Published on Feb 16, 2021 Updated 0 Hours ago

सड़कों के बारे में एक अहम बात सबको ध्यान में रखनी चाहिए और वो बात ये है कि सड़कें शहरी बुनियादी ढांचे की सबसे महंगी वस्तु होती हैं.

यूरोपीय शहरों की तर्ज़ पर सड़क निर्माण की दिल्ली की कोशिशें

ऐसा लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री यूरोपीय शहरों की सड़कों की गुणवत्ता से ख़ासे प्रभावित हैं और चाहते हैं कि दिल्ली में भी कुछ जगहों पर इसी तरह की सड़कों का निर्माण किया जाए. हाल ही में उन्होंने लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को इस कार्य के लिए चिन्हित की गईं सात सड़कों को यूरोपीय देशों के शहरों की सड़कों की तर्ज़ पर नए स्वरूप में ढालने से जुड़ा पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने के निर्देश दिए. इसके साथ ही उन्होंने पीडब्लूडी के अधिकारियों को इस पायलट प्रोजेक्ट के रास्ते की तमाम अड़चनों को दूर करने का भी निर्देश दिया. उन्होंने जानकारी दी कि इन सड़कों को नया स्वरूप देने के लिए कंसल्टेंट नियुक्त किए जाने की प्रक्रिया अंतिम चरणों है. उन्होंने उम्मीद जताई कि लोक निर्माण विभाग इस प्रक्रिया को जल्द पूरा कर लेगा.

चांदनी चौक इलाक़े में एक छोटे से दायरे में सड़क पर जिस परियोजना को परखा गया था अब उसे बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफ़र (बीओटी) मॉडल के आधार पर तैयार किया जाएगा. 

चांदनी चौक इलाक़े में एक छोटे से दायरे में सड़क पर जिस परियोजना को परखा गया था अब उसे बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफ़र (बीओटी) मॉडल के आधार पर तैयार किया जाएगा. जिस कंपनी को इस परियोजना की ज़िम्मेदारी दी जाएगी उसे 15 वर्षों तक इसके रखरखाव का जिम्मा भी संभालना होगा. इस परियोजना को नवंबर 2019 में ही मंज़ूरी दी जा चुकी थी और क़ायदे से अबतक इसे शुरू भी हो जाना चाहिए था, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से इसे टालना पड़ गया. इस सड़क को नया स्वरूप दिए जाने की समयसीमा अब अगस्त 2021 तक बढ़ा दी गई है. नया स्वरूप दिए जाने के लिए चुनी गई सातों सड़कों की कुल लंबाई 500 किमी की होगी और अपने पूरे रास्ते में समान रूप से इनकी चौड़ाई 100 फ़ीट होगी.

योजना के मुताबिक, जलभराव की समस्या से निपटने के लिए सड़कों पर ढलान और नालों को नए सिरे से तैयार किया जाएगा. नालों के इसी तंत्र के भीतर वर्षा जल को भूजल की तरह संचित करने के लिए अलग से ढांचा तैयार किया जाएगा. पीडब्ल्यूडी का इरादा सड़कों को धूल से मुक्त कराने का है. पीडब्ल्यूडी का कहना है कि, “सड़कों या सड़कों के किनारे की एक इंच जगह को भी बिना ढके नहीं छोड़ा जाएगा ताकि सड़क पर धूल जमा न हो सके. इसके साथ ही भूतल पर पर्याप्त मात्रा में घास और झाड़ियां भी उगाई जाएंगी ताकि इन सड़कों पर जमा होने वाली धूल पर काबू पाया जा सके.”

