Author : Abhijit Singh

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत की रक्षा सेवाओं के लिए, ‘बजटीय चक्रव्यूह’ से बचना संभव नहीं

साल 2022-23 का रक्षा बजट यानी एक मिला-जुला पैकेज!
साल 2022-23 का रक्षा बजट यानी एक मिला-जुला पैकेज!

वित्त मंत्री के बजट भाषण से पूर्व, एक मीडिया रिपोर्ट ने उजागर किया कि रक्षा सेवाओं ने असामान्य रूप से धीमी रफ़्तार से अपने पूंजीगत आवंटनों को ख़र्च किया है. रिपोर्ट ने यह तथ्य सामने रखा कि भारतीय थलसेना ने चालू वित्त वर्ष में अपने पूंजीगत बजट का महज 40 फ़ीसद ख़र्च किया है, वहीं भारतीय वायुसेना के लिए यह आंकड़ा 70 फ़ीसद है. केवल भारतीय नौसेना है, जो अपने पूंजीगत आवंटन का 90 फ़ीसद ख़र्च कर सकी है.

ख़र्च करने में थलसेना की यह चूक किसी आश्चर्य की तरह है, क्योंकि पिछले कुछ समय से, वह अपने सामान्य आवंटन के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा पूंजीगत बजट की ज़रूरत पेश करती रही है. पिछले साल के रक्षा बजट में नये हथियारों और उपकरणों की ख़रीद के लिए अतिरिक्त पूंजीगत फंड आवंटित किये भी गये थे. हालांकि, ऐसा लगता है कि इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. महामारी की छाया में, ठेकों के क्रियान्वयन में देरी तथा भुगतान व डिलीवरी में बाधाओं के साथ, थलसेना की ख़रीद योजनाओं पर मार पड़ी लगती है.

पिछले साल के रक्षा बजट में नये हथियारों और उपकरणों की ख़रीद के लिए अतिरिक्त पूंजीगत फंड आवंटित किये भी गये थे. हालांकि, ऐसा लगता है कि इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ.

जैसा कि अप्रत्याशित नहीं था, रक्षा बजट (2022-23) ने थलसेना के लिए पूंजीगत आवंटन घटा दिया है. पूरे रक्षा बजट में 9.48 फ़ीसद (पिछले साल के 4.78 लाख करोड़ रुपये से अगले वित्त वर्ष के लिए 5.25 लाख करोड़ रुपये) की एक स्वस्थ, हालांकि प्रभावित करने लायक नहीं, वृद्धि हुई है. लेकिन, पूंजीगत आवंटन में थलसेना के हिस्से में 12 फ़ीसद (4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा) की अच्छी ख़ासी कमी की गयी है. दूसरी तरफ़, नौसेना के हिस्से में 3,000 करोड़ रुपये की वृद्धि की गयी है, जिसमें उसके आधुनिकीकरण फंड में 43 फ़ीसद की बढ़ोत्तरी शामिल है. पिछले वित्तीय वर्ष में 33,253 करोड़ रुपये के आवंटन के मुक़ाबले नौसेना का कुल बजट बड़ी वृद्धि के साथ 47,590 करोड़ रुपये हो गया है. यह साफ़ बताता है कि सरकार हिंद महासागर में चीन की चुनौती, और देश के तटवर्ती क्षेत्रों में दमदार मौजूदगी अभियानों की ज़रूरत को लेकर सचेत है. यहां तक कि इंडियन कोस्ट गार्ड ने पिछले साल के आवंटन के मुक़ाबले 39 फ़ीसद की बढ़ोत्तरी हासिल की है.

वोकल फॉर लोकल

हालांकि, बजट का मुख्य चर्चित बिंदु, वित्त मंत्री का यह ऐलान था कि आधुनिकीकरण बजट का 68 फ़ीसद घरेलू उद्योगों के लिए आरक्षित होगा. स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार के फ़ैसलों की शृंखला में यह सबसे नया है, जिसका इरादा विदेशी ख़रीद पर सेना की निर्भरता को घटाना भी लगता है. अगस्त 2020 में 101 उत्पादों के आयात पर रोक से शुरू करके, मई 2021 में 108 रक्षा उपकरणों की ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ जारी करने तक, रक्षा मंत्रालय ने विदेश में बने उपकरण हासिल करने के लिए रास्तों को लगातार संकरा किया है. वित्त मंत्री के बजट भाषण ने दोहराया कि रक्षा सेवाओं को अपनी युद्धक ज़रूरतें घरेलू स्रोतों से पूरी करने की आवश्यकता है. रक्षा मंत्री ने अतीत में स्वदेशीकरण के क़दमों का समर्थन किया है. इनमें स्वदेशीकरण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए नयी डीआरडीओ ख़रीद नियमावली भी शामिल है. रक्षा मंत्री प्रबल ढंग से ‘वोकल फॉर लोकल’ रहे हैं, जैसे कि कई पूर्व रक्षा अधिकारी और टिप्पणीकार हैं.

वित्त मंत्री के बजट भाषण ने दोहराया कि रक्षा सेवाओं को अपनी युद्धक ज़रूरतें घरेलू स्रोतों से पूरी करने की आवश्यकता है. रक्षा मंत्री ने अतीत में स्वदेशीकरण के क़दमों का समर्थन किया है. इनमें स्वदेशीकरण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए नयी डीआरडीओ ख़रीद नियमावली भी शामिल है.

