Published on Jan 05, 2023 Updated 0 Hours ago

सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचे को महज़ ‘प्रौद्योगिकीय’ पहलू से परे देखे जाने की ज़रूरत है. ये ढांचा व्यक्ति विशेष, समूह और समाजों के साथ कैसे संवाद क़ायम करता है, ये जानना बेहद ज़रूरी है.

एक ‘बेहतर’ सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचा खड़ा करने की क़वायद में लगी दुनिया!
एक ‘बेहतर’ सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचा खड़ा करने की क़वायद में लगी दुनिया!

कोविड-19 महामारी ने ये दिखा दिया कि भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और सियासी संदर्भों में हमारे बीच भारी अंतर होने के बावजूद दुनिया भर के तमाम देशों को तत्काल जिस एक चीज़ की दरकार है वो है- डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा (DPI). DPI में जनसंख्या के विशाल पैमाने वाली स्थापना स्तर की प्रौद्योगिकीय व्यवस्था शामिल है. इसी पर टिककर डिजिटल अर्थव्यवस्था संचालित होती है. इनमें पहचान प्रणालियां, भुगतान व्यवस्थाएं, डेटा आदान-प्रदान और सामाजिक दस्तावेज़ शामिल हैं. भारत समेत कुछ देश महामारी के बीच अपने नागरिकों को लक्षित सामाजिक बचाव सहायता पहुंचाने के लिए मौजूदा DPI का लाभ उठाने में कामयाब रहे. ‘डिजिटल-डिलिवरी’ के फ़ायदों की पहचान कर टोगो और श्रीलंका जैसे देशों ने भी अपने तंत्र विकसित करने की क़वायद को तेज़ी से आगे बढ़ाया. तमाम देशों में DPI की मांग काफ़ी बढ़ चुकी है. यहां तक कि विश्व बैंक के विकास के लिए पहचान कार्यक्रम के तहत ही फ़िलहाल डिजिटल पहचान पत्रों पर अमल के लिए 49 देशों को मदद पहुंचाई जा रही है.

भारत समेत कुछ देश महामारी के बीच अपने नागरिकों को लक्षित सामाजिक बचाव सहायता पहुंचाने के लिए मौजूदा DPI का लाभ उठाने में कामयाब रहे. ‘डिजिटल-डिलीवरी’ के फ़ायदों की पहचान कर टोगो और श्रीलंका जैसे देशों ने भी अपने तंत्र विकसित करने की क़वायद को तेज़ी से आगे बढ़ाया.

आज ओपन-सोर्स और मॉड्यूलर प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल से DPI के निर्माण के काम को लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है. इनसे ‘इंटरऑपरेबिलिटी’ मुमकिन होता है, जिससे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की अलग-अलग शाखाओं में सूचना के आदान-प्रदान की सुविधा मिल जाती है. इससे सेवा मुहैया कराने की रफ़्तार और उसके पैमाने में भारी सुधार आ जाता है. एक छोर से दूसरे छोर तक टुकड़ों में बंटी प्रणालियों वाली पुरानी व्यवस्था के मुक़ाबले ये ताज़ा क़वायद एक भारी बदलाव का संकेतक है. इसमें सरकार अखंड प्रौद्योगिकीय प्रणालियों के ज़रिए एक छोर से दूसरे छोर तक सेवाएं मुहैया कराती है ताकि न्यूनतम डिजिटिल बुनियादी ढांचा खड़ा किया जा सके. इनकी बुनियाद पर बाक़ी तमाम किरदार ऊपर से समाधान तैयार कर सकते हैं. इस तरह डिज़ाइन की गई DPI से समय और लागत की भारी बचत मुमकिन हो सकती है. इस सिलसिले में हम एस्टोनिया के ओपन-सोर्स सरकारी डेटा आदान-प्रदान प्रणाली X-Road की मिसाल ले सकते हैं. ये सभी सरकारी सेवाओं के तक़रीबन 99 फ़ीसदी हिस्से को डिजिटल तरीक़े से मुहैया कराने का प्रावधान करता है. रूढ़िवादी आकलनों के मुताबिक ये प्रणाली हर साल एस्टोनिया के लोगों को अनुमानित रूप से उनके श्रम के वक़्त के हिसाब से 820 सालों के बराबर बचत मुहैया कराती है. साथ ही तक़रीबन 2 प्रतिशत जीडीपी की भी बचत होती है. DPI की कामयाबी की एक और कहानी भारत का यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI) है. दुनिया में किसी भी टेक प्लेटफ़ॉर्म द्वारा रोज़ाना होने वाले लेन-देन के सबसे बड़े हिस्से का वाहक UPI ही है. एक आकलन के मुताबिक साल 2021 में इसके चलते 12.6 अरब अमेरिकी डॉलर की बचत मुमकिन हो सकी है. इतना ही नहीं, 2017 में इसकी शुरुआत के बाद से भारत वित्तीय समावेश की क़वायद में सालाना 5 प्रतिशत की चक्रवृद्धि दर से सुधार लाने में कामयाब हो रहा है. ज़ाहिर है इसके ज़रिए भारत की संगठित वित्तीय व्यवस्था का भारी विस्तार मुमकिन हुआ है.

