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दुनिया भर की नियामक संस्थाओं को, नई तकनीक की अगुवाई में आ रही क्रिप्टो सरीखी नई चीज़ों की कमियों को दुरुस्त करने पर ध्यान देना होगा, क्योंकि ये वैश्विक अर्थव्यवस्था को नए सिरे से ढाल सकती हैं.
Image Source: Getty
ये लेख हमारी कोलाबा एडिट 2021 सीरीज़ का हिस्सा है.
ऐसा लगता है कि क्रिप्टो करेंसियां (Cryptocurrencies) और उनके बारे में चल रही चर्चाएं सब जगह मौजूद हैं. पिछले एक साल में क्रिप्टो की क़ीमतें बड़ी तेज़ी से बढ़ी हैं, जिसके चलते नए निवेशकों की बाढ़ सी आ गई है. इस क्षेत्र की उठा-पटक और नए और अनजान वित्तीय संसाधनों के उभार के बावजूद क्रिप्टो करेंसी की स्थिरता को प्रभावित करने वाले कई कारक होते हैं. इनमें सेमीकंडक्टर (semiconductor) की कमी, ऊर्जा के ऐसे संसाधनों का दुरुपयोग जो क्रिप्टो माइनिंग (crypto-mining) के लिए नहीं थे, और भारत का इस पर आधिकारिक रवैया (जो ऐसा लगता है कि शायद क्रिप्टो करेंसियों को ग़ैरक़ानूनी ठहराने का है) इसकी स्थिरता को प्रभावित करने वाले तत्व हैं.
हाल के महीनों में बिटकॉइन के दाम में दोबारा उछाल आने से निवेशक भले ही काफ़ी उत्साहित रहे हों, मगर इससे बहुतायत की एक समस्या खड़ी हो गई है. कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन के चलते पूरी दुनिया में तमाम सेक्टर कंप्यूटर चिप की समस्या के शिकार हुए हैं. इस संकट की कुछ ज़िम्मेदारी तो क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग को भी लेनी पड़ेगी.
मिसाल के तौर पर, ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पिछले एक साल के दौरान निजी कंप्यूटर का बाज़ार, उससे पहले के साल की तुलना में क़रीब 47 प्रतिशत बढ़ गया, जो पिछले दो दशकों में हुई सबसे ज़बरदस्त वृद्धि है.
कोविड-19 के चलते लगे लॉकडाउन के दौरान, कंप्यूटर और गेमिंग के ख़ास तौर से बेहतर प्रॉसेसिंग वाले उपकरणों के लिए मारा-मारी ने रोज़मर्रा के इस्तेमाल वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान के उत्पादन के पूर्वानुमानों को बदल दिया. इससे सेमीकंडक्टर की मांग में बहुत भारी बदलाव आ गया. मिसाल के तौर पर, ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पिछले एक साल के दौरान निजी कंप्यूटर का बाज़ार, उससे पहले के साल की तुलना में क़रीब 47 प्रतिशत बढ़ गया, जो पिछले दो दशकों में हुई सबसे ज़बरदस्त वृद्धि है. इसके अलावा, लॉकडाउन के दौरान स्मार्टफोन बनाने वालों, कंप्यूटर उपकरणों और वीडियो गेम बनाने वाली कंपनियों ने देखा कि सेल से पहले की उनकी बिक्री काफ़ी बढ़ गई. लॉकडाउन के दौरान जब दुनिया घर या काम करने की जगह से कहीं दूर बैठकर काम करने की दिशा में बढ़ी, तो वीडियो कांफ्रेंसिंग और स्ट्रीमिंग की ज़रूरतें आसमान पर पहुंच गईं. इसके चलते डेटा केंद्रं की मांग और उनका उपयोग भी बहुत बढ़ गया. चूंकि इन सभी सेक्टरों और इनसे जुड़े उत्पादों में सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल होता है, तो एक संकट भी धीरे-धीरे तैयार हो रहा था.
इसी दौरान, सेमीकंडक्टर उद्योग को कई अहम और बड़े झटके लग गए. मिसाल के तौर पर फरवरी 2021 में अमेरिका के टेक्सस प्रांत में बिजली के भयंकर संकट ने वहां पर सेमीकंडक्टर बनाने वाली बहुत सी कंपनियों को प्रभावित किया था. टेक्सस, सेमीकंडक्टर बनाने का बड़ा केंद्र है. आर्थिक मुनाफ़ा कमाने के लिए सेमीकंडक्टर बनाने वाली इकाइयां आम तौर पर चौबीसों घंटे बिना रुके काम करती रहती हैं; सेमीकंडक्टर बनाने की पेचीदा फोटोलिथोग्राफिक प्रक्रिया को अचानक बिना किसी चेतावनी को नहीं रोका जा सकता. ऐसा होने पर उस समय हो रहे काम को कुछ न कुछ नुक़सान ज़रूर पहुंचता है.
