Published on Nov 21, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत और ताइवान (India and Taiwan) के बीच उभरते हुए रिश्ते चीन (China) के लिए परेशानी का सबब बनते प्रतीत हो रहे हैं.

India-Taiwan  के गहराते रिश्ते और चीन की बढ़ती चिंता!

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की 20वीं नेशनल कांग्रेस में ताइवान (Taiwan) का मुद्दा प्रमुखता से उठा. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) ने कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि चीन शांतिपूर्ण तरीक़े से फिर से एकीकरण के लिए प्रयास करना जारी रखेगा, लेकिन इसके लिए कभी बल प्रयोग को छोड़ने का वादा नहीं करेगा. विशेष रूप से बाहरी ताक़तों और ‘ताइवान की स्वतंत्रता‘ की मांग करने वाले अलगाववादियों द्वारा की जा रही कार्रवाई को रोकने के लिए.

चीन के “बाहरी ताकतों द्वारा हस्तक्षेप” के संदर्भ को अक्सर यूएस-ताइवान के बीच लगातार बढ़ते संबंधों के संदर्भ में समझा जाता है. हालांकि, भारत में रणनीतिक समुदाय को इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए कि भारत और ताइवान के बीच उभरते संबंध भी चीन में काफ़ी परेशानी का सबब रहे हैं. हाल के महीनों में भारत और ताइवान के बीच बढ़ते रिश्ते चीनी रणनीतिकारों के बीच चर्चा के एक प्रमुख बिंदु के रूप में उभरे हैं.

चीन को नई साउथबाउंड पॉलिसी को लेकर आपत्ति

चीनी रणनीतिकारों के लेखों से यह स्पष्ट है कि चीन को ताइवान की नई साउथबाउंड पॉलिसी को लेकर सख़्त आपत्ति है, जिसे वहां की साई इंग वेन सरकार ने वर्ष 2016 में पेश किया था.[1] चीनी अभिजात वर्ग के लोग इसे क्रॉस-स्ट्रेट आर्थिक और व्यापार एकीकरण में अवरोध पैदा करने और अपने लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक स्थान हासिल करने की ताइवान की चाल मानते हैं.[2] जबकि सच्चाई यह है कि ताइवान ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को ख़ारिज़ कर दिया है और अपनी अर्थव्यवस्था को अपनी शर्तों पर विकसित करने के लिए अपनी नीति के साथ सामने आया है. चीन के पॉलिसी गलियारों में इसे कुछ हद पसंद नहीं किया गया है.

चीनी रणनीतिकारों के लेखों से यह स्पष्ट है कि चीन को ताइवान की नई साउथबाउंड पॉलिसी को लेकर सख़्त आपत्ति है, जिसे वहां की साई इंग वेन सरकार ने वर्ष 2016 में पेश किया था.

चीनी पक्ष को जो बात सबसे अधिक परेशान करती है, वह है नई साउथबाउंड पॉलिसी का भारत पर ज़ोर. चीनी स्कॉलर्स यानी वहां के अभिजात वर्ग के लोगों का मानना है कि ताइवान की नई साउथबाउंड पॉलिसी में “नया” का मतलब दक्षिण पूर्व एशिया के बजाए दक्षिण एशिया और विशेष रूप से भारत के साथ ताइवान के संबंधों को विकसित करना है. ऐसा कहा जाता है कि आसियान देशों के साथ ताइवान का आर्थिक और व्यापारिक आदान-प्रदान उस स्तर तक पहुंचने वाला है कि अब उसमें और अधिक बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं बची है. इसलिए, अब ताइवान की विदेश और आर्थिक नीति का रुख भारत की ओर होगा. ताइवान की नई साउथबाउंड नीति के प्रमुख समर्थकों में से एक हुआंग झिफैंग (जेम्स सी.एफ. हुआंग), जो न्यू साउथबाउंड पॉलिसी ऑफिस के पूर्व निदेशक और ताइवान फॉरेन ट्रेड एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, उनके जैसी ताइवान की प्रमुख राजनीतिक हस्तियों का दावा है कि “भारतीय बाज़ार में वह सब कुछ है, जो अगले 20 वर्षों में ताइवान के उद्योगों के विकास के लिए ज़रूरी है”, वह आगे चीनी असुरक्षा की बात भी जोड़ते हैं.[3]

चीन में इसको लेकर चर्चा आम है कि भारत और ताइवान का गठबंधन बहुत घातक साबित हो सकता है. ज़ाहिर है कि दोनों देशों में चीन के साथ भरोसे की कमी है, दोनों ही चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता को कम करना चाहते हैं. चीन के प्रति भारत की गहरी शत्रुता ताइवान के मौज़ूदा रुख़ को मज़बूती देती है, जबकि चीन के साथ ताइवान के बिगड़ते संबंध भारत को चीन पर अतिरिक्त लाभ उपलब्ध कराते हैं.[4]