      

‘बेहतर’ DPI, केवल प्रौद्योगिकी से कहीं आगे की क़वायद…

 

जनसंख्या के विशाल हिस्से पर इस तरह के अभूतपूर्व प्रभाव के चलते DPI की दरकार पर दुनिया भर में आम सहमति बढ़ती जा रही है. हालांकि ‘अच्छा DPI’ क्या है, इसको लेकर काफ़ी बहस छिड़ी हुई है. दुनिया के देश DPI का निर्माण करने, उसको टिकाए रखने और उसका पैमाना बढ़ाने के सफ़र पर आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में ये समझना ज़रूरी है कि प्रौद्योगिकी (चाहे वो कितनी ही ताक़तवर और ज़रूरी क्यों ना हो) का वजूद एकाकी तौर पर नहीं होता और ना ही वो अपने आप हर समस्या का समाधान कर सकती है. नागरिक-केंद्रित सेवाओं का प्रावधान करने के लिए DPI के फ़ायदों को अधिकतम स्तर पर लाने के साथ-साथ जोख़िमों और संभावित नुक़सानों को न्यूनतम स्तर पर लाना ज़रूरी है. इसके लिए ठोस प्रौद्योगिकीय समाधानों के साथ-साथ संस्थाओं, वैधानिक और नियामक रूपरेखाओं समेत समुदायों के ‘ग़ैर-प्रौद्योगिकी’ स्तर भी समान रूप से अहम हैं.

आज दुनिया में डिजिटलीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है. ऐसे में अगर DPI को पर्याप्त हिफ़ाज़ती उपायों के बग़ैर तैयार किया गया तो प्रयोगकर्ताओं के लिए डेटा निजता और सुरक्षा, जोख़िम के सबसे बड़े कारक बन सकते हैं. ये हिफ़ाज़ती उपाय टेक और नॉन-टेक स्तरों- दोनों पर खड़े किए जा सकते हैं.

इस संदर्भ में ‘ओपन डिजिटल इकोसिस्टम’ (ODE) रुख़ उपयोगी ढांचा और दिशानिर्देशक सिद्धांतों का समूह प्रस्तुत करता है. इसमें DPI को मज़बूत बनाने पर ठोस रूप से ज़ोर दिया जाता है. इसके लिए नागरिक-केंद्रित संरचना और हिफ़ाज़ती प्रावधानों, टिकाऊ सामुदायिक जुड़ाव, संस्थागत क्षमता निर्माण और ठोस प्रशासकीय व्यवस्था पर ध्यान दिया जाता है.

‘बेहतर’ DPI की संरचना के लिए दुनिया के देश ODI रुख़ को आगे बढ़ा सकते हैं. साथ ही तीन प्रमुख ‘ग़ैर-प्रौद्योगिक’ तत्वों को उचित ढंग से ज़मीन पर उतारने पर बल दे सकते हैं. ये कारक हैं- भरोसा, पहुंच और गठजोड़.