वहीं, दुनिया के दूसरे छोर पर ताइवान और मलेशिया में हो रही घटनाओं का भी सेमीकंडक्टर उद्योग का असर पड़ा है. ये दोनों देश मिलकर दुनिया के कुल सेमीकंडक्टर उत्पादन का 60 फ़ीसद बनाते हैं. ताइवान, चिप बनाने में दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है. वहां पिछले पचास सालों का सबसे भयंकर सूखा पड़ा है. इसका असर चिप के उत्पादन पर भी पड़ा है (क्योंकि, पानी चिप उद्योग का एक बड़ा कच्चा माल है). मलेशिया चिप की टेस्टिंग और पैकेजिंग का बड़ा केंद्र है. वहां पर कोविड-19 के बढ़ते मामलें और लॉकडाउन ने सेमीकंडक्टर उद्योग पर गहरा असर डाला. इसके अलावा ताइवान में चिप के उत्पादन में कमी आने से दुनिया के कई बड़े ब्रैंड अब अपनी क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को मलेशिया ले जा रहे हैं.
सेमीकंडक्टर की कमी के इस संकट को बढ़ावा देने का एक और कारण क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर चिप की ख़रीदारी की गई है. पिछले एक साल से क्रिप्टोकरेंसी के माइनर तूफ़ानी रफ़्तार से काम कर रहे हैं. इसका सीधा ताल्लुक़, बिटकॉइन जैसी लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी की बढ़ती क़ीमत से है.
सेमीकंडक्टर की कमी के इस संकट को बढ़ावा देने का एक और कारण क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर चिप की ख़रीदारी की गई है. पिछले एक साल से क्रिप्टोकरेंसी के माइनर तूफ़ानी रफ़्तार से काम कर रहे हैं. इसका सीधा ताल्लुक़, बिटकॉइन जैसी लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी की बढ़ती क़ीमत से है. जैसे जैसे क्रिप्टो करेंसियों के दाम बढ़े हैं, वैसे वैसे नए नए वित्तीय निवेशकों की इस डिजिटल करेंसी (digital currency) में निवेश को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है. इससे क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग की कोशिशों ने भी रफ़्तार पकड़ी. इसके कारण ज़्यादा प्रॉसेसिंग पावर वाले सेमीकंडक्टर की बड़ी संख्या में मांग बढ़ी.
क्रिप्टो करेंसी को क्रिप्टो माइनर बनाते हैं, जिन्हें बहुत बड़े पैमाने पर लेन-देन की पुष्टि करने के बदले में क्रिप्टोकरेंसी मिलती है. इसके लिए ऊर्जा की बहुत ज़रूरत पड़ती है. इसके अलावा माइनिंग करने वालों को इस प्रक्रिया के लिए लगातार बढ़ती क्षमता वाले कंप्यूटर उपकरणों की ज़रूरत पड़ती है. बिटकॉइन की माइनिंग कितनी तेज़ी से की जा सकती है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि रिग के भीतर कितनी उन्नत चिप लगी हैं. वैसे तो कुछ लोग ये तर्क देते हैं कि सेमीकंडक्टर उद्योग ने अपनी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का उत्पादन और लचीलापन नहीं बढ़ाया था. क्रिप्टोकरेंसियों द्वारा चिप की मांग को बढ़ाने (या चिप की ख़रीद-फ़रोख़्त की संख्या में भारी उथल पुथल मचाने) से पता चलता है कि चिप के उपभोक्ताओं, जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग करने वालों की मांग में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं. क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के मुनाफ़े ने सेमीकंडक्टर की एक ऐसी बड़ी तादाद का उपयोग कर लिया, जो कि अन्य उद्योगों के लिए तैयार की गई थी. अहम बात ये है कि सेमीकंडक्टर चिप का ये संकट आधुनिक दौर की बुनियादी ज़रूरतों वाले उद्योगों जैसे कि स्मार्टफ़ोन और कंप्यूटर के क्षेत्र पर असर डाल रहा है. फोन और कंप्यूटर के नए मॉडल लॉन्च करने की प्रक्रिया आज चिप की उपलब्धता से तय हो रही है. भारत में पिछले एक साल के दौरान क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वालों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है, इससे सेमीकंडक्टर चिप के इस्तेमाल पर भी ग़लत असर पड़ा है. जो सेमीकंडक्टर अन्य प्रॉसेसर बनाने में इस्तेमाल किए जा सकते थे, आज उनका इस्तेमाल क्रिप्टो माइनिंग के क्षेत्र में किया जा रहा है.
