Author : Rumi Aijaz

Published on Jul 27, 2023 Updated 0 Hours ago

दिल्ली के जल स्त्रोतों की समीक्षा से ये पता चलाहै कि, राजधानी शहर में जलापूर्ति के लिए ज़रूरी जल राजधानी के भीतरी और बाहरी स्रोत  दोनों से ही उपलब्ध किये जाने के बावजूद, जलापूर्ति की कमी को पूरा नहीं कर पा रहा है.

Delhi के लिए उपलब्ध जलस्त्रोतों पर पैनी नज़र!
Delhi के लिए उपलब्ध जलस्त्रोतों पर पैनी नज़र!

भारत (India) के भारी घनत्व वाली राजधानी शहर दिल्ली (Delhi) में जहां, 23 मिलियन से भी ज्यादा बाशिंदे रहते है, वहाँ जल की मांग उसकी आपूर्ति से काफी ज्य़ादा  है. शहर प्रशासन के जलापूर्ति विभाग, दिल्ली जल बोर्ड (DJB) के अनुसार, दिल्ली को प्रतिदिन लगभग 1.150 मिलियन गैलन (Million Gallons) जल की आवश्यकता होती है, जबकि, आपूर्ति सिर्फ़ 935 मिलियन गैलन जल की हो पाती है. ऐसी स्थिति में, दिल्ली में रहने वाले अधिकांश निवासी, ख़ासकर वे जो कि अवैध क्षेत्रों में रह रहे हैं, उन्हें समुचित पेयजल (Drinking Water) नहीं मिल पाती है .

इस लेख में,DGB द्वारा अपने नागरिकों के बीच वितरित किये जाने वाले जल को, किस तरह से प्राप्त  किया जाता है उसके विभिन्न स्त्रोतों को विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयास किया गया  है.

इस लेख में,DGB द्वारा अपने नागरिकों के बीच वितरित किये जाने वाले जल को, किस तरह से प्राप्त  किया जाता है उसके विभिन्न स्त्रोतों को विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयास किया गया  है. हालांकि, ऐसी सूचना, विभिन्न  कारणों  से  महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे कि जल क्षेत्र में बेहतर योजना बनाने, उसके क्रियान्वयन से लेकर विकास तक में, लेकिन ये सार्वजनिक पटल पर सुचारू रूप से उपलब्ध नहीं हैं. ये लेख उसी कमी की भरपाई करने की दिशा में एक कदम है.

ज़मीन पर जल निकाय 

ज़मीन या भूमि पर उपलब्ध जल स्रोतों से  जलनिकाय, दिल्ली में जल प्राप्ति का महत्वपूर्ण स्त्रोत है. ये पानी, जिन्हें बहुधा ऊपरी सतह के जल या सरफेस वॉटर के तौर पर जाना जाता है, वो दिल्ली और उसके इर्द गिर्द के नदी, नहर एवं तालाबोंसे  पाए जाते हैं.

यमुना नदी, दिल्ली के पूर्वी क्षेत्र से होकर गुज़रती हैं, और नदी के दिल्ली प्रक्षेत्र में बहने वाले नदी के जल को शहर-प्रशासन द्वारा जमा करके फिर उसे उचित ट्रीट्मेन्ट के पश्चात नागरिकों में वितरित कियाजाता है. सालो भर लगातार बहने वाली इस नदी में पानी का स्तर घटता0 बढ़का रहता है. बारिश के तीन में से दो महीने (जुलाई से सितंबर) तक जलस्तर काफी ऊंचा रहता है.हालांकि, ग्रीष्मकालीन महीनों (अप्रैल से जून) में, दिल्ली समेत, उत्तर भारत के कई राज्यों में, यमुना नदी के जल की मांग (जल बंटवारा संधि अनुसार) उनकी ज़रूरतों की पूर्ति करने के लिये तेज़ हो जाती है, इस कारण से यमुना के जलस्तर में गिरावट दर्ज होने लगती है.

ये भी पाया गया है कि अनुपचारित घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल, साथ ही कचरों के निपटान ने यमुना के जल की शुद्धता को काफी हद तक प्रभावित किया है. ऐसी स्थिति, ख़ासकर के दिल्ली के कालिंदी कुंज क्षेत्र में बहुतायत में बनी हुई है. दिल्ली क्षेत्र में साल के अधिकांश महीने न्यूनतम जल स्तर होने और जल की दयनीय गुणवत्ता की बड़ी वजह, दिल्ली का बाहरी जलस्त्रोतों पर निर्भरता  है.

घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल, साथ ही कचरों के निपटान ने यमुना के जल की शुद्धता को काफी हद तक प्रभावित किया है. ऐसी स्थिति, ख़ासकर के दिल्ली के कालिंदी कुंज क्षेत्र में बहुतायत में बनी हुई है.