  

  • DPI को अपनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए इकोसिस्टम में भरोसा पैदा करना

 

आर्थिक और सामाजिक स्तर पर नए मूल्य पैदा करने की DPI की क्षमता काफ़ी हद तक अंतिम-उपयोगकर्ता द्वारा इसे अपनाए जाने पर निर्भर करती है. हालांकि ये क़वायद इस बात पर टिकी है कि नई प्रोद्योगिकी पर नागरिकों का कितना भरोसा रहता है. DPI के संदर्भ में भरोसा खड़ा करने की क़वायद के कई आयाम हैं. इनमें डेटा सुरक्षा और निजता से लेकर संस्थागत जवाबदेही और शिकायतों का निपटारा, सक्रिय रूप से संचार और परिवर्तनकारी प्रबंधन शामिल हैं.

आज दुनिया में डिजिटलीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है. ऐसे में अगर DPI को पर्याप्त हिफ़ाज़ती उपायों के बग़ैर तैयार किया गया तो प्रयोगकर्ताओं के लिए डेटा निजता और सुरक्षा, जोख़िम के सबसे बड़े कारक बन सकते हैं. ये हिफ़ाज़ती उपाय टेक और नॉन-टेक स्तरों- दोनों पर खड़े किए जा सकते हैं. सबसे पहले, इन्हें ‘डिफ़ॉल्ट सेटिंग’ के तौर पर प्रौद्योगिकी की संरचना के भीतर ही शामिल किया जा सकता है, ताकि सभी नागरिकों का बचाव किया जा सके. इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिनके पास अपने निजी डेटा के बचाव के लिए सक्रिय विकल्प चुनने के लिए ज़रूरी साधन नहीं हैं. दूसरे, ठोस प्रशासकीय क़वायदों (डेटा सुरक्षा क़ानूनों और जवाबदेह संस्थाओं) से बचावकारी उपायों को सामने लाया जा सकता है.

‘संरचना के हिसाब से सुरक्षा’ और ‘संरचना के हिसाब से निजता’ के सिद्धांत में प्रौद्योगिकीय और नीतिगत विकल्प- दोनों को शामिल किया जाता है. इसे DPI के हर चरण में शामिल किया जा सकता है. ‘संरचना के हिसाब से सुरक्षा’ के सिद्धांत डेटा की सुरक्षित प्रॉसेसिंग और शेयरिंग सुनिश्चित करते हैं. इनमें पहुंच पर नियंत्रण, एन्क्रिप्शन, एनॉनिमाइज़ेशन जैसे कारक शामिल हैं. ‘संरचना के हिसाब से निजता’ के सिद्धांतों में ये सुनिश्चित किया जाता है कि डेटा को एक विशिष्ट और सीमित उद्देश्य से ही इकट्ठा किया जाए. इसके अलावा डेटा शेयरिंग को लेकर पूरी जानकारी के साथ हामी भरने के लिए प्रणालियों की रूपरेखा बनाने की क़वायद भी इसका हिस्सा है. ये प्रासंगिक डेटा सुरक्षा क़ानूनों के हिसाब से होते हैं. इसके अलावा डेटा की प्रॉसेसिंग के इर्द-गिर्द प्रयोग और जवाबदेहियों को परिभाषित करने पर भी ज़ोर दिया गया है.

इसके साथ ही दुनिया के देश डेटा निजता को लेकर व्यवहार विज्ञान से जुड़े रुख़ों पर मौजूदा शोध से काफ़ी कुछ सीख सकते हैं. इन क़वायदों में नई-नई प्रणालियों से प्रयोग किए जा रहे हैं. इनमें व्यावहारिक प्रोत्साहन और सरलीकृत निजता रेटिंग्स शामिल हैं. इनका मक़सद अंतिम प्रयोगकर्ताओं से निजता की जागरूकता वाले विकल्प तैयार करने का ‘बोझ’ कम करना है. ऐसे ‘ज़िम्मेदार टेक’ विकल्पों को सहारा देने की क़वायद से नागरिकों के डेटा की सुरक्षा और निजता सुनिश्चित करने में एक अहम भूमिका अदा की जा सकती है. इससे डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर में पारदर्शिता और भरोसा पैदा किया जा सकता है.