सड़क – शहर का बुनियादी ढांचा

सड़कों के बारे में एक अहम बात सबको ध्यान में रखनी चाहिए और वो बात ये है कि सड़कें शहरी बुनियादी ढांचे की सबसे महंगी वस्तु होती हैं. सड़कों के व्यापक और अनेक प्रकार के प्रयोगों को देखते हुए इनकी संरचना से जुड़ी प्रक्रिया बेहद जटिल होती है. इसके अलावा ये भी एक सच्चाई है कि भारतीय परिस्थितियों में इन सड़कों का बड़ी बेअदबी से इस्तेमाल होता है, ऐसे में इनका रखरखाव और कठिन हो जाता है. इन सारी वजहों से हमारे शहरों में सड़कों के निर्माण, पुनर्निर्माण और उनमें बाद में आवश्यकतानुसार कुछ-कुछ जोड़े जाने का काम बदस्तूर चलता रहता है. ऐसे में भारतीय शहरों में यूरोपीय शैली की सड़कों का निर्माण सचमुच बेहद कठिनाई वाला काम साबित होने वाला है.

दिल्ली के कई हिस्सों में मूल रूप से चौड़ी सड़कें भी संकरी बन जाती हैं और यही सड़क कुछ किमी बाद फिर से चौड़ी हो जाती है. इनसे कई समस्याएं पैदा होती हैं और कुछ जगहों पर भारी ट्रैफ़िक के हालात पैदा हो जाते हैं.

मिसाल के तौर पर शहरों से जुड़ी योजनाओं की प्रक्रिया के दौरान ही यहां की सड़कों के वैज्ञानिक डिज़ाइन और उनकी चौड़ाई के मामले में कई प्रकार के समझौते किए जाते हैं. सड़कों की चौड़ाई कम करने, उनके कुछ हिस्सों को काटकर हटाने या फिर कुछ ‘ताक़तवर लोगों की जायदादों’ को ढहाए जाने से बचाने के लिए वैकल्पिक तरीके ढूंढने को लेकर कई तरह के दबाव बनाए जाते हैं. सड़कों के निर्माण में ऐसे बदलावों से आगे चलकर शहरों में बढ़ते ट्रैफ़िक को कई तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है. दिल्ली भी इसकी अपवाद नहीं है. लिहाजा इससे पहले कि सड़कों का निर्माण शुरू हो, 500 किमी की पूरी लंबाई में इन सड़कों की 100 फ़ीट की चौड़ाई तक के भूभाग को सार्वजनिक संपत्ति का रूप देना पड़ेगा. इन पर खड़े ढांचों को ढहाना पड़ेगा. इसके साथ ही पुनर्वास से जुड़े सवाल भी खड़े होंगे.

दिल्ली की सरकार को भी इन कठिनाइयों का एहसास है. सरकार ने एक बयान में कहा है कि, “संकरे रास्तों की वजह से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इनसे शहरों में कई जगहों पर ट्रैफ़िक में रुकावट पैदा होती है. दिल्ली के कई हिस्सों में मूल रूप से चौड़ी सड़कें भी संकरी बन जाती हैं और यही सड़क कुछ किमी बाद फिर से चौड़ी हो जाती है. इनसे कई समस्याएं पैदा होती हैं और कुछ जगहों पर भारी ट्रैफ़िक के हालात पैदा हो जाते हैं. वाहनों के सुचारु आवागमन और व्यवस्थित लेन सिस्टम के लिए इन समस्याओं को दूर करना पहली प्राथमिकता होगी.” हालांकि ये कहना जितना आसान है, इसपर अमल करना उतना ही मुश्किल. सड़कों का ये संकरापन आगे चलकर राजनीतिक रूप ले लेता है. इनमें से कुछ मामले तो कोर्ट-कचहरियों में लंबे समय तक चलने वाले विवादों में भी बदल जाते हैं. ख़ुशकिस्मती से स्थान-संबंधी योजनाओं के मामले में दिल्ली में सड़कों के लिए भारत के ज़्यादातर शहरों के मुक़ाबले अधिक ज़मीन आवंटित की गई है.