पहला बाह्य माध्यम है गंगा कनाल (नहर) जो कि पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश से होकर गुज़रती हैं. इसका निर्माण भूमि सिंचाई के लिए किया गया था. जल के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल लोगों के पीने के पानी के ज़रूरत के तौर पर भी किया जाता हैं. ये नहर उत्तर भारत के उत्तराखंड हरिद्वार में गंगा नदी से शुरू होकर उत्तरप्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र से होकर गुज़रती हैं. यूपी के मुरादाबाद में, ये नहर दिल्ली के पूर्वी सीमा से काफी समीप होती है, जहां से नहर के पानी को दिल्ली तक लाने के लिए समुचित ढांचा तैयार किया गया हैं. इस जल का उपचार और तदुपरांत उसकी आपूर्ति दिल्ली के पूर्वी, उत्तरीय एवं दक्षिणी क्षेत्रों में की जाती हैं. प्रति वर्ष, शीतकाल की शुरुआत में, यूपी का सिंचाई विभाग, इसके वार्षिक मेंटेनेंस हेतु, इस नहर को बंद कर देता है, जिस कारण दिल्ली में पानी की सप्लाई बाधित हो जाती है.

दूसरा बाहरी स्त्रोत्र दिल्ली के दक्षिण क्षेत्र में पड़ोसी राज्य हरियाणा हैं. यहाँ दो नहरें हैं: पश्चिमी यमुना कनाल (WIC) और मुनक कनाल (जिसे करियर लाइंड चैनल भी कहा जाता हैं). डब्लूवाईसी हरियाणा के यमुना नगर जिले के हथनीकुंड बराज से निकली है, जबकि मुनक कनाल, डब्लूवाईसी की ही शाखा है जो हरियाणा के करनाल ज़िले के मुनाक गाँव से निकली है,जो पानीपत शहर के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हैं. ये दोनों कनाल यमुना नदी के जल को दक्षिणी दिशा में ले जाती है, और दिल्ली के लिए जल के प्रमुख स्त्रोत्र हैं. मुनक कनाल के विभिन्न शाखाएं हैं और दिल्ली स्थित हैदरपुर की ओर बहने वाली नहर को दिल्ली की उपशाखा के रूप में जाना जाता हैं. पूर्व में भी, हरियाणा सरकार द्वारा दिल्ली को कम जलापूर्ति किये जाने और स्थानीय लोगों द्वारा, कचरों का निपटारण इसी नहर के जल में किये जाने के कई उदाहरण हैं. 2016 में, नौकरी की मांग कर रहे स्थानीय आंदोलनकारियों द्वारा इस कनाल/नहर की बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाए जाने की वजह से जलापूर्ति कुछ वक्त़ के लिए बाधित हो गई थी.

भाकरा भंडारण पानी का तीसरा बाह्य स्त्रोत्र है, जो उत्तरी पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश में स्थित हैं. इस भंडारण से, रावी और व्यास नदियों का जल विभिन्न उत्तर भारतीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को विभिन्न नहरों की श्रृंखला द्वारा आपूर्ति की जाती है. भाकरा नहर से डब्लूवाईसी तक पानी पहुंचाने के लिए एक लिंक कनाल का निर्माण किया गया हैं.इस कनाल सिस्टम द्वारा भाकरा भंडारण से खींच कर हरियाणा तक लाए जाने के बाद, डब्लूवाईसी एवं मुनाक नहर द्वारा इस जल को दिल्ली भेज दिया जाता है.

ज़मीन के नीचे जल

दिल्ली के प्रशासनिक सीमाओं के भीतर, विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जलज्य़ादा नहीं है.यमुना के दिल्ली प्रक्षेत्र की स्थिति ऊपर विस्तारपूर्वक बतलायी जा चुकी है. अन्य उपलब्ध स्त्रोत्र हैं ज़मीन के नीचे/भूतल से प्राप्त जल, जिसे ग्राउंड वॉटर/भूजल भी कहा जाता हैं. इन भूजल को निकालने के लिए, नगर प्रशासन द्वारा दिल्ली शहर के विभिन्न जगहों पर, जैसे यमुना नदी के समीप उत्तर दिल्ली के बाढ़ वाले पाला क्षेत्र में, ट्यूबवेल और रेने वेल (जलकूप) लगाया गया है. भू-तल से जल प्राप्ति के लिए दिल्ली के ऐसे सभी जगहों में जहां भूजल का स्तर बेहतर हो, उनको ढूंढने का काम किया जा रहा है.

दिल्ली में भूजल की उपलब्धता कम होने के कई कारण हैं. सर्वप्रथम तो,दिल्ली देश के अर्ध शुष्क क्षेत्र में स्थित है, जहां सबसे कम बारिश होती है, जिस वजह से यहां भूजल पुनर्भरण काफी कम हो पाता है. दूसरा,जलोढ़ गठन एवं क्वॉर्टज़ईट चट्टानों द्वारा गठित दिल्ली की हाइड्रो-जियोलॉजिकल प्रोफाइल, भूजल की उपलब्धता को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करती है. अंततःभूजल के अत्याधिक दुरुपयोग, शहर के कई भागों में जल के रिक्तकरण के प्रमुख कारण हैं. इस संबंध में, भू-जल से प्राप्त जल में अनुमेय सीमा से भी अधिक मात्रा में मौजूद टॉक्सिक मेटल भी इसकी दयनीय गुणवत्ता को दर्शाता है जो कि खुद में एक अन्य प्रमुख कारक है.