डिजिटल साक्षरता का सीमित स्वरूप भी सार्थक रूप से DPI को अपनाए जाने की क़वायद के रास्ते की एक बड़ी बाधा है. इतना ही नहीं सीमित डिजिटल साक्षरता या जागरूकता से ऑनलाइन माध्यम में ख़तरनाक सामग्रियों की चपेट में आने का ख़तरा भी बढ़ जाता है, जो प्रयोगकर्ताओं को और ज़्यादा शक्तिहीन कर सकता है.

भरोसा का एक और प्रमुख आयाम DPI के ‘संस्थागत आधार’ की जवाबदेही है. मिसाल के तौर पर भारत में यूनिक आइडेंडिफ़िकेशन अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (UIDAI) आधार प्रणाली का संस्थागत आधार है. इसी तरह राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, स्वास्थ्य से जुड़े डिजिटल बुनियादी ढांचे का संस्थागत आधार है. इन संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने के दायरे में बार-बार सार्वजनिक सलाहकारी व्यवस्था पर अमल करना, समय से प्रतिक्रिया जताने वाले शिकायत निवारण तंत्र, DPI के उद्देश्यों के हिसाब से मुनासिब वैधानिक और संस्थागत ढांचा स्थापित करना और रिपोर्टिंग और ऑडिट्स के ख़ुलासों में पारदर्शिता की गारंटी देने वाला तंत्र शामिल है. शासन और नागरिकों के बीच डिजिटल माध्यमों से मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं में कई किरदार जुड़े होते हैं. ऐसे में जवाबदेही सुनिश्चित करने की क़वायद पर आंच आने का ख़तरा रहता है, जिसका सक्रिय रूप से निपटारा करना ज़रूरी है.

आख़िरी बात ये है कि DPI पर अमल की क़वायद, अंतिम पायदान पर काम कर रहे सरकारी तंत्र की भूमिकाओं में भारी बदलाव का कारण बनता है. इसके अलावा वो प्रक्रिया भी प्रभावित होती है जिसके ज़रिए नागरिकों का राज्यसत्ता से संपर्क क़ायम होता है. इन बदलावों से संवेदनशील तरीक़े से निपटने, जन-जागरूकता के अभियान तय करने; सरकार से नागरिक और नागरिक से सरकार के बीच संचार के प्रयोगात्मक तंत्र विकसित करने, प्रयोगकर्ताओं के तजुर्बे को ऊंचा उठाने के लिहाज़ से बेहद अहम साबित होंगे. इससे DPI के साथ जुड़ाव और सह-स्वामित्व की भावना भी विकसित होगी.

  • सार्वभौम डिजिटल पहुंच और समावेश की दिशा में काम करना

डिजिटल पहुंच (डिजिटल कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता तक पहुंच) DPI को अपनाए जाने की क़वायद के साथ बुनियादी रूप से जुड़ी है. अपने DPI सफ़र का आग़ाज़ करने वाले निम्न और मध्यम-आय वाले देशों के लिए तो ये ख़ासतौर से अहम है. इसके ज़रिए वो ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि डिजिटाइज़ेशन की क़वायद से क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर विभाजन और गहरे ना होने पाएं.

अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ के मुताबिक कोविड-19 महामारी ने इंटरनेट तक पहुंच की प्रक्रिया में रफ़्तार भर दी. 2019 में इंटरनेट के प्रयोगकर्ताओं की तादाद 4.1 अरब थी जो 2021 में बढ़कर 4.9 अरब हो गई. हालांकि इंटरनेट तक पहुंच का ये वितरण समान नहीं है. इस सिलसिले में शहरी और ग्रामीण इलाक़ों, और लैंगिक रूप से भारी अंतर अब भी बरक़रार है. मिसाल के तौर पर भारत में 2021 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार सर्वेक्षण के आंकड़ों से ये बात निकलकर आई है कि ग्रामीण महिलाओं में से महज़ 24.6 प्रतिशत हिस्से को ही अब तक इंटरनेट तक पहुंच नसीब हो पाई है. दूसरी ओर शहरी पुरुषों की 72.5 फ़ीसदी आबादी इंटरनेट के लाभ उठा रही है.

