24 से बढ़ाकर 40 करने अर्थात जी+40 की अनुमति दी गई, जिसकी वजह से इमारत की ऊंचाई 121 मीटर तक बढ़ जानी थी.

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में नियोजन प्राधिकरण और विकासक के खिलाफ़ कड़ी टिप्पणियां की. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सुपरटेक लिमिटेड तथा नोएडा ने बेशर्मी के साथ एमरल्ड कोर्ट आरडब्ल्यूए की राह में अड़ंगा लगाने की कोशिश की. यह साफ था कि टी-1 और टी-17 के बीच निर्धारित दूरी को बनाए नहीं रखा गया था. इतना ही नहीं अनुमति देते हुए इस बात की भी अनदेखी की गई थी कि वहां ओपन स्पेस उपलब्ध ही नहीं है, ऐसे में विकासक की ओर से टॉवर्स की ऊंचाई को बढ़ाकर इसे 24 से 40 मंजिला करने का जो प्रस्ताव सौंपा गया था, उसे सीधे-सीधे खारिज कर दिया जाना चाहिए था. इसके बावजूद नोएडा प्राधिकरण ने नियमों का उल्लंघन करते हुए विकासक का साथ दिया. सुपरटेक लिमिटेड ने भी यह झूठा दावा किया है कि परियोजना में टॉवर्स का एक समूह, एक ब्लॉक का गठन करता है, अत: न्यूनतम दूरी की आवश्यकता को कम करने की अनुमति दी जा सकती है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले के दस्तावेजों में ऐसे अनेक उदाहरण हैं,जो इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों और सुपरटेक के बीच नापाक मिलीभगत थी.

इन ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करने को लेकर उच्च न्यायालय के आदेश को उचित ठहराते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने विकासक को भारी कीमत चूकाने का आदेश दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करने की समय सीमा तय करते हुए कहा कि इसका खर्च विकासक उठाएगा. इसके अलावा होने वाले अन्य आकस्मिक खर्च, मसलन विशेषज्ञों को दी जाने वाली फीस भी सुपरटेक ही देगा. कंपनी को एपेक्स और सियान में फ्लैट खरीदने वाले लोगों को उनका पैसा लौटाने का आदेश देने के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने आरडब्ल्यूए को इस मामले में हुए अदालती खर्च के लिए 20 मिलियन रुपए देने को भी कहा. 

नागरिकों को न्यायालय की जिस टिप्पणी को लेकर सबसे ज्यादा चिंता होनी चाहिए, वह यह है कि अवैध निर्माण की गतिविधियों में बेतहाशा वृद्धि देखी जा रही है, विशेषत: महानगरीय शहरों में. विकासक और नियोजन प्राधिकरण की सांठगांठ से यह छोटे पैमाने पर नहीं हो रही थी. आवासीय भंडार में वृद्धि की जरूरत को समझा जा सकता है, लेकिन ऐसा करते हुए पर्यावरण और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है. पर्यावरण और सुरक्षा अधिनियमों का उल्लंघन, शहरी नियोजन के मूल सिद्धांतों पर हमला ही है.

इन ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करने को लेकर उच्च न्यायालय के आदेश को उचित ठहराते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने विकासक को भारी कीमत चूकाने का आदेश दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करने की समय सीमा तय करते हुए कहा कि इसका खर्च विकासक उठाएगा.