वर्षा से प्राप्त जल

बारिश से प्राप्त होने वाली कुछ जल की मात्रा को भी इसमें संलग्न किया गया है. इस उद्देश्य हेतु, प्रशासन के पास अपने सभी परिसर/ इमारतों में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग (RWH) को स्थापित करने का नियम हैं. साथ ही सभी नागरिकों के लिए भी, अगर वे ऐसे भू-स्वामी हैं जिनके पास 100 स्क्वैर मीटर या उससे ज्य़ादा ज़मीन है, तो वे अपने परिसर मेंRWH संरचनाओं को इंस्टॉल करना अनिवार्य है.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, शहर की लगभग 80 प्रतिशत आबादी को सीवरेज नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है और 70 प्रतिशत दूषित जल को इस ट्रीट्मेंट के द्वारा पीने अथवा पुनः इस्तेमाल योग्य बनाया जाता हैं.

कई सरकारी और निजी इमारतों में, साथ ही हाउसिंग सोसाइटी, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, इंटरनेशनल एयरपोर्ट आदि जगहों पर भी आरडब्ल्यूएच संरचनाओं के स्थापित किये जाने की भौतिकी प्रगति दिखती हैं. ये पद्धति भू-जल पुनर्भरण और संरक्षित बारिश से प्राप्त जल के किसी ग़ैर-व्यापारिक हित के, जैसे बाग़बानी, कार की ढुलाई, आदि जैसे उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता प्रदान करती है. हालांकि, अब भी आरडब्ल्यूएच से प्राप्त होने वाले फायदे को लिया जाना शेष है, चूंकि- अब तक काफी सरकारी और ग़ैर सरकारी संपत्ति के मालिकों को इन संरचनाओं को अपने यहाँ इंस्टॉल करना बाकी हैं. कुछेक इमारतें ऐसी भी हैं जो इस्तेमाल में नहीं है, प्रशासन उसको भी ध्यान में रख रही है.

प्रयोग में लाए गए जल से प्राप्त जल

नगर प्रशासन ने इस्तेमाल किये गए बेकार पानी/अपशिष्ट जल/सीवेज के पुनः इस्तेमाल हेतु, शहर के विभिन्न स्थानों पर सीवरेज नेटवर्क बिछाए हैं और कई वॉटर ट्रीट्मेंट प्लांट्स बिठाए हैं. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, शहर की लगभग 80 प्रतिशत आबादी को सीवरेज नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है और 70 प्रतिशत दूषित जल को इस ट्रीट्मेंट के द्वारा पीने अथवा पुनः इस्तेमाल योग्य बनाया जाता हैं.

इन उपचारित अपशिष्ट जल को पुनःइस्तेमाल किये जाने के लिये सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्ट्मेंट, न्यू दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल, दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन और हॉर्टिकल्चर डिपार्ट्मेंट को आपूर्ति की जाती है.

निष्कर्ष

दिल्ली के लिए जल की उपलब्धता के विभिन्न स्त्रोतों की, की गई विवेचना के आधार पर ये पता चलता है कि नगर प्रशासन अपनी जल की ज़रूरत की पूर्ति के लिए विभिन्न बाहरी एवं अंदरूनी स्रोतों पर निर्भर करती है. बाह्य स्रोत के रूप में, उत्तर प्रदेश के ऊपरी गंगा कनाल द्वारा प्राप्त होने वाली गंगा नदी का पानी; हरियाणा में यमुना नदी से मिलने वाला जल, जो डब्ल्यूवाईसी और मुनक नहर द्वारा प्राप्त की जाती है; और हिमाचल प्रदेश स्थित रावी और ब्यास नदी, जिसकी आपूर्ति के लिए हरियाणा के कनालों का इस्तेमाल किया जाता है. दिल्ली के भीतर, दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली यमुना नदी, भू-जल, रेनवॉटर, और अपशिष्ठ जल आदि पानी के प्रमुख स्रोत हैं.

ये समझा जाता है कि 90 प्रतिशत से ज्य़ादा जल हरियाणा, उत्तरप्रदेश और हिमाचल प्रदेश स्थित विभिन्न भू-तलीय जल स्रोतों से प्राप्त होता है. इसलिए, दिल्ली अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए कई बार बाहरी स्रोतों पर निर्भर करती है. आगे, नगरप्रशासन को दिल्ली क्षेत्र में व्याप्त भू-जल के स्रोतों में वॉटर लेवल को एक समान बनाए रखने एवं उसकी क्वॉलिटी बरकरार रखने, अपशिष्ट जल के उपचार, और वर्षा जल संग्रहण आदि में, काफी परेशानी हो रही है. इन कठिनाईओं का त्वरित निदान ही नागरिकों के लिए ज़रूरी जल आपूर्ति की सेवा को बेहतर बना पाएगा.

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