इससे भी ज़्यादा अहम यह है कि चीनी विश्लेषक यह भी स्वीकार करते हैं कि भारत और ताइवान के पास एक मज़बूत एवं बेहतर आर्थिक और व्यापार ढांचा है. जैसे कि ताइवान के पास पूंजी और टेक्नोलॉजी है, जबकि भारत के पास बाज़ार के साथ-साथ बड़ी संख्या में मानव संसाधन भी उपलब्ध है. इसके अलावा, ताइवान सरकार की नई साउथबाउंड पॉलिसी और भारत की अपनी सुधार नीतियां जैसे “मेक इन इंडिया”, “इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरिडोर”, “स्मार्ट सिटी”, “डिजिटल इंडिया” आदि, रणनीतिक लक्ष्य के लिहाज़ से एक-दूसरे के लिए कुछ हद तक पारस्परिक लाभ देने वाली हैं.[5] “इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार उद्योग, स्मार्ट सिटी इंडस्ट्री (जैसे कि नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर, संचार प्रौद्योगिकी समाधान, ग्रीन एनर्जी उत्पाद, निर्माण, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल उपकरण आदि), ऑटोमोबाइल और मोटरसाइकिल कंपोनेंट्स, कपड़ा उद्योग, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, खाद्य प्रसंस्करण, बुनियादी ढांचा निर्माण, हेल्थ केयर इंडस्ट्री, पर्यटन और होटल उद्योग” इन सभी सेक्टरों को भविष्य में ताइवान-भारत औद्योगिक सहयोग के लिए संभावित विकास क्षेत्रों के रूप में देखा जाता है.[6]

भारत का आर्थिक विकास ताइवान के लिए मौक़ा

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत का आर्थिक विकास ताइवान के लिए आर्थिक और राजनीतिक दोनों ही तरह का एक असाधारण मौक़ा है. दूसरी ओर, भारत के औद्योगिक उन्नयन और हाई-टेक डेवलपमेंट में ताइवान अहम भूमिका निभा सकता है. यह सच्चाई है कि वर्तमान में भारत-ताइवान संबंधों ने दोनों पक्षों की अपेक्षा के मुताबिक़ अभी रफ़्तार नहीं पकड़ी है, लेकिन चीनी पर्यवेक्षकों का मानना है कि दोनों देशों में सहयोग की संभावना अभी भी बहुत ज़्यादा है और यह केवल समय की बात है कि कब तक दोनों पक्ष अपने पारस्परिक प्रगाढ़ संबंधों की पूरी क्षमता को महसूस करते हैं.[7]

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत का आर्थिक विकास ताइवान के लिए आर्थिक और राजनीतिक दोनों ही तरह का एक असाधारण मौक़ा है. दूसरी ओर, भारत के औद्योगिक उन्नयन और हाई-टेक डेवलपमेंट में ताइवान अहम भूमिका निभा सकता है.

इसके अलावा, चीन की व्याकुलता की एक प्रमुख वजह यह भी है कि ताइवान-भारत संबंध ऐसे समय में फल-फूल रहे हैं, जब समझा जाता है कि ताइवान के व्यवसाइयों और उद्योगों की मेनलैंड में निवेश करने की दिलचस्पी तेज़ी से कम हो रही है. चीनी पर्यवेक्षकों ने इसे माना है कि किस प्रकार 10 साल पहले ताइवान के व्यापारियों के लिए मेनलैंड निवेश की पसंदीदा जगह थी. उस दौर में ताइवान के विदेशी निवेश का 79.5 प्रतिशत यहीं होता था. हालांकि, हाल ही में इन निवेश में कमी आई है. जनवरी से नवंबर 2021 तक मेनलैंड में ताइवान के निवेश में साल-दर-साल 14.5 प्रतिशत की कमी के साथ गिरावट का रुख़ दिखाई दे रहा है.

चीन की बढ़ती चौकसी

भारत और ताइवान के बीच किसी भी “महत्त्वपूर्ण सहयोग” को लेकर चीन ज़बरदस्त चौकसी रखता है. चीन आज किन बातों को “भारत-ताइवान संबंधों में महत्त्वपूर्ण सफलता” के रूप में मानता है? [8] उदाहरण के लिए, राजनीति के क्षेत्र को ही लें, [9] तो ताइवान और भारत के बीच उच्च स्तरीय आधिकारिक दौरों पर चीन अपनी कड़ी नज़र रखता है. भारत में चीनी दूतावास अक्सर संबंधित गणमान्य व्यक्तियों को सार्वजनिक सलाह या व्यक्तिगत चेतावनी पत्र जारी करता है और ताइवान पर चीनी संप्रभुता का दावा करता है, साथ ही भारतीय पक्ष से उसके (ताइवान) साथ सभी प्रकार के आधिकारिक लेन-देन को रोकने की मांग करता है.