पिछले कुछ सप्ताह से ट्विन टॉवर्स के आकर्षण का केंद्र बन जाने से हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि इस तरह के अवैध निर्माण का यह पहला मामला है. इसके पहले, 1990 के दशक में दक्षिण मुंबई में 36 मंजिला इमारत प्रतिभा, जिसे ‘भ्रष्टाचार का मूल टॉवर’ कहा गया था, को बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश पर ध्वस्त किया गया था. उस वक्त पता चला था कि भूखंड क्षेत्र को बढ़ा हुआ बताकर आठ अतिरिक्त मंजिलों के निर्माण को अनुमति दी गई थी. हाल ही में, जुलाई 2022 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हवाई अड्डे के आसपास ऊंचाई संबंधी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वाले ऐसे 48 ऊंचे निर्माण कार्यों के अवैध हिस्से को ढहाने का आदेश दिया था, जिनकी वजह से हवाई जहाजों के उड़ान भरने और उतरने में बाधा उत्पन्न हो रही थी. दुर्भाग्यवश, ऐसे कुछ ही मामले उजागर होते है, , क्योंकि अन्य अवैध निर्माणों को लेकर या तो कोई आवाज नहीं उठाता या फिर कोई अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाता. ऐसे में साफ है कि ऐसे निर्माण कार्य या तो फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर मंजूर किए गए या फिर निर्माण योजना को मंजूरी देने वाले सक्षम प्राधिकारियों की मिलीभगत से नियोजन अधिनियमों का उल्लंघन करते हुए इन्हें अनुमति दी गई. इस मामले में एफएआर (फ्लोर एरिया रेशियो) में परिवर्तन किया गया था, जो राज्य के शहरी विकास विभाग में बैठे लोगों की मंजूरी के बगैर संभव ही नहीं हो सकता. 

कुछ लोगों ने सवाल उठाया है कि क्या, जिस निर्माण कार्य पर 0.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर और जिसे ध्वस्त करने पर 0.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किया गया, उसे ध्वस्त किया जाना ज़रूरी था. इसमें कोई शक नहीं कि इस निर्माण कार्य को ध्वस्त करने से मूल आवश्यकता अर्थात आवास उपलब्ध करवाने के प्राथमिक उद्देश्य को साध्य नहीं किया जा सकता. हालांकि शहरी नियोजन से जुड़े पर्यावरण, निर्मिति घनत्व और सुरक्षा को लेकर अनेक ऐसे पहलू हैं, जो समान रूप से महत्वपूर्ण है और जिन्हें लागू करने की आवश्यकता है. इस विध्वंस का उद्देश्य यह भी दिखाना है कि अब नियमों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और मुख्य दोषी, विकासक को अपने गैरज़िम्मेदाराना बर्ताव की कड़ी कीमत चुकानी होगी. दरअसल, यह सुझाव देना कि सभी अवैध निर्माण कार्यो को राज्य सरकार को अपने कब्ज़े में लेकर उसका कोई और उपयोग करना चाहिए, शहरी प्रशासन की दृष्टि से विनाशकारी और खतरनाक तर्क देना ही कहा जाएगा. दुर्भाग्यवश, जिनके ऊपर निर्माण के विनियमन की ज़िम्मेदारी है, वे आमतौर पर सजा पाने से बच जाते है. यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है.

इस विध्वंस का उद्देश्य यह भी दिखाना है कि अब नियमों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और मुख्य दोषी, विकासक को अपने गैरज़िम्मेदाराना बर्ताव की कड़ी कीमत चुकानी होगी. दरअसल, यह सुझाव देना कि सभी अवैध निर्माण कार्यो को राज्य सरकार को अपने कब्ज़े में लेकर उसका कोई और उपयोग करना चाहिए, शहरी प्रशासन की दृष्टि से विनाशकारी और खतरनाक तर्क देना ही कहा जाएगा.

ऐसे मामलों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ सुशासन के साधनों का उपयोग करना होगा. प्रत्येक नगरपालिका और विकास प्राधिकरण को अनिवार्य रूप से दी गई सभी भवन अनुमतियों को साझा करना चाहिए और उन्हें अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित करना चाहिए. यदि कोई उल्लंघन देखा जाता है, तो डेवलपर्स और उन्हें प्रोत्साहन देने वालों को गंभीर सजा दी जानी चाहिए, ताकि ऐसा करने से रोकने की प्रवृत्ति मजबूत हो सकें. विकसित विश्व ने समग्र पारदर्शिता और जवाबदेही की प्रक्रिया को अपना लिया है. इस वजह से वहां बिल्डिंग कोड्स (निर्माण अधिनियम) का उल्लंघन दुर्लभ ही होता है. खेद की बात यह है कि भारत में यूएलबी और विकास प्राधिकरणों में सुशासन को लेकर बातें तो बहुत की जाती हैं, लेकिन इस पर अमल बेहद कम किया जाता है. 

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