पहुंच के अलावा, डिजिटल साक्षरता का सीमित स्वरूप भी सार्थक रूप से DPI को अपनाए जाने की क़वायद के रास्ते की एक बड़ी बाधा है. इतना ही नहीं सीमित डिजिटल साक्षरता या जागरूकता से ऑनलाइन माध्यम में ख़तरनाक सामग्रियों की चपेट में आने का ख़तरा भी बढ़ जाता है, जो प्रयोगकर्ताओं को और ज़्यादा शक्तिहीन कर सकता है. साथ ही उसे इंटरनेट अपनाने से हतोत्साहित भी कर सकता है.

दुनिया के देशों में DPI को अमल में लाने के लिए मौजूदा ढांचागत विषमताओं को और गहरा बनाए बिना इस तरह की डिजिटल खाई को पाटने के लिए उपाय किए जाने ज़रूरी हैं. विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच मौजूद हो सकने वाले अलग-अलग स्तरों की डिजिटल पहुंच को शामिल करने के लिए मल्टीमोडल एक्सेस (फ़ीचर फ़ोन, स्मार्टफ़ोन, कंप्यूटर) को प्राथमिकता सूची में रखा जाना चाहिए. मिसाल के तौर पर भारत में डिजिटल भुगतानों की आदत को बढ़ावा देने के लिए नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया ने UPI123पे सर्विस लॉन्च की. इस व्यवस्था के ज़रिए फ़ीचर फ़ोन का इस्तेमाल करने वाले लोग बग़ैर इंटरनेट कनेक्शन के भी UPI का इस्तेमाल कर सकते हैं.

खुली प्रौद्योगिकियों के प्रयोग को बढ़ावा देने और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की क़वायद काफ़ी उपयोगी हो सकती है. दरअसल ये गठजोड़ को प्रोत्साहित करते हैं और विशाल आबादी के स्तर वाली चुनौतियों को सुलझाने की क़ाबिलियत का वितरण करते हैं.

ज़मीनी अध्ययनों से पता चला है कि डिजिटल सेवाओं के पहुंच के दायरे में होने पर भी भरोसेमंद मध्यवर्ती या सामुदायिक किरदार इनके प्रयोग को बढ़ावा देने के सिलसिले में एक अहम भूमिका अदा करते हैं. लिहाज़ा ऐसे ‘भौतिक और डिजिटल’ (phygital) रुख़ को DPI के नज़रिए में जगह दी जानी चाहिए. इन मध्यवर्तियों में व्यक्तियों और संस्थाओं का एक विशाल दायरा शामिल है. इनमें स्थानीय ग़ैर-सरकारी संगठनों, समुदाय-आधारित संगठनों से लेकर स्थानीय राजनेता और भरोसेमंद सामुदायिक नेता शामिल हैं. ऑनलाइन टचप्वॉन्ट्स और प्रक्रियाओं को मानवीय संपर्क केंद्र से मज़बूत बनाकर, हर परिस्थिति में मौजूद माध्यम तक पहुंचाने से पिछड़े समुदायों तक डिजिटल-ज़रिए से संचालित होने वाली सेवा की पहुंच सुनिश्चित की जा सकती है. ऐसे मानवीय संपर्क केंद्र ‘सेवा मुहैया कराने वाली आख़िरी प्रक्रिया’ के तौर पर कार्य कर सकते हैं.