यहां इस बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी है कि सड़कों पर फुटपाथ, साइकिल ट्रैक और वर्षा जल निकासी की व्यवस्था के लिए नालों का जाल होता है. इसके अलावा पार्किंग, सवारियों को चढ़ाने-उतारने, माल ढुलाई, बसों के ठहरने, टैक्सी और ऑटो स्टैंड, कूड़ा प्रबंधन से जुड़े कंटेनर और सार्वजनिक शौचालयों के लिए भी इनका इस्तेमाल होता है. सड़कों की संरचना में समावेशी विकास की आधुनिक परिकल्पना के आधार पर कई दूसरी बातों पर भी ध्यान देना पड़ता है. जैसा कि राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है, “इनमें गाड़ियों, ग़ैर-मोटर वाहनों, फुटपाथ और साइड लेन के लिए नपे-तुले और योजनाबद्ध स्थान होंगे. पैदल यात्रियों की सुविधा के लिए फुटपाथ की चौड़ाई करीब 10 फ़ीट रखी जाएगी. इन फुटपाथों का खाका दोबारा बनाया जाएगा और दिव्यांगों की सहूलियत के लिए एक तय ऊंचाई तक इनका फिर से निर्माण किया जाएगा.” हालांकि एक ही समय में इन तमाम सेवाओं को सुलभ बनाना एक चुनौतीपूर्ण काम है और इसके लिए बेहद उच्च कोटि के संरचनात्मक कौशल की आवश्यकता होती है.

हरियाली पर हो विशेष ध्यान

सड़कें किसी शहर के सौंदर्यशास्त्र का हिस्सा होती हैं और दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग ने इस बात को भी अपने संज्ञान में लिया है. सड़कों और उनके किनारे ज़्यादा से ज़्यादा हरियाली की व्यवस्था करने पर विचार चल रहा है. फुटपाथ के किनारे पेड़ लगाने के लिए अलग से जगह की व्यवस्था किए जाने की योजना है. फुटपाथ के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों और ऑटो रिक्शा की पार्किंग के लिए भी अलग से स्थान निर्धारित होगा. इसके साथ-साथ स्ट्रीट लाइट की संरचना, विज्ञापनों और होर्डिंग्स की बनावट और उनके लिए ज़रूरी स्थान का भी प्रबंध करना होगा.

भारत में सड़क निर्माण से जुड़ी प्रक्रिया में सड़कों के साथ-साथ, उनके किनारे या फिर उनके नीचे ज़मीन में चलने वाली विभिन्न सेवाओं का भी ध्यान रखना ज़रूरी है. इनमें पीने के पानी की आपूर्ति, गंदे पानी के निकास, बिजली के तारों, घरेलू गैस पाइपलाइन और इंटरनेट केबल जैसी सेवाएं शामिल हैं. 

समावेशी विकास के अपने लक्ष्य की तलाश में भारत सरकार ने 2014 में पथ विक्रेता (जीविका सुरक्षा और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम पास किया था. इस कानून के ज़रिए स्थानीय प्रशासन को सड़क किनारे दुकान लगाने या ठेले-रेहड़ीवालों के नियमन का अधिकार मिला है. इतना ही नहीं ये कानून स्थानीय प्रशासन को कुछ इलाक़ों को रेहड़ी-पटरी से मुक्त कराने का भी अधिकार देता है. हालांकि इसी कानून में ये प्रावधान भी है कि किसी भी शहर की कुल आबादी का ढाई प्रतिशत सड़क किनारे दुकान लगाने वालों की हो सकते हैं. उनको सड़कों के किनारे अपनी दुकान लगाने के लिए ज़रूरी जगह मुहैया कराई जाएगी. जैसा कि इस कानून के नाम से ही स्पष्ट है कि रास्ते या गलियां वो जगहें हैं जहां दुकानें लगाई जा सकती हैं. ऐसे में शहरों में सड़क निर्माण से जुड़ी भविष्य की किसी भी योजना में कानूनन दुकानें लगाने की अनुमति दिए जाने संबंधी इस कानून के प्रावधानों को भी ध्यान में रखना पड़ेगा.