दूसरी अहम बात यह है कि चीन यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि दिल्ली और चेन्नई के बाद ताइवान को भारत में और अधिक कार्यालय स्थापित करने का अवसर न मिले, विशेष रूप से मुंबई में तो बिल्कुल नहीं.[10] इकोनॉमिक सेक्टर की बात करें तो चीन उत्सुकता से नज़र गड़ाए हुए है कि क्या प्रस्तावित FTA भारत और ताइवान के बीच सफल होता है या क्या ताइवान के उद्यमों के लिए और ज़्यादा औद्योगिक पार्क आदि स्थापित करके भारत वहां से निवेश आकर्षित करने के प्रयासों को तेज़ी लाता है. इसके साथ ही चीन इस पर भी आंखें लगाए हुए है कि क्या ताइवान इसके जवाब में भारतीय कामगारों के लिए अपने दरवाजे खोलता है या नहीं.[11] भारत और ताइवान के बीच सेमीकंडक्टर सहयोग पर भी चीन बारीक़ी से नज़र रख रहा है. चीनी इंटरनेट पर चल रही गतिविधियों को अगर देखें, तो वहां ताइवान की कंपनियों की भारत में बढ़ती दिलचस्पी के ख़िलाफ़ भद्दी टिप्पणियों की भरमार दिखाई देती है. उदाहरण के लिए, चीनी पर्यवेक्षक अक्सर नाराज़गी जताते हैं कि ताइवान के बिजनेस टाइकून और फॉक्सकॉन कंपनी के संस्थापक गुओ तैमिंग ने किस प्रकार चीन के कम लागत वाले वर्क फोर्स और विशाल बाज़ार का फायदा उठाया था, लेकिन मेनलैंड के प्रति वफ़ादार दिखाने के बजाए, अब वे भारत पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में, चीनी रणनीति ताइवान के व्यवसायों को विशेष रूप से मेनलैंड तक सीमित करने की रही है, और इस प्रकार से ताइवान के व्यवसायों को भारत जैसे बाहरी बाज़ारों में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने से रोका गया है. दरअसल, यह विचार ताइवान और भारत दोनों को चीन-केंद्रित आर्थिक और औद्योगिक श्रृंखला के हिस्से के रूप में समग्रता के साथ एक मंच पर लाने का है, और हो सकता है कि इसके पश्चात भारतीय बाज़ार को खोलने के लिए चीन-ताइवान के संयुक्त रूप से काम करने के मॉडल पर काम किया जाए.[12] हालांकि, चीन की इस तरह की योजना परवान नहीं चढ़ पा रही हैं और इस वजह से चीनी रणनीतिक समुदाय भारत-ताइवान आर्थिक संबंधों के आगे बढ़ने को लेकर लगातार ज़हर उगल रहा है.

भारत और ताइवान के बीच किसी भी “महत्त्वपूर्ण सहयोग” को लेकर चीन ज़बरदस्त चौकसी रखता है. चीन आज किन बातों को “भारत-ताइवान संबंधों में महत्त्वपूर्ण सफलता” के रूप में मानता है? उदाहरण के लिए, राजनीति के क्षेत्र को ही लें, तो ताइवान और भारत के बीच उच्च स्तरीय आधिकारिक दौरों पर चीन अपनी कड़ी नज़र रखता है.

चीन की चर्चाओं में एक और ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें भारत-ताइवान सहयोग आगे बढ़ रहा है. यह अहम क्षेत्र हैं अंतरिक्ष सेक्टर. क्या भारत-ताइवान वैज्ञानिक अनुसंधान सहयोग स्पेस रिसर्च तक विस्तारित होगा? क्या ताइवान के उपग्रह प्रक्षेपण में भारत अपनी भूमिका निभाएगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिन पर भी चीन[13] में लगातार चर्चा ज़ोर पकड़ रही है. इसके अलावा, जहां तक सैन्य और सुरक्षा क्षेत्र की बात है, तो यह ध्यान देने योग्य है कि भारत और ताइवान को चीन अपने पश्चिमी और पूर्वी फ्रंट यानी दो-मोर्चों पर सैन्य चुनौती मानता है. ये भी एक वजह है कि भारत-ताइवान के प्रगाढ़ होते संबंधों को लेकर चीन बेहद चिंतित रहता है. विशेष रूप से दोनों देश नौसेना के क्षेत्र में ख़ुफ़िया जानकारी और सूचना साझा करने को लेकर एक तंत्र विकसित करने में लगे हुए हैं. यह तंत्र चीन-पाकिस्तान के बीच जो व्यवस्था है, उसके विरुद्ध एक तरह से भारत का जवाब हो सकता है.[14] भारत और ताइवान के बीच सैन्य आदान-प्रदान और दोनों ओर से सैन्य अधिकारियों के प्रशिक्षण को भी चीनी पक्ष द्वारा ख़तरे के रूप में देखा जाता है.[15]