नागरिक-प्रौद्योगिकी संगठन भी संदर्भ पर आधारित समाधान तैयार कर आख़िरी पायदान तक समावेश की क़वायद को आगे बढ़ाने में मददगार भूमिका निभा सकते हैं. इनमें सीमित कनेक्टिविटी के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ग्रामवाणी का इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सिस्टम और हक़दर्शक का ‘सहायताप्राप्त-टेक’ मॉडल शामिल हैं, जिसमें समुदाय-आधारित ज़मीनी एजेंट्स सरकारी कार्यक्रमों का लाभ उठाने में नागरिकों की मदद करते हैं.

  • खुली प्रौद्योगिकियों के ज़रिए गठजोड़ को प्रोत्साहन देना

कोर टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर की बुनियाद पर गठजोड़ के ज़रिए समाधान तैयार करने की क़ाबिलियत या नए समाधान तैयार करने के लिए डिजिटल बिल्डिंग ब्लॉक्स को दोबारा इस्तेमाल करने या नए उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाने की क़वायद, DPI तैयार करने के मौजूदा रुख़ को अनोखा बना देती है. ये अतीत के तमाम रुख़ों से अलग है. जो व्यक्तियों, स्टार्टअप्स, नॉन-प्रॉफ़िट संगठनों और अन्य इकाइयों के लिए विशाल आबादी को मद्देनज़र रखकर डिजिट समाधान बनाने की संभावनाएं खोल देता है. ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर और गठजोड़ वाले समुदाय तैयार करना इस प्रक्रिया को ज़मीन पर उतारने के लिए दो प्रमुख तत्व हैं.

अर्थव्यवस्था के क्रियाकलाप के लिहाज़ से अहम क्षेत्रों में स्थापित DPI के पास लेन-देन या प्रयोगकर्ताओं की संख्या में किसी अप्रत्याशित वृद्धि के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए ज़रूरी क़ाबिलियत होनी चाहिए. इसके अलावा उनके पास प्रयोगकर्ताओं के बड़े और विविधतापूर्ण समूह की उभरती ज़रूरतों के हिसाब से प्रतिक्रिया जताने की क्षमता भी होनी चाहिए. खुली प्रौद्योगिकियों के प्रयोग को बढ़ावा देने और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की क़वायद काफ़ी उपयोगी हो सकती है. दरअसल ये गठजोड़ को प्रोत्साहित करते हैं और विशाल आबादी के स्तर वाली चुनौतियों को सुलझाने की क़ाबिलियत का वितरण करते हैं. इन खुली प्रौद्योगिकियों में ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर, ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेसेज़ और प्रोटोकॉल्स शामिल हैं, जहां कोई भी पहुंच बनाने, प्रयोग करने और कोड साझा करने को स्वतंत्र होता है.

खुली प्रौद्योगिकियों के तकनीकी और क़ानूनी रंगरूप सरकारों के लिए मददगार होते हैं. इनके ज़रिए सरकारें विक्रेताओं के उत्पादों या सेवाओं पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता की स्थिति से बच सकती हैं. इस तरह वो समान गुणों वाले सॉफ़्टवेयर का लाभ उठाने के लिए तमाम विक्रेताओं के बीच पहुंचकर लागत में कमी ला सकती हैं. खुली प्रौद्योगिकियां परिस्थितियों के हिसाब से आसानी से ढाली जा सकती हैं. इस तरह वो स्थानीय संदर्भों के हिसाब से तयशुदा समाधान तैयार करने में भी उपयोगी होती हैं. दूसरे शब्दों में नागरिक-केंद्रित नवाचारों को ज़मीन पर उतारने में खुली प्रौद्योगिकियां बेहद मददगार होती हैं.

ऐसे खुले नवाचार देशों के लिए भारी-भरकम मूल्य का द्वार खोलने के तंत्र के रूप में भी काम कर सकते हैं. 2021 में यूरोपीय आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला था कि ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर योगदानों में सालाना 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने से यूरोप की जीडीपी में 0.4 प्रतिशत से लेकर 0.6 प्रतिशत तक का अतिरिक्त इज़ाफ़ा हो सकता है. साथ ही वहां अतिरिक्त 600 से ज़्यादा स्टार्टअप्स तैयार करने में भी मदद मिल सकती है.