भारत में सड़क निर्माण से जुड़ी प्रक्रिया में सड़कों के साथ-साथ, उनके किनारे या फिर उनके नीचे ज़मीन में चलने वाली विभिन्न सेवाओं का भी ध्यान रखना ज़रूरी है. इनमें पीने के पानी की आपूर्ति, गंदे पानी के निकास, बिजली के तारों, घरेलू गैस पाइपलाइन और इंटरनेट केबल जैसी सेवाएं शामिल हैं. नई सड़कें बनाते वक़्त उसके दोनों तरफ़ इन ज़रूरी सेवाओं के लिए सुविधाजनक संरचना बनाना ज़रूरी है ताकि आगे चलकर सड़कों को फिर से खोदे जाने की ज़रूरत न पड़े. भारत के हर शहर में ऐसी समस्याएं देखी जाती हैं. ताज़ा ढाली गई सड़कों को खोद दिया जाता है और फिर उन्हें जैसे-तैसे जोड़कर वाहनों के आवागमन के लायक बनाया जाता है. वैसे जहां तक संभव हो सड़कों पर खुदाई के काम से बचना ज़रूरी है क्योंकि खोदे जाने से सड़कों की गुणवत्ता और लंबे समय तक टिके रहने की उनकी क्षमता नष्ट होती है.

ये परियोजना बीओटी से जुड़ी व्यवस्था पर आधारित होगी. बीओटी की व्यवस्था के तहत निजी कंपनियों से इन परियोजनाओं के ज़रिए राजस्व जुटाने की उम्मीद की जाती है. हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि इस प्रकार राजस्व जुटाने के स्रोत क्या होंगे, ख़ासकर तब जब 15 साल तक इन सड़कों के रख-रखाव की ज़िम्मेदारी भी इन कंपनियों के पास ही होगी. सड़कों पर निर्माण कार्य से जुड़े विभिन्न घटकों की योजनाओं के हिसाब से ये परियोजना करीब 20 हज़ार करोड़ के आसपास की होने की संभावना है. जब तक इस परियोजना के लिए प्रति-सहायता के विभिन्न उपाय नहीं किए जाते हैं तबतक इतनी बड़ी धनराशि का जुगाड़ कर पाना किसी निजी कंपनी के बूते के बाहर होगा.

आधुनिक समय में पथ-निर्माण की योजना का काम सिर्फ़ उसकी तकनीकी संरचना तक ही सीमित नहीं है. इन मार्गों को अब सिर्फ़ मोटरवाहनों के दबदबे वाले सड़क-तंत्र के हिस्से के तौर पर आवागमन के लिए ज़रूरी संचलन पथ के तौर पर ही नहीं देखा जाता. आवागमन के दूसरे तरीकों जैसे पैदल और साइकिल यात्राओं के लिए भी इनका समान रूप से महत्व है लिहाजा इनकी संरचना से जुड़ी परिकल्पना में इन प्रयोगों को भी महत्व दिया जाना ज़रूरी है. इसके साथ-साथ शॉपिंग, आपसी वार्तालापों, प्रतीक्षा, सुस्ताने या विश्राम करने और दोस्तों से मेल-मुलाक़ातों के लिए सामुदायिक स्थानों के तौर पर भी इनका इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि यूरोप के शहरों में फुटपाथ और सड़कों के किनारे काफी खुली जगह होती है ताकि यहां के रेस्टोरेंट इन खुले स्थानों पर अपने टेबल लगा सकें जहां लोग बैठकर अपनी कॉफ़ी का मज़ा ले सकें. दिल्ली में जिस रफ़्तार से आबादी का घनत्व बढ़ रहा है, कई लोगों का अनुमान है कि जल्द ही ये दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला शहर बन जाएगा. ऐसे में दिल्ली में यूरोपीय शहरों की सड़कों की तर्ज़ पर सुविधाएं शुरू कर पाना बेहद कठिन होगा. हालांकि इसके बावजूद सड़कों की गुणवत्ता को निखारने और उनके सौंदर्यीकरण की दिशा में दिल्ली के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए. इस पूरी कवायद का क्या नतीजा निकलता है, बाक़ी शहर इस पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखेंगे.

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