क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग गणित के जटिल समीकरणों का समाधान निकालकर की जाती है. माना जाता है कि इस प्रक्रिया में कई अन्य देशों की तुलना में ऊर्जा की ज़्यादा खपत होती है. चूंकि इसमें बिजली की ज़्यादा खपत होती है, इसलिए क्रिप्टोकरेंसी को जलवायु के लिए ख़राब माना जाता है. ऐसी आलोचना के चलते, इस क्षेत्र के बहुत से भागीदार क्रिप्टोकरेंसी उद्योग में बिजली की खपत कम करने के तरीक़े तलाशने में जुटे हैं. उदाहरण के लिए, इथीरियम फाउंडेशन पहले ही लेन-देन की तस्दीक़ करने का नया तरीक़ा ईजाद करने में जुटा हुआ है; एक अलग प्रक्रिया (हिस्से के सबूत) का इस्तेमाल करके, फाउंडेशन हर लेन-देन में बिजली की खपत को 99.95 प्रतिशत तक कम करने की उम्मीद कर रहा है.
अप्रैल 2021 में एनर्जी वेब फाउंडेशन, रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट और एलायंस फॉर इनोवेटिव रेग्यूलेशंस ने क्रिप्टो क्लाइमेट समझौते का गठन किया था. उनका मक़सद दुनिया के क्रिप्टोकरेंसी उद्योग का कार्बन उत्सर्जन कम करना और 2030 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करना है. ऐसी कोशिशों के अन्य भागीदारों में ऊर्जा, वित्त, जलवायु, प्रभाव वाले सेक्टर जैसे कि KPMG, सन एक्सतेंज, ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस, ब्लॉकचेन फाउंडर्स फंड, क्रेबाको और मैक्रो क्लाइमेट शामिल हैं.
चूंकि इसमें बिजली की ज़्यादा खपत होती है, इसलिए क्रिप्टोकरेंसी को जलवायु के लिए ख़राब माना जाता है. ऐसी आलोचना के चलते, इस क्षेत्र के बहुत से भागीदार क्रिप्टोकरेंसी उद्योग में बिजली की खपत कम करने के तरीक़े तलाशने में जुटे हैं.
क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल मनी लॉंड्रिंग और आतंकवाद के लिए पूंजी जुटाने में किए जाने की आशंकाएं बेमानी हैं. क्रिप्टो के ज़रिए पूंजी जुटाने पर एक ऐसा खाता तैयार होगा, जिसे देखा जा सकेगा और जिसकी तस्दीक़ ब्लॉकचेन के हर बिंदु पर करनी होगी. क्रिप्टोकरेंसी की जांच के लिए जानी जाने वाली कंपनी चेनालिसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, वर्ष 2020 में क्रिप्टोकरेंसी में दुनिया भर में आपराधिक हिस्सेदारी घटकर महज़ 0.34 फ़ीसद (10 अरब डॉलर) रह गई थी, और क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े ज़्यादातर अपराध रैनसमवेयर के हमले या डार्कनेट के बाज़ार में होने वाले सौदे रहे हैं.
युवा निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी के चलते, आज भारत पूरी दुनिया में क्रिप्टोकरेंसी के एक बड़े केंद्र के तौर पर उभर रहा है. आज क्रिप्टोकरेंसी में सिर्फ़ शहरी क्षेत्रों में ही निवेश नहीं हो रहा, बल्कि टायर 2 और 3 वाले शहरों में भी क्रिप्टोकरेंसी की स्वीकार्यता तेज़ी से बढ़ रही है. इसके बावजूद, क्रिप्टोकरेंसी की स्वीकार्यता बढ़ाने की राह में कई रोड़े हैं. इनमें पूंजी का सवाल तो है ही, निजता और सुरक्षा से जुड़े प्रश्न भी हैं.
भारत में क्रिप्टोकरेंसी के संचालन को लेकर नियामक खींचतान चली आ रही है. वर्ष 2018 में रिज़र्व बैंक ने बैंकों और वित्तीय संगठनों को आदेश दिया था कि वो ग्राहकों को क्रिप्टोकरेंसी ख़रीदने, बेचने और इसका कारोबार करने की इजाज़त न दें. रिज़र्व बैंक के इस आदेश से उद्योग को ज़बरदस्त झटका लगा था. बहुत सी कंपनियां अपना कारोबार, क्रिप्टोकरेंसी के लिए दोस्ताना देशों में ले जाने की सोचने लगी थीं. हालांकि, 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने रिज़र्व बैंक द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध को हटा दिया था और भारत में एक बार फिर से क्रिप्टो एक्सचेंज को काम करने की मंज़ूरी दे दी थी. नियमन की इस अनिश्चितता को बढ़ाते हुए फ़रवरी 2021 में एक बिल पेश किया गया, जिसमें ‘निजी क्रिप्टोकरेंसी’ से जुड़ी हर तरह की गतिविधि को प्रतिबंधित करने और ब्लॉकचेन का इस्तेमाल करके, रिज़र्व बैंक द्वारा प्रमाणित डिजिटल करेंसी लाने की बात कही गई थी.
केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनी डिजिटल करेंसी लाने का विचार कई देशों में तेज़ी से आगे बढ़ा है. ऐसी डिजिटल करेंसी की अपनी खूबियां और कमियां होंगी. हालांकि, क्रिप्टोकरेंसियों और केंद्रीय बैंकों की डिजिटल करेंसी एक साथ बाज़ार में रह सकती हैं. इस समय क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति के एक अलग वर्ग के रूप में देखा जाता है. आज उनका कारोबार किसी उत्पाद की ही तरह हो रहा है. चूंकि क्रिप्टोकरेंसी के दामों में बहुत उतार चढ़ाव होता रहता है, तो इनका करेंसी की तरह इस्तेमाल हो पाना भी संभव नहीं होगा. लेकिन, इनके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के और तरीक़े भी निकाले जा रहे हैं. जैसे कि, उपयोगी सेवाओं के टोकन, किसी और को न दिए जा सकने वाले टोकन, क्रेडिट टोकन. इसके अलावा ब्लॉकचेन को आधार तकनीक बनाकर वित्त को विकेंद्रीकृत करने के अन्य तरीक़े भी अपनाए जा रहे हैं.
केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनी डिजिटल करेंसी लाने का विचार कई देशों में तेज़ी से आगे बढ़ा है. ऐसी डिजिटल करेंसी की अपनी खूबियां और कमियां होंगी. हालांकि, क्रिप्टोकरेंसियों और केंद्रीय बैंकों की डिजिटल करेंसी एक साथ बाज़ार में रह सकती हैं.
इसके अलावा टेस्ला और स्क्वॉयर जैसी वैश्विक कंपनियां अपने ख़ज़ाने के लेन देन में बिटकॉइन को एक संपत्ति के रूप में रखती हैं. वहीं, मास्टरकार्ड ने एलान किया है कि वो कुछ गिनी चुनी क्रिप्टोकरेंसी को (करेंसी के तौर पर इस्तेमाल करने की) इजाज़त देगा. संस्थागत निवेशकों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी में ऐसी दिलचस्पी दिखाना एक अच्छा संकेत है और इससे क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार में जवाबदेही आएगी. इसके बावजूद संपत्ति के एसेट मैनेजमेंट, वेल्थ मैनेजमेंट की कंपनियों और बीमा कंपनियों को ये सुनिश्चित करना होगा कि वो क्रिप्टो के व्यापार में लोगों की ज़िंदगी भर की बचत और पेंशन को डिजिटल करेंसी जैसे क्रिप्टो के व्यापार में लगाने से पहले अपने लेन-देन को सुधार लें.
भारत डिजिटल करेंसियों से जुड़े क़ानून को दोबारा संसद में लाने जा रहा है, जो ‘निजी क्रिप्टोकरेंसी’ को ग़ैरक़ानूनी बना देगा. अब ये देखने वाली बात होगी कि इस क़ानून में निजी क्रिप्टोकरेंसी की क्या परिभाषा रखी जाती है. लेकिन क्रिप्टो करेंसी से जुड़े नियम बनाने के लिए इस विषय पर स्वस्थ परिचर्चा होनी चाहिए और उद्योग से जुड़े लोगों से सलाह-मशविरा भी किया जाना चाहिए. क्रिप्टोकरेंसी पर पूरी तरह से पाबंदी से आगे चलकर भारत के हितों को ही नुक़सान होगा क्योंकि अन्य देश क्रिप्टोकरेंसी को लेकर नरम रवैया अपना रहे हैं और इन इनोवेशन को बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. सबसे अहम बात ये है कि नीतिगत ढांचा ऐसा होना चाहिए जो तकनीकी तरक़्क़ी और आबादी में आ रहे बदलाव के हिसाब से बदल जाए. दुनिया भर की नियामक संस्थाओं को, नई तकनीक की अगुवाई में आ रही क्रिप्टो सरीखी नई चीज़ों की कमियों को दुरुस्त करने पर ध्यान देना होगा, क्योंकि ये वैश्विक अर्थव्यवस्था को नए सिरे से ढाल सकती हैं.
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Shashidhar K J was a Visiting Fellow at the Observer Research Foundation. He works on the broad themes of technology and financial technology. His key ...
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