Author : Sushant Sareen

Published on May 13, 2019 Updated 0 Hours ago

सवाल यह है कि मोदी के हारने पर पाकिस्तान उत्साहित क्यों होगा?

भारत के चुनाव से बेचैन पाकिस्तान

भारत में चल रहे संसदीय चुनावों के नतीजों को लेकर पाकिस्तान में कुछ ज्यादा ही उत्सुकता दिख रही है. वहां इन चुनावों से जुड़ी दो तरह की धारणाएं दिख रही हैं. पहली धारणा उसकी उम्मीदों से जुड़ी है. हालांकि उम्मीदें भी वह दो किस्म की पाल रहा है. पहली उम्मीद यह है कि भारतीय जनता पार्टी, और खासतौर से नरेंद्र मोदी को आम चुनावों में मुंह की खानी पड़े, ताकि ‘जैसे को तैसा’ की भाषा में जबाव देने वाला वजीर-ए-आजम भारत की सत्ता पर दोबारा न आ सके. इसके साथ बिल्कुल उलट दूसरी उम्मीद यह है कि अगर मोदी को फिर से सत्ता मिलती है, तो मुमकिन है कि भारत और पाकिस्तान का आपसी  तनाव कम हो. पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान ने कुछ दिनों पहले एक पत्रकार-वार्ता में यह कहा ही था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने पर दोनों देशों के बीच शांति-वार्ता की बेहतर गुंजाइश होगी.

दूसरी धारणा पाकिस्तान की हताशा से जुड़ी है. असल में, भारत में जब चुनावी प्रक्रिया शुरू होने जा रही थी, तो वह यही मानकर खुश हुआ जा रहा था कि नरेंद्र मोदी की दोबारा ताजपोशी नहीं होने वाली है. उसकी यह धारणा मीडिया के विभिन्न माध्यमों से उस तक पहुंचने वाली खबरों से बनी थी. लेकिन जैसे-जैसे चुनाव ने गति पकड़ी, और विशेषकर बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद माहौल बदला, इस्लामाबाद के सत्ता प्रतिष्ठानों को यह एहसास होने लगा कि भारत में भाजपा संभवत: फिर से सत्तारूढ़ पार्टी बनने जा रही है. वह भी इन आम चुनावों को ठीक उसी तरह मोदी के आईने से देख रहा है, जिस तरह हमारे यहां का पूरा चुनावी विमर्श मोदी के आसपास सिमट गया है. हर कोई मानो यही पूछने लगा है कि मोदी सरकार फिर से आएगी या जाएगी? चूंकि भारत के इस वजीर-ए-आजम को पाकिस्तान का आम अवाम भी पूर्वाग्रह भरी निगाहों से देखता है, इसलिए  उनके सत्ता में लौटने के कयास मात्र से पाकिस्तान चिंतित हो रहा है.

उसकी इस हताशा की एक वजह नरेंद्र मोदी का अप्रत्याशित रवैया भी है. मोदी पूर्व के तमाम प्रधानमंत्रियों से अलग रहे हैं. उनके बारे में सटीक तौर पर कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता. वह अमूमन गैर-पारंपरिक रुख अपनाते हैं. वह सर्जिकल स्ट्राइक करते हैं. पड़ोसी देशों की हवाई सीमा में अपने विमान भेजते हैं. मिसाइल हमले की भी धमकी देते हैं. यानी, वह पाकिस्तान से बिल्कुल नई भाषा में बात कर रहे हैं, जिसकी उम्मीद इस्लामाबाद को कतई नहीं थी. इस वजह से पाकिस्तान का वह ‘स्ट्रैटिजिक फ्रेमवर्क’ टूट गया है, जिस आधार पर वह अब तक भारत के साथ अपने रिश्तों को तौलता रहा है. पाकिस्तान में यह खलबली हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के रवैये के कारण भी बनी है. डोभाल पाकिस्तान के प्रति सख्त रुख अपनाते हैं, और प्रत्यक्ष व परोक्ष, किसी भी किस्म के युद्ध का आक्रामक जवाब देने का तेवर रखते हैं.

बहरहाल, नरेंद्र मोदी की फिर से ताजपोशी होती है अथवा नहीं, इसका फैसला तो 23 मई को होगा. लेकिन इतना तय है कि अगर मोदी फिर से लुटियन जोन में लौटते हैं, तो वह अपने हितों के साथ समझौता करके पाकिस्तान से रिश्ता बनाना शायद ही पसंद करेंगे. संबंध सुधरने की पाकिस्तान की यह उम्मीद इसलिए भी टूटती दिखती है, क्योंकि भारत अपनी अखंडता में सेंध लगाने वाला कोई समझौता नहीं करेगा. हालांकि कश्मीर को लेकर जिस समझौते की उम्मीद पाकिस्तान लगाए बैठा है, उसको लेकर वह खुद भी स्पष्ट नहीं है. इमरान खान ने यही कहा था कि किसी तरह का कोई समझौता हो सकता है. इसका अर्थ यह है कि वह समझौते की रूपरेखा से वाकिफ नहीं हैं. तो क्या भारत, खासतौर से कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अपनी पारंपरिक नीति से पीछे हट रहा है? धुंध की यह चादर भी 23 मई के नतीजों के बाद ही छंट सकेगी.

सवाल यह है कि मोदी के हारने पर पाकिस्तान उत्साहित क्यों होगा? इसका जवाब तो साफ-साफ नहीं दिया जा सकता, लेकिन माना यही जा रहा है कि पाकिस्तान गैर-भाजपा दलों के साथ यदि कोई समझौता न भी कर सका, तो कम से कम यह सुनिश्चित करवा सकेगा कि उसके खिलाफ कोई सख्त कदम न उठाया जाए. भारत की विपक्षी पार्टियों में कई नेतागण पाकिस्तान के साथ ‘अच्छे व मधुर’ रिश्तों के हिमायती हैं. पाकिस्तान उनमें अपने लिए उम्मीदें देख रहा है, और यही उसके उत्साह की वजह जान पड़ती है.

पाकिस्तान अभी कई मुश्किलों से घिरा हुआ है. उसकी आर्थिक सेहत लगातार बिगड़ रही है. ऐसी सूरत में, वह कतई नहीं चाहेगा कि भारत के साथ किसी तरह का तनाव बढ़े. भारत ने आतंकी वारदातों के बाद पाकिस्तान से सर्वाधिक तरजीही देश यानी मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले लिया है. पाकिस्तान से भारत को निर्यात होने वाले उत्पादों की आवक भी बंद कर दी गई है. चूंकि पाकिस्तान को अभी कर्ज की सख्त जरूरत है, ऐसे में, वह भारत से आयातित उत्पादों का विकल्प भी नहीं ढूंढ़ सकता, क्योंकि इन उत्पादों को दूसरे देशों से खरीदने पर उसे ज्यादा कीमत चुकानी होगी.

इन तमाम मुश्किलों को देखते हुए पाकिस्तान की उम्मीदें यही होंगी कि भारत में ऐसी कोई सरकार बने, जिसका रवैया उसके खिलाफ नरमी भरा हो. चूंकि नरेंद्र मोदी की सरकार उसके लिए कई तरह की दुश्वारियां पैदा कर सकती है, इसलिए वह खौफ और बेचैनी में डूबा हुआ 23 मई के नतीजों का इंतजार कर रहा है.


ये लेख मूल रूप से हिंदुस्तान अख़बार में छपा था.

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