भारत-ताइवान के मध्य द्विपक्षीय हितों को लेकर पारस्परिक झुकाव के अलावा, चीन में इस बात का भी डर व्याप्त है कि भविष्य में कुछ बाहरी कारक भी भारत-ताइवान सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते हैं. चीन इसको लेकर यूएस-जापान फैक्टर के बारे में सबसे ज़्यादा चिंतित है.[16] उदाहरण के लिए, यह तर्क दिया जाता है कि विभिन्न एशियाई देशों में अक्सर यह बात प्रमुखता से कही जाती है कि भारत निवेश के लिए सही जगह नहीं है, इसके बावज़ूद इतिहास गवाह है कि जापान ने ना सिर्फ़ भारत में सफलतापूर्वक निवेश किया है, बल्कि भारतीय बाज़ार से लाभ भी उठाया है. चीन को इस बात का क डर है और इसका कोई कारण भी नज़र नहीं आता है कि ताइवान, जिसके जापान के साथ काफ़ी अच्छे ताल्लुक़ात हैं, वो भविष्य में इसी प्रकार से भारत में जापान के अनुभव को दोहराने का प्रयास नहीं करेगा.[17]

और अंत में एक ज़रूरी बात यह कि एक ऐसा मुद्दा जो शायद ही भारतीय सामरिक क्षेत्र में कभी उठता है, लेकिन  चीन में ऐसी भी कुछ चर्चाएं हैं कि भारत में तिब्बती और ताइवानी ताक़तों के बीच सांठ-गांठ है. चीनी रणनीतिकारों के बीच यह धारणा है कि ताइवान में रहने वाले तिब्बती भारत में निर्वासित तिब्बतियों के साथ मिलकर भारत-ताइवान समीकरणों को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.

कुल मिलाकर देखा जाए तो चीन ने लंबे समय से भारत-ताइवान संबंधों को नियंत्रित करने के लिए प्रमुखता से मेनलैंड से संबंधित आर्थिक निर्भरता और अवसरों के साथ-साथ सीमा पर स्थिरता का अपने हिसाब से इस्तेमाल किया है. हालांकि, भारत-चीन संबंधों और क्रॉस-स्ट्रेट संबंधों में एक साथ आई गिरावट के साथ, क्योंकि देखा जाए तो कुछ हद तक ये दोनों की मुद्दे आज अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं, भारत-ताइवान के बीच गहराते संबंधों को लेकर चीन में घबराहट काफ़ी बढ़ गई है.


[1] Xiong Qi, ““新南向”还是“新难向”?——台湾“新南向政策”可行性分析”, 创新 2017,11(05),25-37

[2] Hu Yong, “当“新南向”遇上“东进”:台印关系的当前动向与未来走势”, Taiwan Strait Research 2019, (01), 72-85

[3] Hu Yong, “当“新南向”遇上“东进”:台印关系的当前动向与未来走势.”

[4] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景,” South Asian Studies, 2018(02) Page:40-54+156-157 7

[5]Yao Yungui Wu Chongbo, “新南向政策”背景下台湾地区与印度经贸关系前景探析”, 台湾研究集刊,2018(03):77-88.

[6] Hu Yong, “当“新南向”遇上“东进”:台印关系的当前动向与未来走势”, Taiwan Strait Research 2019, (01), 72-85

[7] Yao Yungui Wu Chongbo, “新南向政策”背景下台湾地区与印度经贸关系前景探析”, 台湾研究集刊,2018(03):77-88.

[8] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景,” South Asian Studies. 2018(02) Page:40-54+156-157

[9] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景”.

[10] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景”.

[11] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景”.

[12]Xiong Qi , “ 新南向”还是“新难向”?——台湾“新南向政策”可行性分析”, 创新 2017,11(05),25-37

[13] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景,” South Asian Studies. 2018(02) Page:40-54+156-157

[14] Kang Sheng, Jiang Yuwang, Hao Rong “新世纪以来印度与中国台湾地区关系进展略考”, 印度洋经济体研究, 2014,(06),59-73+158

[15] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景,” South Asian Studies. 2018(02) Page:40-54+156-157

[16] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景.”

[17] Zhang Hua, Huang Rihan, “印度对华打“台湾牌”的表现、原因与前景.”

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