मज़बूत DPI को रकम मुहैया कराए जाने के लिए नए-नए प्रयोगों वाले तंत्रों के प्रयोग के बारे में सोचा जा सकता है. इनमें सॉवरिन टेक फ़ंड की स्थापना या घालमेल भरे वित्तीय उपकरणों का इस्तेमाल शामिल है. बहरहाल DPI के लिए रकम उपलब्ध कराने की पूरी क़वायद के क्षेत्र में अभी और शोध और प्रयोगों की दरकार है.

खुली प्रौद्योगिकियां ओपन-सोर्स डेवलपर्स, स्टार्टअप्स और सिविल सोसाइटी संगठनों के व्यापक समुदाय के लिए अनेक संभावनाएं पैदा करती है. इसकी मदद से ये तमाम किरदार डिजिटल समाधानों और सेवाओं के विकास में हिस्सा ले सकते हैं. हालांकि इसके साथ-साथ समुदाय के लिए ठोस अवसरों का निर्माण भी ज़रूरी है ताकि वो इन संभावनाओं को पहचान सकें और उनके पास इनमें हिस्सेदारी के पर्याप्त प्रोत्साहन भी मौजूद हों. इस रुख़ को अपनाते हुए कई देश एंड-टू-एंड समाधान तैयार करने की बजाए मददगार वातावरण बनाने पर ध्यान लगा रहे हैं. इस क़वायद में वो सैंडबॉक्स टेस्टिंग, प्रोत्साहन-आधारित नवाचार चुनौतियों/हैकेथॉन्स, इन्क्यूबेशन केंद्रों और सार्थक हिस्सेदारी के अवसर मुहैया कराने वाले अन्य टेस्ट बेड्स का सहारा ले रहे हैं. मिसाल के तौर पर सिंगापुर की डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन एजेंसी एक पोर्टल चलाती है. इसके ज़रिए समुदाय GovTech ऐप्लिकेशंस में टेस्टिंग और सुधार लाने से जुड़े सुझाव दे सकते हैं. इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत के DPI- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) ने सैंडबॉक्स टेस्टिंग दिशानिर्देशों की रूपरेखा सामने रखी है. इनसे नवाचार करने वालों को नियंत्रित वातावरण में अपने उत्पादों या सेवाओं का परीक्षण करने का मौक़ा मिलेगा. जून 2022 तक ABDM सैंडबॉक्स में 867 स्वास्थ्य सेवा ऐप्लिकेशंस के परीक्षण हो चुके हैं, जबकि 40 ऐप्लिकेशंस को सफलतापूर्वक एकीकृत किया जा चुका है.

आगे की राह

  

बुनियादी DPI खड़े करने के मौजूदा दौर में देशों द्वारा चुने गए विकल्पों के भावी पीढ़ियों के लिए दूरगामी नतीजे हो सकते हैं. दीर्घकालिक टिकाऊपन और बराबरी के नज़रिए से सबसे नाज़ुक विकल्प वो हो सकते हैं जो DPI के वित्तपोषण से जुड़े हैं. साथ ही DPI के प्रबंधन के लिए सही प्रकार की टीम खड़ी करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि इनका भरोसे, पहुंच और गठजोड़ पर प्रभाव पड़ना लाज़िमी है.

डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर की स्थापना के लिए प्रौद्योगिकी और डेटा एनालिटिक्स, डिज़ाइन थिंकिंग और समाज विज्ञानों में ख़ास क़िस्म की विशेषज्ञता की दरकार होती है. लिहाज़ा डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर खड़े करने के लिए स्थापित संस्थाओं में तमाम दायरों में गठजोड़ को प्रोत्साहित करने की प्रणाली होनी चाहिए. DPI खड़े करने और उनको बरक़रार रखने के लिए इन-हाउस क्षमता विकसित करना और उच्च-गुणवत्ता वाले बाहरी साझेदार जुटाना, उन सामान्य समस्याओं में से हैं जिनसे दुनिया भर की सरकारें दो-चार हो रही हैं. वो इनसे निपटने के लिए अलग-अलग तौर-तरीक़े अंजाम दे रही हैं. इस कड़ी में हम UIDAI की अगुवाई में चलाई गई अनोखी टैलेंट रणनीति की मिसाल ले सकते हैं. इसमें वो शिक्षा और उद्योग जगत के अलग-अलग पृष्ठभूमियों वाले विशेषज्ञों की सेवाओं की पहचान कर उन्हें संगठन के लिए काम करने के हिसाब से सूचीबद्ध करती है. वो पेशेवरों, स्वयंसेवकों और अध्ययन के लिए छुट्टी पर चल रहे अफ़सरों (sabbatical/secondment officers) के लिए भर्ती से जुड़े दिशानिर्देश सामने रखती है. साथ ही जुड़ाव के तौर-तरीक़ों और चयन की पात्रता और आचार संहिता के ब्यौरे भी पेश करती है. अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने अमेरिकी डिजिटल सेवा में शीर्ष प्रतिभाओं को सामने लाने के लिए ‘प्रेसिडेंशियल इनोवेशन फ़ेलोज़’ कार्यक्रम स्थापित किया था. आगे चलकर ये एक स्थायी प्रौद्योगिकी टीम के रूप में उभर गया.

आख़िर में, DPI का टिकाऊपन सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक वित्तीय मॉडल विकसित करना बेहद अहम होगा. इस संदर्भ में राष्ट्रीय स्तर पर ‘अहम बुनियादी ढांचे’ के विकास और रखरखाव के लिए सार्वजनिक संसाधन सबसे पसंदीदा होते हैं. दरअसल सार्वजनिक सेवा मुहैया कराने में इस बुनियादी ढांचे की निर्णायक भूमिका के चलते इसका व्यापक जनसंख्या के प्रति जवाबदेह बने रहना बेहद ज़रूरी है. निजी या परोपकार के मक़सद से दी गई पूंजी (आमतौर पर जोख़िम को लेकर ऊंची क्षमता के साथ) को नए नवाचार भरे समाधानों का परीक्षण करने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है. इसके लिए परिकल्पना के प्रमाण, प्रोटोटाइप्स और पायलट्स विकसित किए जा सकते हैं. मज़बूत DPI को रकम मुहैया कराए जाने के लिए नए-नए प्रयोगों वाले तंत्रों के प्रयोग के बारे में सोचा जा सकता है. इनमें सॉवरिन टेक फ़ंड की स्थापना या घालमेल भरे वित्तीय उपकरणों का इस्तेमाल शामिल है. बहरहाल DPI के लिए रकम उपलब्ध कराने की पूरी क़वायद (ख़ासतौर से इसके जीवनकाल के विभिन्न चरणों में) के क्षेत्र में अभी और शोध और प्रयोगों की दरकार है.

DPI का नज़रिया विशाल पैमाने पर रफ़्तार भरे और टिकाऊ सेवा मुहैया कराने की क़वायद को साकार करना है. इसके चलते नागरिकों और राज्यसत्ता के बीच के संबंधों में कई बदलाव आते हैं. वैसे तो ये पूरी तरह से आवश्यक और अपरिहार्य हैं, लेकिन डिजिटल बुनियादी ढांचे की असली क्षमता, प्रौद्योगिकी से आगे देखने की क़वायद में छिपी है. इस कड़ी में इस बात पर ध्यान देना होगा कि ये प्रयोगकर्ताओं के साथ व्यक्तिविशेष के रूप में, समूह के रूप में और समाजों के रूप में कैसे संवाद क़ायम करता है. दुनिया के देश टेक और ग़ैर-टेक स्तरों पर अहम विकल्प चुनने का दौर शुरू कर रहे हैं, ताकि DPI को समाज की बेहतरी की दिशा में काम करने के लिए सार्थक रूप से तैनात किया जा सके. ऐसे में ODE ढांचे जैसे रुख़ मददगार साबित हो सकते हैं. इनसे मौजूदा बहसों में सार्थक पहलू जोड़े जा सकते हैं. 

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