फिर भी सरकार के क़दमों में ऐसा कुछ है जिससे ‘जबरन स्वदेशीकरण’ की कोशिश की जा रही लगती है. एक ऐसे वक्त में जब युद्ध के तौर-तरीक़े लगातार उन्नत होते जा रहे हैं, सेना पर यह दबाव डालना कि वह स्वदेश में डिजाइन और निर्मित उपकरणों के साथ काम करे, उद्देश्य के लिए उतना उपयुक्त नहीं भी हो सकता है. वास्तव में, अतीत में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं, जब सेना ने विभिन्न मौक़ों पर सामान्य-से-निम्न गुणवत्ता के स्वदेशी उपकरणों को नामंज़ूर किया है; हालांकि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि भारत में पूरा घरेलू रक्षा उद्योग अयोग्य है. लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) ने भारत के पनडुब्बी कार्यक्रम में एक अहम भूमिका निभायी है, और यह एक निजी उद्यम द्वारा सेना की बेहतरीन मददगार सेवा है. लेकिन सामान्यत: ऐसा नहीं है और एलएंडटी एक अपवाद ही ज़्यादा है. कुल मिलाकर, भारत में निजी उद्योग नतीजे दे पाने में जूझता रहा है, और ऐसा इसलिए कतई नहीं है कि अनुसंधान एवं विकास में अब भी ठीक से निवेश करना बाक़ी है. सेना की ओर से ठेकों का अभाव समस्या को बढ़ानेवाला एक कारक रहा है, लेकिन भारत के घरेलू निजी क्षेत्र में प्रक्रियात्मक अक्षमताएं एक सच्चाई है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. घरेलू उद्योगों पर जबरन ख़र्च से, इरादे के सराहनीय होने के बावजूद, इस बात की संभावना बहुत कम है कि ऐसा औद्योगिक पारिस्थितिकी-तंत्र खड़ा हो पायेगा, जिसके भीतर एक रक्षा उप-तंत्र फल-फूल सके.

बजटीय ‘चक्रव्यूह’ में फंसी सेना 

रक्षा बजट में, आत्मनिर्भरता के लिए रक्षा पूंजीगत बजट के लगभग तीन-चौथाई हिस्से का आरक्षण स्वदेशीकरण के दृष्टिकोण से न्यायसंगत हो सकता है, लेकिन यह सेना को एक विरोधाभास के साथ जूझने के लिए छोड़ देता है. भारत के सशस्त्र बलों को ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए अपनी अभियानगत बढ़त को बनाये रखने के तरीके खोजने पड़ेंगे जो श्रेणी-में-सर्वश्रेष्ठ, या यहां तक ​​कि आवश्यक रूप से भरोसेमंद भी न हों. यह देखते हुए कि कुछ विदेशी प्रोजेक्ट अब भी पाइपलाइन में हैं, ख़ास तौर पर नौसेना को भरोसेमंद उपकरण हासिल करने के रास्ते तलाशने होंगे, जिसे सरकारी फ़रमान के ज़रिये मुश्किल बना दिया गया है.

आधुनिकीकरण में कमी रह जाने को स्वीकार करते हुए, नये रक्षा बजट में कुल अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) बजट का 25 फ़ीसद निजी उद्योगों, स्टार्टअप्स, अकादमिक जगत के लिए अलग से रखा गया है. यह प्रतिशत के लिहाज़ से ठीकठाक हो सकता है, लेकिन वास्तविक संख्याओं में उतना ख़ास नहीं है. सच्चाई यह है कि वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा आरएंडडी के लिए निजी उद्योगों को आवंटन महज़ 3,000 करोड़ का है. कुल आरएंडडी बजट परंपरावादी ढंग से 11,981 करोड़ (पिछले साल के 11,375 करोड़ रुपये से लगभग 500 करोड़ रुपये ज्यादा) का है. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 2020-21 के लिए संशोधित आरएंडडी बजट 1,500 करोड़ रुपये कम कर दिया गया था, क्योंकि पैसा शायद खर्च नहीं हुआ. भारत में रक्षा आरएंडडी की असल दशा की लंबी कहानी है.

सच्चाई यह है कि वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा आरएंडडी के लिए निजी उद्योगों को आवंटन महज़ 3,000 करोड़ का है. कुल आरएंडडी बजट परंपरावादी ढंग से 11,981 करोड़ (पिछले साल के 11,375 करोड़ रुपये से लगभग 500 करोड़ रुपये ज्यादा) का है.

यह उम्मीद थी कि 15वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों के अनुरूप, वित्त मंत्री एक समर्पित और लैप्स नहीं होनेवाला ‘रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा के लिए आधुनिकीकरण फंड’ (एमएफडीआईएस) घोषित करेंगी. यह पूंजीगत आवंटन ख़र्च के पूर्वानुमानित नहीं रह पाने के मुद्दे को संबोधित करने की दिशा में एक क़दम होता. लेकिन सरकार अब भी ख़र्च नहीं हुए फंड को रक्षा बजट को पुन: आवंटित करने की अनुमति देने को पूरी तरह तैयार नहीं है. इसका मतलब हुआ कि सेना वर्तमान नियमों के तहत फंड्स का सरेंडर करती रहेगी. और उस बजटीय ‘चक्रव्यूह’ में फंसी रहेगी जिसमें रहने को सभी सशस्त्र बल अभिशप्त हैं.

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